किशनू झा तूफान 

बाधाओं से टकराकर के, 
जो आगे बड़ जाते हैं !
जीवन के हर उच्च शिखर पर, 
वो अक्सर चढ़ जाते हैं।


 



कष्टों को सहकर के जो, 
जीकर भी मर लेते हैं। 
बनकर दिनकर घोर तिमिर को, 
वो हरदम हर लेते हैं। 
पर्वत बनकर तूफानों के,
सम्मुख जो अड़ जाते हैं। 
जीवन के हर उच्च शिखर पर, 
वो अक्सर चढ़ जाते हैं ।


 


शूल बिछे हो राहों में पर, 
तुमको चलना होगा। 
तम को हरने की खातिर, 
दीपक बन जलना होगा ।
बन उजियारा अंधियारों से, 
जो अक्सर लड़ जाते हैं। 
जीवन के हर उच्च शिखर पर, 
वो अक्सर चढ़ जाते हैं।


 



कहे जमाना कुछ भी पर तुम, 
सच्चाई की बात करो। 
मंजिल की मुश्किल पर तुम भी, 
मेहनत से आघात करो।
लोग महनती बनकर तारे, 
अम्बर में जड़ जाते। 
जीवन के हर उच्च शिखर पर, 
वो अक्सर चढ़ जाते हैं।


 


                        रचयिता 
              किशनू झा तूफान 
               8370036068


डॉ प्रतिभा कुमारी'पराशर'     हाजीपुर बिहार

गीतिका


गली - गली में यही कहानी ।
कहीं नहीं है सही नहानी।।


जलाशयों में कहीं न पानी 
सड़ी पड़ी है कहीं निशानी ।


नहीं सुनो अब गलत बयानी 
वही सुनी जो रही पुरानी ।


नहीं सुनेगा कभी जमाना 
किसे सुनाऊँ वही कहानी ।


धरा रही है सजी सुहानी
चली हवा तो बही रवानी ‌


       डॉ प्रतिभा कुमारी'पराशर'
    हाजीपुर बिहार


डा० कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ

एक पुजारन'''''


मैनें अपने मन-मंदिर में
तुमको ही नित् देखा है..
अपनी मर्यादा के अन्दर,तुमको 
उस मंदिर का देवता देखा है...


...............भावो के फूल चढ़ाती हूँ...
...............खुद श्रद्धा पे इतराती हूँ..
...............तेरी दासी बनकर मैं...
................तेरे ही गीत बस गाती  हूँ.


तू मुझमें अब, मैं तुझमें
दोनों की एक ही काया है
राधा -कृष्ण में,या कृष्ण राधे में..
ये भेद तो बस भरमाया है..


...................सो जाते हो मूंद पलक जब..
...................मैं चुपके से चली आती हूँ..
..................मीठे सपने से तुम लगते ..
..................मैं जब-जब ऑख लगाती हूँ..


....मैं ,तुम दोनोम 'हम 'हो गये
...सपनें अब सब एक हुए..
...दोनों एक दूजे में समर्पित 
. दोनों ही अब सत्य में अंकित 


डा० कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक नया मुक्तक


सफर  कटता  नही  हैं  मंजिलें  भी रास ना आती।
हमें मिलता नही अब चैन जब तक पास ना आती।
कई मसलों पर फ़क़त वो रुठी हमसे अभी तक है।
मग़र  देखे बिना उनको नज़र की  प्यास ना जाती।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


  डॉ प्रताप मोहन "भारतीय   बद्दी

वेबसाइट पर प्रदर्शन हेतु
** बेवफा ज़िन्दगी **
ज़िंदगी तू बता
एक बात
कब तक रहेगी
मेरे साथ ?
कहते है
तू बेवफा है
तूने जिससे
नाता जोड़ा
हमेशा उसका
साथ छोड़ा
तू आज तक
किसी की
नहीं हो पाई
क्योंकि तुम्हारी
फितरत में है 
हमेशा बेवफाई 
   लेखक -
          डॉ प्रताप मोहन "भारतीय          308, चिनार - ऐ - 2 ओमैक्स पार्क वुड - बद्दी - 173205      (H P)
  मोबाइल - 9736701313
Email - DRPRATAPMOHAN@GMAIL.COM


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  संपर्क - 9466865227 झज्जर ( हरियाणा

रात बरसाती.... उड़ता 


मौसम तो बदल गया है, 
बरसाती रात घिर आएगी. 
एक बौछार तन को छुएगी, 
शीतल हवा खिड़की से घुस आएगी. 
दिशाओं में सोंधी महक है, 
चेहरों पर मुस्कान आ जाएगी. 
टप -टप  झम -झम नीर बरसेगा, 
एक बदली सी घिर आएगी. 


कभी खाट पर चू पड़ेगी, 
कभी एक दूसरे से लडेंगी. 
सर्र एक बंधती मालूम पड़ेगी, 
इस अकेलेपन को दूर ले जाएगी. 
पेड़ -तरु सब पुलकित होंगे, 
बारिश पत्तों को हिला जाएगी. 
संवेदना जो सोयी पड़ी थी, 
बरसाती रात एहसास जगा जाएगी. 


अच्छा है धरा सूखी नहीं, 
कोई भ्रम होगा तो लौट जायेगा. 
बच्चों की किलकारी का, 
शौर कहीं सुना जायेगा. 
कागज़ की नाव चलेगी, 
माहौल हरा - भरा हो जायेगा. 
बरसाती रात खुश कर देगी, 
मन मगन हो गाएगा. 
तुझे मौका मिल गया "उड़ता ", 
तू बरसती रात पर नज़्म बनाएगा. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com


प्रतिभा द्विवेदी उर्फ मुस्कान© सागर मध्यप्रदेश

💟प्रतिभा उवाच💟
   💟💟💟💟💟💟
एक सवाल
वो कौन सा स्कूल है ???
वो कौन सा समाज है???
वो कौन से माता-पिता हैं????
वो कौन सा पड़ोस है???
वो कौन सा सोशल मीडिया है????
वो कौन सा फुटपाथ है????
वो कौन सा प्रिंट मीडिया है???
वो कौन सी किताब है???
वो कौन सा शिक्षक है????
वो कौन सा इलाका है???
वो किसकी परवरिश है????
जो दरिंदगी सिखाती है????
भारत जैसे शांति प्रिय देश में...
कैसे मासूम बच्चों की ....
निर्मम हत्या कर दी जाती है???
सच कहूँ "प्रतिभा" को ऐसे देश में..
रहने में बड़ी शर्म आती है!!!
क्योंकि दरिंदगी की जड़ कहाँ है???
"प्रतिभा" पकड़ नहीं पाती है!!!
लाचारी और विवशता को....
कागज पर लिखकर ही बस रह जाती है ..
लिखकर ही बस रह जाती है ....!!
लेखिका --प्रतिभा द्विवेदी उर्फ मुस्कान©
सागर मध्यप्रदेश ( 09 जून 2019 )
मेरी यह रचना पूर्णता:स्वरचित मौलिक व प्रमाणिक है ।इसके सर्वाधिकार लेखिका के हैं इसके व्यवसायिक उपयोग के लिए लेखिका की लिखित अनुमति अनिवार्य है धन्यवाद


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक लावणी छंद
सादर समीक्षार्थ


बड़ा मनमीत, वह हिय पुनीत,
देखत  ही   सुख,   करते   हैं।
प्रीत की  रीत, सदा  निबाहति,
हिय   पीर   तुरत,   हरते   हैं।
मन   मंदिर   में,   रहते  हमरे,
कर   शीश   सदा,  धरते   हैं।
'अभय' उस रूप, के बोलन से,
नित   खिले  सुमन,  झरते  हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून


गीत
18/ 2/ 2020



आओ कान्हा होली खेलें तुमको रंग लगाऊँगी
आ गई सखियों की टोली कैसे तुम्हे बचाऊंगी ।


आओ कान्हा खेले होली


भर पिचकारी तुमने मारी
तुम कैसे बच पाओगे
रंग सांवरे मैं भी रंगूँगी 
तुमसे प्रीत निभाऊंगी


आओ कान्हा खेले होली


भीगी साड़ी भीगी चोली
तुझको अंग लगाऊँगी
थिरक रही है पग में पायल
तुम को नाच दिखाऊँगी।


आओ कान्हा खेले होली


थरथर थरथर कांप रहीं हूँ
आकर अंग लगा लो तुम
मैं बन जाऊं मुरली तेरी
मुझको अधर लगालो तुम ।


आओ कान्हा खेले होली 


प्रीत मेरी है निपट बावरी
तुझ बिन कुछ न दिखता है
आओ कान्हा कदम्ब के नीचे
सुरताल वहीं बस मिलता है ।


आओ कान्हा खेले होली तुमको रंग लगाऊंगी


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


प्रवीण शर्मा ताल*

*सलाह*



सुनो सबकी पर करो मन की,
सलाह जन की  मानो मन की।


सलाह होती बुरी और अच्छी,
सँवरे जीवन तो बड़ी है अच्छी।


अंतर्मन जो हमे गवाह दें,
सलाह वो जो हमे हवा दें।


सलाह होती एक सुझाव है,
 चलती जीवन की नाव है।


अगर नाव में छेद है,
कुछ सुझाव में भेद है


भेद सुझाव में न पाँव है,
लंगड़े जीवन पर घाव है।


सलाह हमे सीधे जहाँ ले चले,
वो निराशा के ऊपर बहाव है।


जो बिगड़े  जीवन सँवार दें,
वो सलाह हौसलो का भाव है।


 ताल जिंदगी की सलाह जान है
 यह निःस्वार्थ सेवा की पहचान है ।


*✒प्रवीण शर्मा ताल*
,


श्याम  कुँवर भारती

गजल - ज़िंदगानी से प्यार क्या करे  
जब तुझे आना ही नहीं तेरा इंतजार क्या करे |
वादा करके निभाना ही नहीं तेरा एतवार क्या करे |
जिंदगी गुजारी है मैंने अंधेरों मे ,
अब उजालों से प्यार क्या करे |
दिल की बात छुपाने की आदत बन गई ,
अब उनको राजदार क्या करे |  
खाई है चोट मैंने अपनो  से,
अब उन्ही पे दिल निसार क्या करे |
कत्ल किया है मेरा वफ़ादारों ने ,
अब वार ये तलवार क्या करे |
लाकर छोड़ दिया है मजधार मे मुझे,
अब कस्ती- ए- जस्ती पार क्या करे| 
मौत से ही मैंने दोस्ती कर ली ,
अब जिंदगानी से प्यार क्या करे |  
श्याम  कुँवर भारती


रघुनंदन प्रसाद दीक्षित " प्रखर"  फतेहगढ  फर्रूखाबाद(उ.प्र.)

माँ वाणी स्तवन
===========
दो शुद्ध वृत्ति बुद्धि निर्मल ज्ञानधन माँ शारदे।
हो शुभम् वरदा कृपा कर पाथेय बन माँ शारदे।।
हे वीणापाणि मराल वाहिनि लेखनी शुभदा गिरा ,
पद्मासनी माँ सरस्वती मोहे ज्ञान माँ शारदे।।


मृणालिनी प्रकाशिनी ,लेखनी माँ शारदे ।
वीणपाणी हंसवाही , सरस्वती माँ शारदे।।
कर माल पुस्तक अभय वीणा धारती,
हे स्वरा  दी जो कला सत ज्ञानदा माँ शारदे।।



✍🏻 रघुनंदन प्रसाद दीक्षित " प्रखर"
 फतेहगढ  फर्रूखाबाद(उ.प्र.)


सन्दीप सरस, बिसवाँ

🔵 सपनों का मर जाना अच्छा🔵


सपने तो सपने होते हैं लाखो हों चाहे इकलौता,
जो सपना सच हो न सके उस सपने का मर जाना अच्छा।।


क्या चिड़ियो के उड़ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।
क्या सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
उन कलियों की व्यथा टटोलो जिन्हें कंटकों ने ही छेड़ा,
क्या पुष्पों के मुरझाने से उपवन नहीं मरा करता है।


हाँ, कुछ पुष्प हुए उपवन में जिनमें रची सुवास नहीं है,
ऐसे पुष्पों का खिलने से पहले ही मुरझाना अच्छा।।


मन की पीड़ा कहें अधर ना, यह भी कोई बात हुई है।
जीवन हो जीवन्त अगर ना, यह भी कोई बात हुई है।
टुकड़ा-टुकड़ा जीने को मैं जीना कैसे कह सकता हूँ,
थोडा जीना थोडा मरना यह भी कोई बात हुई है।


बूँद-बूँद से तृप्ति मिली तो प्यास बहुत अपमानित होगी,
तो उस प्यासे का पनघट से प्यासा ही घर आना अच्छा।।


शब्द शब्द से संवादों का गठबंधन अच्छा लगता है।
सच कहता हूँ कविताओं का अपनापन अच्छा लगताहै।
मेरे गीतों में जीवन का आँसू-आँसू अभिमन्त्रित है,
वेदों के मन्त्रों से ज़्यादा गीत मुझे सच्चा लगता है।


जीवन की अनुभूति हमारे गीतों में अभिव्यक्त न हो तो,
फिर जीवन के हर पन्ने का कोरा ही रह जाना अच्छा।।


🔵 *सन्दीप सरस, बिसवाँ*


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

फूल तुम पर मैं बिखराऊं
********************
आओ मेरी प्रेयसी!जी भर मैं दुलराऊं।
तेरा रूप मनोहर मेरे मन की ज्वाला,
तुम कुछ इतनी सुंदर ज्यों फूलों की माला,
तेरे चलने पर यह धरती मुस्काती,
देखकर रूप तुम्हारा किरणें भी शरमातीं,
तुम जिस दिन आई थी, मन में मैं सकुचाया,
लेकर छाया -चुम्बन कुछ आगे बढ़ आया,


आओ पास हमारे फूल तुम पर मैं बिखराऊं।
चंचल सूरज की किरणें धरती रोज सजाती,
सिन्धु लहरियां तक से बेखटके टकरातीं,
उड़ -उड़ जाते पंछी गाकर गीत सुहाना,
खिल खिल पड़ती कलियां सुन भौंरों का गाना,
तुम लहराओ लाजवंती सा अपना आंचल,
मुझ पर करते छाया नभ के कोमल बादल,
छूकर कनक अंगुलियां जगती से टकराऊं,


तेरे नयनों से जब मैंने नयन मिलाये,
उस दिन चांद-सितारे धरती पर झुक आये,
बोल गयी थी कोमल कोमल कोमल भाषा,
देखो, जी मुस्काओ, आई मन्जुल आशा,
तेरी प्रीति-प्रिया यह इस पर गीत लुटाओ,
तेरी मानस-शोभा इस पर तुम लुट जाओ।


दे-दो अपना आंचल जी भर के फहराऊं।
वह चन्दन की गलियां जिसके नीचे छाया,
उस दिन तुमको जाने क्यों मैंने शरमाया,
अंचल छोर उठा जब दांतों तले दबाया,
नत नयनों से देखा मन मन मैं मुस्काया,
दुनिया क्या कहती है उसको यों ठुकराया,
जैसे झटका खाकर कन्दुक पास न आया,
आओ लेकर तुमको नभ में मैं उड़ जाऊं।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


सत्यप्रकाश पाण्डेय

अर्धांग नहीं सर्वांग हो तुम
तुमसे मिली पूर्णता मुझको
तुमसे मैं हूँ मुझसे हो तुम
है नहीं कोई रिक्तता मुझको


जो अभाव थे जीवन में
तुमको पाकर वह पूर्ण हुए
बीतेंगे सुखमय दिन मेरे
अब हम इतने सम्पूर्ण हुए


जीवन कश्ती ले निकला
भवसागर धारा में व्याकुल
तुम जैसी पतवार मिली
अब न तट के प्रति आकुल


तरे जा रहा हूँ धारा को
लेकर आँखों में सपने प्यारे
झंझावात शान्त हो रहे
लक्ष्य निर्धारित हो रहे सारे


तरल तरंगित भावों का जल
संस्कारों की उठती लहरें
मन पक्षी उड़ने को आतुर
मिलकर बाधा पार करें


सत्य जीवन की बागडोर
है प्रिया तुम्हारे हाथों में
हुई हयात स्वर्गमय अपनी
जब हाथ तुम्हारे हाथों में।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*कैसे रिश्तों को मजबूत*
*बनाना चाहिए।मुक्तक*


हो कोई   गाँठ  रिश्तों  में 
तो सुधार  लाना  चाहिये।


किसी के दर्द   में  जरूर
तुम्हें काम आना चाहिये।।


सद्भावना  सबके    लिए
बसे   दिल    में   तुम्हारे।


गर जंग अपनों से हो  तो
हमें  हार  जाना   चाहिये।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।बरेली।*
मो         9897071046
             8218685464


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*पानी का बुलबुला सा जीवन*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


कागज़ की कश्ती और  पानी
का बुलबुला सा जीवन।


कब   पल भर   में  मिट जाये
है  गुलगुला सा  जीवन।।


कुछ अच्छे काम जरूर करना
वक़्त रहते आज ओ अभी।


फिर वक्त मिले  न तुझको कि
बहुत चुलबुला  है जीवन।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।*


वंश बढ़ना
पुत्र नहीं पुत्री भी
नाम करना


वीरान दिल
अवसाद का घर
सबसे मिल


कर आबाद
नया करके दिखा
रखेंगें याद


नारी की लज्जा
उसका     आभूषण
नारी की सज्जा


बेह्तरीन
समोसा अच्छा लगे
ये नमकीन


जय जवान
भारत का नारा ये
जय किसान


एक दुकान
कठिन परिश्रम
हैं सौ सामान


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।बरेली

*विषय।।।।।।पिता।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक माला।।।।।*


माँ ममता की मूरत तो पिता
अनुशासन की डोर है।


दोनों के स्नेह  प्रेम  का नहीं
कोई   ओर   छोर  है।।


माँ करती पालन पोषण और
पिता    धन   अर्जित।


माँ देती  चाँद  सी   शीतलता
पिता सूरज की भोर है।।


 


माँ प्रेम  की  वर्षा  तो  पिता
संकट करे   जज्ब  है।


बिगड़ ना जाये  बच्चा पिता
बनता कठोर  लफ्ज़ है।।


सिर पर   ममता  का   स्पर्श
और पिता  का   साया।


यूँ जान लो  संतान  के  लिए
पिता सांसों की नब्ज है।।


 


जन्म दाता  पिता  संतान के
लिए दुःख भी सहता है।


गम सीने में दफन कर के भी
उफ  नहीं    कहता  है।।


पितृ   ऋण  से   संतान  कभी
मुक्त हो  नहीं   सकती।


वही होता सफल सर पर हाथ
जब पिता का रहता है।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।


संजय जैन (मुम्बई)

*भाग जाते है वो*
विधा: कविता


लगाकर आग वो, 
अक्सर भाग जाते है।
कहकर अपनी बात,
अक्सर भाग जाते है।
बिना जबाव के भी,
क्या वो समझ जाते है।
तभी तो बार बार आकर,
मुझसे वो कुछ कहते है।।


लगता है उन्हें प्यार हो गया।
दिल की धड़कनों में,
शायद में बस गया।
तभी तो हंस हंसकर, 
आंखों से तीर छोड़ते है।
शायद मेरे दिल को,
दूर से ही पढ़ लेते है।।


अब ये दिल भी उनकी, 
 हंसी का आदि हो गया है।
निगाहें मिलाने को तरसता है।
तभी तो सुबह होने का,
रोज इंतजार करता है।
की कब हँसता हुआ 
चेहरा उनका देखूं।।


जिस तरह वो बैचैन, 
 मिलने को रहते है।
हमारा मन भी उनसे, 
मिलने को तड़पता है।
तभी दोनों इधर उधर,
देखते रहते है।
निगाहें मिलने पर,
मानो एक हो जाते है।।


भले ही वो मुझे,
कुछ न कहे मुंह से।
पर दिल उनकी आंखों को,
पढ़कर सब समझता है।
हंसते हुए होठों से मानो, 
 कोई गुलाब खिलता है।
सामने खड़ा भंवरा भी,
गुलाब को पसंद करता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
18/02/2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरे जीवन के क्षण क्षण में
माँ वसुन्धरा के कण कण में


श्री मुरलीधर तेरा ही वास है
कृष्णा सत्य का ये विश्वास है


शोभित है तुमसे जड़ चेतन
हर प्राणी के हृदय निकेतन


कोई साध नहीं मेरी जग में
तव आशीष पाऊँ मैं भव में


तेरी ज्योति से रहूँ प्रकाशित
तेरी सुरभि से रहूं सुवासित।


मुरलीधर घनश्याम की जय🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी।

एक ग़ज़ल, 
             आपकी नज़र  - - 


थी नहीं हमको ख़बर कुछ कब गए वो छोड़कर।
हैं  वो  मेरे  साथ  हम  ये  सोच कर  चलते  रहे।


वाकया  वो  याद  हमको  ये न कहना  झूठ  है।
चल दिए सपने  दिखाकर  हाथ  हम  मलते रहे।


वो  न  आए   करके  वादा  मानिए   मेरा  कहा,
आएँगे  वो  सोचकर  हम  बन  शमा जलते रहे।


क्या  ख़बर  थी  भूल  जाएँगे हमें वो  इस तरह,
याद  में  उनकी   हमेशा  मोम   सा  गलते  रहे।


दिल दिया हमने  जिन्हें था तोड़ उनने ही दिया।
तुम  हमारी  जान  हो  कहकर हमें  छलते  रहे।


बेरहम   हमने  न  देखा  ऐ  ख़ुदा  ऐसा   कभी,
ये न  पूछा  अश्क़  क्यूँ  ये आँख से  ढलते रहे।


चाह  मेरी   थी  कि  सारे  ख़्वाब  पूरे  हों  मगर,
ज़िदगी  भर  ख़्वाब  मेरी  आँख  में  पलते  रहे।


                      ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
         *"रैन"*
"मौन रहकर जीवन में वो,
क्यों-हरती मन का चैन?
कह सके व्यथा तन-मन की,
कब-आयेगी वो रैन?
ढलती शाम धीरे-धीरे ,
छाई अंधेरी रैन।
थम गई जीवन आशाएं,
कब-देखे भोर ये नैन?
भूल गया जीवन अपना,
खोई सपनो में रैन।
सच हो जीवन सपना यहाँ,
पा जाये सुख ये नैन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

अपना मुझे बना लो राम
🌷🥀🌻🎋🎍🌹🍁
मर्यादा पुरुषोत्तम राम तुम ही हो,
जन, जन के तुम प्राणाधार,
युगों युगों से अखिल विश्व के,
तुम ही हो संचालन राम।
श्री हनुमान जी परम कृतार्थ हो गये,
नाथ तुम्हारी सेवा कर,
सब पूजन अर्चन करने को,
रहते है तत्पर सुर नर मुनि जन।
होगा तभी सार्थक नर तन,
जब मुझको अपना बना लो राम,
करता हूं सर्वस्व समर्पित,
अपना मुझे बना लो राम।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...