परिचय
नाम -नीरजा बसंती
पद -स. अ.
विभाग -बेसिक शिक्षा विभाग
निवास -रुस्तमपुर, गोरखपुर
कविता 1
हे, दिव्य प्रभा अभिनन्दन,
हे, दिव्य दिवस अभिनन्दन,
हुई अयोध्या पुनः दिव्यमय,
हे, राम आपका अभिनंदन !
है कोटि -कोटि अभिवंदन !!
नवल प्रात की आभा से,
सरयू की पावन धारा से,
भावों के पूर्ण समर्पण से,
हे, दशरथ नंदन अभिनंदन !
है कोटि -कोटि अभिवंदन!!
विह्वल, अहलादित है जन -जन,
पूरित आशा सज गए स्वप्न,
अनगिन दीप जले मन -मन,
हे, सियाराम शुभ अभिनंदन !
है, कोटि -कोटि शुभ अभिवंदन !!
दिव्य भूमि का पूजन दिवस,
विजय दिवस -सा खिला हर्ष,
मंगल, पावन, सुखद प्रहर,
हे!परम् पुरुष, हे !पुरुषोत्तम,
हे, राम आपका अभिनंदन !
है कोटि -कोटि अभिवंदन !!
नीरजा बसंती
05/08/2020
कविता 2
नव नेह--
नैनो में
नव नेह सजे
हिय, हर्षित
अभिलाषित।
दिवा, उमस
शीतलता, सरस।
सब समतल
परिभाषित !!
दृढ़ संकल्पित मन
चले निरंतर कंटक पथ,
फिर भी सुखमय
लगे प्रहर
क्षण-क्षण हो
अह्लालादित !!
छूने को
अक्षय आकाश
कौतुहल मन उड़े उड़ान
अति उमंग
उल्लासित !!
रवि द्युतिमा से
आयुष्मान,
जीवन ज्योति प्रसार,
प्राणो को
नव संचय दे,
लक्ष्य अटल हो
ज्योतिर्मान !!
नीरजा बसंती
29/6/2020
कविता 3
!!!मिट जायेगा गहन तिमिर यह !!
(कोरोना महामारी के संदर्भ में )
सहमी सी है वसुधा अपनी,
डरा हुआ अम्बर है,
मुश्किल में है ये जन जीवन,
कांप रहा हर मन है !
हवा के झोंके हुए विषैले,
स्पर्श में है बीमारी,
श्वास की घड़िया दुभर हो गयीं, फैली है महामारी !
मंदिर मस्जिद बंद हो गए,
खुले हैं श्मशानों के द्वार,
खुशियों पर पड़ गयीं बेड़िया,
बनी है विपदा पहरे दार !
प्रलयनाद सी यह महामारी,
जनमानस पर भारी,
मानव जीवन लील रही,
यह 'पशुओं की बीमारी ' !
विश्व युद्ध -सा द्वन्द चल रहा,
हर जर्रे -जर्रे में,
हुए अचंभित सोच रहे हैं,
मृत्यु छिपी कण- कण में !
बड़े -बड़े विकसित देशों पर,
छाई लाचारी -सी,
दिखे नहीं कोई उजियारा,
दुनिया बेचारी -सी !
विश्व पटल के विकसित देश, टिक न सकें इस रण में,
जो अपना डंका बजा रहे थे,
समृद्धि और बल में !
जो जितने विकसित थे,
वे उतने ही बर्बाद हुए,
पर अपनी 'संस्कृति' के बल पर,
हम सबकी मिसाल हुए !
'संयम' और 'सामर्थ्य' छुपा है,
देश के जनमानस में,
सक्षम और समृद्ध खड़े,
हम विपदा के इस क्षण में!
'मिट जायेगा गहन तिमिर यह,'
आशा के दीप जलाने से,
विजयगान का शंख बजेगा,
'सतर्कता' अपनाने से !
सन्नाटे -सी गलियों में,
फिर फैलेगा सुखमय उजियारा,
महानिशा के अंधकार में,
चमकेगा फिर ध्रुवतारा !
अपनी 'सभ्यता' और 'संस्कृति',
दुनिया को सिखलाना होगा,
वही सनातन धर्म हमें,
फिर से अपनाना होगा !
वही सनातन धर्म हमें,
फिर से अपनाना होगा !!
नीरजा बसंती (सहायक अध्यापक )
प्रा.वि.-गहना
ब्लॉक -खजनी
गोरखपुर
कविता 4
मनभावन सावन...
श्याम जलद नभ छाये,
वर्षा ने मोती सी बुँदे,
धरा के आँचल में बिखराया,
मनभावन सावन आया !
वर्षा की शीतल शीतलता,
मन की तपन बढ़ाये,
चमक चमक गरज बादल के,
विरही का विरह जगाये,
मनभावन सावन आया !!
ताल -तलैया, वृक्ष, धरा,
सब पर हरियाली छायी,
पके आम, जामुन की डलियाँ,
मह -मह सी खुशबू आये,
सूखी मन की डाली,
इंद्र धनुष न भाया,
मनभावन सावन आया !!
कूक कोकिला मन न भाए,
दादुर टेर भी शोर मचाये,
पपिहा ने पीर बढ़ाया,
मनभावन सावन आया !!
गोकुल छोड़ गए तुम कान्हा,
वृन्दावन पतझड़ छाया,
धरा ने ओढ़ी हरी चुनरिया,
विरही मन मुरझाया,
प्रेम जलद नभ छाये,
कब मनभावन सावन आये? मनभावन सावन आया !!
नीरजा बसंती
कविता 5
टूटती सी आश....
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खुशनुमा ख़्वाबों का
मौसम
ले रहा अंगड़ाईया
सर्द सी चलती हवाये
संग जैसे परछाईया !
आश पूरित स्वप्न लेकर
गा रहा मन झूम कर।
मन की आशाये
मचलती,सँवरतीं।
बज रही शहनाईयां !
स्वप्न में,आशा से भरे
दृग ,
चपल, चंचल हो चले
ताकतें नित राह को
हैं ढूंढते, नित प्राण को !
टूटती सी आश में भी
मन शांत हो अविचल खड़ा
क्षण तनिक क्या सोच
यह दृग सजल फिर हो चले !
फिर बढ़ चली यह रात्रि भी
अंतिम प्रहर के रैन में
चंद्र भी धूमिल निशा है
बढ़ रही अवसाद में !
हाय !यह दिन भी गया
प्रिय तुम्हारी याद में
आश बन कर रह गयी
शहनाईया फिर ख्वाब में !!
28/6/2020
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