राधा चौधरी

टिमटिमाते -तारे
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न जाने कौन है ,
जो आसमा पे बिखेर दिया
न जाने कौन है,
जो सबसे से पहले समेट लिया,
एक भी दिन न भूलें,
प्रति दिन ये प्रक्रिया जारी है,
एक भी तारे ,
न हुए इधर-उधर,
एक भी तारे गिरे नहीं,
देखूं जरा उलट -पलट
न जाने कौन.............पे बिखेर दिया।


सावन भूलें न भादों,
हर दिन ये प्रक्रिया जारी है,
शाम होते ही बिखेर देना,
सुबह से पहले समेट लेना,
एक भी तारे कम न
एक भी ज्यादा,
उल्टा प्लेट बिखेर दिया,
धिमी गति में घुमा दिया,
शाम था इधर तो ,
सुबह चला गया उधर,
न जाने कौन................पे बिखेर दिया।।


वारिश में भीगता रहता,
फिर भी खंडा वहीं पर,
कभी आंख पोछता,
‌कभी आंख मिचलाता,
कभी टिमटिमाता कभी चमकता,
फिर भी खड़ा वही पर,
बादलों के टकराव से ,
डर के सहम जाता,
बिजली की चमक से,
कस के आंखे बन्द कर लेता,
न जाने कौन................पे बिखेर देता।


आसमान पर पानी के,
धब्बे होते जगह-जगह पर,
मानो मुंह धो लेता वहीं पर,
थोड़ी बैठ लेता वहीं पर,
पानी के धब्बों के कारण,
कम दिखते जमी पर,
 पर होते उतने ही है,
जितना बिखेरा वहीं पर,
लूक छिप करने का मजा ,
सावन भादो में आता है,
टिमटिमाते तारों को गिनना ,
कितना मज़ा आता है,
न जाने कौन.....................पे बिखेर देता।


पूस माघ के महीनों में,
कितने सुंदर दिखते हैं तारें,
स्वच्छ आकाश पर,
कहीं धब्बों का न निशान,
सारी रौशनी ठंड में ,
उड़ेल देते हैं तारे,
प्रचंड़ राक्षस के आक्रमण,
 से भी शांत डिगे रहते हैं तारे,
न कुछ ओढ़े न कुछ पहने 
खाली बदन शैर करते हैं तारे,
न जाने कौन ‌‌........................पे बिखेर दिया।
बड़े बुजुर्ग कह गए
                           बच्चों को ठंड नहीं लगती,
सही भी है, कितना पहनाव कपड़े
                          उतार देते हैं बच्चें
मां भी दौड़ती रहती 
                        अपने बच्चों के पिछे -पिछे,
चंदा मां भी दौड़ती है ,
                            तारों के पिछे -पिछे,
रात भर चलते हैं तारे
                         दिन में थक के सो जाते हैं,
न जाने  कौन..................…....बिखेर दिया।
��


लता प्रासर पटना बिहार

*माघी पूर्णिमा का स्वागत*


सुनो जरा सब ध्यान से यह किसकी परवाज़ है
आवाज मिट्टी की है या
मिट्टी की आवाज़ है
कंगूरे पर बैठ परिंदा टांय टांय क्यों करता है
उसको भी अपने उपर देखो कितना नाज है
आवाज मिट्टी की है या
मिट्टी की आवाज़ है
मौसम को पहचाने परिंदा रंगों पर इतराता है
खुशबू उसके कण कण में हवा का रुत ही साज है
आवाज मिट्टी की है या
मिट्टी की आवाज़ है!
*लता प्रासर*


भूप सिंह भारती

पूरनमासी माघ की, जन्मे श्री रैदास।
कलसा माँ की गोद में, काशी जी के पास।।


मानवता सन्देश दे, तोड़ा सभ पाखण्ड।
ऊंच नीच के भेद को, कर दिया खण्ड मण्ड।।


अंधविश्वास छोड़ दो, कर्म करो हमेश।
आलस को सभ त्याग दो, रैदासी सन्देश।।


चंगा मन जै होवता, रहै कठौती गंग।
रैदास कर्मशील कै, रहै सफलता संग।।


रोटी कपड़ा के बिना, रहै न कोई एक।
बेगमपुरा विचार ही, राखै सभकी टेक।।


बाणी गायी गुरुजी, देणे शुभ सन्देश।
बढ़ै जगत में प्रेम रै, मिटै सभ कष्ट क्लेश।।


जातपात के भेद पै, खूब करा प्रहार।
आपस म्ह समभाव ही, बेगमपुरा विचार।।


                - भूपसिंह 'भारती'


आशुकवि नीरज अवस्थी बसंत में

मुक्तक ... 
मुझे पग पग मिला धोखा, सहारा किस को समझूँ मै.
डुबाया हाथ से किश्ती, किनारा किस को समझूँ मै.
जो मेरे अपने थे, वो काम जब, आये नहीं मेरे.. 
तो तुम तो गैर हो, तुमको दुलारा कैसे समझूँ मै.
                                                                                                                               बसंत में---------                                                                                                नीबू के फूल महके,है ,देखो बसंत में.
अमराई बौर की, है जी देखो बसंत में. 
नव कोपले पेड़ो  में, है निकली  बसंत में .
पतझड़ सा मेरा जीवन, देखो  बसंत में.
मधुमक्खियों के छत्ते शहद से भरे हुए,
उनके बेचारे बच्चे भूख से मरे हुए.
कंजड़ के हाथ अमृत देखो बसंत में. 
पतझड़ सा मेरा जीवन, देखो  बसंत में.  
सरसों की पीली पीली चुनरिया उतर गई.
गेहू की बाली खेत में झूमी ठहर गई. 
गन्ना लगाये देखो ठहाके बसंत में..
पतझड़ सा मेरा जीवन ,देखो  बसंत में.  
लव मुस्कुरा रहे है दर्दे दिल बसंत में,
मिलाता नहीं है कोई रहम दिल बसंत में,
बस अंत लग रहा हमें नीरज बसंत में,.
पतझड़ सा मेरा जीवन देखो  बसंत में.  
.....................................आप सभी का सादर आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


सुरेन्द्र सैनी बुवानीवाल झज्जर (हरियाणा

साथ अगर हो...... 



काश मेरी दुआ में असर हो. 
तेरे संग में मेरा बसर हो. 


हिचक नहीं दिल की आरज़ू में, 
ना ही किसी ज़माने का डर हो. 


रात और दिन बस तुमको देखूं, 
तुझपर ही बस मेरी नज़र हो. 



हम दोनों समझें एक दूजे को, 
हमारी गुफ़्तगू में ना समर हो. 


अच्छे से बीते अपनी ज़िन्दगी, 
राब्ता अपना नहीं बजर हो. 


जीत लूंगा हौसलों से "उड़ता"
कोई साथ जंग मेरे अगर हो. 



द्वारा - सुरेन्द्र सैनी बुवानीवाल 
संपर्क - 9466865227
झज्जर (हरियाणा )


udtasonu2003@gmail.com


डॉ . प्रभा जैन "श्री " देहरादून

आँगन 
-----------
मौसम की ढंडक 
गर्मी में बदलने लगी 
आ गया वैलन्टाइनडे 
हर ओर सज संवर 
बाहरें निकलने लगी। 


आँगन में 
फूल पत्तों ने भी 
खुशबू, फैलाई। 


कर रहे हैं,  
इस दिन का स्वागत, 
टेड़ीबियर हाथ में। 


पल -पल पसीना पोंछती, 
कभी नज़रें  झुकाती,  
कभी खुल के मुस्कराती 
चॉकलेट का आनन्द लेती वो। 


बात -बात पर मुस्करा कर 
मारूंगी, कहती, नज़र भर  देखती मुझे। 


कर रही हैं जैसे 
मेरा भी स्वागत, 
पर क्यों चुप हैं दिल 
क्यों सन्नाटा छाया। 


 आँगन में बैठों, 
कुछ पौधें लगा लो 
ना ढूंढो कुछ भी इधर-उधर 
भर अँजुरी,   छिपा लो उसे। 


जैसे हैं फूल में रहती खुशबू
अपने आँगन को महका लो
सभी। 
अपने आँगन को महका लो सभी। 
स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री " 
देहरादून


डॉ. प्रभा जैन "श्री " देहरादून

रफ़्तार /चाल 
--------------------
था बचपन प्यारा 
चार दीवारें खड़ी, 
पड़ी मजबूत छत। 


बड़े हुए, हुए  कुछ दूर 
असलियत नज़र आने लगी, 
पहचान  ना पाई उनको मैं। 


तासिरे  दिल  की बदलने लगी 
रफ़्तार जिंदगी की, 
यूँ गति पकड़ने लगी।


नाव में होता एक छोटा छेद 
नाव डूबा  देता, 
वह छेद ही महत्व पा गया। 


कर रहा हैं वह सब ठीक 
दर  -बदर सुनाई देता रहा, 
क्यों राहें बदल गयीं 
रफ़्तार जिंदगी की, 
थम गई। 


देख मुँह पर मुस्कराते हैं 
पीछे कौन किसके पीछे 
जान ना सकी, पता ना चला 
चली  कौन सी चाल, 
रुक गई जिंदगी, 
ज़ीवन की आस। 


स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून


डॉ. प्रभा जैन "श्री " देहरादून

घरौंदा 
------------
ज़ीवन हैं एक धरौंदा 
हर पल चलती-ठहरती जिंदगी, 
इसमें साँस भरती मैं, नारी। 


कुछ रिश्तों को मन से 
कुछ को दिल से,  
कुछ को मीठी मुस्कान
किसी को सहलाकर, 
किसी को गले लगाकर 
हर साँस में,इक आस भरती 
पल-पल बनाती मैं,  घरौंदा। 


धरती की तरह सृजन करती 
हरियाली चहुँ ओर रखती, 
सीखा, जो मैंने अपने बड़ों से 
विरासत में नई पीढ़ी को देती। 


हूँ   मैं    केंद्र   में 
लौट  घरौंदे  में जो आते, 
मेरे होठों की, मुस्कराहट 
मन में शान्ति, प्रेम, उत्साह 
भर, सब  में   हैं  जाते। 


ले,  ऊर्जा वो काम करते 
पक्षी-दाना  पानी  रखते, 
बगीचें   में,  पौध लगाते 
और बनाते प्यारा सा घरौंदा 
उस चीं -चीं,चिड़ियाँ के लिए। 


हैं सर्दी  का मौसम 
पंखों में अपने को छिपाए, 
आँखें मींचे, 
करती अपने  बच्चों की चिंता। 


बैठ घरोंदें में ख़ुश रहती 
सारे दिन चीं -चीं,चूं-चूं करती, 
देख उसे ख़ुश, 
तितली, भँवरा आते, 
कली देख उन्हें 
ख़ुश हो फूल बन जाती। 
ख़ुश हो फूल बन जाती।


हैं  मेरा प्यारा सा घरौंदा 
हैं मेरा  प्यारा सा घरौंदा। 
  
स्वरचित 
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

........... कह नहीं पाऊंगा...........


क्यों हुई थी दूरी,कह नहीं पाऊंगा ?
क्या थी मज़बूरी,कह नहीं पाऊंगा?


कोशिशें की  हमने बहुत  ही मगर ;
क्यों न मिटी दूरी,कह नहीं पाऊंगा?


आग लगाना तो सभी जानते ही हैं;
बुझाई क्यों नहीं,कह नहीं पाऊंगा?


दूसरे की खुशी सबको खटकती है;
दूसरे जलते क्यों,कह नहीं पाऊंगा?


लाख बुरा चाहते हैं कोई भी मगर ;
क्या है  फायदा,कह नहीं पाऊंगा ?


कोई न कोई तो मिलता है हमदर्द ;
कितना  सुकून,कह नहीं पाऊंगा ?


हम तो यही सोचा करते"आनंद" ;
कैसे मिले कोई,कह नहीं पाऊंगा?


-- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


नूतन लाल साहू

मोर छत्तीसगढ़
शुद्ध और चमकदार है
कोमल सेमल पुष्प की तरह
मुलायम है,वह चिकनी है
प्यार देता है, दुर तक उड़ कर
मोर छत्तीसगढ़,मोर छत्तीसगढ़
चूल्हा म आगी सुलगा के
भौजी जाय पनिया
अइ सने तो होथे संगी
मोर गांव म बिहनिया
शुद्ध और चमकदार है
कोमल सेमल पुष्प की तरह
मुलायम है,वह चिकनी है
प्यार देता हैं,दुर तक उड़ कर
मोर छत्तीसगढ़,मोर छत्तीसगढ़
सुबह की ओस,की तरह
पवित्रता है,छत्तीसगढ़ की
छत्तीसगढ़ की,पंखुड़ियां भरी है
शुभ्र भावनाओ, से ओत प्रोत
शुद्ध और चमकदार है
कोमल सेमल, पुष्प की तरह
मुलायम है,वह चिकनी है
प्यार देता है,दुर तक उड़ कर
मोर छत्तीसगढ़,मोर छत्तीसगढ़
पहाटिया काहय, ढ़ीलो ढ़ीलो
खोर म चिचियावत हे
धवरी,टिकली, बलही गईया ल
दईहान बर,बलावत हे
शुद्ध और चमकदार है
कोमल सेमल,पुष्प की तरह
मुलायम है वह,चिकनी है
प्यार देता है,दुर तक उड़ कर
मोर छत्तीसगढ़,मोर छत्तीसगढ़
नूतन लाल साहू


नमस्ते जयपुर से--डॉ निशा माथुर

सप्ताह की सप्तक सुनाता सोमवार सुमधुर
स्वर्णिम सविता भी सोने सी खिली सुदूर
सुमन सुवासित सज रहे सुरम्य सुहावनी सुभोर
स्वागत करो सोम का शंकरसुवन शिव चहुँ ओर।


सोमवार का शुभ शुभ वंदन, सुअभिनंदन, आप सभी का आज का दिन सफल, सुमंगल, सुमधुर ,सकून वाला हो। 🙏🙏🙏🙏💐💐💐🌹🌹🌹🌹🐻🐻🐻🐻हैप्पी टेडी डे
नमस्ते जयपुर से--डॉ निशा माथुर🙏😄


कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड सरस्वती वंदना

नमन करूं मां सरस्वती
*******************
पार करो मां अंधकार से
अब तार दो मां अज्ञान से
दो नयन तेरे मतवाले है
मां सरस्वती वे तेरे दीवाने है।


बसन्त उत्सव आया है
अब रसना को संवार दे मां
आप्लावित कर  रस से मां
रस रसना पर वार दे मां।


मन हर्षित कर तन हर्षित कर
कर दे हर्षित मेरे रोम रोम मां
जो आये मां शरण तुम्हारे
शब्द  सोम  रस घोल दे।


दो नयन प्यालों में अब मां
शब्द   मद  मय  घोल  दे
मधुर  बैन बोले  हम सब
सभी जनों में रस घोल दे
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


रोहित मित्तल शिव वन्दना

🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
जब मैं जाता पूजा करने, शिवजी प्रकट हो जाते........
मंद - मंद मुस्का  कर भोले मुझको गले लगाते........ 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
सब मन से हैं वंदन करते,तन से भी अभिनंदन .....
ऐसी करते  कृपा सभी पर, तन मन होता चंदन............
कृपा दृष्टि से कष्ट भक्त के नष्ट सभी हो जाते..........


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
जब मैं जाता पूजा करने, शिवजी प्रकट हो जाते........
मंद - मंद मुस्का  कर भोले मुझको गले लगाते........ 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
अखिल ब्रह्म में विचरण,करती इनकी अद्भुत माया .....
विपत्ति काल में पड़कर जो भी इनके दर पर आया......... 
किन्नर ,यक्ष देवता नर सब ही इनके गुण गाते ......... 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
जब मैं जाता पूजा करने, शिवजी प्रकट हो जाते.........
मंद - मंद मुस्का  कर भोले मुझको गले लगाते...... 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
भोले की माया से मेरा काम हो रहा सारा.............
मेरी दुखियारी दुनिया का तू ही एक सहारा..........
अपने भोलेपन से हमको है शंकर जी भाते........ 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
जब मैं जाता पूजा करने, शिवजी प्रकट हो जाते......
मंद - मंद मुस्का  कर भोले मुझको गले लगाते..... 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
ऊंचे शिखर से गंगा मैया, हर हर करके आती........
भक्तों के पापों को हरकर, नूतन जन्म दिलाती........
पावन गंगा जल का अमृत  घर को लेकर आते....... 


🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
जब मैं जाता पूजा करने, शिवजी प्रकट हो जाते........
मंद - मंद मुस्का  कर भोले मुझको गले लगाते........


     🌻 🚩रोहित मित्तल ❝रोहित❞🚩 🌻 
       🌻  {R.K.OPTICAL❜S } 🌻 
          🌻 {मौलिक स्वरचित } 🌻 
            🌻     लखीमपुर-खीरी   🌻 
               🌻  9889862286🌻


जयप्रकाश चौहान * अजनबी*

शीर्षक:-
अजीब जिंदगी का अजनबी सफर ...


किस्मत मिली थी मुझे सोने की कलम सी,
लेकिन उसकी स्याही में बहुत जहर था।


निकला था बहुत स्वर्णिम सवेरा मेरा,
लेकिन मिला मुझे दर्दभरा एक पहर था।


पुष्पों से सुसज्जित राह मिली थी मुझे,
लेकिन वहाँ मिला मुझे एक काँटोभरा डगर था।


दोस्त मिले मुझे दुनिया में बहुत ही अच्छे-अच्छे,
लेकिन मिला मुझे वो धोखेबाज हमसफर था।


हसीन वादियों में खिला ये * अजनबी* गुलाब,
लेकिन मिला मुझे मेरे माली के हाथ खंजर था।


जयप्रकाश चौहान * अजनबी*


रूपेश कुमार सीवान

 


*~~ तुम और मै ~~*


तुम और मैं ,
शायद एक डाली के दो फुल ,
कही काँटे तो कही कली ,
कोई नाजुक तो कोई कठोर ,
कोई दर्द देता है तो कोई दर्द लेता है ,
जिवन की यही रीति है ,
कोई रो रहा है कोई हँस रहा है ,
कही खुशियाँ मन रहा है कही आसूँ बह गया है ,
जिवन मे रास्ते भी अजनबी है ,
कब कहाँ अपना मिल जायें ,
ये कोई नही जानता ,
जो रुला कर चला जायें ,
लेकिन छोड़ जाता है ,
सिर्फ यादें ,
जो ना मरने देती है ,
और ना जीने देती है ,
क्या करूँ ,
मर भी जाऊगा तो ,
याद तुम्हें कौन करेगा ,
किसको सताओगी तुम ,
कौन तुम्हारी यादों मे ,
घुट-घुट कर मरेगा ,
तुम जो हो वो और नही हो सकता ,
तुम्हारी मुस्कान , तुम्हारी चाहत ,
तुम्हारी आँखे , तुम्हारी नजरें ,
तुम्हारी खवाबों का समंदर ,
तुम्हारी खनकती चाल , प्यार ,
जो सबमे नही वो तुममें है ,
तुम हो जो कोई नहीं ,
क्या बताऊँ तम्हें मै ,
तुम मेरी आरजु हो , तुम मेरी गुस्त्जू हो ,
तुम मेरी चैन , तुम मेरी रैन ,
तुम मेरी परछाई , तुम मेरी हरजाई ,
क्या बताऊँ तुम्हें , 
तुम मेरी जिवन की जन्म हो ,
तुम मेरी जिवन की मृत्यु हो ,
क्या कहूँ जो ना ना कहूँ ,
वो सब तुम ही तुम हो !


~ रूपेश कुमार©
छात्र एव युवा साहित्यकार
जन्म - 10/05/1991
शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी , इसाई धर्म(डीपलोमा) , ए.डी.सी.ए (कम्युटर),बी.एड 
(महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी)
वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी !
प्रकाशित पुस्तक ~ मेरी कलम रो रही है
    छह साझा संकलन प्रकाशित
विभिन्न राष्ट्रिय पत्र पत्रिकाओ मे कविता,कहानी,गजल प्रकाशित !
कुछ सहित्यिक संस्थान से सम्मान प्राप्त !
पता ~ चैनपुर,सीवान 
बिहार - 841203
मो0-9006961354/9934963293
E-mail - rupeshkumar000091@mail.com
- rupeshkumar01991@gmail.💐💐💐


नन्द लालमणि त्रिपाठी (पीताम्बर )

2---ग़ज़ल - चाहत की ऊंचाई को बाजार नहीं बनने देते
 दिल सांसों धड़कन की गहराई में ही रहने देते !!
नादा हैं वो                             जो दुनिआ को नादान समझते रहते हैं                              शायद उनको नहीं मालूम नहीं लम्हा लम्हा दुनिआ के रंग बदलते है !!
लम्हा लम्हा रंग बदलति दुनिआ में नियत और ईमान बदलते रहते  है !!
 दिलोँ का दिल से  रिश्ता ही नहीं, रिश्तों के अब व्यापार भी होते रहते हैं ।।                           रिश्तों के बाज़ार हैं अब             रिश्तों के इन बाज़ारो में  रिश्तों के बाज़ार भी सजते रहते हैं !!
चाहत की ऊंचाई को बाजार नहीं बनने देते
 दिल सांसों धड़कन की गहराई में ही रहने देते !!
रिश्तों  की कीमत  मौका,और मतलब रिश्तों के बाज़ारों की दुनिआ में अक्कसर रिश्ते, रिश्तों की खातिर शर्मशार हो  नीलाम ही होते रहते हैं !।                     दुनिआ की भीड़ में भी इंन्सा तंन्हा खुद में खोया खोया खुद को खोजता ।।                           दुनिआ की भीड़ अक्सर नफ़रत की जंगो के मैदान बनते रहते है !!
 मतलब की नफ़रत की जंगो में इंन्सा एक दूजे का कातिल          लहू की स्याही की इबारत की तारीख बनाते रहते हैं !!
कभी परछाई भी ऊंचाई दुनिआ छू  लेने को पागलपन               कभी  ऊंचाई की तनहाई  छलकते आंसू ,जावा जज्बे के पैमाने से छलकते गुरूर का सुरूर दुनिआ को बताया करते हैं !! तंन्हा इंन्सा की तन्हाई उसकी परछाई की ऊंचाई की तन्हाई के आंसु ,ख्वाबों ,अरमाँ के मिलने और  बिछड़ने का खुद हाल बयां ही करते रहते !!
 चाहत की ऊंचाई को बाजार नहीं बनने देते
 दिल सांसों धड़कन की गहराई में ही रहने देते !!
नन्द लालमणि त्रिपाठी (पीताम्बर )


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

1---तू ही है नाज़, तू ही है ताज ,है  जमीं तू ही यकीं आकाश तुझे क्या नाम दूं  जानम।।
 तू ही है जान ,तू ही पहचान , है तू दींन तू ही ईमान ,तू ही अल्ला है तू ईश्वर तू ही  कायनात है जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।
 चाहतो की है तू  चाहत, तू है मोहब्बत कि मल्लीका ,मैं दीवाना तेरा ,तू मेरे मन के आँगन की काली मैं भौरा हूँ परवाना।।
तू चाँद और चांदनी है, है  सावन की घटाए तू, तू ही मधुमास की मस्ती है ,है यौवन की बाला तू ।।
 तू ही बचपन, है जंवा जज्बा, तू ही जूनून, तू है ग़ुरूर ,तू ही हाला ,तू ही प्याला तू ही मधुशाला जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।                                     तू ही ख्याबो की ख्वाहिस है,है तू ही ख्वाबो की शहजादी।।
तू ही आगाज़ ,है तू अंदाज़  ,तू ही अंजाम है जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।
तू ही जाँ तू ही जहॉ तू ही जज्बा तू ही जज्बात है जानम।।
तू ही सांसे ,तू ही धड़कन, तू ही आशा, तू ही निराशा की आशा  विश्वाश जिंदगी का जानम।।
तू ही है प्रीत ,तू ही मनमीत ,तू ही संगीत है जानम तुझे क्या नाम दूं जानम।।
 तू ही स्वर हैं ,तू ही सरगम ,तू ही सुर संगीत है जानम तुझे क्या नाम दूँ जानम।।
तू है खुशियां है तू ख़ुशियों की खुशबु है तू ही मुस्कान है जानम।।
सुबह सूरज की तू लाली तू ही, प्यार यार का मौसम प्यारी  ,तू ही लम्हा , है तू ही सुबह और शाम जानम।।                              तुझे क्या नाम दू जानम ,तू दिल के पास है इतनी ,तू दिल की दासता दस्तक, तू दिन रात है जानम।।                                तू दिल का आज है जानम ,कभी ना होना कल  जानम, तू ही है जिंदगी का सच दर्पण जानम।।
तू ही हसरत की हस्ती है, तू ही मकसद की मस्ती है ,तू ही मंज़िल कारवाँ है जानम।।                    तू ही मांझी तू ही कश्ती तू ही मजधार तू ही पतवार तू ही शाहिल है जानम।।
तू ही है अक्स ,तू ही है इश्क तू ही है हुस्न तू ही दुनियां का है दामन जानम।।                                 तू है शमां  रौशन अंधेरों की उजाला  तू है चमन की बहार बहारों का श्रृंगार है जानम।।
तू ही है झील ,तू ही झरना, तू है दरिया  समन्दर जानम  ।।           तू ही शबनम है तू शोला तू है बूँद बादल जानम।।
 तेरी नजरों से दुनियां है ,तेरी नज़रों में दुनिया है ,तेरे साथ जीना तेरे संग मरना तू ही है आदि अंत जानम।। नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷       भिलाई दुर्ग छग

कुण्डलिया छंद



🥀टेडी दिवस🥀


 


टेडी वासर मानते,गांव शहर के लोग।
वेलेंटाइन डे बना,लगे प्रेम के रोग।।
लगे प्रेम के रोग,मनाने जनता सारी।
आया जैसा मास,बसंती मौसम प्यारी।।
कहे सूर्य यशवंत,खड़े हैं होकर रेडी।
प्रियवर हैं बेचैन,उपहार देने टेडी।।



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


कैलाश , दुबे ,

देने दो गर दुश्मन भी दगा दे जाये ,


गले लगा लो फिर से गर पनाह में आ जाये ,


मत फेंको आस्तीन के साँप को भी बाहर ,


भले कितना जहर भी उगल जाये ,


कैलाश , दुबे ,


गनेश रॉय "रावण" भगवानपाली मस्तूरी, बिलासपुर छत्तीसगढ़

"बिक रहा है"
"""""""""""""""""""
बिक रहा है....
ये जमी और ये चन्द सितारे
कहीं आसमां तो सूरज की किरणें


कहीं सियासत तो कहीं साँसद की कुर्सियां
कहीं लोगों की भावना तो कहीं मजबूरियां


ये कैसी दौर है आई जमाने में
अब तो रिश्तों के नाम पर लेन-देन चल रहा है
कहीं दुल्हन तो कहीं दूल्हा बिक रहा है


हाय ! रे तमाशा सियासत की
कहीं नेताओं के हाथ देश की धरोहर
तो कहीं देश की ताकत बिक रहा है


डर है मुझे इस बात की 
कहीं असत्य के राह पर 
सत्य ना बिक जाए
यथार्थ हूँ मैं...
कहीं साहित्य के नाम पर कलम ना बिक जाए ।।


गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली मस्तूरी, बिलासपुर छत्तीसगढ़
©®


सुनीता असीम

क्यूं यहां आपने ये शोर मचा रक्खा है।
एक हमने भी यहाँ दीप जला रक्खा है।
***
तेरे वादे पे मुझे आज यकीं हो ही गया।
मेरे दिल ने तेरा जादू जो चढ़ा रक्खा है।
***
देवता तुझको बनाके मैंने की है पूजा।
तेरी तस्वीर को दिल में भी सजा रक्खा है।
***
तेरी यादों को सजाया मैंने ख्वाबों की तरह।
और तूने मेरी बातों को उड़ा रक्खा है।
***
तुम मुहब्बत की करो बातें अकेले हमसे।
क्या सताने में भला हमको मजा रक्खा है।
***
सुनीता असीम
१०/२/२०२०


सुरेंद्र सैनी बुवानीवाल  संपर्क -9466865227 झज्जर (हरियाणा

शायद मन डरता है.... 


दिल पागल है, 
हर ख़्वाहिश पे दम भरता है. 
मिलते हैं दो फूल जब भी, 
भंवरा इसी बात से जलता है. 


तेरी गुफ़्तगू कशिश भरी है, 
क्यों तेरी ख़ामोशी से मन डरता है. 


तेरे जज़्बात खुली किताब से, 
ये रूह का परिंदा पँख फड़कता है. 


तुम ऊपर से सख़्त अंदर से नर्म, 
तेरा व्यक्तित्व बार -बार अकड़ता है. 


हर मौसम का अपना मज़ा है, 
हर अदा के संग नया रंग बदलता है. 


कितना लिख डाला तूने नज़्मों में "उड़ता ", 
किसके दिल पर लगे, क्या पता चलता है. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बुवानीवाल 
संपर्क -9466865227
झज्जर (हरियाणा )


udtasonu2003@gmail.com


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मधुशाला में जाकर प्याले 
गम के मैं पीने लगा हूँ
पुरानी यादों का सहारा ले
अब मैं भी जीने लगा हूँ


समझता रहा जिंदगी जिसे
वह मुझसे दूर चली गई
मेरे दिल की हसरत थी जो
वही तो चेन निगल गई


सुर्ख जवानी ललचाती रही
और हम आहें भरते रहे
वो सैलाव बन दहलाती रही
हम पाने के लिए मरते रहे



अब मदहोश रहने लगा हूँ मैं
जाम जवानी का देखकर
और एक वह है निशफिक्र सी
हमारी हालत से बेखबर


बहुत जुल्मोसितम सह लिए
सत्य मत नादान तू बन
खुदबखुद आ जायेगी पास
तूही है उसका जीवन धन।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई

*BKN:0102*
*⚜ भोर का नमन ⚜*
(मेरी पुस्तक *गीत गुंजन* से) 


*हे मात तुम्हारे पदवंदन के, कैसे गीत सुनाऊँ मैं।* 
*अन्तर्मन के भाव कहूँ वे, शब्द कहाँ से लाऊँ मैं।।* 


*और तात के उपकारों का, हरगिज अन्त नहीं होता।*
*और गुरू के जैसा कोई, सचमुच संत नहीं होता।।* 
*जगत नियंता की गाथा को, कैसे तुम्हें बताऊँ मैं।* 
*अन्तर्मन के भाव कहूँ वे, शब्द कहाँ से लाऊँ मैं।।* 


*पुण्य मही ये पुण्य गगन ये, सूरज चाँद सितारे हैं।* 
*सागर पर्वत हे तरु तरुवर, सकल चराचर प्यारे हैं।।* 
*मनवीणा मे सजे तार पर, कैसे उन्हें बजाऊँ मै।*
*अन्तर्मन के भाव कहूँ वे, शब्द कहाँ से लाऊँ मैं।।* 


*अरि अरु मित्र मुझे प्रिय दोनों, प्यारा प्रिय परिजन परिवार।* 
*नमन भोर का अर्पण हे प्रिय, प्रियवर आप करें स्वीकार।।*
*मनभावों से लाड़ करूँ मै, कैसे तुम्हें मनाऊँ मैं।* 
*अन्तर्मन के भाव कहूँ वे, शब्द कहाँ से लाऊँ मैं।।*


सर्वाधिकार सुरक्षित 
ISBN:978819439204
*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई*


मासूम मोडासवी

दिल में मचलती चाहको क्या कहुं भला
उनकी  बदलती राह को क्या कहुं भला


हंसते  हुवे  लगायेंगे  अपने  गले  हमें
लेकिन सीमटती बांह को क्या कहुं भला


बढती  रही  तमन्नाऐं  वस्लो  करार  की
बे  रब्त  इस  निगाहको  क्या कहुं भला


कुरबत की हसरतों में  तन्हाइयां  मिली
हाले  दिले  तबाह को  क्या  कहुं भला


मासूम फिराक सहेते रहे अपनी जानपे
उनकी अधुरी पनाह को क्या कहुं भला


                         मासूम मोडासवी


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