भगवान शिव के नवम् ज्योतिर्लिंग की कथा एवं महिमा।
--- नवम्---
ज्योतिर्लिंग नवम् शम्भु का काशी विश्वनाथ अघनाशक।
पावन काशी नगरी स्थित दुःख त्राता पथ परम प्रकाशक।
प्रलयकाल श्री शिव काशी को निज त्रिशूल पर धारण करते।
सृष्टि काल में फिर से इसको यथास्थान धरती पर रखते।
सृष्टि कामना से शिव जी की यहीं तपस्या की श्रीहरि ने।
किया प्रसन्न यहीं शिव जी को तप द्वारा अगस्त मुनि वर ने।
परम पवित्र सनातन नगरी त्यागे जो भी प्राण यहां पर।
कहते तारक मंत्र श्रवण में देते परम धाम शिव शंकर।
पंच प्रधान तीर्थ अति पावन विश्वेश्वर आनन्द वाटिका।
केशव लोलार्क दशवाश्वमेध बिन्दु माधव अरु मणिकर्णिका।
इस कारण यह अविमुक्त क्षेत्र नगर मध्य विश्वेश्वर खण्ड।
इसके दक्षिण केदारखण्ड उत्तर दिशा में है कारखण्ड।
विवाहोपरान्त गोरी जी ने पति गृह जाने की इच्छा की।
आये पावन नगरी काशी पार्वती के संग शंकर जी।
विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप माता संग स्थित इस नगरी।
दर्शन पूजन का फल अनन्त शिव भक्तों की आस्था गहरी।
चरण कमल रज शीश धरूं नित पूजूं तुम्हें सदा निष्काम।
हे शिव शंकर हे गंगाधर हे गौरीपति तुम्हें प्रणाम।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें