जग का मेरा प्यार नहीं था ।
प्रेम दीप में जलते जलते ।
प्रेम आश में पलते पलते ।।
ह्रदय किया था तुम्हें समर्पित , साधारण उपहार नहीं था । (१)
जग का मेरा प्यार नहीं था ।।
नयी किरण थी खिली खिली सी ।
उठी लहर थी मिली मिली सी ।।
तुम पर जीवन किया था अर्पित , गहनों का श्रृंगार नहीं था । (२)
जग का मेरा प्यार नहीं था ।।
तेरे मिलन की आशाओं में ।
दीप जला रक्खे राहों में ।।
भला मेरा अनमोल प्रेम ये , क्यूँ तुमको स्वीकार नहीं था । (३)
जग का मेरा प्यार नहीं था ।।
शिवांगी मिश्रा
धौरहरा लखीमपुर खीरी
उत्तर प्रदेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें