मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*
*कागा*
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कागा का संदेश है, अतिथि आगमन आज।
पूज्य अतिथि हो जहाँ, एकछत्र  हो राज।
एकछत्र हो राज , सनातन धर्म बताता।
सबरी के घर राम , भाव यह रचे विधाता।
कह स्वतंत्र यह बात, करो सत्कार सुहागा।
रचो नए पकवान ,  खिलाओ कहता कागा।।

कागा आते श्राद्ध पर, पितृ स्वरूप अवतार।
श्यामल इनका रूप है, कर्कश वाणी सार।
कर्कश वाणी सार , सुनो मन ध्यान लगाए।
कोयल की आवाज, मधुर अति मन हर्षाए।
कह स्वतंत्र यह बात, टूटता कच्चा धागा।
अद्भुत अनुपम योग, बताए सबसे कागा।।

कागा पक्षी देखता, एक आँख से दूर।
रामायण में है लिखा, भावपूर्ण दस्तूर।
भावपूर्ण दस्तूर , सतत् वह उड़ता जाये।
लखन चलाए तीर , भाग वह प्राण बचाए।
कह स्वतंत्र यह बात, क्रोध का कोप अभागा।
छलिया धरकर रूप, फिरे यह तब से कागा।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*03.07.2021*

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