कुं जीतेश मिश्रा शिवांगी

स्वतंत्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा ।


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम.....वन्दे मातरम.......


 


अलख जो जग उठी है वो अलख है तेरे शान की ।


ये बात आ खड़ी है अब तो तेरे स्वाभिमान की ।।


कटे नहीं मिटे नहीं झुके नहीं तो बात है ।


अपने फ़र्ज पर सदा डटे रहे तो बात है ।।


तू भारती का लाल है ये भूल तो ना जाएगा ।


जो देश प्रति है फर्ज़ अपने फ़र्ज तू निभाये जा ।।


 


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम......वन्दे मातरम.....


 


जो ताल दुश्मनों की है उस ताल को तू जान ले ।


छुपा है दोस्तों में जो गद्दार तू पहचान ले ।।


भारती की लाज अब तो तेरा मान बन गई ।


नही झुकेंगे बात अब तो आन पे आ ठन गई ।।


उठे नजर जो दुश्मनों की देश पर हमारे तो ।


एक एक करके सबको देश से मिटाये जा ।।


 


भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा ।।


वन्दे मातरम.....वन्दे मातरम.....


 


मिली हमें आजादी कितने माँ के लाल खो गए ।


हँसते हँसते भारती की गोद जाके सो गए ।।


आजादी का ये बाग रक्त सींच के मिला हमें ।


ना भेद भाव मे बँटे वो साथ जो मिला इन्हें ।।


सौंप ये वतन गए उम्मीदें हमसे बाँध जो ।


संवार के उम्मीद उनकी देश को सजाये जा ।।


 


कुं जीतेश मिश्रा "शिवांगी"


धौरहरा लखीमपुरखीरी


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