गीता चौबे "गूँज"
निवास : राँची, झारखंड
जन्मतिथि : 11 अक्तूबर
पति : श्री सुरेंद्र कुमार, अधीक्षण अभियंता
शिक्षा : स्नातकोत्तर (मगध विश्वविद्यालय)
साझा -संकलन :
1 नीलाम्बरा
2 काव्य-शिखा
3 बज़्में हिंद
एकल कविता-संग्रह :
क्यारी भावनाओं की
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता, लघुकथा, आलेख, यात्रा-वृतांत आदि प्रकाशित होते रहना। प्रकाशित एकल कविता-संग्रह "क्यारी भावनाओं की"
ब्लॉग : मन के उद्गार
कई मंचों द्वारा सम्मान एवं प्रशस्तिपत्र
विरासत में मिले साहित्यिक माहौल में मन के उद्गार को शब्दों में पिरोने की ललक, किन्तु पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के बाद सक्रिय रूप से लेखन
ई-मेल : choubey.geeta@gmail.com
1. मन का पपीहा
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चल रे पपीहरा...
पी कहां-पी कहां
का मधुर गीत
सुना दे जरा...
पपीहे की पीहू पीहू
कोयल की कूहू कूहू
दिल में प्रेम को
तरंगित कर दे
वहीं किसी विरहिणी के
मन में तड़पन भर दे
वही पपीहा
वही पी कहां
पर मन की सूरत
तय करे
मिलन या विरह
जीवन की भी यही हालत
सबकुछ दिखे वैसे
जैसी मन में हो चाहत
तो क्यूँ न पूरी हो
मिलन की हसरत?
क्यूँ करें विरह का स्वागत?
तो चलें...
मन के पपीहे को जगाएं
जो तराने खुशियों के गाए
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2. कशिश
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कुछ लिखने की मेरे मन में
एक कशिश जगी
उनींदी आँखों में
ख्वाहिशों की चाशनी पगी
खुद पर विश्वास किया तो
सम्भावनाओं की आस पली
पंख तलाशने को आतुर मैं
एक नए सफर पर चली
एक नया आयाम मिला
मिली एक ऊँचाई मेरे लेखन को
अपनी कविताओं में खोल दिया
मैंने अपने अंतर्मन को
मेरी कविताओं में
नव ऊर्जा की तपिश हो
बदल सके जो समाज को
ऐसी ग़ज़ब की कशिश हो
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3. जमीन
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भावनाओं की जमीन पर
बोये थे कुछ बीज सपनों के
कुछ मुरझा कर तोड़ गए दम
कुछ खिल उठे पा संग अपनों के
दम उन्हीं बीजों ने तोड़ा
जिनकी किसी ने हिफाजत न की
सपने भी वही चूर हुए
जिनकी किसी ने वकालत न की
उत्पादन के लिए जैसे जमीन की
निराई- गुड़ाई जरूरी है
वैसे ही सुविचारों की खेती के लिए
साफ सुथरी भावनाएं जरूरी हैं
भावनाओं की जमीन भुरभुरी हो चुकी है
कविता की क्यारियाँ लग चुकी हैं
बीज भी बोए जा चुके हैं
बस स्नेह के नीर से सींचना बाकी है।
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4. माटी और कुम्हार
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एक दिन सपने में माटी कहे कुम्हार से।
बातों को सुन लो मेरी जरा तुम प्यार से।
इस बार तुम ऐसे अनोखे दीप बनाना,
नेह भरी बाती जले करुणा की धार से।
मातृभूमि की सोंधी मिट्टी को तुम लाना।
धीरे-धीरे अहसास का पानी मिलाना।
प्यार से हाँ थपथपाना उसको तुम यारा
हल्के हाथों से रखकर फिर चाक हिलाना।
प्रथम दीप माँ व मातृभूमि के नाम करना।
द्वितीय पर अपने पुरखों के काम उकेरना।
तदनंतर देशभक्त महापुरुषों के लिए,
सुनो मेरी बात इंकार नहीं तुम करना।
ऐसा दीप बाजार में बिकने आएगा।
कौन खुद को खरीदने से रोक पाएगा?
देशभक्ति के जज़्बे के सामने तो भला,
कोई विदेशी सामान क्या टिक पाएगा?
अपना देश,अपनी मिट्टी, अपने ही लोग।
सच होगा सपना, और बनेगा सुसंयोग।
होगी रोशनी, ठुमकती लक्ष्मी आएगी,
कोई न भूखा होगा और न होगा रोग।
फिर दिग दिगन्त में छा जाएगी खुशहाली।
घर-घर में मन पाएगी सुन्दर दीवाली।
सुनकर दीप की बात कुम्हार भी मुस्काया,
दीपों की ऐसी लड़ियां निर्मित कर डाली ।
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5. नन्ही दूब
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बाग में मैंने देखी एक नन्ही सी दूब
जिसके भविष्य की सोच
मेरा दिल गया डूब
क्या बचा पाएगी यह नन्ही सी जान
अपना अस्तित्व?
ढेरों बड़े पौधों के बीच
माली काका का ध्यान
कर पाएगी अपनी ओर आकृष्ट?
मैंने दी तसल्ली अपने मन को
और समझाया
हजारों लोग जन्म लेते हैं
और यूँ ही मृत्य को प्राप्त होते हैं
इस तुच्छ जीव
दूब की नियति भी वही हो
पर मैं गलत थी
कोई भी चीज़ बेवजह नहीं होती
किसी का भी जन्म-काल भले छोटा हो
पर अकारण नहीं होता
कल पूजा में पंडित जी ने
दूब को अति आवश्यक बताया
मैं दौड़ पड़ी बगीचे की ओर
देखा वो नन्ही दूब
मुस्करा रही थी
मानो अपने महत्व का
अहसास करा रही थी।
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