डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-54

सीता बिकल बिरह-दुख भारी।

रजनी-रजनीसहिं धिक्कारी।।

      सरै निसा नहिं बिरह-बियोगा।

      अब कस होंहि मिलन-संजोगा??

पुनि-पुनि सोचहिं सीता माता।

बिरह-बिकल मन कंपित गाता।।

      तब सिय बाम-भुजा अरु लोचन।

      फरकन लगे करन दुख-मोचन।।

निसा अरध भे रावन जागा।

डाँटत सारथि रथ चढ़ि भागा।।

      होत प्रात रन-भूइँ पधारा।

      जाइ तहाँ कपिनहिं ललकारा।।

सुनि ललकार कपिन्ह सभ भट्टा।

बिटप-पहार उपारि लइ ठट्टा।।

      धावत गए जहाँ रह रावन।

       किए प्रहार पहार-तरु धावन।।

बिकल भयो निसिचर-दल भारी।

घेरे पुनि रावन ब्यभिचारी ।।

     नखन्ह नोंचि  बिकल तेहिं कीन्हा।

     पुनि चपेटि बिदिर्न करि दीन्हा ।।

दोहा-होइ बिकल रावन तुरत,किय माया बिस्तार।

        लगा करन कौतुक करम, हर बिधि सोचि-बिचार।।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

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