संजय जैन (मुम्बई)

*मोहब्बत ने लिखना सीखा दिया*
विधा : कविता


मेरी मोहब्बत ने मुझे,
लिखना सीखा दिया।
लोगो के मन को,
पढ़ना सीखा दिया।
बहुत कम होंगे जो मुझे,  
 पढ़ने की कोशिस करते होंगे।
वरना जमाने वालो ने तो,
मरने को छोड़ दिया था।


न धोका हमने खाया है,
न धोका उसने दिया है।
बस जिंदगी ने ही एक,
नया खेल खेला है।
जो न कह सकते है,
और न सह सकते है।
बस बची हुई जिंदगी को,
जीनेकी कोशिस कर रहे है।।


चिराग जलाया करते थे, 
अंधेरों में रोशनी के लिए।
तभी तो जिंदगी ने अब,
अंधेरा कर दिया।
देखकर रोशनी को,  
अब हम डर जाते है।
की कही अंधेरों से भी,  
 नाता न छूट जाये।।


जय जिनेन्द्र देव की 
संजय जैन (मुम्बई)
15/02/2020


राजेंद्र रायपुरी

एक ग़ज़ल - 
( 122-122-122-122)


न मसलों कभी  यार कच्ची कली को।
खिलेगी तो ख़ुशबू  ही  देगी गली को।


न  कोई  सहारा  है उसका  जहां  में, 
मदद को उठे हाथ लड़की भली  को।


मुक़द्दर  की  मारी  है  कहते सभी ये,
सताओ न तुम यार  नाज़ो  पली  को।


न बातें  करो  तुम  मुहब्बत की  यारों, 
लगेगा बुरा सच में उस दिल जली को।


है चाहत  सभी की हो गोरी ही बीबी, 
न चाहे सुना कोई  उस  साँवली  को।


ख़ुदा ने  है  मारा  न  मारो  उसे  तुम,
चहकने  दो थोड़ा तो उस बावली को।


हैं कहते सभी का वो रखवाला है फ़िर,
ये ही  याद आई  न क्यूँ उस अली को।


              (राजेंद्र रायपुरी)


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"सुख और शांति"*
"कोई नहीं चाहता साथी,
जीवन में-
अपने अशांति।
न ही चाहत कोई कभी,
जीवन में अपनें-
आये दु:ख-दर्द।
सभी की चाहत यही साथी,
जीवन में हो-
सुख और शांति।
-फिर भी,
क्यों -दु:खी होता ये मन,
क्यों-जीवन में रहती-
अशांति।
जब तक जीवन मे साथी अपने,
सुख-दु:ख में होगा नहीं समभाव-
कैसे-मिलेगी शांति?
जहाँ अपनत्व का जीवन में,
होगा मान-सम्मान-
वही होगी सुख और शांति।
कोई नहीं चाहता साथी,
जीवन में -
अपने अशांति।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         15-02-2020


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

.............तन्हा तन्हा था.............


आपके आने तक , तन्हा तन्हा था।
जिंदगी  थी , पर  तन्हा  तन्हा था।।


जुस्तजू थी , राह में  हमसफ़र की ;
खुशी  थी ,  पर  तन्हा  तन्हा  था।।


यूं तो ऐशोआराम की कमी न थी ;
व्यस्तता थी, पर तन्हा तन्हा  था।।


थे रिश्तेदार  बहुत  से  दुनिया  में;
गहमागहमी थी,पर तंहा तंहाथा।।


हर शाम यारों के साथ कटती थी;
दोस्ती था , पर  तन्हा  तन्हा  था।।


तांता  लगा  रहता था  लोगों  का;
कमी नहीं थी,पर तन्हा तन्हा था।।


जिंदगी की सुबह अब हुई"आनंद"
गुजरती रही,पर तन्हा  तन्हा था।।


-- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मां शारदा


तेरी कृपा पाकर वीणापाणि ,
जग में कौंन न निहाल हुआ।
तुमसे विलग हुआ जग में,
वो तो निश्चय ही बेहाल हुआ।।


स्वेत वसन हे!ज्ञानदायिनी,
माता तेरे है अनंत उपकार।
तेरा ज्ञान पीयूष पाकर मां,
हुआ कृतार्थ सारा संसार।।


दैदीप्यमान मुखमंडल माते,
अवर्चनीय गुणों की हो धाम।
ज्ञान ज्योति से आलोकित,
नर को मिला दिव्य मुकाम।।


वरद हस्त कर पुस्तक साजे,
अवगुण तमस देख मां भाजे।
तुलसी सूर कालिदास आदि,
तव प्रसाद पा जगत में राजे।।


मैं अज्ञान अनाड़ी मूरख मां,
जग आदि व्याधि से है त्रस्त।
आ गया हूं मां शरण आपकी,
भव तापो से कर दो आश्वस्त।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय🌺🌺


कवि शमशेर सिंह जलंधरा "टेंपो" हांसी ,  जिला हिसार , हरियाणा

यादों में नहीं**


तुझे याद करते-करते , 
रात-रात भर जगना , 
हो गया है , 
मेरी आदत में शुमार सजना ,
कितना बदल गया है , 
किया तेरा करार , 
और कितना खो गया है , 
मेरा करार ।
खत्म होने का नाम नहीं लेता , 
तेरे आने का इंतजार , 
बातें बहुत करनी है , 
तुम्हें बतलाना है , 
सही हुई दूरियों की , 
तकलीफों को ।
बेचैनी भरे पल-पल का , 
मेरा यह संदेश , 
काश ! 
तुम तक पहुंचा देती , 
ये चलती हवाएं , 
मचलती घटाएं , 
और तुम लौट आते , 
यादों में नहीं , 
हकीकत में रूबरू , 
हल करने को , 
बढ़ी हुई सारी समस्याएं ।


रचित --- 24 - 05 - 2017


कालिका प्रसाद सेमवाल    रूद्रप्रयाग  उत्तराखंड

अपने घर में प्रेम का दीप जलाएं
  🙏🌹🙏🌹🙏🌹  ********************
  चलो, आज कुछ अच्छा
   काम कर लें।
    किसी की दुआ से
    अपनी झोली भर लें।


     चलो हम कल्पना करें
     यहां धरा पर ऐसी दुनिया हो
     जहां शांति के हो सागर
     और प्रेम के पहाड़ हो।


      हम बनायेंगे ऐसा घर
      जिसकी दीवारें बुद्धि की ईंटों से हो,
      विवेक के सीमेंट से
      प्रेम और त्याग की सुगंध घर में हो।


      मेरी लड़ाई किसी से नहीं,
      सिर्फ बुरे विचारों से है,
      भय मुक्त समाज हो
      मजहब ही जिनका इन्सानियत हो,


चलो हम  अपने घर में,
प्यार और त्याग से ऐसा बनाएं,
एक दूसरे का दर्द समझ पाएं,
अपने घर में प्रेम का दीप जलाएं।।
********************
  कालिका प्रसाद सेमवाल
   रूद्रप्रयाग  उत्तराखंड


जयप्रकाश चौहान * अजनबी*

*ये कलाम... पुलवामा शहीदों के नाम*


हमारी रक्षा में गुजरती हैं जिनकी सुबह-शाम,
*अजनबी *का आज का दिन उनके नाम।
आज के दिन पुलवामा में हुए शहीदों को,
मेरा शत -शत  नमन और कोटिश प्रणाम।


गैर ने नहीं किसी अपनो ने ही किया था ये काम ,
आखिर क्यों दिया उन्होंने इस हमले को अंजाम।
वो क्यो भूल जाते हैं आज़ाद, भगतसिंह के नाम,
जिन्होंने हँसते हँसते कर दी अपनी जान कुर्बान।


जो करते हैं सच्ची सेवा अपने वतन की,
वो नहीं करते परवाह तन,मन और धन की।
छोड़ जाते हैं आशियाना परिवार का अधूरा,
इज्जत रखना सदा उनके पत्नी,बेटी,पुत्र रत्न की।


उन वीरो की याद में मनाओ वेलेंटाइन,
रूह व तबीयत भी हो जाएगी आपकी फाइन।
मत करो जाति-पाति,ऊँच-नीच,धर्म का ड्रामा,
उनसे खत्म हो जायेगी आतंकी, घुसपैठ की ड़ाइन।


हे पुलवामा के शहीदो आपको सलाम मेरा,
आज आपके ही नाम है ये कलाम मेरा।
हमेशा ही ये तिरंगा झंडा ऊँचा रहे हमारा,
हे भारत  माता लेना  ये पैगाम मेरा ।


जयप्रकाश चौहान * अजनबी*


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" दिल्ली

विषय: मातृ पितृ पूजन दिवस
दिनांकः १४.०२.२०२०
वारः शुक्रवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः उजड़ा है कलि बागवां


कलियुग में बस स्वार्थ सब, मातु पिता कहँ मान।
श्रवण  कहाँ या  राम  सम , पाएँ  कहँ   सन्तान।।१।।


कहँ  पाएँ    सम्वेदना , कहँ  ममता  का लाज।
निर्माणक   संघर्ष   क्या , जाने  पूत      समाज।।२।।


सींच पौध कुसमित चमन , सुन्दर फलित सुगन्ध।
चढ़े   देव  नेता    शिरसि , भूले   सब   अनुबन्ध।।३।।


तरुणाई   के  ज्वार   में , भूले    सभी     अतीत।
मातु  पिता  गुरु अर्थ क्या , जिसने   दी  नवनीत।।४।।


दाने   दाने   चूनकर , बना   महल   निज    पूत।
वही आज  मोहताज़  बन , याचक  बने   कुपूत।।५।।


चाह   प्रबल  औलाद   का , मन्नत   भटके बाप। 
वही  चढ़े  उन्नत  शिखर , बाप   बने  अभिशाप।।६।।


रखी   कोख  नौ मास तक , दी जीवन भू जात।
सींच  पयोधर   पान   से , करे  मातु    आघात।।७।।


छाया  दे  आँचल  तले , दी  ममता  नित   नेह।
अश्क  नैन  निर्मल किया , वही मातु बिन  गेह।।८।।


पूत  आज  उत्थान पर , मातु  पिता    सोपान। 
वृद्धाश्रम या सड़क पर , भटके सह   अपमान।।९।।


पाला   शिक्षित   अहर्निश ,संजोए     अरमान। 
छोड़  जरा   ये  पूत  पथ , एकाकी   अवसान।।१०।। 


उजड़ा है कलि बागवां , बन पतझड़ माँ  बाप। 
है   कुपूत बिन   श्रेष्ठतर , जीवन  बिन संताप।।११।।


मानवता  नैतिक  पतन , क्या  श्रद्धा दायित्व। 
लखि निकुंज नर लालची , निर्दयता व्यक्तित्व।।१२।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


कुमार कारनिक  (छाल,रायगढ़,छग) """""'''


  मनहरण घनाक्षरी
  *देश के जवान*
   """""""""""""""""'"
देश  के  जवान  वीर,
जैसे भाला  शमशीर,
निज  मन   धर  धीर,
    देश को बचाते हैं।
🇮🇳🌸
निज शौक  पाटते  हैं,
तलवे   न   चाटते  हैं,
या तो सिर  काटते हैं,
    शहीद हो जाते हैं।
🏵🇮🇳
पुलवामा  पर  किया,
पीठ पीछे वार किया,
जात शर्मसार  किया,
     घुसपैठी आते हैं।
🇮🇳🌺
सदा है फैलाते जाल,
जयचदें   बन   काल,
करके भी बुरा  हाल,
      नही शरमाते हैं।
🌸🇮🇳



🇮🇳पुलवामा  के  वीर -
शहीदों को श्रद्धांजलि💐
                   *******


सीमा शुक्ला

भारत मां के सच्चे सपूत तुम अमर हो गये बलिदानी।
करता है तुमको देश नमन है धन्य तुम्हारी कुर्बानी।
वे कायर थे जो पीछे से 
छिपकर के तुम पर वार किये।
भारत माता के बेटो का 
बेदर्दी से संहार किये।
है आज सिसकती ये धरती,
 रो रहा आज है नील गगन,
जो किये लहू से तुम सिंचित ,
है आज बहुत गमगीन चमन।
निज प्राणो की देकर आहुति 
ध्वज नीलगगन है लहराया,
सर्वस्व निछावर हुआ मगर,
 ये देश नही झुकने पाया।
हे लाल शहादत मे तेरी  गम मे है हर  हिन्दुस्तानी
करता है तुमको देश नमन है धन्य तुम्हारी कुर्बानी।
हो गई मांग ओ भी सूनी ,
कल ही जो गई  सजाई थी,
 बेरंग हो गई चूनर,मेहदी,
 चूड़ा सजी कलाई थी।
नन्हे अबोध बेटा-बेटी,
 पापा कहने को तरसेंगें,
राखी आयेगी बहनो की ,
आंखो से आंसू बरसेगे।
हर रिश्ते टूटे बिखर गये,
 किसकी कितनी मै कथा लिखूं ?
अनकहा दर्द का मंजर है,
 कैसे कितनी मै व्यथा लिखूं?
बलिदान देश हित देख यहां बस आंख बह रहाहै पानी।
करता है तुमको देश नमन है धन्य तुम्हारी कुर्बानी।
हे नीतिनियंता बंद करो सब,
 दर्द जरा देखो उनका।
जो खोये अपना लाल वही,
 बस एक सहारा था जिनका।
पूछो उस मां  दर्द तिरंगे मे जिसका बेटा आया,
सोंचा था सेहरा बांधूगी पर,
 बदन कफन लिपटा आया।
हो गई पूज्य  ओ माता जिसका
 लाल देश को अर्पित है ,
है नमन उन्हे भारत माता को 
 जिनका लहू समर्पित है।
लिख गये अमिट इतिहास धरा ये वीरो की है दीवानी।
करता है तुमको देश नमन है धन्य तुम्हारी कुर्बानी।
 सीमा शुक्ला।


डॉ राजीव पाण्डेय

*पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि में एक वर्ष पूर्व लिखी कविता* 


रुधिर बहाया है शेरों का, केशर वाली माटी में।
चीख चीख मानवता रोयी,स्वर्ग सरीखी घाटी में।


जिनका यौवन को खिलना था उनकी कलियां मुरझाईं। 
गहरे दुख में डूबा भारत , आंखे  आँसू भर लायीं।


 गणनायक दन्त शावकों के, मुख पर एक तमाचा है।
शेषनाग के फन पर आकर,आतंकी स्वर नाचा है।


अधरों से मुरली त्याग करो,उंगली चक्र चलानाहै।
वीर सपूतों की ललना को ,धीरज आज बंधाना है।


मातम के सागर में डूबा ,  उच्च स्वरों में गाता है।
पूजित वह जननायक होता ,काट शीश दस लाता है।


शंकर जी त्रिनेत्र खोलकर  तांडव सीमा पार करो।
दहशतगर्दी कमर तोड़ दो, भारत का उद्धार करो।


मांगों में सिंदूर नहीं है ,और धधकती ज्वाला है।
रक्षा सूत्रीय अरमानों को, बिल्कुल ही धो डाला है।


 आँसू छिपकर बैठ गए हैं ,नौनिहाल के बस्तों में ।
 बूढ़ों की लाठी टूट गयी , अंधकार के रस्तों में।


बहुत पतंगे उड़ा चुके हो ,और कबूतर छोड़ लिए।
नामर्दो ने घर में घुसकर , सारे बंकर तोड़ दिए।


बहुत लुटा ली है बिरियानी,आज तलक महमानो पर।
आज तलक ना जूँ रेंगा है, उनके बिल्कुल कानों पर।


ढांढस नहीं बंधा सकते हो,केवल कोरी बातों से।
भूत  हमेशा   ही माने हैं ,   लातों  वाले लातों से।


करोड़ सवा सौ की शक्ति है, आज आपके हाथों में।
बिल्कुल भी मत देर करो अब,करने को प्रतिघातों में।


सब्र का प्याला छलक चुका है,अब हमको तुम माफ करो।
या तो गद्दी  मोह छोड़  दो,या दुश्मन को साफ करो।


जय हिन्द
डॉ राजीव पाण्डेय


उमेश प्रकाश , राजाजी पुरम, लखनऊ--

एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ l मैं यह बताना चाहता हूँ कि कोई भी व्यक्ति समय के बीतने साथ-साथ जाने-अंजाने बहुत कुछ खोता जाता है l अंजाने में खोये हुए रिश्तों/यादों/सुखों को वह ज़िन्दगी भर खोजता  रहता है जो कभी भी ..…...…..


**ढूँडे नहीं है मिलता**
     ---------------------
पिता की वो झूटी फटकार,
माँ की थपकी-लोरी-प्यार l 
वो सोंधे रिश्ते प्यार-दुलार,
वो अपनापन अपनों का प्यार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


मीठे रिश्तों की मनुहार,
दादी-बाबा करें दुलार l 
नाना-नानी प्रेम बहार,
अपना खुशियों का संसार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


बुआ से मिलता निश्छल प्यार,
चाचा देते सब कुछ वार l 
मामा-मौसी का परिवार,
होता प्रेम का पारावार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


गिल्ली-डन्डा-लट्टू यार,
चरखी-फिरकी की भरमार  l 
होती क्षणभ्रंगुर तकरार,
झूटे गुस्से में जो प्यार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


सोंधी मिट्टी धूल-गुबार,
बहती सावन शीत-बयार l 
रिमझिम बूंदों की बौछार,
तीनों मौसम के उपकार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


"उमेश" ये करते सदा विचार ,
प्रेम का कैसे हो परचार l 
धरती प्रेम का ही सार,
होवें सबके यही विचार  ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....
       ----------
              ----उमेश प्रकाश ,
  एफ-2136 राजाजी पुरम,
          लखनऊ--226017
      मोब--9616135035


डॉ. रामकुमार चतुर्वेदी

राम बाण🏹
शौर्य काल  की  गाथा सुन, आँखें  है भर आई।
मिला नहीं सिर सैनिक का, रोती घर पर माई।।


दाल  पकेगी  कैसे  अब,  सठ साली  हैं रोते।
शोक  मनाने  निकले  सब,  मौसेरे हर  भाई।।


मुल्ला  काजी  क्रोध  करें,   देते  धर्म सफाई।
तीन तलाक  की  कोर्ट  में,  होती  है सुनवाई।।


योग  कराते  बाबा जी,  बन  बैठे  कब योगी।
भ्रष्ट  मुक्त हो  भारत  की,  कैसे  बने  दवाई।।


मजनूँओं  की  खैर  नहीं, सहमे सहमे रहते।
पत्थर  फेंके  कश्मीरी,       देते  हमें दुहाई।।


खुल्लम  खुल्ला  खुल्लू ,   डेंगू  रोक  रहे थे।
आड ईवन आड़ में,कर दी खूब सफाई।।


स्याही दाग छुड़ाये तो , फिर चांटा मिल जाता।
लोकपाल  सहलाने को,   आ जाते  भजपाई।।


अनशनधारी अनशन करते, सैर करेंगे मोदी।
बूचड़खाने  बंद  हुए,       अब्बू  लेंगे  गोदी।।


राम बाण सह न सको तो,बाम लगाना प्यारे।
हम  चुटीले  तंज देते,    करते   राम  भलाई।।
                       डॉ. रामकुमार चतुर्वेदी


निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार

पुलवामा में शहीद हुए मां भारती के वीर सपूतों को मेरी ओर से समर्पित काव्यांजलि ।


  पुलवामा हमला
रक्तो की अभिषेक देख,
धरती अम्बर कांप उठा।
हिन्द सागर की लहरें भी,
क्रोधित हो तिलमिला उठा।


ये कैसी मजबूरी है,
 अपनों से रक्तो की होली है।
तिरंगा से लिपट लिपट कर,
नित दिन उठती डोली है।


चौबालीस वीर सपूतों की,
कुर्बानी आज ललकार रहीं।
पुत्र मोह में शस्त्र त्यागें,
द्रोण को धिक्कार रहीं।


आतंकी आदिल के नेतृत्व में,
जैस ए मुहम्मद की थी चाल।
खुदा नहीं बक्सेगा तुमको,
नापाक दिल ए हैमान।


कहें निकेश नहीं होने देंगे,
शहीदों की शहादत बदनाम।
शरहद पर हम कूच करेंगे,
कर देंगे तुम्हारा काम तमाम।
            निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार 7250087926


अर्चना कटारे शहडोल (म.प्र

*पुलवामा वीरो को श्रद्धांजलि*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻


*कैसे भूलेंग वो प्यारी सी शाम*


*जब  देश पी रहा था प्यार का जाम*


*लाल लाल हो रही थी वह सुनहरी शाम*


*दुश्मन ने कर दिया था ,धोके से लहुलुहान*


*चीथड़े बटोरते बीत गयी थी वो शाम*


*देश के बच्चों बच्चों पर थी यह चर्चा आम*


*पुलवामा हमला कभी भी भूल न पायेंगे*


*ऐ देश के वीर सिपाही तेरा उपकार भी नहीं भूल पायेंगे*


*लिया था बदला हमने  घर पर घुसकर*


*चटा कर आये थे धूल उनको*


*मना कर आये थे लोहा उनको*


*तुम्हारी कुर्बानी नहीं गयी बेकार*


*दुश्मन कराह कर,कर रहा था चीत्कार*


*आज वतन के वीरों को देते है श्रद्धांजलि*


*जिन्होंने देश की खातिर शहादत चुनी*


            *अर्चना कटारे*
             *शहडोल (म.प्र)*


डॉ प्रताप मोहन "भारतीय   - बद्दी -

वेबसाइट में प्रदर्शन हेतु
*** मकान ***
खुद के घर को
घर कहते है
किराये के घर को
मकान कहते है
यदि घरवाली हो घर में
तो घर घर लगता है
बिना घरवाली  के
अपना घर भी
मकान लगता है
घरवाली है घर की जान
उसके बिना है घर बेजान
जान ही जान का
अहसास कर पायेगी
बेजान क्या हमारा
दर्द समझ पायेगी
  लेखक -
          डॉ प्रताप मोहन "भारतीय          308, चिनार - ऐ - 2 ओमैक्स पार्क वुड - बद्दी - 173205      (H P)
  मोबाइल - 9736701313
Email - DRPRATAPMOHAN@GMAIL.COM


सुबोधकुमार शर्मा शेरकोटी , गदरपुर उधम सिंह नगर 

विह्ववल होता अंतर्मन ,,,,,
.........................................
विह्ववल होता अंतर्मन,अविरल होती आंखे नम
कैसे धीर बधाएँ उनको ,देखे जो हत्या    निर्मम।।


हाथों की अभी मेहंदी   न छुटी
पहले ही कलाई - चूड़ियां टूटी।
स्वप्न सारे टूट गये क्षण  भर  में
माता -  ममता     रण ने लूटी।।
द्रवित हुआ अब  पिता  महा है
मातृभूमि को इक लाल दिया है
दूसरा लाल क्यो नही दिया ईश्वर
धैर्य ,विवेक की धारा अब टूटी
कैसे चुकाऊँ मै   माँ का ऋण।
विह्ववल होता अंतर्मन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,1


नन्ही गुड़िया  गुड़िया  ले देखे
नये नये खिलोने इकटक  देखे
स्व परितः चीत्कार  देख   कर
हाथ से सभी  खिलोने    फेंके।।
मॉ के गले लिपट रो रो     पूछे
क्यो शोर हुआ  है    घर बाहर।
आज पिता को  घर आना था
क्यो बेचैन हुआ ये  मेरा  मन।।
विह्ववल होता मेरा मन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,2


कंगन ,टीका,बिंदिया कुमकुम 
पायल की मधुरिम रुन  झुन
कलाई भाई की राखी  तरसे
चहुँ दिशि क्यो लगती गम सुम।
मॉ की आँखे ललना को देखे
पत्नी लाल का पलना    देखे
भाई मन मे यह निश्चय करता
पूर्ण करूँगा     में तेरा    प्रण ।
विह्ववल होता अंतर्मन,,,,,,,,,,,,,,,,,3


सुबोधकुमार शर्मा शेरकोटी ,
गदरपुर उधम सिंह नगर 
उत्तराखंड मो न0 9917535361


अविरल शुक्ला लखीमपुर-खीरी*   8081001989

*शहीद के बेटे का पिता के नाम पत्र*


जब से  गये  हो  पापा  घर  छोड़ के,
अपने भी  चले  जाते  मुंह  मोड़  के।


कोई  भी  खिलौने  नये लाता नहीं है,
रूठने  पे  गले   से   लगाता  नहीं  है।


कहते  हैं  सब  मम्मी  सोती रहती हैं,
पर वह छिप छिप कर रोती रहती हैं।


बाबा  के   पास   में   दवाई  नहीं  है,
दादी को  देता अब   दिखाई  नहीं है।


बोलती मां  फल  हैं  पुराने  पाप  के,
हम अब  कहें जाते  बिना  बाप  के।


हंसती  थी  दुनिया जो  सोयी  हुई है,
दिखता  हमारा  अब  कोई  नहीं  है।


आंखें   हैं  तरसती  तरसते  कान  हैं,
आपके   बिना  न  कोई  सम्मान है।


मांगता हूं पापा कुछ आज दे दो ना,
एक बार द्वार से आवाज  दे दो  ना।


©️ *अविरल शुक्ला लखीमपुर-खीरी*
  8081001989


डॉ0 धारा बल्लभ पाण्डेय, अध्यापक एवं लेखक, कर्नाटक पुरम, मकेड़ी, अल्मोड़ा,

⭐हम भारतीय⭐
युद्ध नहीं है धर्म हमारा,
 हम तो शांति पुजारी हैं।
छेड़ा अगर किसी ने तो, हम नहीं छोड़ने वाले हैं।।


चिंगारी को छेड़ोगे तो,
बन अंगार मिटा देंगे। 
यदि हम से टकरावोगे तो,
चूर-चूर कर डालेंगे।।


अरे दुष्ट! तेरी यह हरकत,
कभी सफल नहीं होगी।
तेरी सारी गीदड़ हरकत,
डर डर कर थर्राएगी।।


चौदह फरवरी को धोखे से,
चालिस वीर शहीद हुए।
पुलवामा की इस घटना को,
सुनकर सभी स्तब्ध हुए।।


नहीं भुला हम हैं सकते
दुश्मन की इस बर्बरता को।
 दिया जवाब मिटा आतंकी,
ध्वस्थ किया रिपु के गढ़ को।।


बलुवाकोट का किला और,
भी कई ठिकाने मिटा दिये।
कुर्बानी के बदले तेरे-
किले जहन्नुम बना दिये।।


मिराज दो हजार ने जब, 
घमंडी आका भस्म किये।
बम बरसाकर आतंकी के,
कई ठिकाने ध्वस्त किए।।


बारह मिराज ने इक्कीस मिनट में 
सौवों  आतंकी किए खलाश।
अगर नहीं फिर भी सुधरा तो,
तेरी जमीं गिरेंगी लाश।।


सांप पालकर दूध पिलाया,
देख लिया अब इनको भी।
इसी देश में पलकर जो,
पत्थर फेंकें बन आतंकी।।


अभी हिसाब बहुत बाकी है,
हाफिज सईद अजहर मसूद।
आतंकी नेता छिपे हुए,
करना इनको भी जमींदोज।।


अभिनंदन ने सूझ शौर्य से,
किया ध्वस्थ तेरा विमान।
छक्के छुड़ा दिए  सब तेरे,
मार भगाये और विमान।।


सीमा पार उतर अंदर घुस,
जो दहाड़ कर गरजा था।
होश उड़ा गीदड़ दल के वह, ‌
अपने घर लौट आया था।।


अभिनंदन, अभिनंदन का,
अभिनंदन तेरे गौरव का।
उन वीर शहीदों का भी है,
अभिनंदन नमन पराक्रम का।


जय भारत जय भारत धरती,
जय सेना जल, नभ, थल की।
हे मातृभूमि तेरी जय जय,
जय जय राष्ट्र तिरंगे की।।


स्वरचित कविता-
डॉ0 धारा बल्लभ पाण्डेय,
अध्यापक एवं लेखक,
कर्नाटक पुरम, मकेड़ी, अल्मोड़ा, पिन-263601,
उत्तराखंड।
मोबाइल नं- 9410700432


छात्र एव युवा साहित्यकार

पुलवामा शहीदों पे लिखी मेरी रचना ~ 


~~~ऐ पाकिस्तान बेहाया ~~~


ऐ पाकिस्तान बेहया ~~
तुझे भारत ललकार रहा है ,
पुलवामा में हमला करके ,
बेशर्मी दिखाने वालों ,
नीच, निर्लज्ज, बेहया.......
अब तुम न बच सकोगे ,
और न तुम जी सकोगो ,
हो साथ तुम्हारे कोई भी,
अमेरिका या चीन ,
तुम मिट जाओगे ,
ऐ पाकिस्तान बेहया ~~~
तुम कुत्ते की मौत मारे जाओगे ,
नही मिलेगी तुझे कब्र भी,
और न मिलेगी एक धूर जमीन ,
नही कोई देगा तुम्हारा साथ ,
ऐ पाकिस्तान बेहया ~~~
अब न कोई दोस्ती चलेगी ,
अब न कोई रिश्ता - नाता,
अब होगी गोलियो की बरसात ,
फिर होगी सर्जिकल स्ट्राइक ,
ऐ पाकिस्तान बेहया ~~~
भूल जा कश्मीर तू,
अब लाहौर, कराची भी हमारा होगा ,
चालीस के बदले चालीस हजार लेंगे ,
ऐ पाकिस्तान बेहया ~~~


~ रुपेश कुमार©️
छात्र एव युवा साहित्यकार


मधु शंखधर स्वतंत्र* *प्रयागराज*

पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरूप..........🌹🇮🇳
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
प्यार भरा दिल हम रखते हैं,सबको अपना माने।
अपनों की खातिर जीना तो, मरना भी हम जाने।


गद्दारों की ओछी हरकत,भर देती है ज्वाला,
उनको देने को प्रतिउत्तर बनते हैं परवाने।।


निहत्थे निर्दोष सैनिकों पर, था बम यूँ बरसाया,
पुलवामा को याद कर रहे,आज सभी पैमाने।।


प्रेम भरा दिन याद कराता, प्रेमी सभी शहीदों का ,
भारत माँ की गोद में सोए,लाल कई मस्ताने।।


एक वर्ष बीता है कैसे, उनके घर जा पूछो,
बेवा, बच्चे,माँ, की पीड़ा, समझो तो अनजाने।।


देश की रक्षा की खातिर, सीमा पर बैठे हैं,
उनकी जां को दाँव लगाकर, हम गाते हैं गाने।।


भूल भला कैसे सकते हैं, भारत माँ के वीरों,
गाथा वीरों की कहती यह,कीमत को पहचाने ।।


🌹
एक फूल बस उन शहीद के, नाम धरा पर रख दो,
वेलेन्टाइन डे उनका मधु, हो देश के जो दिवाने।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*


यशवंत"यश"सूर्यवंशी भिलाई दुर्ग छग

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग



आज की विषय पर मेरी रचना



💐💐💐💐💐💐💐💐


तुम एक क्या आवाज दो?
हम दस आएंगे।
हो जाएंगे वतन पर निछावर,
शहीद कहला जाएंगे।।


💐💐💐💐💐💐💐💐


इस जवानी के लहूँ को,
आनायास मत समझो।
जिस दिवस ये उबल उठे,
टूटे हुए शीशे जोड़ जाएंगे।।


💐💐💐💐💐💐💐💐


हम जाए या हमारे खून जाए,
नहीं है परवाह जान की।
           दे देंगे प्राण हम,
झुकने न देंगे,तिरंगे शान की।।


💐💐💐💐💐💐💐💐


हम मरेंगे सौ आएंगे,
तेरे आतंक से न घबराएंगे।
जहर को अमृत सम पीकर यश
सहस्रौ उग्रवादियों में 
वंदे मातरम कह जाएंगे।।


💐💐💐💐💐💐💐💐



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


आशा जाकड़

पुलवामा के शहीदों उर की वीणा रो रही



 शरीर दिव्य हो गया आवाज मौन हो गई 
वीरता बर्फ में दर्ज ,सदा को अमर हो गई
वतन के शहीदों की सर्वत्र अर्चना हो रही
पुलवामा के शहीदों उर की वीणा रो रही


मौन है प्रकृति मौन पुलवामा की च़ोटियाँ
मौन है ये आस्माँ ,मौन है अब सारा जहाँ
मौन होकर वसुन्धरा भी अश्रुपूरित हो रही
पुलवामा के शहीदों उर की वीणा रो रही ।।


आशा जाकड़


जया मोहन प्रयागराज

श्रद्धांजलि
आज तिरंगा फिर खून से नहा रहा है
आतंकियों के हाथों जवान मौत पा रहा है
लोग मन रहे मोहब्बत का दिवस
कितने परिवारों के दिन हो गए तमस
हमे सुकून की नींद सुलाने को
वतन का रखवाला लुटा जा रहा है
आज।।।
मन मे दुख की ज्वाला धधक रही है
वीर सपूतों की शहादत का बदला मांग रही है
बहुत हुई शांति अम्न की बाते
अब सहन शक्ति का दामन छूटा जा रहा है
आज।।।
उठाओ हथियार काटो इन सियारो को
खोजो अपने आस पास छिपे हुए गद्दारो को
देश तुमसे शहीदों का हिसाब मांग रहा है
आज।।
उठो जागो आपस की द्वेष भावना जाओ भूल
देश की रक्षा करने में हो जाओ मशगूल
शपथ खाओ काट दोगे ऐसे हाथो को
जो आतंकी गद्दारो को संवार रहा है
आज।।।
ऐसी माता पिता के चरणों मे शीश झुक जाते है
जिनके बेटे हमारे लिए जान गंवाते है
आंखों से झर झर आँशु बहते
वाणी थम जाती है
क्या देश केवल इनकी ही थाती है
अंतरात्मा से कर्तव्य बोध ललकार रहा है
आज तिरंगा


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