राजेंद्र रायपुरी

 दोहा छंद पर एक मुक्तक 


 


नहीं बुढ़ापा बोझ है, काहे चिंतित होय।


यही समय जब चैन से,लेता है जन सोय।


और किया जो पाप है,जाकर चारो धाम,


मरने से पहले सभी, लेता है वो धोय।


 


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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