डॉ.राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक (स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना 
दिनांक: २४.०२.२०२०
वार: सोमवार
विषय: आराधना
विधा: गीत 
शीर्षक: 🌹आराधना मां भारती 🌹
आराधना  नित  साधना  सुंदर  सुभग  मां  भारती,
स्वप्राण  दे  सम्मान  व  रक्षण   करें  बन   सारथी। 
समरथ बने  चहुंओर  से जयगान  गुंजित यह धरा,
हो श्यामला कुसमित फलित नित अन्नदा भू उर्वरा।
आराधना नित साधना ....


जीवन वतन बन शान हम अरमान हैं  नित राष्ट्र के,
उत्थान हो विज्ञान का अनुसंधान नव कृषि भारती।
शिक्षा सदा सब जन सुलभ नैतिक सबल मानव बने,
समरस सुखी अस्मित मुखी प्रमुदित करें मां आरती।
आराधना नित साधना .... 


निर्भेद नित समाज हो बिन जाति धर्म भाषा विविध,
चलें प्रीति सब सद्नीति पथ संकल्प दृढ़ संकल्पना।
सीमा सतत् रक्षण यतन तन मन समर्पित  हो वतन,
रूहें कंपे  द्रोही वतन आतंक पाप खल नर वासना।
आराधना नित साधना ....


दुर्गा समा निर्भय सबल महाशक्ति बन विकराल  हो,
नारी  सतत  बहुरूपिणी जगदम्ब  वधू भगिनी सुता।
सम्पूज्य नित आराध्य जग चिर देव दानव मनुज हो,
कोमल हृदय भावुक प्रकृति ममता मनोहर भाषिता। 
आराधना नित साधना ....


न दीन हो बलहीन जग सब शिक्षित सबल सुख सम्पदा
निर्भीत मन निज  कर्म रथ चल निज ध्येय पथ पर  बढ़े।
मर्यादित विनत सदाचार युत संस्कार  शुचि जीवन  बने।
श्रवण चिन्तन मनन भावन वाणी प्रकटिता स्नेहिल प्रदा।
आराधना नित साधना .... 


धारा बहे  अविरल  वतन  नित  सद्भाव  समरस  निर्मला,
हो नाश  सब  विभ्रान्त जन  विद्वेष  लालची मन  बावला।
जीवन बने भारत उदय सद्भक्तिमय लक्ष्य  स्नेहिल सर्वदा,
आएं मिलें जन-गण-वतन पूजन करें आराधना मां भारती।।
आराधना नित साधना .... 


जनतंत्र  हो  गुंजित  जगत  जय  मां   भारती  जयगान  से।
मानक बने सौहार्द का नीति सबल सुख सम्पदा उत्थान से। 
शक्ति भक्ति युक्तिपथ सह विवेक परहित बने जन  चिन्तना,
सत्य शिव सुन्दर मनोरम तिरंगा वतन मां भारती आराधना।
आराधना नित साधना ....
डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली


श्याम कुँवर भारती [राजभर] कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,

भोजपुरी होली 9 – कारी केसिया के झार |
बहे लागल फागुनी बयार |
मह मह महके अमवा मोजरवा |
छन छन छनके महुआ के कोचवा |
अईले नाही सईया तोहार |
गोरिया कारी केसिया के झार |
पियर सरसो फुला गईली |
हरियर मटर गदराई गईली |
झीनी झीनी बहे पुरवा बयार | 
गोरिया कारी केसिया के झार |
बैरी पवनवा दरदिया बढ़ावे बदनवा |
महुआ के कोचवा चुएला मदनवा |
सजनी चले अचरा के उड़ाय |
गोरिया कारी केसिया के झार |
फुलवा फुला गईले भवरा लोभाई गईले |
चढ़ते फगुनवा सजनवा कोहाई गईले |
सजनी करेली सोरहो सिंगार |
गोरिया कारी केसिया के झार |
बहे लागल फागुनी बयार |


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ

नीर:: नैनों से नीर न बहने दो,
          दिल की दिल में,ना रहने दो,


तुम नीर क्षीर विवेकी बन,
नामुमकिन को मुमकिन कर दो,


आशाओं को अपना बल दो,
हौसलों को उड़ाने भरने दो,


हर मुश्किल का हल बनकर,
पंखों को परवाज़ पर चढ़ने दो,


पथ तेरा नभ सा उज्व्वल हो,
मन तेरा नीर सा निर्मल हो,


जनमत का तुझको संबल हो,
परास्त तेरे सब खल दल हों,


तू आगे आगे नित बढ़ता जा ,
बंजर में भी तू फूल खिला,


मत कम होनें दे तू लगन अपनी,
  है गगन अपना धरती अपनी,


तू लांघ जा पर्वत की दरारों को,
अब फांद ले ऊंची मिनारों को,


इतिहास नया तू रचता जा,
बाधाओं से तू लड़ता जा,


तन तेरा तपकर तब सोना होगा ,
तेरा वह रुप सलोना होगा ,


तू देश का लाल कहलायेगा,
 जब शहीद का दर्जा पायेगा| 


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक अनुप्रासिक घनाक्षरी
सादर समीक्षार्थ


झरना सी झरकति, झाँकति झरोखा खूब,
झलकावति    चूनर,  बड़ी    सतरंगी   है।
मुसकान  मृदु  मंजु, मुसकावै  गोरी  खूब, 
कोटिन  मनोज  मानौ, बजावै  सारंगी है।
लहर  सी  लहकि  के,  लट  लहरावति है,
ललाट  पर    चमक,  छायी   बहुरंगी  है।
हइ  हिय  हर्षावति,  हलावै  हवा मा हाथ,
देखति  है  ऐसे  जैसे, जनमो  से  संगी है।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून


बेटियाँ
24 /2 /2020



जीवन का श्रृंगार बेटियाँ,
जिद्द की मनुहार बेटियाँ
बन माँ ख़ुद से हमारी,
जीना सिखलाती बेटियाँ।


कर श्रृंगार लुभाती बेटियाँ
छोड़ बाबुल का घर 
पी घर जाती बेटियाँ,
आँगन सुना कर जाती बेटियाँ।


नित नए आयाम बनाती बेटियाँ,
नही कोई काम ऐसा जो 
ना कर पाती बेटियाँ
कहीं रेल चलाती कहीं देश बेटियाँ
बाबुल का दिल धड़काती बेटियाँ।


माँ का स्वाभिमान 
पिता का गरूर होती हैं बेटियाँ
भाई का बन अभिमान
मान बढ़ाती हैं बेटियाँ।


चमन में बहार आती जब
 खिलखिलाती हैं बेटियाँ
भंवरों की गुंजार तितलियों सी
कोमलांग होती हैं बेटियाँ


करो सम्मान इनका सदा
प्यार का सागर है बेटियाँ
करना न तिरस्कार कभी
सृष्टि का करती हैं निर्माण बेटियाँ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

अभी गीत की पंक्तियां शेष हैं
******************
अभी उम्र वाकी बहुत है प्रिये,
तुम न रूठो, अभी ज्योति मेरे नयन में।


इधर कल्पनाओं के सपने  हम सजाते,
उधर भाव तेरे मुझे हैं बुलाते,
यहाँ प्राण , मेरी न नैया रूकेगी,
बहुत बात होंगी न पलकें झुकेंगी,
अभी राह मेरी न रोको सुहानी,
तुम्हीं रूठती हो, नहीं यह जवानी।


अभी गीत की पंक्तियाँ शेष हैं,
रागिनी की मधुर तान मेरे बयन में।


हँसी से न रूठो, हँसी में न जाओ,
विकल आज मानस न हमको रूलाओ,
कहीं तुम न बोलो, क़हीं मैं न बोलूं,
कहीं तुम न जाओ, कहीं मैं न डोलूं,
तुम्हीं रुपसी हो, तुम्हीं उर्वशी हो,
तुम्हीं तारिका हो, तुम्हीं तो शशी हो।


तुम्हें पूजता हूं लगाकर हृदय को,
तुम्हीं रशिम की ज्योति मानस गगन में।


तुम्हें भूलना प्राण सम्भव नहीं है,
तुम्हें पूजना अब असम्भव नहीं है,
प्रिये, तुम नहीं जिन्दगी रूठती है,
कलम रूक रही है, कल्पना टूटती है
न रूठो प्रिय, यह कसम है हमारी,
पुनः है बुलाती नयन की खुमारी।


सजनि, पास आओ हँसो मन मरोड़ो,
सभी साधना-तृप्ति तेरे नमन में।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


एस के कपूर श्री* *हंस

*जरा प्रेम परोस कर तो देखिये।*
*।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


रिश्ते  भी  भूखे   होते   हैं
प्यार जता कर तो देखिये।


मिठास  चाशनी  की  जरा
फैला   कर   तो   देखिये ।।


रंग भर  जायेगा  इस  सूख
चुकी      दुनियादारी    में ।


बेवक्त  बेवजह किसी  को
गले लगा कर  तो देखिये ।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।*
मो 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।बरेली

*वसुधैव कुटुम्बकम जैसे*
*संसार की जरूरत है।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।*


तकरार  की  नहीं   परस्पर
प्यार  की  जरूरत  है।


हर बात  पर मन भेद  नहीं
इकरार की जरूरत है।।


मिट जाती हस्ती किसीऔर 
को मिटाने  वाले  की।


वसुधैव   कुटुम्बकम    जैसे
संसार की  जरूरत है।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।*
मोब नॉ  9897071046।।
8218685464।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*विविध हाइकु।।।।।*


तेरा ये रोना
मन के दर्द धोना
बन तू सोना


चाहे न गम
ये दिल मांगे मोर
चाहे न कम


डायरी पन्ना
सुख दुःख तमन्ना
यह रवन्ना


कोयला साथ
कालिख भी लायेगा
जलाये हाथ


पाँव में छाले
मेहनत     मजूरी
खाने के लाले


ये अदाकारी
बाहर का ये चूना
न वफ़ादारी


वक़्त बदले
चेहरे     पलटते
रिश्ते छलके


आराम नहीं
काम में लो आनन्द
थकान नहीं


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।बरेली।*
मो    9897071046
        8218685464


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*सपने देखोगे तभी तो पूरे होंगें।*
*।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।।*


खुली   आँखों  से   तुम  जरूर
कुछ  ख्वाब   देखो।


दुनिया में अच्छा  ही  और मत
तुम  खराब   देखो।।


बुद्धि   और   सोच   मिल  कर
कर सकते चमत्कार।


पूरे करने को फिर हर मुश्किल
का   जवाब   देखो।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
*मोबाइल*       9897071046
                   8218685464


संजय जैन (मुम्बई)

*शर्मिंदा हूँ*
विधा : कविता


मिजाज कुछ बदला बदला सा,
नजर आ रहा है।
मानो दिल में कोई,
तूफान सा छा रहा है।
जो तेरी नजरो में, 
मुझे नजर आ रहा है।
लगता है पूरी रात,
तुम सोये नही हो।
तभी तो चेहरा मुरझाया 
हुआ आज दिख रहा है।।


कोई बात तेरे दिल में,
उथल पुथल मचा रहा है।
जो तेरी दिलकी धड़कनों
को, 
तेजी से बढ़ा रहा है।
जिससे तेरे चेहरे की,
रंगत आज उड़ी हुई है।
जो मेरी बैचेनी को,
भी बढ़ा रहा है।।


माना कि तुम कुछ दिनों से, 
नाराज चल रही हो।
और मिलने से भी, 
अब डर रही हो।
एक बार क्या में,
मिलने नही आ सका।
जिसकी इतनी बड़ी सजा,
खुद को दे रहे हो।
और मुझे खुदकी नजरो में 
शर्मिदा कर रहे हो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
24/02/2020


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"जीवन का सवेरा"*
"सूना जीवन सारा साथी,
सूख गया नेंह का डेरा।
आशाओ के अंबर में भी,
पाया न कोई सवेरा।।
 छाई गम की घटा काली,
क्यों-साथी गम से हारा?
पल पल संग चल रे साथी,
मन पा जायेगा किनारा।।
मिट जाये अंधेरे सारे,
जब होगा भोर का डेरा।
खिल उठेगी कलियाँ सारी,
महके जीवन का सबेरा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
        सुनील कुमार गुप्ता


सत्यप्रकाश पाण्डेय

शक्ति और प्रकृति से मिलके
हुआ सृष्टि का श्रृंगार
राधे से कृष्णा कृष्णा से राधे
दो जीवन के आधार


नर नारी दोनों जीवन रथ के
सुन्दर से है दो चक्र
अस्त व्यस्त हो जायें यदि ये
जीवन हो जाये वक्र


एक दूजे के पूरक बनकर ही
करते जीवन का संचार
अर्धनारीश्वर श्री मुरलीधर का
सदा रहे सत्य से प्यार।


अर्धनारीश्वर भगवान आपको जीवन की सारी खुशियां प्रदान करें🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी

😌 फांसी के फंदे का दर्द 😌 


फांसी का फंदा कहे,
                    कैसा ये खिलवाड़।
सभी दरिंदे बच रहे,
                     ले  कानूनी  आड़।


कैसा ये कानून जो,
                  दिला सके ना न्याय।
इसे बनाया है उसे, 
                   लगे कहीं मत हाय।


बदलो-बदलो आज ही, 
                       बदलो ये कानून।
अब तो सारे देश का,   
                     खौल रहा है खून।


मां के  आॉसू  पूछते, 
                 कब तक होगा न्याय।
हर दिन खोजें जा रहे, 
                      बचने नये उपाय।


खाली बैठा मैं यहां, 
                    झोंक रहा हूं भाड़। 
अगर नहीं लटका सको,    
                     दो ज़िंदा ही गाड़। 


          ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कालिका प्रसाद सेमवाल


हमारे राम
*********
जन जन  के नायक है 
हमारे राम
दीन दुखियों के तारक है
हमारे राम
सबके कल्याण कर्ता है
हमारे राम
सब को सद् बुद्धि देते है
हमारे राम
सब के दुखहर्ता है
हमारे राम
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल


संजय जैन (मुम्बई)

*ऋतुओं का महत्व*
विधा: गीत


प्रकृति की देन ये देखो
तीन ऋतुओं से इसे भरा।
गर्मी सर्दी और बरसात
सबका अपना अपना है महत्व।


सबसे पहले बात हम करते,
गर्मी महारानी की।
इस ऋतु में सब फसलों को,
पका देती अपनी इस गर्मी से।
इसी ऋतु में सबसे ज्यादा,
फल हमे खाने को मिलते है।
जितने खा सकते है खाते,
बाकी सुखाकर रख लेते है।
और उन्हें फिर पूरे साल, हम सब खाते रहते हैं।
इसलिए गर्मी ऋतु का 
बहुत महत्व होता है।।


अब हम आगे बात करते, 
बर्षा महारानी का।
इसका काम बहुत कठिन
और दुखदायी भी है।
जो भूमि के पानी को गर्मी
भाप बनकर उड़ाती है।
इसी मौसम में वो पानी को
वर्षा ऋतु गिरती है।
और गर्मी से भूमि और लोगो को ठंडक पहुंचती है।
और भूमि के अंदर से 
हरियाली को लहराती है।
यदि ज्यादा वर्षा हो जाये तो
विनाश सब कुछ हो जाता है।
और यदि कम हो जाये तो
भी विनाश होता है।।


अब हम आगे बात करते 
सर्दी महारानी की।
जो देती लोगो के जीवन मे
बहुत बड़ी खुशाली को।
सब कुछ शांति भाव से
इस ऋतु में सब चलता।
इंसान और प्राणीओ को,
ये ऋतु बहुत भाती हैं।
इसलिए इस ऋतु में 
फल बीज आदि बोये जाते है।
जिसका फल हम सभी को
गर्मियों की ऋतु में मिलता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
23/02/2020


प्रवीण शर्मा ताल

*मोहब्बत की फिर से हम सरिता बहाएँ*


रूठो मत चलो मेरे साथ ,,
पकड़ो तो सही मेरा हाथ।
प्रकृति के तराने में,
हम फिर से * गुनगुनाएँ*
मोहब्बत की सरिता
 हम फिर से  बहाएँ।।


उजड़े चमन में,
 खुशी के फूल,
 मुरझा जाते हैं।
डाली डाली पर 
ये भँवरे  दूर
चले जाते हैं।
चलो इनको हम 
फिर से बुलाएँ
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।।


चार दिन की चाँदनी में 
क्या रहेगा खुश सवेरा ,
 चुनकर तिनका- तिनका
बनाएँ फिर हम बसेरा,
देकर दाना-पानी,
 बेजुबान पँछी को
 फिर से हम सहलाएँ।
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।।


 तुम्हरा पहले हँसना बिंदास रहा,
तुम पर मेरा हमेशा  विश्वास रहा,
आस के गोते में जरा डूबकर 
चिकनी चुपड़ी  हम भूल जाएँ।
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।।


हिन्द देश के भारत में
प्रीत की डोर चलाएँ,
बाँध कर भीनी- भीनी 
माटी को केसर की
 क्यारी में महकाएँ।
मोहब्बत की सरिता 
हम फिर से बहाएँ।



*✒प्रवीण शर्मा ताल*


संजय जैन (मुंबई)

धर्म का विचार
विधा : गीत भजन  


थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चन्द्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
आरती के दियो से करो आरती।
और पावन सा कर लो ह्रदय अपना।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।


मन में उमड़ रही है ज्योत धर्म की।
उसको यूही दबाने से क्या फायदा।
प्रभु के बुलावे पर भी न जाये वहां।
ऐसे नास्तिक बनाने से क्या फायदा।।
डग मगाते कदमो से जाओगे फिर तुम।
तब तक तो बहुत देर हो जायेगा।।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चन्द्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
नाव जीवन की तेरी मझधारा में पड़ी।
झूठ फरेब लोभ माया को तूने अपनाया था।
जब तुम को मिला ये मनुष्य जन्म।
क्यों न सार्थक इसे तू अब कर रहा।।
जाकर जिनेन्द्रालय में पूजा अभिषेक करो।
और अपने पाप कर्मो को तुम नष्ट करो।।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।


थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चन्द्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
आरती के दियो से करो आरती।
और पावन सा कर लो ह्रदय अपना।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई)
23/02/2020


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"यादें"*
"कदमो की आहट से फिर,
जिन्हे पहचान जाते हैं।
जीवन पथ पर संग चले जो,
कब -उन्हें भूला पाते है?
खट्टी-मीठी यादों संग जो,
जीवन को लुभाते हैं।
संग रहे न रहे वो तो फिर,
सपनो में बस जाते है।।
 माने न जिनको अपना,
वो अपने बन जाते है।
चाही-अनचाही बाते वो,
सपनो में कह जाते है।।"


सुनील कुमार गुप्ता


परिचय डॉ. प्रभा जैन (योग नेचर क्योर ) रिटायर्ड  एजुकेशन  संस्थान

मेरा परिचय.... 
-----------------------------
डॉ. प्रभा जैन (योग नेचर क्योर )
रिटायर्ड  एजुकेशन  संस्थान 
जन्म तिथि..... 26जनवरी 
उपनाम... श्री (पिता श्री द्वारा दिया गया नाम  और उपनाम )
साहित्यिक, काव्य जीवन.... 
स्मृति चिन्ह...... सर्टिफिकेट 


*पंचायत भवन...... स्मृति चिन्ह 


*नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (डीआरम  .ऑफिस )काव्य प्रतिभा, प्रमाण पत्र, स्मृति  चिन्ह, समाचार पत्र में फोटो, समाचार  के साथ  


*दैनिक  भास्कर..... प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह. मेरी बेटी मेरा ग़ौरव, समाचार पत्र  दैनिक भास्कर में फोटो के साथ में समाचार. 


*कृष्ण कुमार सैनी  अवार्ड...
 स्मृति चिन्ह 


*आवाज़ साहित्यिक  मंच... स्मृति चिन्ह, समाचार पत्र में 


*अटल जी केजन्म दिन पर 
 काव्य..... स्मृति चिन्ह, समाचार  पत्र में फोटो के साथ 


*रोटरी क्लब... काव्य.... स्मृति चिन्ह, समाचार  पत्र में 


*26जनवरी  पर काव्य में प्रथम... स्मृति चिन्ह 


*रेलवे द्वारा काव्य.... स्मृति चिन्ह, समाचार पत्र में फोटो  के साथ 


*बैसाखी पर काव्य.... स्मृति चिन्ह 


*सम्मान केंद्र द्वारा.... स्मृति चिन्ह 


*जैन धर्मशाला दून... होली मिलन.. काव्य... स्मृति चिन्ह 


*हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान(उत्तर भारतीय हिन्दी साहित्त्य परिषद  द्वारा ) 14.10.18सर्टिफिकेट स्मृति चिह्न,समाचार  पत्र में नाम के साथ  


*केबिनेट मंत्री प्रकाश पंतजी
 द्वारा शिक्षा रत्न अवार्ड... सर्टिफिकेट...... स्मृति चिह्न,
मैगजीन में फोटो, समाचार पत्र में नाम 


*प्रजा तंत्र का स्तम्भ गौरव 
तरफ से अवार्ड.... 10.1.19.
साँझा संकलन में (चार कविता,)स्मृति चिन्ह, शाल, सर्टिफिकेट, प्रशस्ति पत्र 
23.1.19...शारदा मनीषी सम्मान .. दौसा  से मिला 


...नई क़लम नया कलाम से हर माह 2सम्मान, पिछले 2साल से ले रही हूँ। 


*उत्तरांचल महिला पाक -कला (पौष्टिक आहार व्यंजन ) असोसिएशन द्वारा..... प्रथम 2017-
.............प्रथम 2019
सर्टिफिकेट... स्मृति चिन्ह,समाचार  पत्र में फोटो, नाम के साथ 
जय -जय काव्य चित्र शाला से सम्मान 
E बुक.... 
वन्दना के स्वर.... काव्य रचना.. माँ सरस्वती जी पर. 
E book 
हिंदुस्तान में.... सम्पादन आ. ओम प्रकाश "प्रफुल्ल "जी द्वारा। 
हिन्दी साहित्य अंचल मंच से सम्मान। 
महफ़िल -ए -ग़ज़ल  से सम्मान। 


काव्य, लेख, कहानी, आदि लिखने के साथ -साथ फैब्रिक पेंटिंग, हार्ड - बोर्ड आयल पेंटिंग, करती हूँ 


सर्विस में  रहते हुए विभिन्न  खेल-कूद प्रतियोगिता में नेशनल  लेवेल तक बच्चों के साथ रही हूँ बैडमिंटन मेरा प्रिय खेल हैं 
इस समय तक  278अवार्ड मिल गए हैं  सुख और दुख को समान भाव से लेती हूँ
 आपकी शुभकामनायें मिलतीरहे.
आपकी 
डॉ. प्रभा जैन "श्री ".
देहरादून


डा०सुशीला सिंह

शिव स्तुति


हे देवों के देव महादेव                                                              मम कष्ट हरो मम कष्ट हरो।                   मस्तक पर है चंद्र विराजे।                                            कण्ठ में है सर्पों की माला                                                                                  पिये हैं भंग का प्याला                                                                                                             नंदी बृषभ करे सवारी                                                                                                          प्रभु जगत के हितकारी                                                                                                   मम कष्ट हरो ,मम कष्ट हरो।                                                                भांँग, धतूरा सेवन करते।                                                                  बिल्वपत्र ,चंदन प्रिय लगते।                                                                         जटा में बहती सुरसरि  धारा।                                                                       बाघम्बर ,भस्मीधारी                                                                                                                                      सकल जगत के हितकारी                                                               प्रभु मम कष्ट हरो.............                                                   विष का घट पीने वाले।                                                                      नीलकंठ कहलाए तुम।                                                                                                                                                काल भैरव का दर्शन देकर।                                                                                         अकाल मृत्यु हरने वाले                                                                                                                कुअंक भाल के मेटनहारी                                                                                                          सकल जगत के हितकारी                                                                                  प्रभु मम कष्ट हरो,.............                                                                                                                                                                    पंचाक्षर का जप भक्त करें।                                                                 षडानन , गजानन सुत दोऊ प्यारे                                                                                                                    शैल सुता हैं प्राणों से प्यारी                                                                 प्रभु जगत के हितकारी                                                                                                          मम कष्ट हरो ................. त्रिशूल और डमरू लेकर।                                                                    तांडव तुम करने वाले                                                                                                    अरि दल विनाशकारी।                                                                                           हे मन्मथ नाथ पुरारी                                                                                      प्रभु जगत के हितकारी                             मम कष्ट हरो ...........................                                                               द्वादश लिंगों का अर्चन करके।                                                                                      भक्ति ,मुक्ति पा जाते जन                                                                                                               भूत प्रेत संग में डोले।                                                                                                           नैया पार लगा दो भोलेभंडारी                                                                                                                                                                                                   प्रभु जगत के हितकारी।                                                                                                             मम कष्ट हरो  ,ममकष्ट हरो                                                                                                                                         डा०सुशीला सिंह


मासूम मोडासवी

दी हमने महोबत की सदा जान लीजीये
दिल ये किया तुमको अता जान लीजीये


डालेंगे  जमाने  में नये दौर की  बुनियाद
रौशन  करेंगे  असी  जिया जान लीजीये


मानेगें  तेरी  हम  बात तेरा हुकम चलेगा
हम दिलसे  निभायेंगे वफा जान लीजीये


सर  करलेंगे  मिलके  अधुरे  सभी सपने
तदबिर  से  बदलेंगे  फजा जान लीजीये


रंग  लायेगी  मासूम  इबादत  ये  हमारी
कबुल  होगी अपनी  दुवा जान लीजीये


                          मासूम मोडासवी


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"वीर-जवान"* (आल्हा छंद)-भाग १
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विधान- १६ + १५ = ३१ मात्रा प्रतिपद, विषम चरणांत $ या l l एवं सम चरणांत $ l अनिवार्य, चार चरणमय दो-दो पद तुकांतता।
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¶सीमा का वह रक्षक सच्चा, अड़ा रहे जो सीना-तान।
चलता जान हथेली पर ले, निज भू पर जो वारे जान।।


¶मूर्ति वीरता की वह जानो, स्वरूप शाश्वत शक्ति समान।
करे प्राण-पण से जो रक्षा, साहस वीरों की पहचान।।


¶देश-जान से बढ़कर जाने, न्योछावर कर दे जो प्राण।
सीमा के संकट को टाले, आर्त हरे बन आरत-त्राण।।


¶लेता लोहा बैरी से जो, केहरि सम जो करे दहाड़।
देश राग की तान सुनाये, जीत-तिरंगा झंडा गाड़।।


¶कदम कभी भी हटे न पीछे, आगे बढ़कर ठोंके ताल।
ऐसा वीर जवान हमारा, बन जाता कालों का काल।।


¶छक्के छूटे दुश्मन के जी, करता अपना वीर कमाल।
'लोहित कर महि अरि-शोणित से, रखे देश का ऊँचा भाल।।


¶जनहित में तज देता जो, नाते-रिश्ते घर-परिवार।
माँ पर गाज न गिरने देता, सुनकर दौड़े वीर-पुकार।।


¶हम पर आँच न आने देता, करके पूरा-प्रण जी-जान।
कफन तिरंगा ओढ़े आता, ऐसा अपना वीर-जवान।।


¶निशि-वासर को एक करे जो, दलदल-जंगल-नदी-पहाड़।
तैनात रहे हर मौसम में, जिस्म जले या काँपे हाड़।।


¶दबे ऊँगली तल दातों के, सैनिक की तो देख उमंग।
देख वीरता हिंद-वीर की, रह जाती है दुनिया दंग।।


¶नित वीर लिखे इतिहास नया, रखने को माटी का मान।
राष्ट्र-भाल को भाले रखता, घटे कभी मत माँ की शान।।


¶पीछे पीठ कभी न करे जो, भले कटाता अपना शीश।
क्यों न करें सम्मान वीर का, लिखे वीर-गाथा वागीश।।


¶बाँके वीरों के बल पर ही, रक्षित अपना हिंदुस्तान।
ढाल देश-जाँबाज सिपाही, जय जय 'नायक' वीर-जवान!!
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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संजय शुक्ल  कोलकाता

इतना मुझसे प्यार करोगे ये मैंने ना सोचा था
मेरे दिल को छू जाओगे ये मैनें न सोचा था।।


फूल खिलेंगे गुलशन में फ़िर ये  मैने न सोचा था।
मेरी बगिया महकेगी फ़िर ये मैनें न सोचा था।।


चांद खिलेगा रातों में फ़िर भर जाएगा उजियाला ।
मेरी चाहत की फुलवारी महकेगी ना सोचा था।।


तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ आंखें बातें करती हैं ।
दिल का दरिया बह निकलेगा ये मैनें न सोचा था।।


आज सुना है धुप खिली है सुर्ख हुई गलियां सारी।
संजय के घर बारिश होगी ये मैनें न  सोचा था।।


✍🏻 रचयिता : संजय शुक्ल 
कोलकाता ।


कुमार🙏🏼कारनिक  (छाल, रायगढ़, छग)


     🧕 *माँ*🧕
 (मनहरण घनाक्षरी)
 """"""""""'""""""""""'"""
माँ तेरे आँसू की मोती,
मेरे नैनो  को  भिगोती,
करूँ  मैं  दीप  आरती,
      शरण में लीजिए।
🙏🏼🧕
तू भारी  बोझ उठाती,
फिर भी नहीं  थकती,
बच्चों  के साथ रहती,
    माँ दुलार दीजिए।
🧕🌸
माँ  मेरे  पास   रहना,
गरीबी भी  तू  सहना,
गलती  हो तो कहना,
 सेवा मौका दीजिए।
💐🧕
खुश   तेरी   बदोलत,
प्रभु  दे  दे   मोहलत,
रहे    सब   सलामत,
  आशिर्वाद दीजिए।


            🙏🏼
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