नीरज कुमार द्विवेदी बस्ती - उत्तरप्रदेश

14 फरवरी : पुलवामा हमला(शहादतदिवस)
14 फरवरी ऑनलाइन सम्मेलन हेतु
दहल गईथी घाटी उस दिन आतंकी अंगारों से
थे दहशतगर्द जो लेकर आये लाहौरी दरबारों से
रक्त बहा था माँ की गोद में माँ के रक्षक बेटों का
हिन्दुस्तान ये चीख उठा था दर्द भरी चीत्कारों से।


इतने दुख में भी नेताजन भाषा अपनी अपनी बोल रहे थे
ले बैठ तराजू वोट बैंक की रोटी राजनीति की तौल रहे थे
आवाज उठी थी मन्दिर मस्जिद, हर गिरिजाघर गुरुद्वारों से
अब दहला दो पिण्डी और कराची देश भक्त ये बोल रहे थे।।


सबक इन्हें सिखलाने का फिर मोदी जी ने जरा विचार किया
सेना को आदेश दिया और उसने प्लान नया तैयार किया
जो छिपकर आते थे चोरों से उनकी औकात उन्हें दिखलाने को
वीर जवानों ने उनके घर में घुसकर फिर बम्बों से बौछार किया।।


लगे रडार बहुत थे पाक में जिसका कुछ अपना काम ही है
लेकिन हिन्द के फौजी थे ये मारकर आना जिसका काम ही है
ये उसी हिन्द के फौजी थे जिसके सम्मुख हथियार था डाला उसने
पाक का हिन्द फौज की ताकत से सबसे कायर फौज का नाम ही है।।
नीरज कुमार द्विवेदी
बस्ती - उत्तरप्रदेश


अर्चना द्विवेदी अयोध्या उत्तरप्रदेश

 


प्रेम नशा होता एक ऐसा,
पाँव बहक ही जाते हैं।
छूतीं जब साँसों को साँसें,
तन मन महक ही जाते हैं।


बियाबान भी मधुवन लगता,
इक उसके आ जाने से।
बिन मौसम बारिश हो जाती,
केश घने  बिखराने  से।।


भ्रम सा बना रहे इस मन में,
सपनों में वो आएगा।
मुझे जगाकर मीठी धुन में,
राग प्रणय वो गाएगा।।


तन मन दोनों उसके वश में,
साँसों पर उसका पहरा।
दर्पण  रूठा  रहता,जिसको,
भाये न  कोई  चेहरा।।


जाने-अनजाने,होठों पर ,
बात उसी की होती है।
इक इक यादें मोती जैसी,
चुन चुन जिसे पिरोती है।।


उसकी यादों में बह जाना,
तीरथ पावन लगता है।
मिलने की चाहत में  तारे,
गिनकर दिल ये जगता है।।


मात्र तनिक आलिंगन से ही,
सुध बुध खोती जाती है।
तप्त हृदय के जलते तल पर,
शीतल जल बिखराती है।।


शून्य  लगे  ये  जीवन  सारा
उसके बिन अस्तित्व इकाई
जग,वन,पथ लगते हैं प्यारे
चलता बन जब परछाई।।


अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश


 


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
     देहरादून
      हमसफ़र
दिनाँक      13/ 2/ 2020



मेरी पहले बात सुनोगे
मन में सब बात गुनोगे
मन सँग जब विचार मिलेंगे
सफल सतपदी तब ही होगी
*सँग मैं तब ही चलूँगी*


सुनलो मेरी बात जानम
हर जन्म मैं साथ चलूँगी
करना होगा तुमको वादा
प्रताड़ना मैं नहीं सहूंगी।


कर्तव्य अपने पूर्ण करूँगी
बिन बात की बात नहीं सहूंगी
रखना होगा तुम को ध्यान
दहेज की नहीं बात सुनूँगी।


साथ चलना बन के साथी
सुख दुःख सब सँग सहूंगी
रहेंगे जैसे दीया और बाती 
नही कोई दुर्व्यवहार करूँगी।


जान लो तुम बात अब ये
हूँ नहीं अबला सनम मैं
उलटी गर कोई बात हुई--- तो
सनम मैं अलग होऊंगी ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सुषमा मलिक "अदब" रोहतक (हरियाणा)

"मेरी महबूबा, खाकी वर्दी"


हर पल रहती ये साथ मेरे, और कहती मैं तेरी महबूबा हूं!
ये डूबी है मेरी मोहब्बत में, मैं इसकी मोहब्बत में डूबा हूं!!
समझकर इसे महबूबा अपनी, मैं इस पर जान लुटाता हूँ!
हर साल मैं इसी के साथ, अपना वैलेंटाइन डे मनाता हूं!!


देखकर इसकी शान निराली, ये मेरे दिल को भा जाती है!
फौलादी सीना तन उठा, जब ये मेरे तन पर छा जाती है!
ये सजाती मेरे तन को, मैं खून से इसकी मांग सजाता हूं!
हर साल मैं इसी के साथ, अपना वैलेंटाइन डे मनाता हूं!!


होली, दीवाली, दशहरा जो हो, या हो त्यौहार राखी का!
मेरे तन पर तो पहरा रहता, बस मेरी इस वर्दी खाकी का!!
इसका साथ पाकर मैं, अपना अब घर गाँव भूल जाता हूँ!
हर साल मैं इसी के साथ, अपना वैलेंटाइन डे मनाता हूं!!


इस खाकी वर्दी पर ही तो, हर फौजी की जान कुर्बान है!
जय हिंद बोल उठे "मलिक", देख  देश का हर जवान है!
इसे पहन हर चोटी पर,  देश का तिरंगा झंडा लहराता हूं!
हर साल मैं इसी के साथ, अपना वैलेंटाइन डे मनाता हूं!!


सुषमा मलिक "अदब"
रोहतक (हरियाणा)


Sushma Malik D/0 Sh. Karan Singh Malik
House no. 3103/1
Shastri nagar, hissar by pass, Rohtak (haryana)
Cont. No. 9813434791, 8199900463


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

ग़ज़ल


तिरी   याद  को   हम   सँजोते  रहेंगें।
अश्कों   से    आँखे    भिगोते  रहेंगें।


मिलो अब मुझे कुछ सुनो भी हमारी।
युं कब तक  तिरे  ख़्वाब  होते  रहेंगें।


सहर हो गई आप घर  से  निकलिए।
फ़क़त शाम  तक  आप  सोते  रहेंगें?


मलाल कुछ भी हो उसे आप जानो।
सदा   हम  दिली  मैल  धोते   रहेंगें।


रहो ख़ुश सदा  आरजू अब मिरी हैं।
तिरे   प्यार   में  जान  खोते   रहेंगें।


कभी इक ख़ुशी भी मुनासिब मुझे हो।
सदा   क्या  फ़क़त  साथ  रोते  रहेंगें।


यकीं हैं कभी तो फसल  भी  उगेगी।
इसी   ख़्याल  से  बीज   बोते  रहेंगें।


कभी मिल न पाए हमें आप तो फिर।
तिरी   याद  का   बोझ   ढोते   रहेंगें।


भरोसा "अभय" हैं कभी पार होंगे।
नहीं    आप   ऐसे   डुबोते   रहेंगें।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


श्याम कुँवर भारती  बोकारो झारखंड

भोजपुरी होली -सिमवा पर गोली दागे 
साइया भईले पहरेदार 
सिमवा पर गोली दागे |
हमरो जवनिया दरदिया ना बुझे ,
देशवा के आगे उनके कुछउ न सूझे |
गावे लोगवा फगुआ लहरेदार 
सिमवा पर गोली दागे |
गवना कराई सइया,पलटनिया बनी गइले ,
आई गइले फागुन साजन नथुनीया भूली गईले|
बहे फगुनी बयार,छ्छ्ने जियरा हमार ,
सिमवा पर गोली दागे |
सखिया सहेली लरकोर हो गईली |
जोहत सजनवा अंगनवा भोर हो गईली | 
मारी दुशमनवा भगावा सीमापार ,
सिमवा पर गोली दागे |
श्याम कुँवर भारती 
बोकारो झारखंड


यशवंत"यश"सूर्यवंशी  भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग



विषय🥀 रोटी🥀


विधा कुण्डलिया छंद



रोटी रोजी के बिना,नहीं रहे इंसान।
रहकर भूखे उदर में,जीवन नहि आसान।।
जीवन नहि आसान,नये पथ बढ़ने आगे।
भरे नहीं जब पेट,करे क्या उठकर जागे।।
कहे सूर्य यशवंत,तोड़ दो ऊंची चोटी।
मिल जाए परिवार,खुशी दो पाकर रोटी।।


 



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


सुनीता असीम

मुक्तक
बुधवार
१२/२/२०२०



हो गई हमको अदावत इक्तिजा की बात से।
और बढ़ती नफरतें हैं आदमी की जात से।
बढ़ रहीं इसकी जरूरत और पैसों की कमी-
ये नहीं चिन्ता में सोया आज कितनी रात से।
***
सुनीता असीम


सुनीता असीम

ये सताता रहा खयाल हमें।
साथ तेरे है क्या मलाल हमें।
***
क्यूं निकाल दिया हमें दिल से‌।
प्रेम के पद पे कर बहाल हमें।
***
कर दिया तंग क्यूँ हमें तूने।
आज चुभता यही सवाल हमें।
***
घूरती सी निगाह से देखते।
कर रही हैं लगा हलाल हमें।
***
डूब जाएँ शबाब में .......तेरे।
उससे पहले जरा संभाल हमें।
***
सुनीता असीम
१२/२/२०२०


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

..................... हमें तो ..........................


कोई साथ न दे , हमें  तो  चलने  की  आदत है।
परेशानी जो हो , हमें तो  जलने  की आदत है।।


मुश्किलेंआती रहती हैं यूं तो जिंदगी की राहों में;
मुश्किलों  में  ही , हमें तो  पलने  की आदत है।।


कांटे  हजार  बिखेरे  हैं राह में  हमारे रकीबों ने ;
कांटों से बचकर,हमें तो निकलने की आदत है।।


अपने  ही  जब  बेगाने  जैसे हो  जाया  करते   ;
ऐसों को छोड़कर,हमें तो बहलने की आदत है।।


जितनी  भी  गर्मी  हो   या  जितनी  भी   सर्दी ;
हर मौसम में ही , हमें तो टहलने की आदत है।।


चाहे  जितनी  ठोकरें  मिल  जाए  इन  राहों में ;
हर  ठोकरों से , हमें तो संभलने  की आदत है।।


उम्र  के आखरी  दहलीज पर  खड़े हैं "आनंद" ;
खुशी मिल जाए, हमें तो मचलने की आदत है।।


------------------- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


एस के कपूर श्री*  *हंस।बरेली*

*तेरे विचारों से ही तेरे विचारों का*
*निर्माण होगा।।।।।।।।मुक्तक।।।*


तेरे विचार ही चल कर फिर
तेरे शब्द  वर्ण बनेंगें।


तेरे शब्द फिर  आगे   सिद्ध 
तेरा     कर्म    करेंगें।।


तेरे कर्म  ही  निर्माण करेंगें
व्यक्तित्व  ओ  चरित्र।


निश्चित होगा जिससे  कैसे 
तेरे भाग्य धर्म चलेंगें।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री* 
*हंस।बरेली*
मोबाइल9897071046
            8218685464


एस के कपूर श्री हंस।।।।।।बरेली।

*नारी का   सम्मान।*
*कार्य महान।हाइकु*



कन्या का दान
विवाह का संस्कार
कार्य महान


बहु बेटी है
वह किसी की बेटी
तेरी शान है


बहू सम्मान
नहीं  है धन लक्ष्मी
तेरा है मान


नारी पूज्य है
ये सिखाते संस्कार
यही धर्म है


माँ की ये दुआ
जिसे भी मिलती है
सफल हुआ



नारी से सृष्टि
सम्मान की दो दृष्टि
होती है वृष्टि


*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।*
मोबाइल 9897071046
             8218685464


एस के कपूर श्री हंस।।।।।।बरेली।

वेब पोर्टल पर प्रकाशित करने के लिए
नाम एस के कपूर श्री हंस
स्टेडियम रोड
बरेली(ऊ प)
कविता
विविध मुक्तक माला।।।।।।।
1,,,,,,,
।।।आंतरिक शक्ति।।।।।।।। 
।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।
मत  आंकों     किसी  को    कम ,
कि सबमें कुछ बात होती है।


भीतर छिपी प्रतिभा कीअनमोल,
  सी    सौगात     होती   है।।


जरुरत है तो  बस उसे पहचानने,
और फिर निखारने  की।


तराशने  के बाद  ही  तो  हीरे से,
मुलाकात    होती     है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस
बरेली।।।।।।।।।।। ।।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।8218685464।।।।।।।।
2,,,,,,
।। सफलता का सम्मान।।।।।।।।।।।।।।।।
।।।।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।


नसीबों  का   पिटारा   यूँ    ही
कभी खुलता नहीं है।


सफलता का सम्मान जीवन में
 यूँ ही घुलता नहीं है।।


बस कर्म  ही लिखता है  हाथ
की   लकीरें  हमारी ।


ऊँचा  हुऐ बिना  आसमाँ  भी
कभी झुकता नहीं है।।


रचयिता।।।।।एस के कपूर
श्री हंस।।।।।।बरेली।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।
3,,,,,
सत्य कभी मरता नहीं है।।।।
।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।


सच  कभी    मरता    नहीं
हमेशा  महफूज़   होता है।


ढेर में दब कर  भी जैसे ये 
चिंगारी और फूस होता है।।


लाख छुपा ले कोई उसको
काल  कोठरी   के  भीतर।


सात  परदों के पीछे से भी
जिंदा   महसूस   होता  है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री
हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।
4,,,,
सत्य कभी मरता नहीं है।।।।
।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।


सच  कभी    मरता    नहीं
हमेशा  महफूज़   होता है।


ढेर में दब कर  भी जैसे ये 
चिंगारी और फूस होता है।।


लाख छुपा ले कोई उसको
काल  कोठरी   के  भीतर।


सात  परदों के पीछे से भी
जिंदा   महसूस   होता  है।।


रचयिता।।।।एस के कपूर श्री
हंस।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।
मोब  9897071046।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।


एस के कपूर "श्रीहंस बरेली

*जीवन परिचय।*
*(साहित्यिक,सामाजिक, सेवाकाल,)*
*नाम - एस के कपूर "श्रीहंस"*
*पता- 06,पुष्कर एन्कलेव।टेलीफोन टावर के सामने*। *स्टेडियम रोड*। *बरेली* *(ऊ* *प्र)।(243005)*


*आयु।70वर्ष*
*व्यवसाय।सेवानिवृत्त बैंक प्रबंधक.स्टेट बैंक, बरेली मुख्य शाखा।*


*साहित्यिक कार्य।कविता।लेखन।मुख्य विधा* *मुक्तक,छंद मुक्त (तुकांत), हाइकु, गद्य(आलेख)*
*विशेष उपलब्धि* , *5000 से अधिक मुक्तकों की रचना अबतक।*
*विस्तृत वर्णन,,,,,,,,*
*1/लगभग 15 सामाजिक ।साहित्यिक ।वरिष्ठ नागरिक।सामाजिक ।सांस्कृतिक संस्थायों से  सम्बन्धित,मेंबर व  वरिष्ठ पदाधिकारी के रूप में।*
*2. संस्थापक अध्यक्ष।पीलीभीत मिडटाउन जेसीस।वर्ष 1986।स्टेट वाईस प्रेजिडेंट 1987।स्टेट ट्रेनर 1988।*
*एवमं*
*संस्थापक अध्यक्ष।सेवा निर्वत एस बी आई अधिकारी सामाजिक क्लब।बरेली।अध्यक्ष अक्टूबर2016 से अक्टूबर 2018 तक।वर्तमान में क्लब के सरंक्षक।क्लब द्वारा नियमित रूप से सामाजिक सेवा कार्य सम्पन्न ,में निरंतर सहभागिता।*


*3/दूरदर्शन  ,आकाशवाणी बरेली,रामपुर पर कार्यक्रम प्रस्तुत किये। व यूट्यूब ,वेब पोर्टल, इंडिया समाचार 24 टी वी , डी टी वी लाइव,अक्षरवार्ता, सुप्रसिद्ध e जर्नलस पर वीडियो, रचना ,आलेख प्रकाशित प्रस्तुति।*
*4/अनेक पत्र पत्रिकाओं में रचनायें आलेख प्रकाशित।*
*उदहारण।आई नेक्स्ट ।अबतक 144 लेख ।गीत प्रिया।परफेक्ट जौर्निलिस्ट।हेल्थ वाणी। रोहिलखण्ड* *किरण।प्रेरणा अंशु। काव्य मृत ।काव्य रंगोली ।स्वर्ण धारा। प्रणाम पत्रिका व अनेक संस्थाओं की मासिक e पत्रिकायें।इंकलाब।एक कदम सहित्य कीं ओर।*
*विनायक शक्ति। आध्यात्मिक काव्यधारा, काव्यरंगोली और अन्य कई व स्टेट बैंक की अनेक* *पत्र पत्रिकायों ,कलीग,सेकंड इनिंग्स,हमदोस्त आदि में सैंकड़ों लेख  व कविताएं प्रकाशित।*
*एवमं*
*सेलेक्टेड न्यूज़ मासिक समाचार पत्र का संपादन मई 2014 से मई 2016 तक किया।*
*4आ।*
*साहित्य संगम संस्थान ,दिल्ली*
*विश्व जन चेतना ट्रस्ट,काव्य* *रंगोली,अध्यात्म्य साहित्य काव्य धारा, काव्यामृत, व मानव सेवा क्लब व अन्य लगभग 10 संस्थायों  द्वारा 200 से अधिक भौतिक व डिजिटल सम्मानपत्र ,स्मृति चिन्ह प्रदत्त।*
*5/क्विजमास्टर  व कार्यक्रम संचालन  में विशेष अभिरुचि व क्विज से सम्बंधित गेम्स कराने का लंबा अनुभव।कॉलेज ,संस्थायों में मोटिवेशनल लेक्चर के रूप में, कई बार कार्यक्रम प्रस्तुत।*
*6/सेवा निवृत्त प्रबंधक,*
*भारतीय स्टेट बैंक,*
*बरेली शाखा , ऊ प्र,(वर्ष जून 2010में)*
*7/शिक्षा।एम एस सी (रसायन शास्त्र),* 
*सी ए आई आई बी (भाग 1)*
*8।चीफ आफ इंटरवियू बोर्ड।महिंद्रा बैंक कोचिंग।*
*बरेली में 2011से 2017 तक कार्य किया।*
*8अ।लगभग 15 सामाजिक, साहित्यिक, व्हाट्सएप्प ग्रुप्स का एडमिन।*
*9।ऊ प्र बुक ऑफ रिकार्ड्स द्वारा 14 अक्टूबर,2017 को ट्रॉफी।मैडल ।प्रमाणपत्र प्रदत्त*
*10। 03 feb 2019 को एक outside मेंटर के रूप में एक पृथक बैंक पेंशनर्स क्लब (बरेली में ),की आधारशिला रखने में सहयोग।*
*11.जिला विज्ञान क्लब, बरेली के कार्यक्रमों में निरन्तर निर्णायक की भूमिका निभा रहे है और अभी जारी है।*
*12,विभिन्न स्कूलों कॉलेज में निम्नलिखित विषयों पर लेक्चर दिये हैं और जारी है।*
How to prepare for competition and interviews
And corporate jobs
Situation analysis (case studies), unsuccessful to successful,despair to hope.
Personality development
And many more similar lectures
Stress, time management
Effective public relations, public speaking
Image building,self confidence
*13......वेस्ट used सामान से खूबसूरत हैंडीक्राफ्ट ,डेकोरेशन आइटम बनाना।*


*एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली(ऊ प)*
*मो       9897071046*
*मोब     8218685464*
*अनुलग्नक,, स्वयं चित्र व विभिन्न कार्यक्रमों के उदाहरण स्वरूप कुछ चित्र*


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*कद्र तेरे किरदार की होती है।*
*मुक्तक*


जीत तो हमेशा विवेकी और
समझदार की होती है।


दोस्ती  पक्की  भी  बस एक
वफादार  की  होती है।।


हो तेरी  कोशिश  सूरत  नहीं
सीरत को चमकाने की।


क्योंकि  कद्र तेरी  नहीं   तेरे
किरदार  की  होती  है।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मोबाइल।     
9897071046
8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

चुरा लूं तेरी आँखों का काजल
दिल में तुझे बसा लूं
तुम ही तो मेरी जीवन सुरभि 
सांसों में तुम्हें रमा लूं


खोया खोया सा रहता हूं मैं
जब होता नहीं दीदार
भूल जाता मैं गम दुनियां के
जब मिलता तेरा प्यार


जन्नत लगता सानिध्य तुम्हारा
तुम बसन्त की बहार
सब अनुराग लुटा दूँ तुम पर
मेरे जीवन के आधार


राग रंग तुम सौम्यता हो मेरी
अलक तेरी मनभावन
तिरछी चितवन मन को मोहे
गात तेरा अति पावन


बस जाओ मेरे दिलवर दिल में
खुले है हृदय कपाट
सत्य समर्पित प्रियतमा तुमको
हर पल जोहे तेरी बाट।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

.......अभिलाषा.......
चांदनी रात,
सन्नाटे की शुरुआत;
नदी के तीर पर,सामाजिक
कोलाहल से दूर,एकांत वातावरण में
घूम रहा था।पानी का तेज 
बहाव शांत माहौल
में गुंजरित,
हो रहा था।अचानक
कुछ फासले पर दो लहरें
उठीं - मचलती,इठलाती,बलखाती,
एक दूसरे से  मिलने को
बेकरार।मचा हुआ
था आपस 
में अजीब तरह का
हाहाकार।मन  ने कहा,
हो न हो,यह मेरी सुनी आवाज़ है।
दिल ने  कहा,नहीं,यह
मेरे मित्र व उसकी
प्रेमिका के,
प्रणय भरे गीत की
साज़ है।परंतु,लहरों के
मध्य,फासलों को देखकर,हृदय
आशंका  से भर उठता
है।सामाजिक और
पारिवारिक
परंपराएं,बाधाएं,
देखकर मन डर उठता
है।क्या रूढ़िवादिता की दीवारें
इन्हें मिलने नहीं देंगी?
मन नहीं लगता,
इस वीरान
निर्झर में। कब
होगा प्रत्यक्ष - मिलन,
इन दो  प्रेमियों का,अभिलाषा
बसी है,मेरे जिगर में?
----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मेरे प्राणों के आधार नाथ प्राण तुम सब जग के
जगतनियन्ता स्वामी मान हो तुम ही भव के


हे मेरे आराध्य मैं तो आराधना करूँ तुम्हारी
तुम बिन मुश्किल नाथ जीवन की फुलवारी


हराभरा रहे जीवन उपवन कृष्ण कृपा कीजे
घेरे नहीं दुःख के बादल आशीष मुझे दीजे


करूणामयी बृषभानु दुलारी साथ तेरों चाहूं
वृजबानिक के संग तव चरणन शीश झुकाऊं।


युगलछवि को कोटिशः नमन🌸🌸🌸🌸🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डे


संजय जैन (मुम्बई)

जीना सिखा दिया*
विधा : कविता


अपने लफ्जो में,
मुझे लिखने वाले।
तुझे दिल जान से, 
चाहते है हम।
दिल की धड़कनों में,
बसते हो तुम।
जब भी दिल मेरा, 
तन्हा होता है।
तभी उतार जाते हो, 
दिलकी गैहराईयों में तुम।।


अपने होने का एहसास,  
 कराते हो तुम।
हमें अपने पास, 
बुलाते हो तुम।
मत हुआ करो उदास,
मेरे होते हुए तुम।
क्योंकि रबने बनाया है,
साथ जीने के लिए हमें।।


डूबते हुये इंसान को,
 सहारा दिया तुमने।
अपने प्यार से,
उसे संभाला तुमने।
जब भी आये गम, 
मेरी जिंदगी में।
ढाल बनकर खड़े हो गए,
गमो के बीच में तुम।।
कैसे शुक्रिया अदा करू
में तेरा,
तुमने जीना सीख दिया मुझे।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
13/02/2020


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
           *"जीवन"*
"निष्कंटक होता जीवन सारा,
मिलता जो प्रभु का सहारा।
सत्य-पथ चल कर साथी-साथी,
कभी न कोई मन से हारा।।
सुख की चाहत में पल पल साथी,
क्यों- भटका ये मन बेचारा?
मिटती भटकन तन-मन की साथी,
साथी-साथी बने सहारा।।
मंझधार में डूबी जीवन नैया,
मिलता नहीं उसको किनारा।
त्यागमय होता जीवन साथी,
मिलता अपनो का सहारा।।
मैं-ही-मैं संग जीवन पग पग,
बनता अहंकार का निवाला।
त्यागे मैं जीवन का साथी,
बनता अपनो का सहारा।।
अपनो के लिए जीते जो साथी,
उनका सुख होता तुम्हारा।
निष्कंटक होता जीवन सारा,
मिलता जो प्रभु का सहारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          13-02-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

ये जिन्दगी
***********
क्या बताऊँ  कैसी है ये जिन्दगी
क्या कहूँ कैसी है ये जिन्दगी
कभी तो फूल सी लगती है
ये जिन्दगी।


कभी  तो काँटों में गुलाब सी
मुस्कुराती है ये जिन्दगी
कभी दूर डूबते सूरज सी
लगती है यह जिन्दगी।


कभी सूरज की पहली किरण
सी लगती है यह जिन्दगी
कभी कल्पनाओं के सागर में
गोते लगाती है यह जिन्दगी।


कभी दूसरे का दर्द को देख कर
रो पड़ती है ये जिन्दगी
कभी मौत के भय से
बदहवास सी दौड़ती है ‌ये जिन्दगी।


कभी मंजिल के बहुत करीब
लगती है ये जिन्दगी
कभी एक -एक पर को
पीछे धकेलती है ये जिन्दगी।


क्या कहूँ कैसी है ये जिन्दगी
जैसे भी है
बहुत सुहावनी है ये जिन्दगी
ईश्वर का कृपा प्रसाद है ये जिन्दगी।।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड 246171


कालिका प्रसाद सेमवाल

हे मां जगदम्बा
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 हे मां जगदम्बा
जिसका मन शिशु जैसा
तुम करती हो रखवाली
तेरे चरणों शीश झुकाओ
मिट जायेगा जन्मों का फेरा।


हे मां जगदम्बा
भक्तों की तुम करती रक्षा
सबके कष्टों को तुम हरती
द्वार तुम्हारे आया हूं
मेरे नैया पार लगा दो।


हे मां जगदम्बा
तुम हो घट-घट वासी
ममता की मूरत तुम हो
तुम ही हो पर्वत वासी
शरण तुम्हारे आया हूं
हे मां जगदम्बा।।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
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विजय कल्याणी तिवारी बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-705

देखा सुना चकित हूं
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शब्दों ने क्या रूप गढ़ लिए
देखा सुना चकित हूं ।


परिवर्तन से पूर्ण प्रभावित
रूप स्वरुप बिगड़ते दिखते
मर्यादाएं व्यथित संकुचित
कर्कश कुंठित कायर लिखते
बढ़ती गढ़ती गहन गंध मे
मन से बहुत बहुत व्यथित हूं
शब्दों ने क्या रुप गढ़ लिए
देखा सुना चकित हूं ।


आशंका बलवती हो रही
संबंधों मे सड़न बढ़ रहा
प्रश्न चिन्ह लग रहे चरित्र पर
षड्यंत्रों के शीर्ष चढ़ रहा
कैसे मुक्ति राह पर जाउं
पुष्प सदृश अर्पित हूं
शब्दों ने क्या रूप गढ़ लिए
देखा सुना चकित हूं ।


विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-705


काव्यरंगोली ऑनलाइन नेह काव्योत्सव 14 फरवरी 2020 

गणतंत्र दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता  परिणाम 2020 इस प्रकार है।
आप सभी को बहुत बहुत बधाई  यद्द्पि सभी रचनाये एक से बढ़कर एक थी किन्तु निर्णायक मंडल द्वारा यमन नाम टॉप टेन चयनित किये गए।
1 प्रखर दीक्षित
2 रश्मिलता मिश्र
3 अविनीश त्रिवेदी अभय
4 लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, बस्ती उ प्र
5 जनार्दन शर्मा
6 एस  के  कपूर श्री हंस
7 देवानंद साहा, कोलकाता
8 अर्चना कटारे शहडोल म प्र
9 शिल्पी मौर्य बाराबंकी
10 रिपुदमन झा पिनाकी, झारखंड
आप के प्रमाण पत्र जल्दी ही ऑनलाइन भेज दिए जायँगे
विशेष ध्यान दे कल 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे है आप जिसको भी प्यार करते हो उस पर एक रचना भेजियेगा 
काव्य रंगोली नेह काव्योत्सव ऑनलाइन 2020 दिनाँक 14 फरवरी 2020 सुबह 8 बजे से शाम 10 बजे तक मेरे व्यक्तिगत नम्बर पर भेजियेगा।
काव्यरंगोली ऑनलाइन नेह काव्योत्सव 14 फरवरी 2020 प्यार करना है तो माँ बाप से करना सीखो
मरना है गर तो अपने देश पे मरना सीखो
वासना से भरी गलियो में खोजते क्या हो,
प्यार पूजा है इबादत सी है करना सीखो।।
आशुकवि नीरज अवस्थी
9919256950
प्यार करना है तो माँ बाप से करना सीखो
मरना है गर तो अपने देश पे मरना सीखो
वासना से भरी गलियो में खोजते क्या हो,
प्यार पूजा है इबादत सी है करना सीखो।।
आशुकवि नीरज अवस्थी
9919256950


अनुराग मिश्र ग़ैर , चिनहट- लखनऊ

अनुराग मिश्र" ग़ैर "
लखनऊ 


मठ के संत 


आओ प्रिय आ गया बसंत 
महक रहे दिग् और दिगंत ।


नव पल्लव फिर मुस्काये हैं
पक्षी फिर कलरव गाये हैं, 
झाड़ रहे हैं तरुवर पत्ते 
हुआ शीत का अब तो अंत ।


सबके आंगन धूप खिली है
मध्यम पछुवां पवन चली है, 
हँसी ठिठोली करती सखियाँ 
लौटे हैं घर सबके कंत ।


खिले पुष्प हैं चारों ओर 
मधुप मचाते रह-रह शोर, 
आकुल है मेरा विरही मन
उर में पीड़ा पले अनंत ।


तुमको ऋतु का भान नहीं क्या?
इन रंगों का ज्ञान नहीं क्या?
तुम हो गये पाषाण हृदय या 
बन बैठे हो मठ के संत ।।


                  अनुराग मिश्र ग़ैर 
            10-स्वपनलोक कालोनी 
                    कमता, चिनहट 
                लखनऊ -226028
                  मो0-941242788
       ईमेल-anuraggair@gmail.com


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