*दोहे*(पहचान)
अपनी ही पहचान का,होता सरल न ज्ञान।
लिया समझ जो स्वयं को,समझो वही महान।।
मिलती कभी न पूर्णता,भले कहें हम पूर्ण।
ऐ मूरख इंसान सुन,अंत होय मद चूर्ण।।
साधु-संत,ऋषि-मुनि कहें,खुद की निजता जान।
अपने ही गुण-दोष की,करो उचित पहचान।।
रहो भले या मत रहो, जग जाता है भूल।
याद करे जब बाँट दो,काँटा बदले फूल।।
यही पूर्ण पहचान है,यही सत्य-आधार।
मनुज-धर्म उपकार है,कर्म बाँटना प्यार।।
मद-घमंड से तो नहीं,मिले कभी पहचान।
जन-सेवा,उपकार से,हो प्रसिद्ध अनजान।।
मातृ-भूमि-हित प्राण दे,होता अमर जवान।
अन्न-फूल-फल दे कृषक,पाए नित सम्मान।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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