हे ज्योतिपुंज शत् शत् प्रणाम
हे ज्योतिपुंज ब्रह्म शत् शत् प्रणाम
लीला तेरी अपरम्पार
कहीं दृश्य तो कहीं अदृष्य
भ्रम में खोया यह संसार।
तेरी अनुभूति से तेरा रुप बनाया
अगणित आकार बना बैठे
मानस मंदिर से दूर कहीं
तेरा घर द्वार बसा बैठे हैं।
हर चिंगारी तू अंगार बना
सौरभ बन फूलों का प्राण बना
ले रहे श्वास जो जड़ और चेतन
उसके रग-रग का रक्त संचार बना।
हे ज्योतिपुंज ब्रह्म शत् शत् प्रणाम
लीलाएं तेरी अपरम्पार
सर्वत्र व्याप्त छवि तेरी
अविनाशी ब्रह्म तू घट-घट वासी।।
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड
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