एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*
*।।दूर दूर रह कर इस कॅरोना*
*को सबक सिखाना है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
जरा अड़ियल  सा दुश्मन  ये
मुँह नहीं लगाना है।
दूर दूर रह कर  इसको  जरा
सबक सिखाना है।।
आज सलामत रहे तो   ज़मीं
को जन्नत बना देंगें।
भूल कर भी इसको हमें गले 
नहीं    लगाना  है।।
2
यह शत्रु ऐसा कि तुम  छू लो
तुम्हारा हो जायेगा।
मिलाया हाथ तो  तन   में ही
तुम्हारे खो जायेगा।।
हम सब की जंग यह    मिल
कर    लड़नी     है।
नहीं संभले गर तो यह  जहर
बहुत  बो  जायेगा।।
3
आज जुदाई   का घूँट  पियेंगे
कल बेहतर बनाने को।
आज का गलत कदम  काफी
है कल    रुलाने    को।।
ये कॅरोना खतरनाक  वायरस
अदृश्य      दुश्मन    है।
इससे आँख मिलना काफी है
मृत्यु निंद्रा सुलाने को।।
4
वक़्त नाजुक घर में बंद  रहना
बहुत     जरूरी    है।
समझो  कि यह आज  हालात
की  मजबूरी        है।।
यह युद्ध थोड़ा अलग  है  और
दूर से    हमें लड़ना।
तोड़ दी गर कॅरोना कड़ी खत्म
हो जायेगी मशहूरी है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।।      9897071046
                      8218685464

।ग़ज़ल।।संख्या   87।।*
*।।काफ़िया।। आ(स्वर) ।।*
*।।रदीफ़।। हो गई है  ।।*
1
आज दूरी    ही    दवा हो      गई है।
बात मिलने    की हवा     हो गई  है।।
2
इस कातिल बीमारी ने   डेरा   डाला।
पूरी दुनिया में फैल ये वबा हो गई है।।
3
यूँ पाबन्दियों का दौर ऐसा   चला है।
जिन्दगी मानों कि सज़ा   हो गई  है।।
4
जिन्दगी का हिसाब किताब बिगड़ गया।
घर बैठना जिंदा रहने की वजहा हो गई है।।
5
वहाँ बिलकुल न जाईये जहाँ जमा हों लोग।
कॅरोना जैसे इक़ जानलेवा कज़ा हो गई है।।
6
अभी कुछ दिन बन्द रहना है घर में जरा।
इस बात के लिए सबकी रज़ा हो गई है।।
7
*हंस* भीतरआ रही हालात लड़ने की ताक़त।
अंदर सबके जमा अब अज़ा हो गई है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464

वबा         मुसीबत।महामारी
अज़ा        शक्ति
क़ज़ा        मौत



।।आज का विषय। बाल कविता/बाल गीत।।*
*।।शीर्षक। बच्चों   को   चमक ही*
*चमक नहीं , रोशनी चाहिये।।*
1
बच्चों को मंहगे त्यौहार  नहीं,
उन्हें संस्कार  दीजिये।
उनको अपनी  अच्छी  सीखों,
का   उपहार  दीजिये।।
आधुनिक खिलौने तो ठीक है,
परन्तु  उनके लिए तो।
कैसे करें   बड़ों से  बात   वह,
उचित व्यवहार दीजिये।।
2
बच्चों   को   अभिमान   नहीं,
स्वाभिमान   सिखाइये।
आलस्य  नहीं    गुण    उनको,
काम    के      बताइये।।
बच्चों को   चमक   ही  चमक,
नहीं    चाहिये   रोशनी।
दिखावा नहीं आदर आशीर्वाद,
का गुणगान  दिखाइये।।
3
बच्चों को भी सिखाइये   कैसे,
बनना  है   आत्मनिर्भर।
प्रारम्भ से ही    बताइये    कैसे,
चलना है  जीवन सफर।।
अच्छी आदतें  पड़ती हैं   अभी,
कच्ची   मिट्टी    में    ही।
जरूर सुनाइये कथा साहस की,
दूर करना है उनका डर।।
4
नींव ही   समय  है    बनने   को,
बुलंद    इमारत     का।
कैसी होगी आगे  की    जिन्दगी,
उस    इबारत      का।।
आगे बढ़ने के गुण   डालिये शुरू,
से  ही    भीतर  उनके।
वह शुरू से ही  पाठ   पढ़ें मेहनत,
और     शराफत    का।।
*रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।*
मो।।।       9897071046
               8218685464

कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...