कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग

जीवन नन्दन मंजुल मेला


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प्रिय तुम मुझसे दूर न जाओ,


मेरे मन में आज नशा है।


घूंघट खोल रही हैं कलियां,


झूम रही मतवाली अलियां।


नन्दन वन की वायु चली है,


सुरभित दिखी आज गली है।


लगती सुखमय मधुरिम बेला,


जीवन नन्दन मंजुल मेला।


उठती मन में मधुरिम आशा,


मिटती सारी थकित पिपासा।


 


तुम भी हंस दो मेरे, प्रियवर,


आज़ गगन में चांद हंसा है।


 


तुम कुछ लगती इतनी भोली,


जैसे कोयल की मधु बोली,


तुमको पाकर धन्य हुआ मैं,


औरों का तो अन्य हुआ मैं।


तुमसे सारा जीवन हंसता,


तुम पर मेरा मन है रमता।


मेरे मन की तुम्हीं कली हो,


तेरे मन का एक अली हूं।


 


घूम रहा हूं आज चातुर्दिक्


नयनों का यह बाण धंसा है।


 


मेरे मन में आज विवश लाचारी,


तुम पर मैं जाता बलिहारी।


कंचन सी यह तेरी काया,


मेरे मन की सारी माया।


खींच रही है बरबस मन को,


तोड़ रही है सारे प्रन को।


अंचल छोर तुम्हारा उड़ता,


मेरे मन में गान उमड़ता।


 


रिमझिम चलती मधुर बयारें,


मेरे मन में प्यार बसा है।


 


मोड़ चुका जो जीवन मन को,


उसके बिन सम्भव क्या जन को।


लोल लहरियां उर के कोने,


भाव रचाकर जाती सोने।


हंस हंस कर तुम मत मुड़ जाओ।


बिछुड़न की नित रीत निराली,


मिलना संभव दो दिन आली।


 


अंग अंग थिरक रही हैं माया,


वस्त्र सुसज्जित-रूप रूप तुम्हारा।


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कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


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