संजय जैन (मुम्बई

*टूट गये परिवार*


विधा : कविता


 


मान अभिमान के चक्कर में,


उजड़ गए न जाने कितने घर।


हंसते खिल खिलाते परिवार,


इसकी भेंट चढ़ गये।


फिर न मान मिला, 


न ही सम्मान मिला।


पर पैदा हो गया अभिमान,


जिसके कारण टूट गये परिवार।।


 


हमें न मान चाहिए,


न सम्मान चाहिए।


बस अपास का,


प्रेम भाव चाहिए।


मतभेद हो सकते है,


फिर भी साथ चाहिए।


क्योंकि अकेला इंसान,


कुछ नही कर सकता।


इसलिए आप सभी का,


हमें साथ चाहिए।।


 


यदि आप सभी आओगे,


एक साथ एक मंच पर।


तो मंच पर चार चांद,


निश्चित ही लग जायेंगे।


अनेक भाषाओं और जाती, 


होने के बाद भी।


जब एक साथ मिलेंगे,


तभी हम हिंदुस्तानी कहलायेंगे।।


 


जय जिनेन्द्र देव की


संजय जैन (मुम्बई)


29/05/2020


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