दोहे
जब तक बालक-रूप है,रहता नहीं विकार।
उम्र बढ़े तो आ बसे, माया का संसार।।
नीले-पीले-बैगनी, सब रँग मिले पतंग।
उड़े गगन की छोर तक,पवन-वेग-मन संग।।
प्रियतम के सँग जब बँधे,इस जीवन की डोर।
हो जाता हिय प्रियतमा, अति आनंद विभोर।।
दूर क्षितिज के पार है, बसा पिया का देश।
कब होगा उनसे मिलन , पता नहीं किस वेश??
मिलता है आनंद तब, जब हो मन में तोष।
संत हृदय अति विमल-शुचि,करता कभी न रोष।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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