सुनीता असीम

जीवन में तिश्नगी को जगाए हुए हैं हम।


बस आस एक तुमसे लगाए हुए हैं हम।


***


कोई गुनाह राहे मुहब्बत में हो गया।


तो सामने ये सर भी झुकाए हुए हैं हम।


***


जब जी करे चले आना मेरी गली में तुम।


अब भी शम्मे मुहब्बत जलाए हुए हैं हम।


***


अरमानों को मेरे न हवा इस तरह से दो।


दिल के सभी चराग बुझाए हुए हैं हम।


***


मत तोड़ आइना मेरे दिल का ये साफ सा।


इसमें तो अक्स तेरा। सजाए हुए हैं हम।


***


सुनीता असीम


३/६/२०२०


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...