नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

हालात है या हालत ,अवसर है या अवसान ।।                    


 


जिंदगी बन गयी पहेली है खो गया इंसान।।                             


 


 जिंदगी के बोझ में दब गया है इंसान।         


 


जिंदगी के इस दौर में थक गया है इंसान ।।                             


 


क्या करे ,क्या ना करे मध्य उलझ गया है इंसान।                             


 


कर्ज से फर्ज का किया निर्बाह् बेटे कि महंगी पढ़ाई से हो गया तबाह।।                          


 


बेटा बना इंजीनियर मिलता नहीं इंजीनियर को काम ।         


 


गर काम मिल गया तो मिलता नहीं है दाम ।                    


 


न्याय के मंदिर के पुजारी अंधे क़ानून का चौकीदार ।।              


 


 काला कोट पहने शुरू कि वकालत बीत गए दो चार साल।।


 


आमदनी नहीं जेब खाली बचाते अपनी लाज।                        


 


 गावँ ,शहर, कस्बों में ऐसे नौजवान गले में टाई खुबसूरत लिबास।।                     


 


पहचान देश में विक्रय का बादशाह । कुछ नहीं बचा है फिर भी नहीं गयी मुस्कान।।      


 


 रसूख उसका अब भी बरकरार


सुरक्षा बेचता जीवन कि खुद हैं असुरसक्षित ।                


 


अभिकर्ता खोज रहा खुद के लिये काम ऊब गया है हो रहा परेशान।।                          


 


 धोबी, नाई ,शहर कस्बे के छोटे कामगार ।                               


 


ना जन धन का खाता ना ही सरकारी कुछ दान ।             


 


मुफ़्त नहीं कुछ भी , मिलाता नहीं कुछ भो बिना कुछ दाम ।।     


 


भीख मांगना ,किसी के सामने हाथ फैलाना है इनका अपमान।     


 


 संघर्ष कर रहे है हालात से लड़ रहे बदलेगा हालात मन में है विश्वाश ।।             


मजदूर नहीं ये इनका अपना स्व रोजगार ।।                            


 


मजदूर से बदतर इनके हालात पंजाब मराठा हो या हो गुजरात।


 


 इनको तो चाहिये सिर्फ बेहतर हालात चैन की दो रोटी सुकून का अपना रोजगार।।


 


 संचार, संबाद ,के सिपाही पत्रकार वक्त के दौर का सबसे बड़ा जाँबाज।                       


 


लड़ रहा है वक्त से बदलने वक्त का मिज़ाज़ ।। खाली पेट है खाली जेब फिर भी जज्बे का जवाँ हिंदुदुस्तान जिंदाबाद ।          


 


 राष्ट्र शान स्वाभिमान के अंदाज़ है आवाज़ ।।                            


 


 राष्ट्र का मध्यम ,निम्न माध्यम वर्ग का यह समाज किसी मुक्त छूट का नहीं हकदार ।      


 


हर कहर, दहसत कि झेलता ये मार । खामोश जुबाँ चेहरे पे मुस्कान। दर्द ,घाव, ढकता अपने इज़्ज़त अभिमान के लिबास।।     


 


  नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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