नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांम्बर

शीर्षक ---पल का परिवर्तन--

सिर्फ एक पल ही खुशियां
जीवन में प्राणि समझता है,परमेश्वर स्वयं सिद्ध परमेश्वर व्यख्याता।।
सिर्फ एक पल की खुशियों के
लिये मानव जाने क्या क्या कर
जाता नही मिलती तो दोष सारा
समय भाग्य ईश्वर मढ़ता।।
सिर्फ एक पल में ही शून्य को
जीवन मील जाता तो कही सिर्फ
एक पल में ही जीवन जाता।।
सिर्फ एक पल ही बहुत है युग
परिवर्तन को सिर्फ एक पल में ही
विशेष ,भाग्य भगवान आता।।
पल प्रहर चलती दुनियां पल 
प्रहर से ही प्रभात संध्या गति
चाल का नाता।।
नित्य गतिमान पल प्रहर 
सिर्फ एक पल ही वर्तमान का
स्वर्णिम इतिहास का निर्माता।।
सिर्फ एक पल में ही बदल जाता
समय भाग्य पुरुषार्थ युग काल
जाता।।
जय और पराजय के मध्य सिर्फ
एक पल ही आता युग को पराक्रम
पुरुषार्थ का मतलब बतलाता।।
आत्मा की परम यात्रा परमात्मा
पहचान, युग का सिर्फ एक पल में
परिवर्तित वर्तमान बन जाता।।
सिर्फ एक पल ही ऐसा आता सुख
दुख का दर्पण कहलाता सिर्फ एक
पल राजा को रंक ,रंक को राजा बनाता।।
सिर्फ एक पल में ही हद हस्ती की
कस्ती का मानव समंदर की गहराई
लहरों में  खो जाता।।
सिर्फ एक पल ही विशेष प्राणि
तोड़ता उद्देश्य पथ के सारे अवरोध
अग्नि पथ से निकल उउद्देश्यो के
पथ का विजेता कहलाता।।
प्राणि की जो भी हो काया
सिर्फ एक पल की प्रतीक्षा
जब युग उत्कर्ष हर्ष का बन
जाए निर्माता।।
अतीत के पन्नो की चमक
वर्तमान का चंद्र सूरज सिर्फ
एक पल की विरासत से धन्य
धीर मुस्कुराता।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश

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