द्वितीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-40
चले मिलन जनकहिं रघुनाथू।
गुरु बसिष्ठ-लछिमन लइ साथू।।
पाछे सकल समाजइ गयऊ।
सचिव सुमंतु संग जे रहऊ।।
गुरु बसिष्ठ कौसिक ऋषि मिलि के।
करैं बिचार भविष-गति लखि के।।
कीन्हा नमन राम कौसिकहीं।
सिय-पितु नृप जनकहिं प्रति नवहीं।।
सिय जननी तब रानि सुनैना।
तुरत गईं जहँ रानिन्ह रहना।।
सुख-दुख कह सभ समधिन्ह मिलि के।
हरष-बिषाद नयन जल भरि के।।
जथा-जोग सभ जन मिलि भेंटहिं।
कहहिं-सुनहिं कलेस निज मेंटहिं।।
दोहा-राम-लखन दोउ भाइ मिलि, ऋषिहिं झुकावैं सीष।
बामदेव-जाबालि सँग,कौसिक देहिं असीष।।
आयसु पा मुनि अत्रि कै,भरत संग सभ लोग।
चित्रकूट-कामद-छबी,निरखे भा संजोग ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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