गनेश रॉय "रावण"

"देर से ही सही"
""""''"""""""""""""'""""
देर से ही सही .....
हर किसी के हिस्से में कुछ ना कुछ आएगा
किसी को ज्यादा ..
तो किसी को कम
देखना यह है की पहले किसको हिस्से में क्या आएगा
किसी की आँगन में खुशियों की सौगात आएगा
...................तो...............
किसी की आँगन में मातम छाएगा
यही जिंदगी कि सार है
किसी को कुछ दे जाऐगा
या किसी से कुछ ले जाऐगा
ऐसा नही की इंसान एक ही सिरे पर खड़ा रहेगा
कभी नीचे तो कभी ऊपर रहेगा
ये दुनिया एक विशाल रँग मंच है
यहाँ हर व्यक्ति अपनी किरदार में व्यस्त हैं
कोई नायक बन कर दुःखी है
....................तो.............
कोई खलनायक बन कर खुश है
अगर देखना है असल जिंदगी को
तो जाकर देखो किसी गरीब को
वो भूखे नंगे रहते हैं
कभी भर पेट तो कभी खाली पेट सोते हैं
इस आस में.....
की आज नही तो कल मेरे भी हिस्से में कुछ ना कुछ आएगा
कभी ना कभी मेरी भी तकदीर बदलेगा
आज नही तो कल मैं वक़्त को बदलूंगा
फिर से नई जीवन मैं गढूंगा
यही जिंदगी की यथार्थ है
यही प्रकृति की नियम है
कोई मिलकर बिछड़ता जाता है
कोई बिछड़ कर मिल जाता है
देर से ही सही 
हर किसी के हिस्से में कुछ ना कुछ आता है ।।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
©®


विवेक दुबे"निश्चल" रायसेन

762
वो अंजान सा बचपन ।
वो नादान सा बचपन ।


उम्र के कच्चे मकां में ,
वो मेहमान सा बचपन ।


 इस ज़िंदगी के सफ़र में ,
 एक पहचान सा बचपन ।


 खोजता ख़ुद को ख़यालों में ,
  रहा अहसान सा बचपन ।
 ...विवेक दुबे"निश्चल"@....


vivekdubeyji.blogspot.com
 4/2/20


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून
बाग़बाँ
दिनाँक      8/ 2 /2020



बाग़बाँ इस चमन का क्यों कभी दिखता नही 
हर पल बदलते चित्र सारे चित्रकार दिखता नही 
माँ पिता हैं बाग़बाँ मेरे चमन के दोस्तों
जो चला रहा संसार को वो मगर दिखता नही।


फूल सारे हैं चमन में रंग रूप हैं सबके अलग
बाग़बाँ सबको सवारें कोई जुदा दिखता नही।


रहमतें उसकी बड़ी हैं समझते क्यों हम  नही
साया है मात पिता का जब तक  कुछ मुश्किल दिखता नही।


हम भी सवारें इस वतन को कर निगेहबानी सदा
ये वतन हम सबका देखो बागबान क्यों  कोई दिखता नही।


 स्वरचित
निशा"अतुल्य"


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।।बरेली

*विषय ।।।।चालाकी।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।*


मौन , योग, भक्ति, से जीवन
को बल मिलता है।


कर्म जाता नहीं व्यर्थ अवश्य
ही फल मिलता है।।


कपट ,चालाकी , काम आते 
नहीं सदा जीवन में।


छल के बदले छलआज नहीं
तो कल मिलता है।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।।।बरेली।।।।।।।*
मोब   9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।।बरेली

*।।।।।।।।। बिषय।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।परिवार।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।*


बाँटने से  ख़ुशी होती   दुगनी,
दुःख   होता आधा है।


रहता वही हमेशा प्रसन्न  चित,
मंत्र जिसने ये साधा है।।


साथ   सहयोग प्रेम बन   जाते , 
संकट में    जैसे   ढाल।


कठनाई में हो परिवार एकत्रित,
तो दूर होती हर बाधा है।।
*रचयिता।।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।


सुनील कुमार गुप्ता

नाम:- सुनील कुमार गुप्ता
S/0श्री बी.आर.गुप्ता
3/1355-सी,न्यू भगत सिंह कालोनी,
बाजोरिया मार्ग,सहारनपुर-247001(उ.प्र.)


कविता:-
         *"भंवरा"*
"फूल-फूल मंडरा रहा भंवरा,
मौसम में छाया-
मधुमास।
कलियाँ बन गई फूल साथी,
खुशबू से महकी बगिया-
बाकी प्रेम की रही आस।
पतझड़ बिन मधुमास नहीं,
प्रेम बिन-
जीवन की नहीं आस।
विश्वास की धरती पर ही,
उपजे नेह के अंकुर-
मन भरा विश्वास।
हर फूल की एक कहानी ,
प्रेम में होती नादानी-
रही बाकी जीवन आस।
फूल-फूल मंडरा रहा भंवरा,
मौसम में छाया- मधुमास।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         08-02-2020


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
   *"साधना-अराधना-उपासना"*
"पाने को आत्मिक सुख,
करनी होगी प्रभु की-
साधना-अराधना-उपासना।
साधना-अराधना संग ही,
पूर्ण होती पल पल-
जीवन की कामना।
जीवन के क्षणिक सुखो में,
कैसे-भूला साथी-
प्रभु की उपासना।
भूल कर प्रभु को जीवन में,
होता पग पग-
दु:खो से सामना।
विश्वास की धरती पर ही तो,
मिलेगा साथी-
जीवन में परमात्मा।
अविश्वास की धरती पर,
भटकेगी पल पल-
ये आत्मा।
पाने को आत्मिक सुख,
करनी होगी प्रभु की-
साधना-अराधना-उपासना।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         08-02-2020


कवि शमशेर सिंह जलंधरा टेंपो हांसी ,  हिसार , हरियाणा ।

जो दूसरों के दर्द में शामिल नहीं होता ।
इंसान कहलाने के वो काबिल नहीं होता ।।


जितना चलोगे तुम , क्षितीज बढ़ता चलेगा ,
इस आसमां का तो कोई साहिल नहीं होता ,


मारे जो बेटी पेट में , ना सिसकियां आए ,
पत्थर है वो , सीने में उसके दिल नहीं होता ।


आजाद फिरता मैं भी तेरे साथ हंस लेता , 
साथी अगर मेरा खुदा कातिल नहीं होता ।


मालूम होती गर हकीकत लूटते
हो तुम ,
इस कारवे में मैं कभी शामिल नहीं होता ।


@9992318583@


प्रतिभा प्रसाद कुमकुम

(08)      🙏🏻   *प्रतिभा प्रभाती*   🙏🏻
--------------------------------------------------------------------------
सब मेरा अभिनंदन लें , 
सादर मेरा वंदन लें ।
पुण्य कर्म जो हुए कभी ,
मस्तक, उनका  चंदन लें ।


पुण्य प्रसून बन, पुण्य धरा,
भर दे जीवन, गंध.धरा।
ले प्रीत प्रभाती आयी ,
 नेह सुधा अब भरे धरा।
माता से संस्कार मिले ,
उन सबका अभिनंदन लें।
सादर मेरा वंदन लें।।


मात पिता संग परिवार ,
सभी प्राणी इस संसार।
सब मेरा अभिवंदन लें ,
 सादर मेरा वंदन लें ।।


हे ईश, जगदीश मेरे , 
तुझसे ही प्राण घनेरे ।
जो जो जब जब दिया मुझे,
आशीष सदा  दिया मुझे ।
हर बार तेरा शुक्रिया ,
पटल मित्रों का शुक्रिया।
सब मेरा अभिवंदन.लें।
सादर मेरा वंदन लें।।


 


🌹 *प्रतिभा प्रसाद कुमकुम*
       (सर्वाधिकार सुरक्षित)
        दिनांक  8.2.2020...



________________________________________


एन एल एम त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर

बसंत


मौसम की बहार ----- जब बहाती शीतल मंद बयार. कोयल की कू कू महुया कि खूसूब खास. खेतो मैं हरियाली खुशहाली की झूमती की बाली हर सुबह सूरज युग की  विश्वशो की मुस्कान. आम के बोैरों की शान मधुर मिठास की बान अंधेरों के बादल छटे धुंध मुक्त आकाश.
 मुक्त पवन के झोकों में इतराती इठलाती बलखाती अपनी धुन में मुस्काती युग उत्सव के अागमन की सतरंगी बहुरंगी कली फूल मानव मानवता की बगिया की अभिमान सम्मान.


 रंग रग के पंख उमंग बाग बाग की डाल डाल पे तितली भौरो का कलरव मधु मास वसंत का उल्लास.
 निर्मल निर्झर बहती नित निरंतर नदिया झरने सागर पर्वत अचल अस्तित्व का मान .जल जीवन का भान सरोवर का पंकज प्राणी प्राण प्रकृति महत्व का युग मे प्रथम शौर्य  अवाहन संस्कार. NLMTRIPATHI  (पीताम्बर )


बलराम सिंह यादव अध्यात्म व्याख्याता पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज

एहि महँरघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा।।
मंगल भवन अमंगलहारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।
  ।श्रीरामचरितमानस।
  इसमें अत्यन्त पवित्र,वेदपुराणों का सार,मङ्गल भवन और अमङ्गलों का नाश करने वाला प्रभुश्री रामजी का उदार नाम है जिसे भगवान शिवजी माँ पार्वतीजी के साथ जपते हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  प्रभुश्री राम का नाम अति पावन है अर्थात यह नाम पावन करने वालों को भी पावन करने वाला है और सभी नामों में श्रेष्ठ है।यथा,,
तीरथ अमित कोटि सम पावन।
नाम अखिल अघ पूग नसावन।।
राम सकल नामन्ह ते अधिका।
होउ नाथ अघ खग गन बधिका।।
 वेदों में अग्नि,सूर्य व औषधिनायक चन्द्रमा की महिमा वर्णित है।राम नाम अग्नि, सूर्य व चन्द्रमा तीनों का मूल बीज है।इसीलिए राम नाम को वेद पुराणों का सार कहा गया है।यथा,,
बन्दउँ नाम राम रघुबर को।
हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।
बिधि हरि हर मय बेद प्रान सो।
अगुन अनूपम गुन निधान सो।।
महामंत्र जेहि जपत महेसू।
कासीं मुकुति हेतु उपदेसू।।
 भगवान शिवजी सदैव अमङ्गल वेश धारण करते हैं और श्मशान में निवास करते हैं किन्तु राम नाम निरन्तर जपने के कारण ही वे मङ्गलराशि हैं।यथा,,,
नाम प्रसाद संभु अबिनासी।
साजु अमंगल मंगल रासी।।
यहाँ भगवान शिव को पुरारी कहने का भाव यह है कि भगवान शिव ने अमङ्गल करने वाले त्रिपुरासुर का नाश करने के लिए रामनाम जप के बल का ही प्रयोग किया था।भगवान शिव ने माँ पार्वतीजी के यह पूछने पर कि आप राम नाम का निरन्तर जप क्यों करते रहते हैं तो उन्होंने राम नाम को भगवान के अन्य सभी नामों से हजार गुना अधिक कहा था।यथा,,,
तुम पुनि राम राम दिन राती।
सादर जपहु अनङ्ग आराती।।
*****************
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनामतत्तुल्ये राम नाम वरानने।।
  उमा सहित जेहि जपत पुरारी कहने का तात्पर्य यह है कि राम नाम का जप करना जपयज्ञ है और यज्ञ सहधर्मिणी के साथ किया जाता है अन्यथा वह अपूर्ण माना जाता है।इसीलिए भगवान शिव भी माँ आद्याशक्ति पार्वतीजी के साथ ही राम नाम जपते हैं।पुनः वे दोनों अर्धनारीश्वर हैं अतः गो0जी ने साथ में नाम जपने को लिखा।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


नूतन लाल साहू

आफत के पानी
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
माघ पुन्नी सुग्घर,परब तिहार
राजिम मेला के,महिमा हे अपार
सावन भादो के बरसा,बादल में चटके
माघ फागुन म बोहावत हे,गली म धार
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे,दिन रात पानी
गली सुनसान होगे, रोवत हावे पारा
अइसे में कइसे, चलही गुजारा
गरीब रोये, अमीर रोये
पत्थर बन, बरसत हे जलधारा
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
कोनो मेर ये,फुसुर फासर
कोनो मेर इतरावत हे अडबड़
दुर्बल बर होगे, दु आषाढ़
गम भुलाय बर, दारू पियत हे  अड़बड़
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
ये पानी के जलजला
पानी म आग लगावत हे
जे हा कभू न रोये रहिस
वो ला भी रुलावत हे
हाथ गोड ह शिथिल पड़गे
आंखी डहार लेे,आंसू आवत हे
खर खर खर टोटा, ह करत हे
नाक डहार लेे,पानी बोहावत हे
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
नूतन लाल साहू


नवीन नामदेव "निर्झर"

तेरा नेह निश्छल आधार अपार सा।
सहज, स्वस्फूर्त, सहज निर्विकार सा।।
देता अन्तस् को एहसास सा।
अंतहीन व्योम के प्रकाश पुंज सा।।
अनोखा आल्हादित करता सा। पल पल मुझको रोमांचित करता सा।।
अदभुत ये अहसास बना सा।।
ह्रदय का ह्रदय से  संवाद करता सा ।।
जुबाँ हुई  खामोश मगर
नज़रों से ही बोल पड़ा सा ।।


भोली सूरतका सच्च्ची सीरत ।
कड़वी सी थोड़ी पर खट्टी सी शरारत।।
आकंठ डूब जाता मन मेरा।
जब जब देखूँ तुमको में तो 
जब जब सोचूँ तुमको तब में।।


अंतर की ज्योतिर्मय राह सी।
तुम बहती मन मानस में मेरे सतत् "निर्झर" निर्मल प्रवाह सी ।।
ईश्वर की स्वाभाविक कृति जैसे तुम।
सरल सहज तुम निश्छल अप्रतिम।।
मन हो जाता सुवासित 
जब महके महके तुम मधुरतम।।
चंदन रोली माथे जब  लगती ।
हाथ कलाई मौली बंधती।।
उस पर आँखों से बोले बोल।
मन मेरा  बन मयूर सा 
करता रहता मधुर  किलोल।।
करता रहता मधुर  किलोल।।
"निर्झर"


लता प्रासर पटना बिहार

 


भीनी खुशबू उड़ती हुई फिज़ा को भर ली बांहों में
मदमस्त फिज़ा बहका- बहका सा रहता है
उपवन में झूमें कली कली 
पवन प्यारे के बांहों में
ऋतुराज के आगमन पर मौसम भी बहका करता है
डाली डाली भंवरा गुंजे गूंजे कमल की बांहों में
इतराते फूलों को देखो कैसे मदमाता रहता है!
*लता प्रासर*


अनन्तराम चौबे अनन्त  जबलपुर म प्र

गांव शहर दो भाई भाई


गांव शहर दो भाई भाई
एक बड़ा एक छोटा भाई ।
आपस में कभी न मिलते है
मर्यादा रहती है इनकी भाई ।


गांव शहर में अंतर रहता
शहर बड़ा इनका है भाई ।
आपस में दूरी रहती है
गांव है इनका छोटा भाई ।


दोनो ही खुशहाल रहते हैंं
अपने ही स्तर से रहते हैं ।
गांव में सब मिलकर रहते
भाई चारा बनाकर रखते ।


किसान का गांव से रिश्ता है
मेहनत से खेती करता है ।
भरपूर अनाज पैदा करता है
जो खाने को सबको मिलता है ।


शहर से सब व्यापार चलता है
जो गांव शहर में फैला रहता है ।
गांव शहर दो भाई का रिश्ता है  
छोटे बड़े भाई के,जैसा होता है ।


गांव शहर में भेद न करना
दोनों का अपना मतलब है ।
गांव शहर दो भाई भाई हैं
बस छोटे बड़े का अन्तर है ।


    अनन्तराम चौबे अनन्त
          जबलपुर म प्र
        9770499027
            2214 /
      मौलिक व स्वरचित


  


मासूम मोडासवी

सुरखी  भरी नजरों का नशा ओर ही कुछ है
दाअवते सुखन देने की अदा ओर ही कुछ है


हमने  तो बहुत  चाहा तेरा हुकम हो सादर
खामोश  रहे  लबकी  सजा ओर ही कूछ है


हम सहमे  से बैठे रहे उमिदै  करम  करके
ओर उनके इरादों  की दफा ओर ही कुछ है


बजती  हुइ  पायल  की ये झंकार का जादु
कदमों के थीरकने की अदा ओर ही कुछ है
मोसम ने  बहारों  से सजी ओढी नइ चादर
नजरों को लुभाती ये जीया ओर ही कुछ है


तनहाइ में जीनेका सबब हम कैसे  बतायें
क्या जुरम हुवा? पाइ सजा ओर ही कुछ है


वाअदा  तो  था  मासूम सफर साथ चलेगा
बे रब्त मुसाफत का सीला ओर ही कूछ है


                            मासूम मोडासवी


गंगा प्रसाद पाण्डेय "भावुक"

उनके चेहरे पे,
कई मुखौटे हैं।


वो लाशों पे,
जमे बैठे हैं।


सांसें बोले हैं,
खुलेआम लौटे हैं।


आत्मा मृतप्राय है,
पराधीन ऐंठे हैं।


दर्पण तोड़ते हैं,
मूलतः खोटे हैं।


हुये लाचार हैं,
अकर्मण्य रोते हैं।।


भावुक


संजय जैन (मुम्बई)

*प्यार या छलावा*
विधा : गीत


जबसे मिली है नजरें,
बेहाल हो रहा हूँ।
तुमसे मोहब्बत करने,
कब से तड़प रहा हूँ॥


कोई तो हमें बताये,
कहाँ वो चले गए हैं।
रातों की नींद चुराकर,
खुद चैन से सो रहे हैं॥


ये कमबख्त मोहब्बत,
क्या-क्या हमें दिखाए।
खुद चैन से रहे वो,
हमें क्यों रोज रुलाये॥


करना है अगर मोहब्बत,
तो आजा आज मिलने।
वरना मेरे दिल से,
क्यों खेल रहे थे अब तक॥


जो गैर से करोगे,
अब आगे तुम मोहब्बत।
खुद चैन से तुम भी,
कभी रह नहीं पाओगे॥


मुझसे किया क्यों तुमने,
इतना बड़ा छलावा।
कही का भी न छोड़ा,
प्यार में अपने फ़साके।
अब तो रहम कर दो।
सपनो में न आके॥


जबसे मिली है नजरें,
बेहाल हो रहा हूँ…॥


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
08/02/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

तुम ही मेरे मीत और न जग में कोई
जब से मिले सांवरे सुधबुध मैंने खोई


देखो सब स्वारथ से बंधे यहां जग में
बिन स्वारथ के कोई पूछे नहीं भव में


भक्तों के रखवाले और न तुमसा कोई
जब से मिले सांवरे सुधबुध मैंने खोई


दीन हीन के सहारे दरिद्रनारायण कहाये
जिसने भी तुम्हें पुकारा दौड़े दौड़े आये


जापै कृपा तुम्हारी तापै करे सब कोई
जब से मिले सांवरे सुदबुध मैंने खोई


मुरलीधर हे राधाबल्लभ आश्रय में लीजे
मेरे अधम कृत्य पर स्वामी ध्यान न दीजे


सत्य शरण आपकी लीजिए शरण सोई
जब से मिले सांवरे सुदबुध मैंने खोई।


जय श्री राधेबल्लभ🙏🙏🙏🙏🌸🌸🌸🌸


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

💥💥आया नव प्रभात 💥💥


नव प्रभात लेकर आया रवि,
                लाली पूरब छाई।
चहक   रहे  हैं  डाल  परिंदे,
                हवा चले पुरवाई।


स्वर्णिम किरणें आने को हैं, 
             चलो करें अगवानी।
कोयल स्वागत गीत गा रही,
              मधुर सुनाए वानी।


तम  का  नाश  करेगा सूरज,
                धीरे-धीरे आकर।
आओ उसका स्वागत कर लें, 
         हम भी शीश झुकाकर।


भूलो कल की बातें यारों, 
            गीत खुशी के गाओ।
छोड़ के सारे शिकवे गिले,
            सबको गले लगाओ।


             (राजेंद्र रायपुरी)


डा.नीलम अजमेर

आज का विषय- *प्रभुता*
विधा- *मुक्त*
दिनांक-06-02-2020


  
धारण किये *प्रभुता* प्रभु की
मानव दानव बन रहा
चंद्रगुप्त की बही -लेखन का
हिसाब कर रहा


वाणी-हीनता इस कदर बढ़ने लगी
घोलकर ज़हर शब्दों से ही वार करने लगा


कलयुगी राम कभी,कभी कृष्ण बन रहा
भोले-भाले भक्त बेचारों को
ठग रहा


स्वतंत्रता और संविधान को  रख जेब में
भोली जनता को भड़का देश अपमानित कर रहा


अपने कुकर्म किसी मासूम के मत्थे मड़कर
अपने को सच्चाई का फरिश्ता बता रहा


बनकर कभी राम ,हाथ में अपने कानून लेकर
नाम की आड़ में हवस का अड्डा चला रहा


ओढ़ चुनरिया रामनामी,
नाम रामरहीम का
भक्तजन की भक्ति का मज़ाक उड़ा रहा


        डा.नीलम


इन्दु झुनझुनवाला जैन

एक प्रयास पिरामिड के लिए👏


ये
आँखें 
वे आँखे 
रोती आँखे
कहती आँखे
आँखों ही आँखो मे
कुछ समझती -सी
कुछ समझाती आँखे
बिन कुछ कहे ,ना बोले 
 बुन लेती कहानियाँ आँखे।
ये जो तेरी हमारी आँखें है ना,
मन चाहे तो भी, छुपे ना छुपाए,
कह देती है सब,नीली काली आँखे ।


इन्दु झुनझुनवाला जैन


कैलाश , दुबे , होशंगाबाद

मेरे गुनाहों की सजा मुझे रब न देना ,


वक्त आ जाये गर तो बक्श देना ,


गुनाह कर चुका हूँ मैं भी कई मर्तबा ,


पर गिनना मत सारे के सारे छोड़ देना ,


कैलाश , दुबे ,


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली

 


पनप   रहे   बहु  कंस  अब ,भारत   माँ  है  त्रस्त।
राम   कृष्ण अवतार   फिर , दुश्मन  होगा   पस्त।।१।।


सत्यवीर    मानव   सदा , शान्तिदूत   बस  ध्येय।
मानवता   संकट   जभी , सर्वनाश   खल     हेय।।२।।


परिवर्तन   होगा    बहुत ,सन्  दो  हजार     बीस। 
मानक   होगा   राष्ट्रहित , मिटे   खली  अरि टीस।।३।। 


कर्मपथी    मिहनतकशी , होगा   जन    समुदाय।
राष्ट्र   संग उत्थान   निज , होगा   सबसे    न्याय।।४।।


धन   वैभव   मुस्कान   मुख , फैलेगा जन  आम।
सर्वसुखी   परहित   बने , भारत   हो   अभिराम।।५।।


शिक्षा   होगी   जन सुलभ , निर्भय  नारी  शक्ति।
विज्ञान शोध  जग  श्रेष्ठतर , राष्ट्रभक्ति  अनुरक्ति।।६।।


मान   सनातन   धर्म का , राम लला   अभिषेक।
बने   राममन्दिर  भव्य , बिना  किसी  व्यतिरेक।।७।।


सफल   न  होगा  दहशती , सर्वनाश अरि पाक।
राष्ट्र  द्रोह  गद्दार  सब , अब  होंगे  जल   ख़ाक।।८।।


समरसता   होगी   वतन , बढ़े  आपसी     प्रीत।
सहयोगी   करुणा      दया , सदाचार   नवनीत।।९।।


गूँजेगा   जन   मन   वतन , भारत  माँ जयगान।
झंडा     लहराए      गगन , रहे    तिरंगा   शान।।१०।।


जय    हिन्द    नवरंग  से , रंजित   होगा   देश।
गूँजे   वन्दे    मातरम् , नमो      राष्ट्र      संदेश।।११।।


भेद   मिटेगा   जाति  का , भाषा कौम  विवाद।
शान्ति  प्रगति  सम्मान    यश , फैलेंगे  निर्बाध।।१२।।


भारत  होगा  विश्वगुरु , किसान  ज्ञान  विज्ञान। 
महाशक्ति  उन्नत शिखर , अधिनायक सम्मान।।१३।।


कवि निकुंज आश्वस्त मन , नीति प्रीति समवेत।
संविधान  समरस   अमन , हो  भारत   उपवेत।।१४।।


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नयी दिल्ली


इंदु,अमरोहा

🔥एक आग सी लगी है मन मे अब भी तेरी उन बातों से
नाता है आज भी मेरा कुछ उन साथ मे बीती रातों से



🔥मैं ठहरा हूँ चलता है समय जैसे दो दिन की बात कोई
एक डोर कोई है बंधी हुई तेरी गर्म उन सासों से



🔥आँखे हैं भरी पर रोता नही मैं टूट के जुड़ा दिखाता हूँ
दिल भारी पर है आज भी तो तेरे ही उन अहसासों से



🔥मैं रहा समर्पित तेरे लिए दिल को मेरे कुछ चैन मिला
पर तू बैरी दुनिया जुल्मी खेले सब मिल जज्बातों से



🔥माही न समझ कोई बात नही एक यारी तो पर रहने दे
दामन थोड़ा बचता तो रहे इन चुभने वाले काँटों से


 



इंदु,अमरोहा✒


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