राजेश सिंह राजेश लखनऊ

1मई मजदूर दिवस कविता


माथे की सिलवटों के बीच मोतियों सी चमकती बूंदों को हाथ से खीच कर एक लंबी सास लिया । 
पानी  की एक धारा , धरा पर पहुंची और इसी के साथ उसने  आत्मसंतुष्टि का ऐहसास किया ॥ 


धूप की तपिश को अपने चौड़े पृष्ठ भाग पर समेटते हुऐ , आसमान को निहारा । 
बेशर्म उष्णता को सम्मान देते हुऐ उसने पुकारा ॥ 


 तेरी तपिश हमारे इरादों और हमारी मजबूरियों का मजाक तॊ जरूर उड़ा सकती हैं । 
लेकिन हमारे आत्मबल और इच्छाशक्ति को तॊ बिल्कुल भी नहीं डिगा सकती है ॥ 


क्योकि तपिश मेंं तप कर हमने इन  फौलादी बाजुओं को बनाया है । 
आधे पेट भोजन को भी  छक कर मैने , धोखेबाज  गरीबी को गजब का छकाया है ॥ 


तपते पहाड़ो पर,  जलते खेतों मेंं , बर्फ़ीली वादियों मेंं ,भीगते और भागते तुफानो के बीच,  मेरे पुष्ट कंधो ने मजबूरी को हराया है । 
राष्ट्र और समाज के  निर्माण मेंं हम मजदूरो ने प्रभावी फर्ज निभाया है ॥ 


अपनी हुनर कला , विज्ञान , कौशल के दम पर हमने अपना जलवा हर और दिखलाया है । 
अपनी मेहनत के दम पर ही आज हमने भारत  को बुलंदियों तक़ पहुचाया है । 


हम भिक्षुक नहीं , हमारी प्रतिष्ठा और पहचान तॊ मेहनतकश इंशान के रूप मेंं होती है । 
एक मजदुर इतिहास लिखना और बदलना बाखूबी जानता है , इसी लिए इसकी इबादत  साक्षात श्रम के  भगवान के रूप मेंं होती है ॥ 


मेरा  पहचान का यह  दिवस प्रतिवर्ष भीषण गर्मी के महीने मेंं इसी लिए  आता है । 
श्रमयोगी के इस कर्मयोग को पूरा विश्व मजदूर दिवस के रूप मेंं मनाता है ॥ 


*विश्व मजदूर दिवस की बधाई ।* 


🙏 *राजेश*  मेरी एक कविता ।


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