अंजना कण्डवाल *नैना*

.
      *'गुल'*


बसन्त ऋतू में हुआ आगमन
पुलकित हुआ सारा मधुवन
खिल गये मन प्राण मेरे
खिल उठा मेरा गुलशन।


'गुल' तुम मेरे आँगन की
तुम महकता मेरा चमन।
ज्योति बन आई हो तुम
तुम से रोशन मेरा जीवन।


मिला ममत्व खिल गई मैं,
लिया जब तुमको हाथों में।
सज़ा आँखों में ख़्वाब नये,
हर पल निहारूँ तेरा आनन।


मैं माली एक उपवन की
सँवार रही थी बगिया को
छोड़ दिया ननिहाल तुझे
देख न पाए तेरा बचपन


नानी के संग पली बढ़ी,
बन गई माँ की परछाई।
नानी ने खूब लाड़-लड़ाया
तेरी यशोदा मैय्या बन।


चंचल हो कन्हैया जैसी
नन्ही सी ये गुड़िया मेरी।
कब छोटी से बड़ी हो गई,
कब गुज़रा तेरा बचपन।


मेरे गुलशन में मुस्कओ
फूल हारश्रृंगार सा बन।
बन कोकिला मेरे घर की,
गुँजित करो तुम ये मधुवन।


उड़ो सपनो के आसमाँ में,
खोल कर अपने पँखों को।
सफलता की सीढ़ियाँ चढ़,
छू लो तुम ऊँचा गगन।


रहूँगी सदा साथ मैं तेरा
बनकर तेरा पथ-प्रदर्शक।
तुम गुल मैं बगवान हूँ तेरा,
महकाओ मेरा घर आँगन।
©®


अंजना कण्डवाल *नैना*


सुनीता असीम

ये मुहब्बत भी तो कांटों का ही सफ़र लगता है।
छू नहीं सकते जिसे पाने में डर लगता है।
***
हर नजारा तेरी फ़ुरकत का मजा है देता।
पर गगन में तो खिला आधा क़मर लगता है।
***
हर कदम सिर्फ मुसीबत का लगा है डेरा।
चाहतों का नहीं नफरत का नगर लगता है।
***
जिन्दगी सिर्फ बनी आग की होली उसकी।
नींव से टूटा हुआ वो तो शज़र लगता है।
***
है नहीं कोई खुशी आज बची है इसमें।
ये दरकती दिवारों वाला घर लगता है।
***
सुनीता असीम
१३/२/२०२०


कवि सुनील चौरसिया 'सावन' निवास- ग्राम- अमवा बाजार पोस्ट- रामकोला जिला कुशीनगर, उत्तर प्रदेश    

कविता- कुहू- कुहू बोले रे कोयलिया...


कदम्ब की डाल पर डोलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।



सुख - दुख में शुभ गीत गाने वाली।
थके मादे लोगों को झुमाने वाली।।


इस डाल से उस डाल पर डोलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।


नीरस पल में भी रस पाने वाली।
ऋतुराज के संदेश को पहुंचाने वाली।।


रसाल फल देख चोंच खोलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।



पतझड़ की महफिल में लाती बहार।
'सावन' सरस भाव से भावनाओं का भार-


कंठ के तराजू पर तौलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।



पीपल की डाल पर डोलती कोयल है।
 पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।


कवि सुनील चौरसिया 'सावन'
निवास- ग्राम- अमवा बाजार पोस्ट- रामकोला जिला कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
       प्रवक्ता,
       केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली, अरूणाचल प्रदेश।
मोबाइल-9044974084, 8414015182


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

.............तेरी बेकरारी.............


तेरी बेकरारी से मुझे  करार नहीं।
तेरी खुशियों से मुझे इंकार नहीं।।


तुमसे सुनता हूं,जीवन  के संगीत;
तेरे बगैर पसंद,मुझे झंकार नहीं।।


मुद्दतें हो गई है , तुमसे  युदा हुए ;
तेरे सिवा कोई,मुझे इंतजार नहीं।


मिले कई तुमसे पहले , बाद भी ;
कोईभी,मन से मुझे इकरार नहीं।


बहुत उम्र गुजार ली,कुछ बाकी ;
ख्वाहिश अब,मुझे बेशुमार नहीं।


जो भी हैं,साथ रहें ओ आगे बढ़ें;
कोई दिल में, मुझे दुत्कार नहीं।।


इस बात से वाकिफ हूं"आनंद" ;
विवाद से , मुझे सरोकार  नहीं।।


- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


   डा.नीलम अजमेर

*मैं अलग होऊँगी*
*********////********
राम से पहले सीता कह लो
कृष्ण से पहले राधा
पर शिव-शंकर से पहले
सती और पार्वती नाम नहीं आता


वर्तमान में मैं भी कितने
व्रत- उपवास रख,निर्जल
रहलूं,फिर भी पुरुष-समाज की सदियों से मैं बनी रही परछाई


अब मिथक मैं तोडू़गीं
बनकर सबला 
नारीत्व की अबलता से
मैं अलग होऊँगी


रिश्ते-नाते खूब निभाए
घर की चार-दीवारी में
मेरे मैं को खोया मैने अस्तित्व भी भूली चूल्हे- चक्की में


घूँघट की ओट में चेहरा छिपाए
जिस्म की जलालत झेली
कोख मशीन बना डाली
इक चिराग़ की ख्वाहिश में


स्वीकार करती हूँ मैं भी
शामिल हूँ नारीत्व की बर्बादी में
प्रण लेती हूँ इस कुकृत्य से अब मैं अलग होऊँगी


सदियों से झेला जुल्म मैने
अब ना सहन करुँगी मैं
है मेरा भी वजूद जहां में दुनिया को मैं बताऊँगी


अन्याय- अनीति,अनाचार, अतिसार की दुनिया से मैं अलग जहान बनाऊँगी,  हर बुराई से *मैं अलग होऊँगी।* 


       डा.नीलम


प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद

मुक्तिका


प्रखरोक्ति


कुछ मन की
=========
(1)
गिले शिकवे बहुत होंगे नहीं होगा तो वश अपना।
मुजाहिर सा फकत जीवन यहाँ दिन रात बस खटना।।
आज चर्चों का दौर बस उनका जो करें सौदे जमीरों के,
प्रखर दो जून की रोटी , उन्हें अब भी लगे सपना।।


(2)


कलियों में घुली रंगत गमकती खुश्बू ए गुलशन।
बहारों में नशा वल्लाह   पाँखुरी रूप ज्यों चंदन।।
नहायी ओस में सुबहो , ओढे शीत का कोहरा, अरी ऋतुराज दर आया,चलो कर लें सखी परछन।।


(3)


सकुचायी तिय कछु लजरायी कांति अरी  अरूणिम निखरी।।
भुईं पाँव धरै हौले होले , अल्हड अलकें उरझीं बिखरी। ।
नैना खंजन आंजे अंजन कटि चुंबित वेणी मादा अहि सी,
अधर रक्त बिहंसे पिय लख सत बसंत को काम विकट सखी री।।


========


कवि ✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना मौलिक (स्वरचित)  नयी दिल्ली

🌷रचनाकार मंच🌷


विषय: स्वैच्छिक
दिनांक: १३.०२.२०१९
वार: गुरुवार
विधा: दोहा
जनरल: मात्रिक
शीर्षक: 🇮🇳प्रेमगीत मां भारती🇮🇳
लिखता   हूं   मनमीत   मैं , देता    हूं      संगीत। 
प्रेमगीत  मां    भारती , मधुर   सरस     नवनीत।।
हरित भरित कुसुमित धरा,हो सुरभित अभिराम।
उड़े   तिरंगा  व्योम  में , हो   विकास   अविराम।।
कण्ठहार जन मन वतन, जय भारत जय  हिन्द।
आयें  मिल  हम  साथ में , खिले वतन अरविन्द।।
महके  खुशबू  प्यार के , खुशियां कोकिल  गान।
चमन   वतन   गुलज़ार हो , बढ़े  राष्ट्र    सम्मान।। 
देश  बचे  तो    हम   बचें , करें   सुरक्षित   देश।
करें    प्यार   सेवा   वतन , दें   समरस    संदेश।। 
नैन  लड़ाऊं   देश   से ,  करूं   प्रेम    अठखेल।
सुखद मधुर अहसास नित ,वासन्तिक  घुलमेल।। 
राष्ट्र प्रेम  महफ़िल सजी , गुंजित  समरस गान ।
सजी सुभग मां भारती, पुलकित सुन  यशगान।।
वीर  धीर  उन्नत अभय ,जन  गण मन पा प्रीति।
लोकतंत्र   सुन्दर   सफल , भारत   मां  उद्गीति।।
करें   समर्पण   जिंदगी , हो   भारत  सुखधाम।
निभा साथ जन्मों तलक ,अमर प्रेम  अभिराम।।
देश प्रेम  निर्मल सरित , प्रमुदित  मन अवगाह।
रत निकुंज कवितावली,सफल राष्ट्र बस  चाह।। 
कवि ✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना मौलिक (स्वरचित) 
नयी दिल्ली


गनेश रॉय" रावण" भगवानपाली,मस्तूरी,बिलासपुर, छत्तीसगढ़

"हम एक हैं"
""""""""""'"""""
ना तुम हिन्दू हो
ना तुम मुस्लिम
ना तुम सिख हो
ना तुम ईसाई
फिर कैसे मान लिए तुम
ये धर्मो को अपना भाई
मेरे नजर से तुम देखो 
हर कोई है इंसान
जिससे बनता है मेरा
प्यारा हिंदुस्तान


सदा जागने वाले हो तुम
सदा जगाने वाले हो तुम
तेरे काँधे पर बोझ है देश की
सदा उठाने वाले हो तुम
कितनी मुशीबत आई देश मे
फिर भी, डटे रहते हो तुम
कभी गांधी कभी अम्बेडकर
कभी शिवा कभी महाराणा 
कभी आजाद कभी भगत सिंह
बनकर दिखलाते हो तुम


काँधे से काँधे तुम मिलाते
कदम ताल की तुम गीत सुनाते
एक साथ आवाज लगाकर 
यही बात तुम दोहराते .......
आवाज दो....
हम एक हैं
आवाज दो....
हम एक हैं
आवाज दो....
हम एक हैं
आज फिर से कहो
हम एक हैं
आज फिर से कहो....
हम एक हैं
आज फिर से कहो....
हम एक हैं
आवाज दो.....
हम एक हैं ।।


गनेश रॉय" रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी,बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


जनार्दन शर्मा (आशु कवि,हास्य व्यंग)

जनार्दन शर्मा (आशुकवि हास्य व्यंग)
इन्दौर मध्य प्रदेश 


वैलेंटाइनडे कोई त्यौहार नहीं है यह तोबड़े स्तर का सुनियोजित बिजनेस इवेंटहै यह इज्जतदार लडकियों के विरुद्ध षड्यंत्र है ।


"वेलेंटाइनडे पर एक कविता"


अंग्रेजो के चौचलो को सीखकर,अपने ही देश का ह्रास किया। 
आज कि युवा पीढ़ी ने,संस्कारों का कैसा विनास किया।
हे वेलेंटाइन डे बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया,,,,,,,


गली,गली,चौराहे चौराहे,अब ,प्रेम के परवान चढ़ते हैं।
आशीको के जोड़े देखो,खुले आम सड़को पे नचते है
शर्म हया सब छोड़ के देखो, रिश्तो का उपहास किया।
हे वेलेंटाइन डे बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया,,,,,


प्रेम कि दुकानो से देखो,कैसा बाजारसजता है।
प्रेम,प्यार का ये धंधा,सबकि जेबे भरता है।
झुठे प्यार के बंधनो का,कैसा ये आभास दिया,,,,,, 
हे वेलेंटाइन डे बाबा देस का सत्यानास किया


जिस देश में आज भी नारी को,देवी सा पूजा जाता हैं।
हर मां के आंचल से निकल के,सैनिक सीमा पे जाता है।
उनके बलिदान से नही सीखा कुछ, भूला कर प्रेम का एसा रास किया
हे वेलेंटाइन बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया,,,,,,,


जिस देश में राधाकृष्ण के प्रेमगीत,आज भी गाये जाते हैं।
मीराबाई के त्याग के,पद आज भी सुनाये जाते हैं।
उसी देश के नौजवानो ने,अब ये कैसा इतिहास दिया ।
हे वेलेंटाइन के बाबा मेरे देस का कैसा सत्या नास किया,,,,


जिस देश में नर,नारी के मिलन में,गहरे परिवारों का वास था
जिन आपसी रिश्तो में मिठास जीवनभर, साथ रहने का विश्वास था
उन रिश्तो को भूलाकर,"ब्रेकअप"से हलके शब्दो का अहसास दिया।
हे वेलेंटाइन बाबा मेरे देस का कैसा सत्यानास किया,,,,,
स्वरचित
जनार्दन शर्मा (आशु कवि,हास्य व्यंग)


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना
दिनांक: १३.०२.२०२०
वार: गुरुवार
विषय: प्रेम
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: तरस रही आंखें सजन
मादकता    नवयौवना, उफन   रही    है  प्यार। 
गोरी   खोयी  आश  में ,प्रीत  मिलन    उपहार।।१।।
महक रहा तन मन वदन,कुसमित पा मधुमास।
लाल गुलाबी होंठ नित ,आस्वादन   अभिलास।।२।।
आलिंगन  अभिलाष प्रिय, अलिगुंजन नवप्रीत। 
कोस रही ऋतुराज को , कहां  छिपा  मन मीत।।३।।
नदी   किनारे  पनघटी , रख  सजनी रत सोच ।
कब  आएगा  बालमां , मिलूं  सजन    संकोच।।४।।
तरस  रहीं  आंखें  सजन, दरश रूप अभिराम।
अश्क वक्ष  भींगे सजन, निशिवासर  रतिकाम।।५।।
माला  गूंथी  प्रीत  की , सजन मिलन  गलहार।
क्या गलती  मुझसे बलम, तड़प रही अभिसार।।६।।
ख्वाबों की बन  मल्लिका , लुटे सभी सुख चैन।
तन मन धन अर्पण तुझे , बरस  रही  नित  नैन।।७।।
छोड़े  सब  रिश्ते  यहां , चली सजन मन  प्रीत। 
सरगम बन  मैं साज़ना , गाऊं मधुरिम     गीत।।८।।
अमर प्रेम नवलेख से , करूं काव्य शृंगार। 
विलसित मन प्रेमी युगल , दूं निकुंज उपहार।।९।।
कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक अवधी गीत का एक बंध
पूरा गीत आपकी प्रतिक्रियाओं के बाद


हमैं तुमरे  बिना सइयां  न  भवाइ  फगुनवा।
हमरो  जियरा  जरावइ  यह  वैरिन पवनवा।
यह मस्ती मा  घूमइ  औरु  घुँघटा  उठावइ।
हमका दरपनु न भावति हइ  सुनो अंगनवा।
हमैं तुमरे  बिना सइयां  न  भवाइ  फगुनवा।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


रामनाथ साहू " ननकी "                            मुरलीडीह

आज की कुण्डलिया ~
12/02/2020


            ---- अनुपथ ----


अनुपथ हे प्रिय भामिनी ,
                            बना रहे यह संग ।
परिशोधन आपस करें ,
                       निखरे उज्ज्वल रंग ।।
निखरे उज्ज्वल रंग ,
                           पूर्णता दोनों पायें ।
मंजिल हो आसान ,
                    सरलता अनुभव गायें ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
                     बनें हम नव भागीरथ ।
मिला सुखद आधार ,
                     एक दूजे के अनुपथ ।।



               ~ रामनाथ साहू " ननकी "
                           मुरलीडीह


हलधर जसवीर

ग़ज़ल ( हिंदी )
------------------


इस चुनावी जंग का तो व्योम तक एलान है ।
जीत के इन आंकड़ों से  विश्व  भी  हैरान है ।।


हर धरम आज़ाद है हर कौम का सम्मान है ।
रोज दीवाली  यहां पर  रोज ही  रमजान है ।।


देश को कमजोर करती सब जमातें थक गई ।
वो अभी समझीं नहीं यह मुल्क हिंदुस्तान है ।।


गालियों ने तोड़ दी सीमा सभी संवाद की ।
वो सियासी खेल में बच्चा अभी नादान है ।।


भाषणों से एक उल्लू का पता मालूम हुआ ।
वह  कमीना  पाक  का  एजेंट  है  शैतान है ।।


खून से लतपथ मिला वो चीथड़े पहने हुए ।
लोग कहते है उसे वो  चीन का  दरवान है ।।


जो कुराने पाक में आतंक को ढोता रहा ।
नाम पूंछो तो  बताया मुल्क पाकिस्तान है ।।


आँख कोई भी दिखाए अब नहीं मंजूर है ।
 यार का है यार"हलधर" गैर को तूफान है  ।।


         हलधर -9897346173


गोपाल बघेल ‘मधु’ , ओन्टारियो, कनाडा 

काल चक्र घूमता है !
(मधुगीति २००२१२ अग्ररा ) ०१:३८


काल चक्र घूमता है, केन्द्र शिव को देखलो; 
भाव लहरी व्याप्त अगणित, परम धाम परख लो! 


कितने आए कितने गए, राज कितने कर गए;
इस धरा की धूल में हैं, बह के धधके दह गए !


सत्यनिष्ठ जो नहीं हैं, स्वार्थ लिप्त जो मही;
ताण्डवों की चाप सहके, ध्वस्त होते शीघ्र ही !


पार्थ सूक्ष्म पथ हैं चलते, रहते कृष्ण सारथी;
दग्ध होते क्षुद्र क्षणों, प्रबंधन विधि पातकी !


पाण्डवो तुम मोह त्यागो, साधना गहरी करो;
‘मधु’ के प्रभु की झलक को, जीते जगते झाँक लो ! 


✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’


रचना दि. १२ फ़रवरी २०२० रात्रि 
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा 
www.GopalBaghelMadhu.com


प्रवीण शर्मा ताल*

*घूँघट में चाँद*


घूँघट में चाँद छिपाए बैठी हो,
छत पर बेताब टहलाएं बैठी हो


क्या खता की  क्या भूल हुई जो,,,,,
इश्क हमसे गैर की पायल पहनाएं बैठी
 हो।


अमावस्या की रात कहां है ,,
पूनम सा चहेरा मुरझाए बैठी हो


घूँघट थोड़ा उठाओ जरा,,,,
तीखी नजरों से तीर चलाएं बैठी हो।


पलको से चाँदनी का दीदार होगा ,,,
बादलो के पीछे ठहराए बैठी हो।


क्यो रूठी हो  चाँदनी हमसे ,,,,,
ताल  का दामन तोड़ाए बैठी हो।


मैं जमीं से निहारता रहा चाँदनी तुझे
तू  घूँघट में चाँद को छिपाए  बैठी हो।



✒प्रवीण शर्मा ताल


प्रवीण शर्मा ताल*

*कान्हा*


कान्हा तेरी लीला की है पुकार,
 तुम ले लो फिर धरा पर अवतार।


 सब करते अब पीछे धना धन ,
फूल रहे है यहां- वहाँ   दुर्योधन।


कान्हा तू लेकर आया था एक सन्देशा,
 करते यहाँ धरा पर लोग पैसा- पैसा।


कान्हा तुमने केवल पांच गाँव मांगे,
सन्तोष नही , रिश्वत के पीछे भागे।


नारी की दुर्दशा ऐसी कैसी यहां ,
कोई द्रोपदी तो सूर्पणखा यहां।।


कान्हा  सभा में विकराल रूप बताया,
अब  देखो यहाँ डोंगी बाबा की माया।


कान्हा तुमने द्रोपदी का चीर बढ़ाया
अब बेशर्म  अध वस्त्र पैशन छाया।


कान्हा तुम वन में जाकर चराई गैया,
लुप्त बैलगाड़ी भटकी बछिया, गैया ।


न्याय पर बंधी है नयनों में यहाँ पट्टी,
गांधारी सी सत्ता लोकलुभावन सस्ती।


डसते आंतकी यहाँ जहरीला क्रंदन
आजाओ कान्हा फिर  करो मन्धन।


सत्य ,असत्य पाप पुण्य का है तोल,
मंदिरों में चढ़ता इसका यहां है मोल।


तुमने गरीबी से प्रेम से निभाई दोस्ती
जिसके पास पैसा उससे यहां दोस्ती।


भले यह युग नही  वंशी ले चले आओ
फिर से गीता का ज्ञान उपदेश सुनाओ


अब तो आओ देवकी नंदन द्वारकाधीश
मूर्ख ताल पड़ा चरणों मे दे दो आशीष।


 


*✒प्रवीण शर्मा ताल*


अतिवीर जैन पराग, मेरठ

 


हाथों से हाथ मिले :-


हाथों से हाथ मिले,
तुम हमें साथ मिले,
हम मिले तुम मिले,
मुन्ना की सौगात मिली.


प्रभु का आशीर्वाद मिला,
प्यार का वरदान मिला.
हम दोनों के सपनो को,
एक नया आयाम मिला.


हमारे दो हाथों को,
तीसरा एक हाथ मिला.
पीढ़ीयों की रस्म निभाने को,
मुन्ना का साथ मिला.


स्वरचित,
अतिवीर जैन पराग,
मेरठ


अतुल मिश्र अमेठी

लाखों दिवाने हमने देखे,
जो कहते है मरते है।
गर न मिला वो चेहरा,
फिर क्यूँ उसे जला देते है।
क्या ऐसा ही प्यार होता है......................


उसकी भी कुछ ख्वाहिश होगी,
जो तेरी ख्वाहिश है। 
वो मोहब्बत ही क्या, 
जिसमें सिर्फ अपनी खुशी सम्मिलित हो। 
क्या ऐसा ही प्यार होता है...................... 


मोहब्बत वो इबादत है, 
जो महबूब को खुदा बना देता है। 
वो समझेगें क्या लोग, 
जिनका शौखियत पेशा है।। 
क्या ऐसा ही प्यार होता है ...................... 


जिसके तूने सपने देखे, 
आंखों ने जिसे संजोया। 
हाल यूं उसका करते, 
क्या तेरा दिल न रोया।। 
क्या ऐसा ही प्यार होता है......................... 


"मेरी किस्मत ये खुदा तूने किस कलम से लिख दी। 
तूने मेरी मासूमियत को मायूसियत लिख दी।। "


............ ATUL MISHRA..................


ऑनलाइन कवि सम्मेलन       अररिया, बिहार

ऑनलाइन कवि सम्मेलन
      अररिया, बिहार


हिंदी साहित्य अंचल मंच अररिया, बिहार के तत्वाधान में आयोजित साप्ताहिक कवि सम्मेलन में लगभग 200 कवियों ने भाग लिये इसमें 15 कवियों ने सर्वश्रेष्ठ रचना सृजन किये, हिंदी साहित्य अंचल मंच के अध्यक्ष अशोक कुमार जाखड़ के द्वारा प्रतिदिन विषय दिया जाता था रचना लिखने के लिए बेवसाइट पर , संस्थापक अनुरंजन कुमार अंचल जी के द्वारा सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों को चुने गए चुने गए रचनाकारों को सचिव शशिकांत " शशि", संरक्षक देव दीप " प्रज्वलित" और संचालिका अभिलाषा मिश्रा "आक्षांक्ष के द्वारा सम्मानित किये गये। चुने गये रचनाकारों का नाम इस प्रकार से है -:


1. अख्तर अली शाह "अनन्त"जी
2. अनन्तराम चौबे "अनन्त "जी
3. शकुन्तला जी
4. सौदामिनी खरे
5. सुनील कुमार "गुप्ता" जी
6. अपर्णा शर्मा शिव संगिनी जी
7. परमानंद निषाद जी
8. डॉ ० प्रभा जैन श्री जी
9. एच ० एस चाहील जी
10. निर्मल नीर जी
11. रमेश कुमार द्विवेदी चंचल जी
12. मनीषा दुबे जी
13. डॉ ० चमन सिंह जी
14. बाबा विद्यनाथ झा जी
15. महेंद्र सिंह बिलोटिया जी


नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर

आज चूम लूं में इस धरा को  जिसपे में पली बढ़ी।
तिरंगे को भी चूम लूं, की ये है मेरा वतन मेरी जमीं।
जिस पर हम हर पल, हर घड़ी शिद्दत से करते है मान
वक़्त पड़े तो हम दुनियां को दिखा दें के सबसे पहले हिंदुस्तान।


तो आजके दिन पर दिखा दीजिये की मोहब्बत से बड़ा है देश।
प्रेम,प्यार,परिवार से के साथ है मेरा भारत देश।


आपका आज का दिन मोहब्बतों में बीते।
कुछ कह के बीते कुछ अनकहा ही बीते।
इसी शुभकामनाओं के साथ🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹🍫🍫🍫🍫
नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर🙏🍫


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"अलि"* (दोहे)
****************************
¶नेह लुटाता पुष्प पर, प्रेमिल-पहल-पुकार।
पीकर मधु-मकरंद को, करता अलि गुंजार।।


¶मँडराता है-हर कली, अलि-मन-मत्त-मतंग।
गीत मिलन-गाता चला, मधुकर मस्त मलंग।।


¶भिक्षु अकिंचन अलि बना, मन-मधुराग-पराग।
तृप्ति कहाँ पर प्रीति की? लहके लोलुप-लाग।।


¶सीख-मिटे हर भेद-मन, वाहित-वासित-वात।
संस्मृति अलि मधु-मुरलिका, परसन-पुण्य-प्रभात।।


¶सरसाया अलि-मन मगन, प्रेम-पुष्परस-पान।
आह्लादित है स्पर्श से, पाकर अलि अवदान।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


डा. महताब अहमद आज़ाद  पत्रकार, कवि, (उत्तर प्रदेश) 

वेलेंनटाइन -डे
--------------------
हर सू है खुशियाँ छायें!
सब प्यार के नगमें गायें !!
मस्ती में सारे खोकर! 
वेलेनटाइन डे मनायें!! 


तंहाई भी दूर हो जाये! 
तू मेरे करीब आ जाये!! 
जब नज़र चुराकर जाये! 
बेचैनी मेरी बढ जाये!! 


न आँख तुम्हारी हो नम! 
न दिल में कोई भी हो ग़म!! 
मेरे हाथ में हाथ तुम्हारा! 
हो प्यार का पल पल मौसम!! 


न खौफ न कोई डर हो! 
खुशियों से भरा हर घर हो!! 
जब संग चलो तुम मेरे! 
फिर अपना सुहाना सफर हो!! 


यह प्यार की एक निशानी! 
एक इसमें छुपी है कहानी!! 
वेलेनटाइन डे दिन आया! 
मिलने आजा दिल जानी!!


अनन्तराम चौबे      अनन्त    जबलपुर म प्र

          सुबह सुबह सूरज की लाली


सुबह सुबह 
सूरज की लाली
तन मन को भाती है ।
ठंड के इस मौसम में
सबका मन लुभाती है ।
सुबह से दिखती है 
सूरज की लाली ।
छट जाती है 
रात वो काली ।
सूरज की किरणो से
सबको उर्जा मिलती है ।
वन उपवन के पेड़ 
पौधों की ओस 
बूंदें हटती है  ।
सुबह सुबह सूरज 
की लालिमा सबके
मन को भातीं है ।
सुबह सुबह सूरज
की किरणें ठंडी
को दूर भगाती है ।
गरीबो की गरीबी को
धूप ही लाज बचाती है ।
ठंड के इस मौसम में
ठंड से मुक्ति मिलती है ।
सुबह सुबह सूरज की
किरणें सबके तन मन
को बहुत ही भाती है।
सुबह सुबह सूरज की
लाली सबके तन मन
को बहुत लुभाती है ।


  अनन्तराम चौबे
     अनन्त 
  जबलपुर म प्र
  1856 /634
 9770499027


नीरज कुमार द्विवेदी बस्ती - उत्तर प्रदेश

14 फरवरी - एक सन्देश शहीदों का


चूम चूम चूम ले तू  देश  की  ये  मिट्टी
गंगाजल जमजम से भी पवित्र ये मिट्टी
मन में वन्दे मातरम के गीत ही तू गाता चल
मन में बसे द्वेष भाव सारे तू मिटाता चल
जय हिन्द जय हिन्द नारा तू लगाए जा
गर दीन दुखी कोई मिले गले तू लगाये जा
तू चरणों की भारती के करे सदा वन्दना
कर देश के हवाले खुद को रख कोई रंज न
रक्षा इस देश की है अब तेरे हाथों में
विश्वास नहीं मुझे नेता जी की बातों में
हिन्द जैसा विश्व में कोई देश दूजा नहीं
जननी मातृभूमि से बड़ी कोई पूजा नहीं
देश पर बलिदान हो कोई इससे बड़ा काम नहीं
इससे अधिक जीवन का जग में है दाम नहीं।।
नीरज कुमार द्विवेदी
बस्ती - उत्तर प्रदेश


नीरज कुमार द्विवेदी बस्ती - उत्तरप्रदेश

14 फरवरी : पुलवामा हमला(शहादतदिवस)
14 फरवरी ऑनलाइन सम्मेलन हेतु
दहल गईथी घाटी उस दिन आतंकी अंगारों से
थे दहशतगर्द जो लेकर आये लाहौरी दरबारों से
रक्त बहा था माँ की गोद में माँ के रक्षक बेटों का
हिन्दुस्तान ये चीख उठा था दर्द भरी चीत्कारों से।


इतने दुख में भी नेताजन भाषा अपनी अपनी बोल रहे थे
ले बैठ तराजू वोट बैंक की रोटी राजनीति की तौल रहे थे
आवाज उठी थी मन्दिर मस्जिद, हर गिरिजाघर गुरुद्वारों से
अब दहला दो पिण्डी और कराची देश भक्त ये बोल रहे थे।।


सबक इन्हें सिखलाने का फिर मोदी जी ने जरा विचार किया
सेना को आदेश दिया और उसने प्लान नया तैयार किया
जो छिपकर आते थे चोरों से उनकी औकात उन्हें दिखलाने को
वीर जवानों ने उनके घर में घुसकर फिर बम्बों से बौछार किया।।


लगे रडार बहुत थे पाक में जिसका कुछ अपना काम ही है
लेकिन हिन्द के फौजी थे ये मारकर आना जिसका काम ही है
ये उसी हिन्द के फौजी थे जिसके सम्मुख हथियार था डाला उसने
पाक का हिन्द फौज की ताकत से सबसे कायर फौज का नाम ही है।।
नीरज कुमार द्विवेदी
बस्ती - उत्तरप्रदेश


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