डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पहला-1
                *गीता-सार*  -डॉ0हरि नाथ मिश्र
                (पहला अध्याय)
मोहिं बतावउ संजय तुमहीं।
कुरुक्षेत्र मा का भय अबहीं।।
   कीन्हेंयु का सुत सकल हमारे।
   पांडु-सुतन्ह सँग जुद्ध मँझारे।।
अस धृतराष्ट्र प्रस्न जब कीन्हा।
तासु उतर संजय तब दीन्हा।।
   संजय कह सुन हे महराजा।
   पांडव-सैन्य ब्यूह जस साजा।
लखतय जाहि कहेउ दुर्जोधन।
सुनहु द्रोण गुरु मम संबोधन।
   द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न तुम्हारो।
   बृहदइ सैन्य ब्यूह रचि डारो।
पांडव जन कै सेना भारी।
लखहु हे गुरुवर नैन उघारी।।
   सात्यकि अरु बिराट महबीरा।
   अर्जुन-भीम धनुर्धर धीरा।।
धृष्टकेतु-पुरुजित-कसिराजा।
चेकितान-सैब्य जहँ छाजा।।
     परम निपुन जुधि मा उत्तमोजा।
     रन-भुइँ अहहिं कुसल कुंतिभोजा।।
संग सुभद्रा-सुत अभिमन्यू।
पाँचवु पुत्र द्रोपदी धन्यू।।
   ये सब अहहिं परम बलवाना।
   जुधि-बिद्या अरु कला-निधाना।।
निरखहु इनहिं औ निरखहु मोरी।
बरनन जासु करहुँ कर जोरी।।
   दोहा-हे द्विज उत्तम गुरु सुनहु,जे कछु कहहुँ मैं अब।
          मम सेनापति,सेन-गति,जे कछु तिन्ह करतब।।
स्वयं आपु औ भीष्मपितामह।
कृपाचार गुरु बिजयी जुधि रह।।
     कर्ण-बिकर्णय-अस्वत्थामा।
     भूरिश्रवा बीर बलधामा।।
बहु-बहु सूर-बीर बलसाली।
अस्त्र-सस्त्र सजि सेन निराली।।
    अहहि मोर सेना अति कुसला।
    जुद्ध-कला बड़ निपुनइ सकला।।
भीष्मपितामह रच्छित सेना।
भीमसेन जेहि जीत सके ना।।
    अस्तु,सभें जन रहि निज स्थल।
    भीष्मपितामह रच्छहु हर-पल।।
सुनि दुर्जोधन कै अस बचना।
भीष्म कीन्ह निज संख गर्जना।।
     ढोल-मृदंगय-संख-नगारा।
     कीन्ह नृसिंगा जुधि-ललकारा।।
धवल अस्व-रथ चढ़ि ध्वनि कीन्हा
अर्जुन-कृष्न संख कर लीन्हा।।
    पांचजन्य रह संख किसुन कै।
    देवयिदत्त संख अर्जुन कै।।
संख पौंड्र भिमसेन बजायो।
रन-भुइँ संख-नाद गम्भीरायो।।
            डॉ0हरि नाथ मिश्र
             9919446372       क्रमशः.......

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