एस के कपूर श्री हंस* *बरेली।*

*वही पत्थर भगवान होता है*।
*मुक्तक।*


एक ही पत्थर से आसन ओ
मूरत  का  निर्माण  होता  है।


हर पत्थर  पूजा   जाये  यही
उसका   अरमान    होता  है।।


पर  यूँ ही   नहीं   हर   पत्थर
पूजा जाता श्रद्धा के भाव से।


जो सहता दर्द तराशे जाने का
वही जाकर भगवान होता है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
मोबाइल
9897071046
8218685464


एस के कपूर*  *श्री हंस।बरेली*

*यकीन पर यकीन नहीं रहा*
*अब।मुक्तक।*


सच से   दूर हर  बात  में
नई   सजावट आ गई है।


रिश्तों में  कुछ नकली सी
अब    बनावट आ  गई है।।


मन भेद  मति  भेद  आज
बस    गये हैं  भीतर तक।


कैसे करें यकीं कि  यकीन
में भी मिलावट आ  गई है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री* 
*हंस।बरेली।*
मोबाइल। 9897071046
              8218685464


एस के कपूर*  *श्री हंस।बरेली*

*विषय।।।प्यार का इज़हार*
*शीर्षक रचना।।*
*हम और तुम पास पास हों।*
*विधा । छंद मुक्त( तुंकान्त)*
*भाव।  प्रेम व श्रृंगार।*


*हम और तुम पास पास हों।।*


हम और तुम पास पास हों।
साथ में बस   अहसास हों।
वोह पल बहुत ही खास हों।।


*हम और तुम पास पास हों।।*


साँसे एक मन एक हो जायें।
जन्नत सा स्वप्न हम जगायें।
प्रेम की दास्तां नई बनायें।।


*हम और तुम पास पास हों।।*


गम नहीं हमारे आस पास हों।
हर शब्द   भरा  विश्वास     हों।
हर सुख की भरी आस हो।।


*हम और तुम पास पास हों।।*


कभी न मध्य हमारे विन्यास हो।
बस मिलन की   ही आस हो।
बस महोब्बत का ही वास हो।।


*हम और तुम  पास पास हों।।*


हरी भरी    हर   शाख   हो।
फूलों       की  बरसात  हो।
और    कोई   न  बात   हो।।



*हम और तुम पास पास हों।।*
*हम और तुम आस पास हों।।*



*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली(ऊ प)*
मोबाइल         9897071046
                     8218685464


एस के कपूर*  *श्री हंस।बरेली*

*विविध हाइकु।।।।।।।।*


किस्मत मौका
सफल है कर्म से
लगाता चौका


नहीं आराम
व्यस्त रहो काम में
मगन काम


शायर आह
कलम में भी आह
सुने हैं वाह


जो है जिंदगी
भाग्य नहीं कर्म से
है ये बंदगी


सुनो सबकी
और सोचो समझो
करो मन की


प्यार  है  क्या
बताना मुश्किल है
आँखों से बयां


अभाव देखो
तभी निर्णय लेना
भाव को देखो


कर्म गागर
भाग्य लकीरें बनें
सुख सागर


*रचयिता।एस के कपूर* 
*श्री हंस।बरेली*
मोबाइल
9897071046
8218685464


निशा"अतुल्य"

*कान्हा खेलन गए थे होली* 
16 /2 /2020


बरसाने में खेलूं होली
राधा तू तो मेरी हो ली
फंस गया आकर नँद का लाला
नीचे आजा खेलें होली।


छुप छुप कर मैं था आया
मोर पंख ने पता बताया
प्रीत रंग में रंग गया मैं तो
नहीं चढ़े कोई रंग बताया।


सखियों को ले तू समझाये
बात मान जा गिरधर आये
खेलेंगे मिल कर हम होली
प्रीत रंग में रहे भिगोये ।


बरसाने का रंग निराला
चढ़े अगर फिर उतर न पाये
राधा तुझमें प्राण बसे हैं
प्रीत की रीत निभाये होली ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
        *"जीवन-साथी"*
"अग्नि-पथ यही जीवन सारा,
क्यों-साथी जीवन से हारा?
हर हार में साथी फिर यहाँ,
ढूँढ़ ले जीत का सहारा।।
ठहरे न कदम जीवन-पथ पर,
जब तक साथी साथ तुम्हारा।
रोक ही लेते कदम साथी,
मिलता न तुम्हारा सहारा।।
बसती न नफरत मन में यहाँ,
भटकता न कदम फिर तुम्हारा।
साथ निभाते जीवन साथी,
जीवन ही होता तुम्हारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः          16-02-2020


राजेंद्र रायपुरी

अरिल्ल छंद पर 
          एक मुक्तक  - - 
🤣🤣🤣🤣🤣🤣


खाना पीना  रोज  उथारी।
सुविधा देंगे मफलर धारी।
देने की यदि चाह न हो तो,
कहना  देंगे  कृष्ण  मुरारी।


          ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

हे जगदीश मुदित हूँ तेरी भक्ति में
न पूजा न अर्चन मैं तो प्रेम पुजारी
सारा जग निहित है तेरी शक्ति में
नहीं शब्द न भाव कैसे भजूं मुरारी


तेरा सानिध्य बना जीवन सहारा
मुरलीधर तुम्हें देख देख हरषाऊँ
न जानूँ वन्दन और अभिनन्दन
मैं तो निशदिन तेरे ही गुण गाऊं


असुर निकन्दन हे राधा बल्लभ
कभी मोय जग तृष्णा नहीं व्यापै
सत्य हृदय के हार श्री गोविन्द
मेरों मन सदा राधे कृष्णा जापै।


श्री युगलरूपाय नमो नमः


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

🕉💦 सुप्रभात💦🕉
********************
      जीवन बगिया
********************
जीवन बगिया में
कुछ
ऐसे फूल खिलाओ,
जिससे आसपास का वातावरण
मंगलमय हो,
सभी प्राणियों में
खुशियों का संचार हो
और
मां प्रकृति की गोद
दृष्टि-गोचर हो
हरी-भरी,
***************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


भुवन बिष्ट              रानीखेत (अल्मोड़ा)                     उत्तराखंड

*रचना-प्रभात वंदन*


खुशियां फैले जग में सारी,
फैले मानवता का प्यार।
          प्रेम भाव हो चहुँ दिशा में,
           मानवता की हो जयकार।
नमन करूं भारत माता को,
मिटे जगत से अत्याचार।
            राग द्वेष की बहे न धारा,
            हिंसा मुक्त हो जगत हमारा।
मानवता व प्रेम भाव का ,
करें आपसी हम व्यापार।....
            खुशियां फैले जग में सारी,
             फैले मानवता का प्यार।
प्रेम भाव हो चहुँ दिशा में,
मानवता की हो जयकार।...
            ..........भुवन बिष्ट 
            रानीखेत (अल्मोड़ा) 
                   उत्तराखंड


125 साल पुरानी मैलानी नानपारा रेलवे ट्रैक हमेशा के लिए बन्द

आज सुबह आठ बजे मैलानी से नानपारा जाने बाली ट्रेन 55058 के 55 रेल यात्रियों के साथ आखरी बार रवाना होते ही इतिहास वन गयी 127 वर्ष पुरानी मैलानी बहराइच  मीटर गेज रेल सेवा
    और इसी के साथ आज से बढ़ गया मैलानी ,भीरा,पलिया,  दुधवा नेशनल पार्क के अंदर भारत नेपाल सीमा पर बसे लगभग चौवालीस थारु जनजातीय गांवों के लगभग साठ हजार नागरिकों की मुसीबतें जिनके शेष भारत व जिला मुख्यालय आने जाने का एक सस्ता सुलभ साधन थी यह मीटर गेज रेल सेवा और दुधवा रेलवे स्टेशन व बेलरायां , तिकोनिया ,खरैटिया के उन छात्रों छात्राओं की भी मुश्किलें अब आरम्भ हो गयी जो इन ट्रेनों के जरिए रोज अपने घर से पलिया के स्कूल कालेजों में पढ़ने जाते थे अब उनका दस रुपये और डेढ़ घंटे बाला सफर सौ रुपये और तीन घंटे में बदल गया 
काफी बड़ी संख्या में अब शायद छात्र बोर्ड की परीक्षाएं भी न दे पाये शारदा, कौड़ियाला, मुहाना नदी की बाढ़ और कटान जैसी आपदाओं के मारे गरीबों के बच्चों की पढ़ाई को भी लग सकता है बिराम इस सेवा के बंद होने से पांच लाख लोगों पर पड़ेगा  सीधा असर
बताते चलें भारत नेपाल सीमा के करीब से होकर गुजरने बाली मीटर गेज रेल लाइन का बिस्तार तत्तकालीन ब्रिटिश हुकूमत द्वारा 1880 में रुहेल खंड व कुमायूं रेलवे कंपनी ने प्रारम्भ किया था और सबसे पहले बरेली काठगोदाम पीलीभीत को मीटर गेज रेल से जोड़ा 
इसके बाद 1891 में पीलीभीत मैलानी तक बिस्तार किया गया 1अप्रेल 1891 को मैलानी में पहली बार एक इंजन के साथ दो सफारी बोगियों की ट्रेन स्टेशन पर आयी 
फिर मैलानी भीरा ,पलिया, दुधवा के रास्ते सोनारी पुर 
तक रेल लाइन बनाई गयी और मैलानी स्टेशन से 18 अगस्त 1894 को पहली ट्रेन जो कि मालगाड़ी के लकड़ी लादने वाले पांच ट्रालो के साथ पहुंची थी 
सोनारीपुर स्टेशन पर ,लेकिन वह सोनारी पुर स्टेशन भी अब कयी वर्षों पूर्व  समाप्त किया जा चुका है
फिर दुधवा से चंदन चौकी के लिये 1903 में ट्रेन चलने लगी इसके बाद गौरीफंटा बार्डर तक ट्रेन चलने लगीं थीं पर आज से कुछ वर्षो पूर्व यह सब स्टेशन बंद किये जा चुके हैं  
वन उपज के दोहन व अंग्रेज अधिकारियों के शिकार मनोरंजन  के लिये अंग्रेजी सरकार द्वारा शुरु की गयी 127 वर्ष पुरानी मीटर गेज सेवा को आज 15 फरबरी 2020 को  वनों व वन्य जीवों की सुरक्षा के नाम पर कोर्ट के आदेश पर  बंद किये जाने के साथ ही इतिहास वन कर दर्ज हो गयी


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर ( हरियाणा

मुक्तक... 



हम रहे तो महफ़िल रही 
बातें सदा दिल मिल रही 
था सफ़र मुश्किल जरा
मगर मंज़िल मिलती रही. 


कुछ लोग मिले, कुछ छूट गए 
गैर हुए अपने, कुछ रूठ गए 
बुरे दौर भी आए ज़िन्दगी में 
कश्मकश में कुछ सपने टूट गए. 


बढ़ते जाना मज़बूरी था 
चलते जाना जरुरी था 
रवायतें ना बदलनी थी 
कर्म ही श्रद्धा - सबूरी था. 


अच्छे - बुरे एहसास थे 
कुछ लम्हे मेरे पास थे 
कुछ मेरी जीत से ख़ुश थे 
और कुछ लोग उदास थे. 


नींद का सिलसिला छूटा 
दर्द का सैलाब फूटा 
तुझे एक सलाम है "उड़ता "
कि तेरा हौसला कभी ना छूटा. 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )


udtasonu2003@gmail.com


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक नया मुक्तक 


अमलतास से नयन  तुम्हारे  होंठ  फूलों  की शबनम हैं। 
तन कपास है, मन पावन है, ये रूप महकता गुलशन हैं।
केश राशि ऐसे  लगती  हैं  जैसे  घटाएं  सावन  की  हो।
बहुत स्वच्छ तस्वीर  तुम्हारी  रूप  स्वयं  ही  दरपन  हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


सुनीता असीम

है काम ख्वाब का आँखों में सिर्फ पलने का।
फसा जो इनमें तो दिल वो रहा मचलने का।
***
नहीं किसी का रहा ये कभी जमाने में।
ये वक्त रहता हमेशा ही नाम ढलने का।
***
बेआसरा जो किया यार ने किसी को तो।
कि सिलसिला ए उदासी नहीं ये टलने का।
***
बहुत हुईं ये पुरानी परम्पराएँ भी।
हुआ है वक्त हमारा अभी बदलने का।
***
कि बालकों को दें चेतावनी सही हम तो।
नहीं है वक्त अभी उनका तो फिसलने का।
***
सुनीता असीम
१५/१/२०२०


कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो" हांसी ,  जिला हिसार , हरियाणा ।

वफादारी के सांचे में समाए हूं मैं ,
भार वादों का अभी तक तो उठाए हूं मैं ।


नींद तुझको अब नहीं आती सुना है मैंने , 
इसलिए कल रात से खुद को जगाए हूं मैं ।


सह सकूं हर एक गम तेरा , खुदा कर दे ऐसा ,
लोहे सा मजबूत इस दिल को बनाए हूं मैं ।


प्यार खातिर है लड़ाई हार जाऊं बेशक , 
ये कदम मैदान में साथी जमाए हूं मैं ।


मौत आ जाए अजी बेशक मुझे हंस-हंस कर , 
गम नहीं है ईद-दिवाली मनाए हूं मैं ,


लोग कहते हैं कि धोखा है , छलावा है तू ,
जिंदगी भर के लिए दिल को दिल को लगाए हूं मैं ।


जान कर तेरी हकीकत क्या करूं ? मुझको बता ,
"टेंपो" बेखुद बहुत खुद को बनाए हूं मैं ।


रचित --- 18 - 09 - 09


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

जीवन ही अब भार मुझे
*******************
मेरा अपना इस जग में ,
आज़ अगर प्रिय होता कोई।


मैंने प्यार किया जीवन में,
जीवन ही अब भार मुझे।
रख दूं पैर कहां अब संगिनी,
मिल जाए आधार मुझे।
दुनिया की इस दुनियादारी,
करती है लाचार मुझे।
भाव भरे उर से चल पड़ता,
मिलता क्या उपहार मुझे।
स्वप्न किसी के आज उजाडूं,
इसका क्या अधिकार मुझे।
मरना -जीना जीवन है,
फिर छलता क्यों संसार मुझे।


विरह विकल जब होता मन,
सेज सजाकर होता कोई।


विकल, बेबसी, लाचारी है,
बाँध रहा दुख भार मुझे।
किस ओर चलूं ले नैया,
अब सारा जग मंजधार मुझे।
अपना कोई आज हितैषी,
देता अब पुचकार मुझे।
सहला देता मस्तक फिर यह,
सजा चिता अंगार मुझे।
सारा जीवन बीत रहा यों,
करते ही मनुहार मुझे।
पागल नहीं अबोध अरे,
फिर सहना क्या दुत्कार मुझे।


व्यथा विकल भर जाता मन,
पास खड़ा तब रोता कोई।


फूलों से नफ़रत सी लगती,
कांटों से है प्यार मुझे।
देख चुका हूं शीतलता को,
प्रिय लगता है अंगार मुझे।
दुख के शैल उमड़ते आयें,
सुख की क्या परवाह मुझे।
भीषण हाहाकार मचे जो,
आ न सकेगी आह मुझे।
नहीं हितैषी कोई जग में,
यही मिली है हार मुझे।
ढूँढ चुका हूँ जी का कोना,
किन्तु मिला क्या प्यार मुझे।


पग के छाले दर्द उभरते,
आँसू से भर धोता कोई।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


नूतन लाल साहू

पल
पल में मिनट,पल में घंटा
पल पल में महीनों, बीत जाते है
पल का पालन करने वाले
पल पल आगे,बढ़ जाते है
सूरदास,तुलसी, काली,कबीरा
अपने समय के,थे वो हीरा
जग में नाम, कमा कर गये
महादेवी और मीरा
पल में मिनट,पल में घंटा
पल पल में,महीनों बीत जाते है
पल का पालन करने वाले
पल पल आगे बढ़ जाते है
क्या किसान, क्या ब्यापारी
क्या नेता, क्या अधिकारी
पल ही करता है,सबका बेड़ापार
जो पल का सदुपयोग,नहीं किया
उनके जीवन में, अंधियार ही अंधियार
पल में मिनट,पल में घंटा
पल पल में,महीनों बीत जाते है
पल का पालन करने वाले
पल पल आगे बढ़,जाते है
जलिया वाला, बाग न भूलो
मत भूलो,भगत सिंह की फांसी को
देश भक्ति को,छोड़ चले हम
स्वार्थ की,भक्ति समाई है
पल में मिनट,पल में घंटा
पल पल में,महीनों बीत जाते है
पल का पालन,करने वाले
पल पल आगे बढ़,जाते है
वक्त से लड़कर, जो नसीब बदल लेे
इंसान वहीं, जो अपनी तकदीर बदल दे
कल क्या होगा,कभी मत सोचो
क्या पता कल,वक्त खुद
अपनी तस्वीर, बदल ले
नूतन लाल साहू


रामनाथ साहू " ननकी "                                 मुरलीडीह

आज की कुण्डलिया ~
15/02/2020



          ★■◆● तामस ●◆■★


 तामस स्वभाव त्याग दे ,
                           कर सबसे अनुराग ।
थोड़ी सी है जिंदगी ,
                            नहीं लगा तू दाग ।।
नहीं लगा तू दाग ,
                          इसे कोरा ही रखना ।
कालिख तू मत पोत ,
                      नयापन कायम रचना ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
                         मूल में आजा वापस ।
दुख के ये सब हेतु ,
                       तमोगुण उपजे तामस ।।


   


                   ~ रामनाथ साहू " ननकी "
                                मुरलीडीह


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"कन्या"* ("क" आवृतिक आनुप्रासिक वर्गीकृत दोहे)
****************************
*कन्या कानन की कली, कल्प-कलित कुल-कंज।
कुहुकत कोकिल कुंज की, किलकत कुलक-करंज।।1।।
(11गुरु, 26लघु वर्ण, बल दोहा)


*किस-किस को कब-कब कहाँ, करना कन्यादान।
कैसे किस्मत को कहें, किस कर कहाँ कमान??2??
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*करके क्यों कुविचार को,  करते करम-कुवेश?
काटो कालिख-कुटिलता, कुवचन कपट-कलेश।।3।।
(11गुरु, 26लघुवर्ण, बल दोहा)


*कन्या की कर कामना, करना कुल-कल्याण।
कलुषित कसमें काटना, कन्या का कर त्राण।।4।।
(15गुरु, 18लघु वर्ण, नर दोहा)


*करके कम क्यों कोसते? कन्या कुल-कलद्यौत।
कपिला-कौस्तुभ-कौशिकी, कुंकुम-कलश-कठौत।।5।।
(13गुरु, 22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कोकिल-कूकना, कानन-किलक-कुरंग।
काट कपट कटु-कोर को, काटे कुटिल-कुसंग।।6।।
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कंचन कीमती, कल्याणी कलधाम।
काटे कुटिल-कलेश को, करती कितने काम।।7।।
(16गुरु, 16लघु वर्ण, करभ दोहा)


*कन्या कविता काव्य की, कुलकित कुलक करार।
कौशल-कौतुक-कौमुदी, कुहुकत कूल कछार।।8।।
(12गुरु, 24लघु वर्ण, पयोधर दोहा)


*कन्या कांता-कामिनी, कुल-केतन कनहार।
कुंजी-कांति-कुलेश्वरी, कामधेनु-करतार।।9।।
(16गुरु, 16लघुवर्ण, करभ दोहा)


*कन्या कणिका कनक की, कोष-कुंभ-कलदार।
कंचन-कुंडल कर्ण का, कल-कल कुल-कासार।।10।।
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कजरी-काकली, क्वणन-कर्ण किलकाय।
कोकिल-कूजन कुटप की, क्यों कुलिंग कुम्हलाय??11??
(13गुरु, 22लघुवर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*कन्या कांक्षा-काशिका, कुल-कगार-किलवार।
कुसुमित केतक-कोकनद, कुसुम-कली-कचनार।।12।।
(12गुरु, 24लघुवर्ण, पयोधर दोहा)
*****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
*****************************


कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २६७
दिनांक: १४.०२.२०२०
वार: शुक्रवार
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: ,💋हठ करती प्रिय राधिका💌
लिये    हाथ    बांसुरिया , कृष्ण    चन्द्र  मुस्कान।
हठ   करती   प्रिय  राधिका , श्रवण  बांसुरी तान।।१।।
सुन   राधे    धीरज   धरो , खाऊं   मैं      नवनीत।
चलें   पुन:   मधुवाटिका , सुन   मुरली      संगीत।।२।।
मातु    यशोदा   हैं   खड़ी , हाथ   लिये   नवनीत।
हठ   मत  कर   राधे  प्रिये , देखो   ममता    प्रीत।।३।।
पिता   नंद   आशीष     लूं , गैया   करूं   प्रणाम।
ग्वाल   बाल   सब  साथ लूं , प्रिय राधे अभिराम।।४।।
दाऊ   खड़े  हैं   देखते , कुछ   तो  कर   संकोच।
उतावली   मत  बन  प्रिये , कुछ  मेरी  भी   सोच।।५।।
बड़ी    बावली   चंचला , तू   राधे    प्रिय   श्याम।
राग   न   कर   अनुराग  मन , मुरलीधर  तू  वाम।।६।।
सुन  लाला  मैं   तो  चली , छोड़  तुझे  निज  गेह।
चाल  तेरी   मैं  समझती , तू   नटखट   हूं     हेय।।७।।
लाख   बहाने   कर   रहे , है  तेरे   दिल  में  खोट।
रे   कान्हा   मुरली   बजा , करो  न  सजनी  चोट।।८।।
तू   प्रियतम   मैं   चन्द्रिका , तू    मुरली  मैं  तान।
यमुनाजी   के  तट  चलें ,  गाएं   मधुरिम    गान।।९।।
नंदलाल   गोपाल    सुन, श्याम   सलोने    मीत ।
दीवानी   मुरली   मधुर , तू   जीवन  मैं       प्रीत।।१०।।
बनी   रागिनी   फिर  रही , दामोदर  हिय  ध्यान।
कमलनैन   कान्हा  प्रियम , रखो   प्रीत  सम्मान।।११।।
ग्वाल  बाल  सह   गोपियां , उड़ा  रहे   उपहास।
लाल   हो   रही  लाज से , तनिक करो आभास।।१२।।
मनमोहन  चल  साथ  में , करें   मनोहर     रास।
लखि निकुंज जीवन सफल,राधा कृष्ण विलास।।१३।।
रुष्ट  हुई  लखि  राधिका  , मन हर्षित  घन श्याम।
सुन  राधे   मुरली   मधुर , प्राणप्रिये !   सुखधाम।।१४।।


कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


कैलाश , दुबे ,

खो गई क्यों माँ की ममता ,


और पिता का प्यार भी खो गया ,


हाय रे हाय नसीब जाने कहाँ सो गया ,


पत्नि भी बैठी आस लेकर अभी तक ,


पूरा एक साल भी अब हो गया ,


विधि रचा स्वांग ये कैसा 19 में ,


पुलवामा में भारत माँ का सपूत शहीद हो गया ,


खनखनाती चूड़ियों की खनक अब बन्द है ,


माँग से सिंदूर हमेंशा  को धुल गया ,


क्षण भर में नम हुई कजरारी अँखियाँ ,


दो दिलों के बीच में लो काल बैरी हो गया ,


कैलाश , दुबे ,


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*बस आदमी आज एक* 
*इंसान हो।।।मुक्तक।।।*


आदमी  की  हर बात  का
बस इत्मीनान हो। 


इंसानियत ही बस  आदमी
का   ईमान    हो।।


नहीं चाहिए खुदा सी सीरत
आज आदमी की।


बस   आदमी   आज    एक
अच्छा  इंसान   हो।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मोबाइल
9897071046
8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली*

*रामायण (हाइकु)*



दिया वचन
मर्यादा पुरुष थे
वन गमन


वानर भेष
अहंकारी लंकेश
बचा न शेष


जटायु प्राण 
लगा दी पूरी जान
काम महान


भरत जैसा
कोई भाई नहीं है
करे जो ऐसा


वीर रावण
ज्ञान नहीं विवेक
मृत्यु धारण


माता जानकी
दी थी अग्नि परीक्षा
स्त्री के मान की


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली*
मोबाइल
9897071046
8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।बरेली

*बस करनी रह जाती है याद*
*सबकी।।।।।।।मुक्तक।।।।।*


मिट्टी  से बना  खिलौना
अपना    शरीर   है  यह।


टूट जाता  सबका  कोई
भी राजा या फ़क़ीर यह।।


मिट जाती हस्ती सबकी 
करनी   याद  रहती    है।


विधाता  की  लिखी  हुई
पत्थर की लकीर  है यह।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।*
मो 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


निशा"अतुल्य"

सायली छंद
1,2,3,2,1
15 /2 /2020


नजर
उठा कर
देखना यूँ तेरा
कर गया
उदास


पूछा
जब उससे
हंसा खिलखिला कर
छुपा उदासी
मुझसे


बिछड़ने
का दर्द
होता है सबको
वो समझा
नही


उदास
मैं भी
पर दिखलाया नही
उसे कभी
मैंने।


उम्मीद
पर टिकी
हसरतों की दुनिया
समझाऊं कैसे 
उसे।


रहो
खुश सदा
मिलना बिछड़ना है
रंग जीवन
के ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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