डॉ0हरि नाथ मिश्र

 नीति-वचन

         *नीति-वचन*-17

देहिं जलद जग अमरित पानी।

सुख-सीतलता बुधिजन-बानी।।

   संत-संतई कबहुँ न जाए।

   कीच भूइँ जस कमल खिलाए।।

नीम-स्वाद यद्यपि प्रतिकूला।

पर प्रभाव स्वास्थ्य अनुकूला।।

    गर्दभि गर्भहिं अस्व असंभव।

    खल-कर सुकरम होय न संभव।।

नहिं भरोस कबहूँ बड़बोला।

खल-मुस्कान कपट मन भोला।।

    दूध-दही-मक्खन-घृत-तेला।

    जदपि स्वाद इन्हकर अलबेला।।

पर जब होय भोग अधिकाई।

हो प्रभाव जस कीट मिठाई।।

   आसन-असन-बसन अरु बासन।

   चाहैं सभ अनुकूल प्रसासन।।

बट तरु तरि जदि पौध लगावा।

करहु जतन पर फर नहिं पावा।।

दोहा-रबि-ससि-गरहन होय तब,महि जब आवै बीच।

         बीच-बिचौली जे करै,फँसै जाइ ऊ कीच ।।

                   डॉ0हरि नाथ मिश्र

                   9919446372

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