विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल-

वो यक़ीनन ही मजबूरे-हालात थी 
टालती रहती  हर दिन मुलाकात थी

उसका चेहरा नज़र आता चारों तरफ़
इश्क़ था या कि कोई करामात थी 

दिल फ़िदा होके सब कुछ लुटाता रहा 
उसकी मासूमियत में अजब बात थी 

सर से पा तक सराबोर रहता था मैं
प्यार की इतनी करती वो बरसात थी 

प्यार से उसने जादू सा क्या कर दिया
मेरे सारे ग़मों की हुई मात थी

उसके लफ़्जों से दिल का चमन खिल उठा
 यह  ग़ज़ल थी या कोई मुनाजात थी

जिसकी तारीफ़ करते न *साग़र* थका
इस जहां में अकेली वही ज़ात थी

 🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
28/5/2021
मुनाजात-ईश प्रार्थना

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