श्रीकांत त्रिवेदी

मर गया जो भूख से,वो क्या करे!
अब उसे जन्नत मिले,तो क्या करे!
मिला सहरा जिंदगी भर प्यास को,
मौत पर दरिया मिले,तो क्या करे!
उम्र भर पाया न ,अपना प्यार जो,
फिर उसे हूरें मिलें , तो क्या करे !
ईदी न दे पाया,कभी गुर्बत में जो,
दौलतें पा के भी फिर वो क्या करे!
जिसको तुमने नफरतें दीं उम्र भर,
कब्र में इस प्यार का,वो क्या करे!
मां बाप, तेरी बेरुखी से मर गए ,
तस्वीर के इस हार का,वो क्या करे!
जीते जी तो कद्र ,उसकी की नहीं,
बुत पुजे उसका तो अब,वो क्या करे! 
बहते  रहे थे अश्क, उसके  उम्र भर ,
तुमको अब मोती लगे, तो क्या करे! 
ढूंढती ही रह गई,जिंदगी पहचान को,
मौत को शोहरत मिले, तो क्या करे !!
    ........ श्रीकांत त्रिवेदी,लखनऊ

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