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विनय साग़र जायसवाल
यशपाल सिंह चौहान
विनय साग़र जायसवाल
सुनीता असीम
सुनीता असीम
विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल
एस के कपूर श्री हंस
विनय सागर जयसवाल
सुनीता असीम
विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल
सुनीता असीम
देवानंद साहा आनंद अमरपुरी
सुनीता असीम
विनय साग़र जायसवाल
सुनीता असीम
विनय साग़र जायसवाल
ग़ज़ल-
जब कभी ज़ीस्त पर कोई बार आ गया
नाम लेते ही उनका क़रार आ गया
आप खोये हुए हैं कहाँ देखिये
आप के दर पे इक बेक़रार आ गया
बहरे-ताज़ीम पैमाने उठने लगे
मयकदे में कोई मयगुसार आ गया
आपके ख़ैरमक़्दम के ही वास्ते
देखिये मौसम-ए-पुरबहार आ गया
आप क़समें न खायें हमारी क़सम
छोड़िए छोड़िए ऐतबार आ गया
जब अचानक कहीं कोई आहट हुई
यूँ लगा हासिल-ए-इंतज़ार आ गया
दो क़दम जब भी मंज़िल की जानिब चला
उड़ के आँखों में *साग़र* ग़ुबार आ गया
🖋️विनय साग़र जायसवाल
ज़ीस्त-
बार-बोझ ,भार
बहरे-ताज़ीम-स्वागत हेतु
मयगुसार-रिंद ,मयकश ,शराबी
ख़ैरमक़्दम-स्वागत ,
पुरबहार -बहारमय ,बहारो से भरपूर
ग़ुबार-धूलकण
विनय साग़र जायसवाल
ग़ज़ल -
पहले दूजे का कुछ तो भला कीजिए
फिर तवक्को किसी से रखा कीजिए
हुस्ने मतला--
यह इनायत ही बस इक किया कीजिए
हमसे जब भी मिलें तो हँसा कीजिए
साथ लाते हैं क्यो़ सैकड़ों ख्वाहिशें
हमसे तन्हा कभी तो मिला कीजिए
हाल मेरा ही क्यों पूछते हैं सदा
अपने बारे में कुछ तो लिखा कीजिए
आपको है हमारी क़सम हमनफ़स
हमसे कोई कभी तो गिला कीजिए
आप भी और बेहतर कहेंगे ग़ज़ल
दूसरे शायरों को पढ़ा कीजिए
आप *साग़र* की ग़ज़लों में हैं जलवागर
थोड़ा बनठन के यूँ भी रहा कीजिए
🖋️विनय साग़र जायसवाल बरेली
20/3/2021
एस के कपूर श्री हंस
।।ग़ज़ल।। ।।संख्या 32।।*
*।।काफ़िया।। आह।।*
*।।रदीफ़।।देखना चाहता हूँ।।*
*बहर 122-122-122-122*
*संशोधित।।।*
1
तिरी चाह को देखना चाहता हूँ।
हद-ए-वाह को देखना चाहता हूँ।।
2
तू हमराही है मेरा हमजोली भी है।
इसी थाह को देखना चाहता हूँ।।
3.
ग़रीबों की आहों में कितना असर है।
उसी आह को देखना चाहता हूँ।।
4
मज़ा इंतज़ारी में आता है कैसा।
तिरी राह को देखना चाहता हूँ।।
5
गुज़रती है क्या *हंस* उस पर जहां में।
मैं गुमराह को देखना चाहता हूँ।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
।।ग़ज़ल।। संख्या 33 ।।
*।। काफ़िया।। तोड़ने,मोड़ने,छोड़ने*,
*जोड़ने आदि।।*
*।।रदीफ़।। पड़े मुझे।।*
*बहर 221-2121-1221-212*
1
अपने उसूल उसके लिए तोड़ने पड़े ।
ग़लती नहीं थी हाथ मगर जोड़ने पड़े ।।
2
दूजों को आबोदाने कि दिक्कत न पेश हो ।
अपने हक़ो के सिक्के सभी छोड़ने पड़े ।।
3
मुफ़लिस के घर भी जाये मिरे घर की रौशनी।
अपने घरौंदे ख़ुद ही मुझे फोड़ने पड़े ।।
4
तकलीफ़ हो किसी को न मेरे वजूद से ।
यह सोच अपने शौक मुझे छोड़ने पड़े ।।
5
जिस रहगुज़र से *हंस* था मुश्किल भरा सफ़र ।
उस रास्ते पे अपने क़दम मोड़ने पड़े ।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
।।ग़ज़ल।। ।।संख्या 34।।*
*।।काफ़िया।। आर ।।*
*।।रदीफ़।। होती है ।।*
1 *मतला*
शब्द की महिमा अपार होती है।
लिये शक्ति का इक़ भंडार होती है।।
2 *हुस्ने मतला*
हर शब्द की अपनी इक़ पैनी धार होती है।
कि शब्द शब्द से ही पैदा खार होती है।।
3 *हुस्ने मतला*
शब्दों से ही बात इक़रार होती है।
शब्दों से ही कभी बात इंकार होती है।।
4 *हुस्ने मतला*
शब्द की मिठास लज़ीज़ बार बार होती है।
कभी यह तीखी तेज़ आर पार होती है।।
5
किसी शब्द का महत्व कम मत आँकना कभी।
शब्द से शुरू बात फिर विचार होती है।।
6
हर शब्द बहुत नाप तोल कर ही बोलें।
हर शब्द की अपनी एक रफ्तार होती है।।
7
शब्दों का खेल बहुत निराला होता है।
एक ही शब्द बनती व्यपार, व्यवहार होती है।।
8
शब्दों से खेलें नहीं कि होते हैं नाजुक।
कभी इनकी मार जैसे तलवार होती है।।
9
*हंस* शब्द महिमा बखान को शब्द कम हैं।
शब्दों की दुनियाअपने में एक संसार होती है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।*
मोब।। 9897071046
8218685464
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