डॉ शिव शरण "अमल "

घर का प्रणाम ,परिवार का प्रणाम तुम्हे,
गांव,गली ,खेत,खलिहान,का प्रणाम है ।
राह में रुके नही,और फर्ज से भी डिगे नही ,
मरते हुए भी किया ध्वज को प्रणाम है ।
हौसले बुलन्द है ,शहादत के नाम आज,
रक्त वही धन्य आये देश के जो काम है ।
मातृ भू की आबरू में आँच नही आई जरा,
शौर्य के प्रतीक सारे राष्ट्र का प्रणाम है ।।


डॉ शिव शरण "अमल "


एस के कपूर श्री हंस।।।।।।* *बरेली

*हमारे अमर शहीद जवान।*
*।।।।मुक्तक।।।।माला।।।।।*


1,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
*जवानों से सुरक्षित देश।।।।*


नमन है उन शहीदों को जो
देश पर कुरबान हो गए।


वतन   के  लिए देकर जान
वो   बे जुबान  हो   गए ।।


उनके प्राणों  की  कीमत से
ही सुरक्षित है देश हमारा।


उठ  कर  जमीन  से   ऊपर
वो जैसे आसमान हो गए।।


*रचयिता।।। एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।
2,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
*आतंकवाद को उत्तर।देना है।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*


अब आर हो या पार हो,
बंद  नरसंहार हो।


हर  वार का जवाब वार,
अब  लगातार हो।।


मिट जाये  नक्शे से  ही,
नाम  आतंक  का।


कुछ ऐसा  कठोर  प्रहार,
अबकी   बार  हो।।
*रचयिता।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।*
मोब   9897071046।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।
3,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
*अमर वीर सपूतों की शहादत*
*व्यर्थ नहीं जायेगी।*
पुलवामा, उरी में दिखा  कर
ऐसी ये अराजकता।


मत  खुश   हो  कि  शर्मसार
करके  तू  मानवता।।


नहीं जायेगा  व्यर्थ  कभी  ये
बलिदान शहीदों का।


होगा   ऐसा  प्रहार  कि  ना
दिखा पायेगा दानवता।।


*एस के कपूर श्री हंस।।।।।।*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*मोबाइल*        9897071046
                    8218685464


कौशल महंत"कौशल"

,      *जीवन दर्शन भाग !!३०!!*


★★★
पढ़ना चाहा ध्यान से,
           साँझ दुपहरी प्रात।
पर होते जो मनचले,
           करते हैं उत्पात।
करते हैं उत्पात,
            विध्न करते पढ़ने में।
आता है आनंद,
            सदा इनको लड़ने में।
कह कौशल करजोरि,
            कहाँ आता है गढ़ना।
इनको अपना भाग्य,
            नही चाहें यह पढ़ना।
★★★
शिक्षा का मंदिर वही,
           जहाँ मिले नित ज्ञान,
 शिष्य भक्त बन कर रहें,
           गुरुवर ज्यों भगवान।
गुरुवर ज्यों भगवान,
           पढ़ाते ध्यान लगाकर।
करे जगत-निर्माण,
           शिष्य का भाग्य जगाकर।
कह कौशल करजोरि,
            दिला कर कठिन परीक्षा।
इस जीवन का सार,
            तभी जब पायें शिक्षा।।
★★★
बोले निज कर जोड़कर,
           सब मित्रों के बीच।
धार ज्ञान की बह रही,
            तन-मन को लो सींच।
तन-मन को लो सींच,
           सभी मिल धरम निभायें।
राग-द्वेष को त्याग,
            प्रेम से पढ़ें पढायें।
कह कौशल करजोरि,
            सभी की आँखें खोले।
नहीं रखे मन-मैल,
            सीख की बातें बोले।।
★★★


कौशल महंत"कौशल"
,


सत्यप्रकाश पाण्डेय

बड़भागी हम नाथ मिलों सानिध्य तुम्हारों
परमब्रह्म संग रास रचायें सौभाग्य हमारों
दरस पाय पावन हुई देह धन्य हुईं जगदीश
छूटों जीवन नेह हृदय स्मरण करें तुम्हारों


जग अघ से मुक्त हुईं हम पुण्य उदित हमारे
सुदबुध भूल गईं स्वामी पाकर स्नेह तुम्हारों
पूर्व जन्म के सुकृत कहें या प्रारब्ध श्री कृष्ण
हुओं है श्रीपरम् ज्योति से यहां मिलन हमारों।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कुमार नमन लखीमपुर-खीरी

गीत- सुनो सुहागन!


अभी बुलाती हैं हमको सरहद पर माई,
सुनो सुहागन आ जाऊंगा जल्दी ही मैं,
सुनो सुहागन!


शादी के जो पूर्व थे, हमने सपने देखे,
उन सपनों को सच करने जल्दी आऊँगा।
अश्रु न तुम अपने नयनो में भरो रूपसी,
माँ होती हैं चिंतित मैं जल्दी आऊँगा।
सुनो सुहागन रखना तुम खुद का ख़्याल भी, 
वादा हैं कि आ जाऊंगा जल्दी ही मैं।
सुनो सुहागन!



जो बापू को पता नही,वो हिसाब सुनो तुम,
माँ से कह देना वो, बापू से करवा देंगी।
यदि तुम होना कभी भयभीत यहाँ पर,
माँ से कहना भय से तुमको लड़वा देंगी।
सुनो सुहागन तेरे हाथ पर लिखें नाम के,
वादा हैं मिटने से आऊँगा पहले ही मैं।
सुनो सुहागन!



लगता हैं फिर से माँ पर ओ घात हुई हैं,
अब हमको उस दुष्ट शत्रु से लड़ना होगा।
सुनो प्रिये तुम मेरे जाने पर रोना मत यूं,
वीर सुहागन हो तुमको अब लड़ना होगा।
सुनो सुहागन कहो कि क्या उपहार मैं लाऊ,
वादा हैं की युद्ध जीत आऊँगा जल्दी ही मैं।
सुनो सुहागन!



लगा महावर देख हमारे पैरों में वह,
सब मित्र हमारे हमको दिनभर छेड़ेंगे।
जब होकर उदास मैं बैठूंगा कही अकेला,
तो हमको भाभी-भाभी कह कर छेड़ेंगे।
सुनो सुहागन मेरे पैर में लगा महावर,
वादा हैं छुटने से आऊँगा पहले ही मैं।
सुनो सुहागन!



-कुमार नमन
लखीमपुर-खीरी


डॉ. शेषधर त्रिपाठी'शेष'                                 पुणे, महाराष्ट्र

मोहताज
         ----------------         
भारत- भू की संस्कृति में,पावन प्रेम आख्यान हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
नल-दमयंती,हीर-राँझा,ये बड़े प्रेम उपमान हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
कृष्ण-सुदामा मित्र भाव ये सुंदर समाज  परिधान है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
सीताराम औ राधाकृष्ण ये जग में पूजित नाम हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
पनपा पवित्र प्रेम भारत में,लोग हुए अनजान हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
प्यार छिछोरे का संग्राहक,ये कैसा इंसान है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
मर्यादा से हो बँधा प्यार, तनिक न इसका भान है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
कितना पावन प्रेम हमारा, मर्यादा का आधार है,
फिर भी क्यों हम आज हुए,इस नकली प्रेम के मोहताज हैं।
नकली से असली संस्कृति का होता बंटाधार है,
उत्कृष्ट संस्कृति को त्याग रहे, अब निकृष्ट के मोहताज हैं।
उच्श्रृंखलता सिखा रही, ये समाज अभिशाप है,
फिर भी क्यों हम आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
मर्यादा को दे तिलांजलि, करते प्रेम इजहार हैं,
फिर भी क्यों हम आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
पुलबामा के शहीदों को समर्पित दिन आज है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
देशप्रेम ये अमर प्रेम है, इस पर हमको नाज है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
                      ©डॉ. शेषधर त्रिपाठी'शेष'
                                पुणे, महाराष्ट्र
                                 10/02/2020
मो.नं.-9860878237


संजय जैन (मुम्बई)

*वतन से मोहब्बत निभा गए*
विधा : कविता


सारी दुनिया से अपनी,
पहचान मिटाकर चले गए,
भिगोकर खून में वर्दी,
कहानी दे गए अपनी।
मोहब्बत वाले दिन,
वतन पर जान लुटा गए,
और वतन से मोहब्बत वो,
इस कदर निभा गए॥


अपनी सारी खुशियाँ और,
अरमान लुटाकर चले गए,
मोहब्बत मुल्क की सच्ची,
निशानी दे गए अपनी।
इसलिए वो हिन्दुस्तां पर,
जान लुटाकर चले गए,
और वतन से मोहब्बत वो,
इस कदर निभा गए॥


तम्मन्ना थी दिल में कि,
मेरा भारत खुशहाल रहे,
इसलिए मनाते रह गए,
वेलेंटाइन-डे यहाँ हम-तुम।
और वहाँ कश्मीर में सैनिक,
जवानी दे गए अपनी…,
और वतन से मोहब्बत वो,
इस कदर निभा गए॥


शांति वार्ता से अब तक,
क्या हमको है मिला,
क्या पाया-क्या खोया,
देशवासियों को वो बता गए।
माँ-बाप,बीबी-बच्चों को,
वतन के हवाले छोड़ गए,
और वतन से मोहब्बत वो,
इस कदर निभा गए॥


में दिल से उन शहीदों को नमन करता हूँ और 
श्रृध्दांजली आज मोहब्बत दिवस पर वो सच्ची मोहब्बत वतन से निभा गये।
जय हिंद 


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
14/02/2019


ऋषि कुमार शर्मा कवि बरेली 9837753290.

14 फरवरी के शहीदों के नाम
----------------------------------------
             अमर।    बलिदानी
----------------------------------------
यह तिरंगा शान से यूं ही अब लहरायेगा,
जो बढ़ेगा इस तरफ वह धूल में मिल जाएगा।
गांधी नेहरू गौतम नानक इस धरा के पूत थे,
प्रेम के थे वह पुजारी शांति के वह दूत थे।
मन में ले आदर्श उनका दोस्ती के वास्ते,
खोलने चाहे थे हमने बंद थे जो रास्ते।
पुलवामा में कारवां में जा रहे इंसान थे,
बदले में सीमा पर अपनी आ रहे हैंवान थे।
खूब बदला दोस्ती का पाक ने हमसे लिया,,
आड़ लेकर दोस्ती की कारवां पर हमला किया।
देश के खातिर मिटे जो देश की खातिर जिए,
वीर सेनानी हमारे अंतिम सफर पर चल दिए।
धन्य है वह वीर ऐसे धन्य ऐसी 
माएं हैं,
शत्रुओं का काल बन जो शत्रुओं पर छाए हैं।
गोद सूनी हो गई और मिट गया सिंदूर है,
बहन से बिछड़ा है भाई काल कितना क्रूर है।
लाल अपने रक्त से हिम पर्वतों को कर दिया,
पर तिरंगे को कहीं पर भी नहीं झुकने दिया।
लड़ते-लड़ते शत्रुओं से जो सदा को सो गए,
आज करते हैं नमन उनको अमर जो हो गए।
ऋषि कुमार शर्मा कवि बरेली
9837753290.


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"यौवन"*
"यौवन की दहलीज़ पर,
रखे जो कदम-
मन मयूरी नाच उठा।
देखने लगे दिन मे सपने,
मन मधुर मिलन के-
गीत गा उठा।
यौवन में लगता हैं यही,
सपनो का राजकुमार-
यही कही छिपा बैठा।
मधुमास छाया है जीवंन में,
पतझड़ की उदासी-
साथी भूला बैठा।
यौवन की मस्ती में साथी,
जीवन के संस्कार-
यहाँ भूला बैठा।
यौवन की दहलीज़ पर ,
रखे जो कदम-
मन मयूरी नाच उठा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
         सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः         14-02-2020


सौदामिनी खरे रायसेन मध्यप्रदेश अभी हारा नही

बर्फीली हवाओं में हो झमाझम वारिश।
या हो हाड़ कप कपाती शीतल शरद ।
जिस्म जला दे वह लू की हो लपटें ।
मेरे वतन का नौ जवा अभी हारा नही है।
अपने सारे सुखो की वह  देकर आहुति।
मेरे घरों को वह सुखचैन की नींद  देता।
कहीं कोई दुश्मन न सीमा के पास आए।
रात रात भर वह सीमा पर पहरा देता।
मेर वतन का सिपाही अभी हारा नही है।
अपने परिवार को छोड़कर अकेला अदम्य
वह करता मेरे वतन की धरा को धन्य ।
दीवाली दशहरा होली और राखी।
बैठ कर सीमा पर सबको मनाया 
मेरे वतन का सिपाही अभी हारा नहीं है।
अपने रक्त की एक एक बूँद से सींचता।
वो फौजी सिपाही मेरे वतन का गुलशन।
राष्ट्रप्रेम अपने हृदय में भीचता ।
कभी हारा नही है वो अभी हारा नही है।


श्याम कुँवर भारती (राजभर )-  कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी 

फुलवाम शहीदों को नमन 
हिन्दी गीत –अपना वतन चाहिए 
न सोहरत न दौलत मुझे अपना वतन चाहिए |
फलता फूलता और मुझे खिलता चमन चाहिए |
न हो दुश्मन कोई न हो अड़चन कोई |
मर सकूँ मै वास्ते वतन तिरंगा कफन चाहिए |
खून शहीदो सींचकर हरा किया गुलशन |
शहीद होने न दे भारत ऐसा नव रतन चाहिए |
अपनी धरती की  मिट्टी माथे लगायेंगे  हम |
सह सके वार दुश्मन फ़ौलादी  बदन चाहिए |
न हो पतझड़ कभी और बहारे मुस्कुराए सदा |
हरी धरती मे बहती गंगा बाँकपन चाहिए  |
बढ़े भाईचारा यंहा लोग सारे मिलके रहे |
देश तेरा न मेरा सबका ऐसा मन चाहीए |
न हिन्दू मुस्लिम कोई सब बनके भाई रहे |
न हो दंगा कही देश  शांति औ अमन चाहिए |
मै रहूँ न रहूँ हिन्द जिंदाबाद रहे |
शान तिरंगा रहे भारती हिन्द नमन चाहिए |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )-
 कवि /लेखक /गीतकार /समाजसेवी 
मोब।/व्हात्सप्प्स -9955509286


रत्ना वर्मा धनबाद झारखंड

तिथि- 14/02/2020 
दिन- शुक्रवार 
नमन भारत - अभिनंदन वंदन प्रणाम संग 
सभी को सुप्रभात ....
 मेरी कलम से ....
  " नतमस्तक हूँ पुलवामा " 
                ये सोच कर सैनिक थें चले,
                खैरियत वतन का रहे ।
               कारवां चली ही थी कि हाय ,
               साँस शोर कर उठी ....सिसकियों भर उठी !!
                और हम लुटे -लुटे वक्त से पिटे- पिटे 
                विक्षिप्त  प्राण  देखते रहें ......
              कारवां गुजर गया आसमान देखते रहें  ...


 धूप भी खिली न थी,
कि हाय शहर धुआँ-धुआँ हुआ
लाशें पर लाशें  पटी ...ये कैसा हादसा हुआ!
दुश्मनों की चाल का ये  कैसा सिलसिला हुआ....
क्या शबाब था कि , लहू-लहू पिघल उठा ....
स्वप्न  सारे ढेर हुए, आसमां बिलख उठा...
और हम लुटे -लुटे वक्त से पिटे- पिटै 
विक्षिप्त प्राण देखते रहें ....
कारवां गुजर गया आसमान देखते रहें!!
                         
                    नज़र -नज़र को थी आंक रही 
         हाय ये किसकी नज़र लगी ....
         दुश्मनों को इनकी कैसै ख़बर लगी !
        यहाँ चल रही थी  देशद्रोहियों की निति!
        ईमानदारी में शंका हुई, भाईचारे में हो गई क्षति..
        और हम लुटे लुटे वक्त से पिटे-पिटे ...
        विक्षिप्त प्राण देखते रहें .....कारवां गुजर गया 
              हम आसमान देखते रहें ....


वो कैसी घड़ी थी कि  ....
जिस्म के टुकड़े टुकड़े हुए ...
किसी के सर किसी के हाथ पाँव
 के चिथड़े हुए ...
प्रिय न प्रिय को देख सकी...
हाय भाव में गहन रहे .....
पिता की गर्व से फूली छाती ,
माँ ने कहा - आज हम धन्य हुए ....
और हम लुटे लुटे वक्त से पिटे-पिटे 
विक्षिप्त प्राण देखते रहें ...कारवां गुजर गया 
आसमान देखते रहें ....
                     भारत माँ के वीर सपूतों को 
                             शत- शत नमन जय हिंद!!
रत्ना वर्मा 
स्वरचित मौलिक रचना 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
204अम्बिका अपार्टमेंट 
धनबाद झारखंड


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.

पुलवामा हमले पर लिखी तत्कालीन रचना


*"पुलवामा न भुलाना है"*
(ताटंक छंद गीत)
..................................
विधान-१६+१४=३०मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, दो दो पद तुकबंदी।
..................................
*सन् उन्नीस चौदह फरवरी,
"पुलवामा न भुलाना है" ।
नापाक पाक की करनी का,
सच जग को दिखलाना है।।


*शेरों को श्वानों ने काटा,
बदला हमें चुकाना है।
छल से छलनी करते हैं जो,
नर्क उन्हें पहुँचाना है।।
शहीद चवालीस के बदले,
पापी सहस गिराना है।
नापाक...................।।


*छल से उछल रहे छलियों को,
नाकों चने चबाना है।
पाक कहीं फिर डंक न मारे,
उसको धूल चटाना है।।
झंडा गाड़ पाक में उसके,
साहस आज दिखाना है।
नापाक...................।।


*छुपे हुए गद्दार देश में,
उनको मार भगाना है।
आस्तीन पले साँपों का भी,
हर फन कुचला जाना है।।
भूत लात का बात न माने,
इनको सबक सिखाना है।
नापाक....................।।


*माँ-ममता सिंदूर मांग का,
राखी को न भुलाना है।
बना बहाने कब तक कितने, 
बच्चों को बहलाना है??
खुशियों में जो आग लगाते,
उनको आज जलाना है।
नापाक..................।।


*जैसा को तैसा ही देंगे,
और न धोखा खाना है।
चुन चुनकर पापों के अड्डे,
भेज मिराज उड़ाना है।।
अब आतंकी आकाओं को,
गिन गिन मार गिराना है।
नापाक..................।।


*हे भारत के वीरों जागो,
ऋण देश का चुकाना है।
बजा गगनभेदी रणभेरी,
पौरुष निज दिखलाना है।। 
अब तो आतंकी शोणित से,                    
धरती को नहलाना है।
नापाक...................।।
.................................
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
.................................


प्रियव्रत कुमार

आज का दिन हम कुछ यूँ मना रहे थे।
सभी अपने प्यार में खुशियाँ मना रहे थे
हम दुश्मनों के संग गोलियाँ चला रहे थे,
हमें तो वतन से प्यार था इस कदर
जहाँ सभी एक-दूजे से प्यार जता रहे थे
वहीं हम वतन पर अपनी जान लूटा रहे थे।
 प्रियव्रत कुमार
पुलवामा हमला में शहीद सभी वीर जवानों को में शत् शत् नमन।
🙏🏻🌹🙏🏻


कवि नितिन मिश्रा'निश्छल' रतौली

जाने कैसे फूट फूट माँ का आँचल रोया होगा । वो छाती रोयी होगी जिसने बेटा खोया होगा ॥ जाने कितने ही गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरी होंगी । औ कितने ही नई नवेली सी माँगे उजड़ी होंगी ॥ जाने कैसे राखी का हर इक धागा टूटा होगा । और अस्क से जाने कितना ही काजल छूटा होगा ॥ भूल गये हम उन्हे आज के दिन थे जो बलिदान हुये । प्रेम दिवश के दिन जाने कितने सैनिक कुर्बान हुये ॥ मैं उनके चरणों मे निज तन मन धन अर्पित करता हूँ । निश्छल मन से उनको श्रद्धाँजली समर्पित करता हूँ ॥ चला गया जो सरहद पर अबतक वो प्यार नहीं लौटा । एक वर्ष हो गया है राखी का त्यौहार नहीं लौटा ॥ होली मे आँशू छलके चेहरे पर लाली न आयी । देखो पापा चले गये अबकी दीवाली ना आयी ॥ याद नहीं जो कफन बाँध कर के सरहद पर चले गये । याद नहीं जिनके शोंणित से अबतक दीपक जले गये ॥ हम अपने परिवारों के संग खुशियों मे यूं झूल गये । जो कुर्बान हुये पुलवामा में हम उनको भूल गये ॥ मैं उनके चरणों मे यह जीवन भी अर्पित करता हूँ । निश्छल मन से उनको श्रद्धाँजली समर्पित करता हूँ ॥
कवि नितिन मिश्रा'निश्छल' रतौली सीतापुर8756468512


कवि रामबाबू शर्मा ,राजस्थानी,दौसा

👮🇮🇳 *जय जवान* 🇮🇳👮


भारत माँ के सच्चे प्रहरी,
वीर जवानों  अभिनंदन ।


मर मिटने से कभी न डरते ,
आओ उनका करले वंदन।।


चिंता नहीं, सर्दी गर्मी की ,
वर्षा में भी, अडिग खडें।


बर्फ पिघल करती अगवानी,
सैनिक सीमा पार अडे।।


घर से ज्यादा देश की चिंता ,
पावन बंधन है हितकारी।


गंगा जमुना सी ये पावनता,
वीरों ने, हिम्मत कब हारी।।


देश की खातिर प्राण तज दिए,
मानवता की , पहरेदारी।


नहीं डरा, बम गोली से भी,
बस  सीमा की रखवाली।।


आन बान की लाज बचा दी , 
लगी हो,प्राणों की भी बाजी ।


करें आरती वीर जवां की ,
जय बोलो भारत माँ की।।



 🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏🇮🇳🙏
*कवि रामबाबू शर्मा ,राजस्थानी,दौसा*


नूतन लाल साहू

बसंत ऋतु
परसा फूल ह झाकत हे
खोखमा ह हांसत हे
ये संकेत हे
बसंत ऋतु आगे
पीयर पीयर चुनरी ओढ़े
खेत में सरसों आबाद हे
लाखडी अउ चना के होरा
गजब के स्वाद हे
परसा फूल ह झांकत हे
खोखमा ह हासत हे
ये संकेत हे
बसंत ऋतु आगे
खाय में दाल भात
चटनी में धनिया मिर्चा पताल हे
भाजी में लाल भाजी
चौलाई अउ पालक के कमाल हे
परसा फूल ह झांकत हे
खोखमा ह हासत हे
ये संकेत हे
बसंत ऋतु आगे
झूम झूम के मयूर ह नाचे
कोयली गाना गावत हे
धोवा लुगरा पहिने चंदा
जग म अंजोर बगरावत हे
परसा फूल ह झांकत हे
खोखमा ह हासत हे
ये संकेत हे
बसंत ऋतु आगे
छत्तीसगढ़ के रहईया ल
कहिथे सबले बढ़िया
सुख अउ शांति से रहना है तो
झन बनव शहरिया
परसा फूल ह झाकत हे
खोखमा ह हासत हे
ये संकेत हे
बसंत ऋतु आगे
नूतन लाल साहू


नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर

बासंती रंग है, बासंती मौसम और बसंत का चढ़ा खुमार।
ऋतुराज बसंत ने वैलंटाइन के नाम पर कैसा चढ़ाया बुखार।
हर कोई टेडी वेडी,चॉकलेट, और गिफ्ट को लिए घूम रहा।
कोई सामने वाली को स्टाइल मार रहा कोई अपनी वाली को ढूंढ रहा।
कोई अपने ही घर में चोरी चोरी चुपके से घूम रहा।
कोई अम्मा बापू के सामने खुद की नजरें चुरा रहा।
कोई नयनों की चितवन चला रहा तो कोई व्हाट्स एप पे लगा हुआ।
कोई हाथ मे  नकली लाल दिल लिए बगीचे में महबूबा को मना रहा।
कोई गुलाब की एक एक पत्ती संग आने न आने की मना रहा।
तो कोई मन ही मन अपनी वैलंटाइन देवी को मना रहा।
..........................
हा हा हा, बस इस ड्रामे की ज्यादा पोल पट्टी नहीं खोलूंगी।
क्योंकि एक साहित्यकारा हूँ,इस नौटंकी पे कुछ न कुछ तो बोलूंगी।


आप सभी का आज का दिन आप सभी के हिसाब से आपके अनुकूल हो इस शुभकामनाओं के साथ🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐🍫🍫🍫🍫🌹🌹🌹🌹
नमस्ते जयपुर से- डॉ निशा माथुर🙏😃👌


किशनू झा "तूफान"

*पुलवामा हमले में शहीद हुये जवानों को विनम्र अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि...............* 


सिंहासन सैनिक के प्रति ,
जब संवेदनहीन हुआ ।
सूरज ,चंदा, तारे ,धरती ,
अम्बर भी गमगीन हुआ।
पुलवामा की धरती भी,
मन ही मन अश्क बहाती है।
कविता लिखती है कलम मेरी ,
मन ही मन रोती जाती है ।


 


जब मां के दिल का टुकडा़,
केवल टुकडे़ में आता है ।
किसी सुहागिन का सुहाग,
जब टुकडो़ं में बट जाता है ।
पुलवामा में पीडा़ जब ,
पीडा़ से अश्क बहाती है ।
कविता लिखती है कलम मेरी ,
मन ही मन रोती जाती है ।


 


 


शादी की तैयारी जब घर ,
के आंगन में होती है ।
कोई लड़की जब शादी के,
 मीठे स्वपन सजोती है।
और सुहागिन होने से पहले  ,
 विधवा हो जाती है।
कविता लिखती है कलम मेरी ,
मन ही मन रोती जाती है ।


 


चित्रेश बिना जब आंगन का,
चित्र उजड़ सा जाता है ।
किलकारी भरती बेटी को ,
पिता देख ना पाता है ।
श्रृंगार शोक से रोता है ,
हिन्दी भी अश्क बहाती है ।
कविता लिखती है कलम मेरी ,
मन ही मन रोती जाती है ।


 



                      रचयिता 
               किशनू झा "तूफान"
                 8370036068


पंकज अंगार

आज की शाम पुलवामा के बलिदानी बेटों को श्रद्धासुमन समर्पित करने के लिए भाई अमित खरे के आदेश पर सेवढा जिला दतिया मध्यप्रदेश में ।।


अपने दिल मे इंकलाब की एक नई बुनियाद रखें ।
सबसे पहले देश रखें हम खुद को उसके बाद रखें।
सुख में हमे बसाने पंकज जिनके जीवन उजड़ गए।
एक मुहल्ला हम यादों में उनका भी आबाद रखें।।


पंकज अंगार
8090853564


पुष्पा अवस्थी "स्वाति"

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
 सुप्रभात


लाल चुनरिया ओढ़ के निकली घर से भोर 
पंछी  देने  लगे  बधाई  गूंज  उठा  है  शोर 
कलियों ने आंखें खोलीं तुम भी खोलो द्वार
"स्वाती" ले के आ गई खुशियों की बौछार 


पुष्पा अवस्थी "स्वाति"


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


नवल सुधांशु

पुलवामा में शहीद अपने घर बेटों को नवल सुधांशु का प्रणाम.



गोद  माँ की, घर  तुम्हारा  पथ निहारे


लोरियों  का  स्वर तुम्हारा पथ निहारे


लौटकर  आये  नहीं  तुम  गांव अपने


ॐ  का   पत्थर  तुम्हारा  पथ निहारे।



तितलियां  पाँखें  तुम्हारा  पथ  निहारें


पेड़  की  शाखें   तुम्हारा  पथ  निहारें


नींव घर की अब तलक खाली पड़ी है


बाप  की  आंखें  तुम्हारा  पथ  निहारें



पीर  बरसाती   तुम्हारा  पथ   निहारे


देह  की  पाती  तुम्हारा  पथ   निहारे


लौटकर आये  नही  तुम  गांव अपने


अधजली बाती  तुम्हारा  पथ  निहारे



द्वार की  चौखट  तुम्हारा  पथ निहारे


लाज का घूंघट  तुम्हारा  पथ  निहारे


लौटकर आये नहीं   तुम  गांव अपने


पास का पनघट तुम्हारा  पथ निहारे।



मन महावर तन  तुम्हारा  पथ  निहारे


किलकता आंगन तुम्हारा  पथ निहारे


लौट कर आये  नही  तुम  गांव अपने


प्यार का सावन  तुम्हारा पथ  निहारे।



वेद  की  पाटी  तुम्हारा  पथ निहारे


गुरु  की   साटी  तुम्हारा पथ निहारे


देश की माटी गले अब लग चुकी है


जन्म की माटी  तुम्हारा पथ निहारे।


                            -नवल सुधांशु


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
      *"पतझड़"*
"देखता ही रहा जीवन में,
पतझड़ संग-
पत्तो की झरन।
बेबस सोचता रहा हर पल,
कब-थमेगी साथी-
जीवन की घुटन।
प्रतीक्षा में मधुमास की,
साथी बढ़ती रही-
जीवन में कुढ़न।
बढ़ती रही पीड़ा पतझड़ की,
साथी मिला नहीं-
मधुमास का संग।
भौरो की गूँजन से साथी,
जीवन में-
मोह हुआ भंग।
चाहत में मधुमास की साथी,
हो गया जीवन में-
प्रतीक्षा का अंत।
देखता ही रहा जीवन में,
पतझड़ संग-
पत्तो की झरन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         14-02-2020


सत्यप्रकाश पाण्डेय

नहीं भूल सकते हम ऐसे वीरों की कुर्बानी



राष्ट्र यज्ञ में आहूत हुए समिधा बनी जवानी
नहीं भूल सकते हम ऐसे वीरों की कुर्बानी


दाम्पत्य सुख को त्याग सांसों में बसी रवानी
छोड़ की सारी चाहत वंदे मातरम की वाणी


प्रण पण से हम करेंगे रक्षा झुके न कभी तिरंगा
राष्ट्र प्रेम अमर रहे हिय में सदभावों की गंगा


पावस शीत और तपन में भी भारत का ध्यान
तेरे अन्न जल से ही जीवन माँ तुझको ही कुर्बान


सरहद के रखवालो तुम्हें कोटिशः करूँ प्रणाम
आज तुम्ही से रक्षित और जीवन है अभिराम।


भारत माता के सपूतों को कोटिशः नमन एवं वन्दन🌸🌸🌸🌸🌸🌸🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


हलधर जसवीर

शोक गीत - पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि
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कैसे कहूँ व्यथा वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।
घात लगा दुश्मन  ने मारा घुसा वक्ष में शूल ।।


दो कुंतल बारूद भरा था ऐसा था विस्फोट ,
भारत माता के सीने पर इतनी गहरी चोट ,
बोटी बोटी बिखर गए हैं अस्थि कलश के फूल ।
कैसे कहूँ व्यथा वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।।1


देश की खातिर वीर हमारे गए निशानी छोड़ ,
थमा गए इक प्रश्न देश को जीवन बंधन तोड़ ,
नींद उड़ा दो अब दुश्मन की हिले पाक की मूल ।
कैसे कहूँ व्यथा  वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।।2


सच्चे श्रद्धा सुमन मांगते मेरे वीर जवान ,
ऐसा हो प्रहार करारा बने पाक शमशान ,
शोणित नदियां बहे पाक में बैरी फांके धूल ।
कैसे कहूँ व्यथा वीरों  शब्द नहीं अनुकूल ।।3


केशर घाटी सुलग रही है बीते सत्तर साल ,
भारत माता ने खोये है अपने लाखों लाल ,
अब बारी बदला लेने की "हलधर"करों न भूल ।
कैसे कहूँ  व्यथा वीरों की शब्द नहीं अनुकूल ।।4


        हलधर -9897346173


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