मधु शंखधर स्वतंत्र प्रयागराज मधु के मधुमय मुक्तक सफल ◆सफल मनुज वो ही बने

मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज


मधु के मधुमय मुक्तक
सफल


◆सफल मनुज वो ही बने,जिसका उच्च विचार।
आशा की नव ज्योत से,होता जग विस्तार।
करो सदा कर्तव्य को,ऐसा हो विश्वास,
सफल बने निश्चित वही, जो धरता आधार।।


◆कभी हार मत मानिए,करिए अपना काम।
अथक परिश्रम जो करे,वो ही करता नाम।
मत भूलो इस देश का, ऐसा ही इतिहास,
धीर वीर ही सफल हैं,धरती के सुखधाम।।


◆जाने सारे मनु यही,मन में हो विश्वास।
जीने की इक चाह हो,सुखद भाव का आस।
सफल बने हर क्षेत्र में,जो मनु करता काम,
मधु जीवन में सफल ही,रचता है इतिहास।।


ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई भोर का नमन  मेरी पुस्तक *गीत गुंजन* से 

ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई


भोर का नमन 
मेरी पुस्तक *गीत गुंजन* से 


*हे मात पिता हे गुरुवर प्यारे, इतना सा उपकार करें।*
*नमन भोर का करूँ आपको, प्रभुवरश्री स्वीकार करें।।*


*अम्बर धरती भानु शशी हे, अनल पवन हे प्रिय प्यारे।*
*तरु तरुवर हे पर्वत सागर, नील गगन के सब तारे।।*
*हे अरि मित्र सकल प्रिय परिजन, इतना सा उपकार करें।*
*नमन भोर का करूँ आपको, आप सहज स्वीकार करें।।*


*मनवीणा की सरगम साँसे, गीत नेह का गाती हैं।*
*और आपके कृपाभाव से, पुलकित सी हो जाती हैं।*
*पुण्य पटल प्रिय प्रीत पुनीता पुनि पावन परिवार करें।*
*नमन भोर का करूँ आपको, आप इसे स्वीकार करें


माँ शारदे माँ शारदे" राहुल मौर्य 'संगम' गोला गोकरननाथ खीरी

 "माँ शारदे माँ शारदे"
राहुल मौर्य 'संगम'
गोला गोकरननाथ खीरी उत्तर प्रदेश
संपर्क-9452383538


 
जय-जय-जय माँ शारदे,करो सकल कल्याण।
शब्द - शब्द गाथा  बने , भर  दो  उनमें  प्राण।।


मैं  बालक  नादान  हूँ , सरगम   से अनजान ।
करो   कृपा   माँ   शारदे , गाऊँ   तेरा   गान ।।


श्वेत  कमल   माँ   भारती , बारम्बार  प्रणाम ।
बस   तेरा  गुणगान  ही , करता आठों  याम ।।


हंसवाहिनी   ज्ञान  की , बरसा   दो  रसधार ।
नाम  रहे  संसार   में ,  जाऊँ जब उस  पार ।।


आसन  माँ  का श्वेत है , कर वीणा का वास ।
दूर  करो   माँ  शारदा , मानवता  का   त्रास ।।


वीणा    की   झंकार    से ,  गूँजे   मेरे   गीत ।
सकल विश्व कल्याण में,बिखरे अनुपम प्रीत ।।


जगती  माँ  हे  भारती , अंतिम यह अरदास ।
जगत  में आये एकता , पूर्ण करो सब आस ।


किशोर कुमार कर्ण  पटना बिहार वो वासंती मौसम 

किशोर कुमार कर्ण 
पटना बिहार
वो वासंती मौसम 


उनकी खुशबू 
अब भी ताजी है 
वर्षों से सांसों में समायी है 
जब भी चलती है
उनकी महक आने लगती है 


अब भी मंद-मुस्काती 
अधर उनकी दिखती है 
गुलिस्ता भरी चमन में 
जब कई कलियाँ आपस में 
लिपटी रहती है 


गेसूंओ में उलझी उंगली 
वसंत आने से महसूस होती है 
कली- लता से उलझती है 
आहिस्ता से कहती है 
मैं वहीं हूँ जिसे छेड़ा करते थे


वो वासंती मौसम 
भी अजीब था
पहली और आखिरी मिलन का
मिलानेवाला और
आखिरी राजेदार था


-


अविरल शुक्ला राष्ट्र धर्म राष्ट्र के समक्ष यदि बात आये धर्म की तो

अविरल शुक्ला राष्ट्र धर्म


राष्ट्र के समक्ष यदि बात आये धर्म की तो
देश  प्रेम  दिल  में  उभारना  जरूरी  है।


सारथी ही रथ का जो मिल जाए शत्रु से तो
रण  में   प्रथम   उसे  मारना  जरूरी  है।


देशद्रोह की हो आग, जुबां पे विदेशी राग
ऐसे  वक्षस्थलों  को  फाड़ना  जरूरी है।


भारती की आरती में शामिल न हो सके जो 
ऐसे  शीश  धड़  से  उतारना  जरूरी  है।


©️अविरल शुक्ला


राजेंद्र रायपुरी। मन की कामना  

राजेंद्र रायपुरी।


मन की कामना  


कामना मन है यही, 
              हर जीव का कल्यान हो।
कामना मन है यही,
                हर श्रेष्ठ का सम्मान हो।


कामना  मन है यही,
            दुख का कहीं मत नाम हो।
हर तरफ सुख-चैन हो,
                  आराम ही आराम हो।


कामना मन है यही, 
                   भूखा नहीं इंसान हो।
कामना मन है यही,
                  भरपूर हर खाद्दान हो।


कामना मन है यही,
            हर नव-जवां खुशहाल हो।
वो चले सन्मार्ग पर, 
             बहकी न उसकी चाल हो।


कामना मन है यही, 
              श्रम का सदा सम्मान हो।
आलसी का मान या,
             श्रम का नहीं अपमान हो।


                 ।।राजेंद्र रायपुरी।।


कौशल महन्त"कौशल" जीवन दर्शन भाग !!१९!!* ★★★ पूरी हो जब माँग तो,

,      कौशल महन्त"कौशल"


जीवन दर्शन भाग !!१९!!*


★★★
पूरी हो जब माँग तो,
             पुलकित है मनबाग।
जब माँगा पाये नही,
            करता भागम भाग।
करता भागम भाग,
            उधम भी खूब मचाता।
जाता है जब रूठ,
            मात को बहुत नचाता।
कह कौशल करजोरि,
             आस सब रहे अधूरी।
नटखट का हर माँग,
            नहीं हो जब तक पूरी।।
★★★
दादी दादा से करे,
            अठखेली का खेल।
करता कभी लुका छुपी,
            कभी बनाये रेल।
कभी बनाये रेल,
            दौड़ते छुक-छुक करके।
करता कभी किलोल,
            भाग अरु रुक-रुक करके
कह कौशल करजोरि,
            बना वादी संवादी
अतुलित करें दुलार,
            नित्य ही दादा दादी।।
★★★
सच्चा नित ही बोलता,
            छोड़ कपट मन द्वेष।
खुशियाँ ही खुशियाँ लिये,
            मन में अमिट अशेष।
मन में अमिट अशेष,
            प्रेम का भरता सागर।
तुतले मीठे बोल,
            हृदय को करे उजागर।
कह कौशल करजोरि,
            भले है तन से कच्चा।
पर निश्छल मनभाव,
           परम होता है सच्चा।।
★★★


कौशल महन्त"कौशल"
🙏🙏🌹


कौशल महन्त"कौशल"  *जीवन दर्शन भाग !!१८!!* ★★★

,     कौशल महन्त"कौशल"


 *जीवन दर्शन भाग !!१८!!*


★★★
चलता घुटनों पर कभी,
            कभी पसारे पैर।
नटखट निज घर में करे,
            तीन लोक की सैर।
तीन लोक की सैर,
            धूल मिट्टी में खेले,
दिखे कहीं कुछ चीज,
            पकड़ हाथों में ले ले।
कह कौशल करजोरि,
            कुमारों जैसे पलता।
हाथ मात का थाम,
            कदम डगमग डग चलता।।
★★★
माता की पहचानता,
             हर आहट हर बोल,
प्रेमिल हर आभास को,
            देखे नैनन खोल।
देखे नैनन खोल,
            कभी सपनों में रहकर।
कभी जगाये रात,
            नींद में माँ माँ कहकर।
कह कौशल करजोरि,
            दीप कुल का कहलाता।
रोता भी गलखोल,
            नहीं दिखती जब माता।
★★★
भोली सूरत देख कर,
            सब की जागे प्रीत।
बचपन सदा लुभावनी,
          यही जगत की रीत।
यही जगत की रीत,
            उम्र दिन-दिन बढ़ते हैं।
डगमग करते पाँव,
            सीढ़िया भी चढ़ते हैं।
कह कौशल करजोरि,
            सखाओं की हो टोली।
ढूंढ रहा है नैन,
            किसी की सूरत भोली।।
★★★


कौशल महन्त"कौशल"
🙏🙏🌹


नमस्ते जयपुर से -डॉ निशा माथुर

कुछ अलग सा अहसास लेकर आता है सोमवार।
मुस्तैदी से सबको काम पर लौटा देता है सोमवार।
आलस छोड़ो काम पे लौटो रविवार गया है बीत,
कल गया है कल आएगा यही है प्रकृति की रीत।


..............                                                                          सौम्य सुबह का सुहाना वंदन सुहानी शुभकामनाओ के साथ आप सभी का सोमवार सहज सुकोमल सुमधुर और सकून वाला हो!!! गुलाबी प्रभात का गुलाबी वंदन 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐💐💐💐💐🌹🌹🌹🌹🌹🍁🍁🍁🍁🍁🌼🌼🌼🌼🌼☘☘☘☘☘.......
नमस्ते जयपुर से -डॉ निशा माथुर🙏😃


सत्यप्रकाश पाण्डेय भजन कान्हा तेरी बंशी मन को लुभाती है

 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


भजन


कान्हा तेरी बंशी मन को लुभाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


सुन वेणु का नाद मिले खुशी मुझको
विश्रांति मिलती करके स्मरण इसको


एक उमंग सी मेरे हृदय में समाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


मझधार में जीवन झंझावात ने घेरा है
बिन कृपा स्वामी चहुंओर अंधेरा है


बन अरुणिमा बंशी प्रभात बुलाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


कैसा सौभाग्य मिला अधरों पै विराजे
गोवर्धन धारों उन करकमलों पै राजे


निशदिन माधव तेरे संग सुहाती है
भावों की गोपी दौड़ी दौड़ी आती हैं


मुरलीधर घनश्याम की जय💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


संजय जैन (मुम्बई) कुछ तो कमी रहेगी* विधा : कविता हर नामी में कुछ कमी तो रहेगी,

 


संजय जैन (मुम्बई)


कुछ तो कमी रहेगी*
विधा : कविता


हर नामी में कुछ कमी तो रहेगी,
आँखें थोड़ी-सी शर्माती रहेंगीl
जिंदगी को आप कितना भी संवारिये,
बिना हमारे कोई-न-कोई कमी तो रहेगी।।


खाली हाथ आप आये थे संसार में हज़ूर,
खाली हाथ आप जायेंगे संसार से जरूर।
संसार में रहकर,
बातचीत न करके आप,
कितनी चिल्लर संसार से बचाएंगे हजूर।।


कभी दोस्त कहते हो,
और दुआ देते हो,
कभी दुआ देते हो,
और दोस्ती निभाते हो।
कभी-कभी वक्त नींद से ज्यादा देते हो,
बात जब भी करते हो,
दिल से करते हो।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
03/02/2020


बसंत आशा त्रिपाठी डीपीओ *विपुल* मधु ऋतु सहज मृदुल मतवाली,

आशा त्रिपाठी *विपुल*


मधु ऋतु सहज मृदुल मतवाली,
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
हरित धरा चुनर भई धानी,
प्रकृति पूजन की बेलि सुहानी।
सिहर रही वसुधा रह-रहकर,
यौवन सुरभित सौरभ आली।।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
नूतन किसलय नवल आरती,
बासन्ती धरे रुप भारती।।
मोद-मधुर पूरित परिमल नव,
विपुल धरा करती रखवाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
छवि विभावरी नवल रस गागर
हर्षित जल-थल सरसित सागर।
मधुरिम पवन मकरन्द सुवासित
पुलकित नभ वन डाली- डाली।।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
बोराई अमवा की डाली,
खेतों में गेहूँ की बाली।
कृषक हृदय उल्लास परम भव,
सरसों महक रही मतवाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
चन्द्र -छ्टा छवि अनमोल।
कोयल कूक रही रस घोल।
छाई शरद रजत मुस्कान।
अभिभव अमिय सहज खुशहाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
खग-कुल-कलरव मृदुल सुहावन।
पावस -सरस गरल मनभावन।
लता-सुमन- मकरन्द भार से।
हर लतिका पर छायी लाली।।
. *वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
शाश्वत प्रकृति ,अलौकिक उपवन,
मन मयूर नॉचे मृदु तन-मन।
सरस सुमन चहुँ ओर सुवासित
मदन-वाण द्दोड़े वनमाली।
*वसन्त की हर छ्टा निराली*।।
✍आशा त्रिपाठी *विपुल*
       02-02-2020
           हरिद्वार


संजय जैन (मुम्बई आदर्श परिवार* विधा : कविता   जोड़ जोड़कर तिनका, 

संजय जैन (मुम्बई


आदर्श परिवार*
विधा : कविता  


जोड़ जोड़कर तिनका, 
 पहुंचे है यहां तक।
अब में कैसे खर्च करे, 
 बिना वजह के हम।
जहां पड़े जरूरत, 
करो दबाकर तुम खर्च।
जोड़ जोडक़र ......।।


रहता हूँ मैं खिलाप, 
 फिजूल खर्च के प्रति।
पर कभी न में हारता, 
मेहनत करने से ।
और न ही में हटता, 
अपने फर्ज से।
पैसा कितना भी लग जाये, 
वक्त आने पर।।


बिना वजह कैसे लूटा दू,
अपने मेहनत का फल।
सदा सीख में देता हूँ,  
 अपने बच्चो को।
समझो प्यारे तुम सब, 
इस मूल तथ्य को।
तभी सफल हो पाओगे,  
 अपने जीवन में।।


क्या खोया क्या पाया,  
 हिसाब लगाओ तुम।
जीवन भर क्या किया,
जरा समझ लो तुम।
कितना पाया कितना खोया, 
सही करो मूल्यांकन।
खुद व खुद समझ जाओगे, 
जीवन को जीने का मंत्र।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई
02/02/2020


निधि मद्धेशिया कानपुर कबीर/सरसी छंद माणिक,सीप,संख दे सागर,

निधि मद्धेशिया
कानपुर


कबीर/सरसी छंद


माणिक,सीप,संख दे सागर,
अरु अनगिन उपहार।
माँ लक्ष्मी संग विराजेंगे
विष्णु - विष्णु आधार।


मेरे प्रियवर बस कृष्ण रहे,
देखूँ राधा रास,
मन संग मथि माखन खिलाऊँ,
मिटाऊँ नयन प्यास।



निधि मद्धेशिया
कानपुर


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*विविध हाइकू।।।।।।।।।।*


हो सरताज
वक़्त बिगड़ा जब
तो मोहताज


महा नगर
अलग  हैं  डगर
हैं बेखबर


कौन है मीत
अजब जग रीत
पैसा है जीत


जीवन अर्थ
रहता    असमर्थ
जीवन व्यर्थ


ये सच्ची प्रीत
दिल से दिल मिले
न जाने रीत


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
*मोबाइल*        9897071046
                    8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।बरेली कैसे बितायें अपना जीवन

एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।बरेली


कैसे बितायें अपना जीवन।।।*
*।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।*


ये जीवन एक   पर्व  समान, 
बहुत उत्साह  से मनाइये।


करिये कर्म  बस गर्व समान,
फल  को    भूल  जाईये।।


शामिल है हर सुख चैन  इस,
छोटी  सी जिंदगी में ही।


ये दुनिया बनेगी स्वर्ग समान,
बस सबको गले लगाइये।।


*रचयिता।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।बरेली।।।।।।।*


मोब  9897071046 ।।।।
8218685464 ।।।।।।।।।


एस के कपूर* *श्री हंस।।।।बरेली। समय का सदुपयोग।।।

एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।बरेली।


समय का सदुपयोग।।।।।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।*


वक़्त  से   जरूर   डरें    आप,
कि समय  बहुत   बलवान  है।


इसकी शक्ति तो झुका सकती,
यह   सारी  दुनिया  जहान  है।।


करें सदुपयोग कि  आता नहीं,
कभी बीता वक़्त    लौट  कर।


समय चक्र तो  चलता  निरंतर,
रखता पाप पुण्य का  ध्यान है।।


*रचयिता।।।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।बरेली।।।।।।।।।*
मोब।।   9897071046 ।।।।
8218685464  ।।।।।।।।।।।


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी" आया बसंत

देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


आया बसंत...........


आया  बसंत , आया  बसंत ।
सबका  मन  हर्षाया  बसंत।।


फसल  समय  पर  पकाकर ;
कृषक  को  हुल्साया बसंत।।


सभी  ऋतुओं   के  राजा  ने ;
खुशी  फैलाया  दिक-दिगंत।।


जलाशयों में कमल खिलकर;
बिखेरे अपनी आभा  अनंत।।


पक्षियों  के कलरव से सर्वत्र;
वातावरण    गूंजते  अत्यंत।।


देश  का  मौसम  हो   ऐसा ;
न  रहे  कोई  मुद्दा  ज्वलंत।।


हर ओर  आनंद ही"आनंद";
बात नहीं  है यह मनगढ़ंत।।


- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी" हास्य कविता .मेरी समधन................... बड़ी  भोली-भाली  है

 


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी" हास्य कविता


.मेरी समधन...................


बड़ी  भोली-भाली  है , थोड़ी  नखरेवाली  है।
ये जो मेरी समधन है,समधी की घरवाली है।।


गोरे  गाल  बाली   है , काले  बाल  बाली  है।
तीखे नाक बाली है,झील-सी आँख बाली है।
ये जो मेरी समधन है , सौंदर्य की  थाली है।।


समधी के लिए छाली है,मदिरा की प्याली है।
इनकी चाल मतवाली है,हर अदा  निराली है।
ये जो  मेरी समधन  है, देती मोहे  गाली  है।।


सदा मुस्कानेवाली है ,द्वेष-घृणा से खाली है।
तीक्ष्ण  दिमागवाली  है , चिर सुहागवाली है।
ये  जो मेरी  समधन है ,बड़ी भाग्यशाली है।।


हर  दिन  होली  है ,  हर   रात  दीवाली  है ।
घर की ख़ुशीहाली है , मन की  हरियाली है।
ये जो मेरी समधन है , ये ही  मेरी साली है।।


-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


रामनाथ साहू " ननकी "             मुरलीडीह--- हौसला ---- डरकर जीना छोड़ दे ,

          -रामनाथ साहू " ननकी "
            मुरलीडीह--- हौसला ----



डरकर जीना छोड़ दे ,
                         रख हिम्मत ऐ यार ।
तू महान है जान ले ,
                       नहीं डाल हथियार ।।
नहीं डाल हथियार ,
                किसी से कम मत आँको ।
हो प्रतिभा संपन्न ,
                    जरा अंदर तो झाँको ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
                   हौसला रख अपने पर ।
कूद पड़ो मैदान ,
                छोड़ जीना अब डरकर ।।



              ~ रामनाथ साहू " ननकी "
                          मुरलीडी


हिंदी गीतिका श्याम कुँवर भारती [राजभर] वतन को बचाने चले है |

हिंदी गीतिका


श्याम कुँवर भारती [राजभर]


वतन को बचाने चले है |
लगा मजहबी आग आज वो वतन जलाने चले है |
भड़का सियासी चिंगारी वो वतन मिटाने चले है |
भरा नहीं दिल उनका फैला दंगा फसाद देश मे |
है कितने हमदर्द उनके लोगो सब दिखाने चले है |
करते बात देशहित हाथ दुशमनों मगर मिलाते है |
लगा देश बिरोधी नारा रोज मजमा लगाने चले है |
जवानो की शहादत पर ओढ़ लेते है खामोशिया | 
मौत दुशमनों पीट छाती वो मातम मनाने चले है |
करते राजनीति पर करते काम देशद्रोहियों वाला | 
सियासत ऐसी हाथ दुशमनों वो मिलाने चले है |
मंदिर मस्जिद गिरजा गुरुद्वारा से मतलब नहीं |
आए चूनाव सिर माथे चंदन वो चमकाने चले है |
फिक्र अपनी नहीं फिक्र वतन की करता है वो |
रहे भारत सलामत उम्र अपनी वो खपाने चले है |
टुकड़े गैंग या हो टोली गदारों वो डरता ही नहीं |
आवाम समझ भगवान सिर वो झुकाने चले है |
चलना साथ तुम भी चलो पहले दिल मैल दूर करो |
सबका साथ सबका विश्वास वतन वो बचाने चले है |  


श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,


 मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286


कवि डॉ.राम कुमार झा "निकुंज" नई दिल्ली शीर्षकः. तजो घृणा चल साथ

कविडॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
नई दिल्ली
शीर्षकः. तजो घृणा चल साथ हम🇮🇳


भिन्न   भिन्न   मति  चिन्तना , मृगतृष्णा  आलाप।
मँहगाई      फुफकारती , सुने    कौन     आलाप।।१।।


मिले   हुए   सब    लालची , फैलाते       उन्माद।
लड़ा   रहे    कौमी   प्रजा , तुले   देश      बर्बाद।।२।।


बीजारोपण   नफ़रती , करे   अमन   का   नाश।
मार   धार   तकरार  बस , फँसे  स्वार्थ  के पाश।।३।।  


मानवता   नैतिक प्रथम , जन्में   हैं   जिस   देश।
राजधर्म   सबसे   अहम , शान्ति    प्रेम    संदेश।।४।। 


दहशत   में   माँ   भारती , बाधित  जन  उत्थान।
तजो घृणा चल साथ हम , कवि निकुंज आह्वान।।५।।


लानत  है  उस  धर्म  को , धिक्कारें  उस क्रान्ति।
अमन  प्रगति  बाधक  बने , फैलाए  बस भ्रान्ति।।६।।


वादाओं   से     है   सजा , है    चुनाव    बाज़ार।
भूले   पा   जनमत   वतन , बनते   ही   सरकार।।७।। 


जनमत    पाना   है  सही , किन्तु  तोड़ें  न  देश।
तजे   लोभ   हित  राष्ट्र में , प्रेम  अमन  परिवेश।।८।।


बंद    सभी     रंगेलियाँ , दरवाजे       घुसखोर।
सख़्त  आज  सरकार  है , रहे  मचा  सब  शोर।।९।।


सहनशील मतलब  नहीं , हो  बहुजन  अपमान। 
राष्ट्र विरत  नफ़रत फ़िजां , पाया  जहँ  सम्मान।।१०।।


खास  कौम  तुष्टीकरण , भड़क  रही  है  आग।
सुलग रही सहनशीलता , मचे न    भागमभाग।।११।।


देश    विरोधी    ताकतें , तहस   नहस  तैयार।
जन मन   फैलाते  ज़हर , बस   नेता     गद्दार।।१२।।


न्याय   लचीला   देश  का , निडर  बने  शैतान।
कपटी   दे    धोखा  वतन ,  बने   दुष्ट    हैवान।।१३।।


चाहे   कोई   कौम   हो , प्रथम   राष्ट्र   कर्तव्य।
हरे  शान्ति सुख  प्रेम जो , है  दुश्मन  ध्यातव्य।।१४।।



दहशत  में  माँ   भारती , बाधित  जन  उत्थान।
तजो घृणा चल साथ हम,कवि निकुंज आह्वान।।१५।। 


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


सोनू कुमार जैन गजल

तुम्हे चाहता हूँ, तुम्हे चाहना है,
कोई और सपना नहीं पालना है।


तुम्हे जानता हूँ, तुम्हे मानता हूँ,
मुझे और कुछ भी नहीं जानना है।


तेरी जीत पक्की है इस बार यारा,
तेरा मुझसे ही आमना-सामना है।


ज़रा मेरी दुश्वारियों को तो समझो,
मुझे अपने हाथों को ख़ुद बाँधना है।


मुझे तुमने 'सोनू' भुलाया है लेकिन,
मेरे दिल को केवल तेरी कामना है।


✍ सोनू कुमार जैन


डा0विद्यासागर मिश्र सीतापुर उ0प्र0   माँ शारदे की आराधना  वीणापाणी शारदे माँ विनती हमारी याक, अवधी रचना

डा0विद्यासागर मिश्र
सीतापुर उ0प्र0 


 माँ शारदे की आराधना 
वीणापाणी शारदे माँ विनती हमारी याक,
शीश पर हाथ मेरे धरि दुलराय लेउ।
ज्ञान का भंडार खूब दिहेव सूर  तुलसी का,
थ्वारा ज्ञान देने हेतु हमका बोलाय लेउ।
नजरि घुमावा जैसे मीरा व कबीरा पर,
वैसे ही नजरि मातु हमपे घुमाय लेउ।
करौ न अबेर अब पीठ पर हाथ फेरो,
हमका भी निज चरनन मा बिठाय लेउ।।
रचनाकार 
डा0विद्यासागर मिश्र
सीतापुर उ0प्र0


नमस्ते जयपुर से - डॉ निशा माथुर

फ़लक पे भोर की दुल्हन सज के आई है।।


आज दिन उगा है या सूरज के घर सगाई है।।


जैसे ओस की बूँद फूलो पे खिल आई है।।। 
 
फरवरी की दिलकश रूत ने  ली अंगङाई है।।


बासंती रंगों को ले फागुन रूत  महक आयी है।।
                                                                       बहकी बहकी पुरवा झूम के खुशीयां लायी है।।


देखो,मेरे सुप्रभात ने लबो पे मुस्कान सजाई है।। 


गुलाबी गंध गुलाबी गुलाब लिए प्रेम ऋतु भी आई है।
  ...................................
                            
   इसी शुभकामनाओं के साथ फुर्सत के लम्हों का शुभ शुभ वंदन।।।...                                                              आप सबका दिन  फूलों सा खिलता हुआ महकमय और मंगलमय हो।.🌼🌼🌻🌻🌞🌞😊😊🙏🏻🙏🏻💐💐
नमस्ते जयपुर से - डॉ निशा माथुर🙏😃


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