राजेंद्र रायपुरी।

😌 -- कोरोना और हम -- 😌


 


धीरे- धीरे लौट रही है, 


                   अधरों पर मुस्कान।


यद्यपि अब भी पड़ी हुई है,  


                   आफ़त में ही जान‌।


 


कब तक रहते बंद घरों में,


               बिना किए कुछ काम।


बिना किए कुछ काम मिलेगा, 


                  बोलो कैसे दाम।


 


बिना दाम के जीवन गाड़ी,


                   कौन सका है खींच।


बोलो फिर क्यों घर में बैठें,


                  हम सब आॅ॑खें मींच।


 


चलो काम पर अपने-अपने,  


                  रखना बस ये ध्यान।


सबसे दो गज दूर रहें हम,


                   अगर बचानी जान।


 


छींकें,खाॅ॑सें अगर कभी तो,


                   मुॅ॑ह पर रखें रुमाल।


मास्क बिना बाहर मत निकलें,


                      पहनें ये हर हाल।


 


कोरोना से बचना है तो,


                    यार कहा जो मान।


वरना बचा नहीं पाएगा,


                  तुझको वो भगवान।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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