एस के कपूर श्री हंस

*।।ग़ज़ल।।संख्या 115 ।।*
*।।काफ़िया, आन।।रदीफ़, में।।*
*।।पूरी ग़ज़ल मतलों में।।*
1   *मतला*
मत ढूंढ तू खुशी दूर   आसमान में।
बसी तेरे अंदर झाँक   गिरेबान  में।।
2    *मतला*
फैली हर कोने कोने तेरे  मकान में।
बात तो कर   सबसे    खानदान में।।
3   *मतला*
मिलती नहीं   खुशी सौ  सामान  में।
मिल बांटकर खाओ हर पकवान में।।
4    *मतला*
हर जर्रे जर्रे में छिपी  इसी जहान   में।
जरूरी नहीं मिले बस ऐशो आराम में।।
5    *मतला*
छिपी है   खुशी तेरी   ही   दास्तान  में।
बस जरा मिठास घोलअपनी जुबान में।।
6   *मतला*
मिलती है खुशी हर चढ़ती पायदान में।
मत ग़मज़दा हो तू   हर    नुकसान में।।
7    *मतला*
कोई बात   अच्छी रहती हर पैगाम में।
नाराज़गी जरूरी नहीं हर हुक्मरान में।।
8    *मतला*
कभी कभी हवा  खोरी खुले मैदान में।
मिलेगी तुझको खुशी ऐसे भी वीरान में।।
9    *मतला*
कभी मिलेगी न खुशी गलत अरमान में।
सच्चे मन से मांगो मिलेगी भगवान में।।
10    *मतला*
नफरतों को  थूक दो तुम पीक दान  में।
खुशी देगी दिखाई तुम्हें हर मेहरबान  में।।
11    *मतला* 
महसूस करो खुशी मिलती देकर दान में।
देखो नज़र से मिलेगी  हर   मेहमान में।।
12     *मतला*
सोच से आती खुशी हो कश्ती तूफान में।
जरूरी नहीं कि जाना पड़े दूर जापान में।।
13      *मतला*
बात है टिकती कैसे रिश्ते दरमियान में।
खूब खुशी मिलेगी बन कर मेजबान में।।
14     *मतला*
जरा बन कर तो  देखो तुम कद्रदान में।
मिलेगी खुशी   तुमको   हर   इंसान में।।
15       *मक़्ता*
*हंस* बात आकर रुकती जीने के हुनर पर।
जान लो खुशी गम रह सकते एक म्यान में।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस'।।बरेली।।*
मो 9897071046/8218685464

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