दयानन्द त्रिपाठी

मानव रूपी शैतानों से 


जननी एक छली गयी


मन के हर भावों को लिए


हैवानों से ठगी गयी ।


 


अब तो समाज के ठेकेदारों


कुछ तो शर्म करो अपने पर


यदि कुछ कर नहीं सकते तो


ठेकेदारी छोड़ रहम करो अपनों पर।


 


अपने ऊल-जुलूल तर्कों से ही 


बचते हैं शैतान यहां पर


शैतानों के अमानवीय आघातों से


सबकुछ चकनाचूर हो गया यहां पर।


 


अब कर्तव्यों की दृढ़ता में 


क्या कुछ और देखना बाकी है


इन दानवों के मुकदमें ना हो बस


सरेआम फांसी देना ही बाकी है।



  -दयानन्द त्रिपाठी


महराजगंज उत्तर प्रदेश।


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