बहर:- 1222122212221222
मज़ा परदेश में क्या है उसे समझा नही सकता
सुकूँ जो घर में मिलता है कहीं वो पा नही सकता
सुनो ऐ बाग़बाँ गुलशन पे अपने तुम नजर रखना
ये मत समझो खिला जो फूल वो मुर्झा नहीं सकता
बुढ़ापे की थकन कर लो जवानी मे ज़रा महसूस
जो लम्हा बीत जाता है वो वापस आ नहीं सकता
मेरे कदमों में गिर कर आज मुझ से कह रहे थे वो
मेरे दिल में फक़त है प्यार जो दिखला नहीं सकता
खता क्या हो गई मुझ से जो लोगों से वो कहता है
मै उस की बात को दिल में कभी दफना नहीं सकता
वो बुज़दिल हैं लडाई से जो पहले हार जाते हैं
अगर है अज्म दिल में फिर कोई सर्का नहीं सकता
मुकद्दर में लिखा था जो वो प्रिया हमने पाया है
है गुत्थी ज़ुल्फों सी उलझी कोई सुलझा नही सकता
प्रिया सिंह
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