मधु शंखधर 'स्वतंत्र'* *प्रयागराज*

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷


*विश्वास*
◆मन में उठती भावना इक आस है।
इक सुखद अनुभूति का एहसास है।
राह एक सबको मिलाती है यहाँ,
उसको अपनाता महज विश्वास है।।


◆माँ ने जन्मा लाल को ये प्यार है।
ये सृजन की भावना का सार है।
एक बस विश्वास की डोरी बंधी,
ये ही अनुपम जीव का व्यवहार है।।


◆राह हो मुश्किल तो जीवन आस है।
आस में ही शक्ति का एक वास है।
जो बना दे जिन्दगी को चाह एक
*मधु*  ये मानव का अटल विश्वास है।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
*11.02.2020*
🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹


लता प्रासर

*फागुन मास का स्वागत*


गुनगुनाती कनकनाती हवा लड़खड़ाती हुई
दिन रात बहकाती सबको
अठखेलियां करती हुई
जब से फागुन मास आया सबका हुलास बढ़ाती
मौसम का मिजाज बदलती इठलाती हुई!
*लता प्रासर*


मासूम मोडासवी

उसूलो पण हवे देखावने खातर धरी जाणे,
जगावी मोहमायाना बधां नाटक करी जाणे


अधर पर वात मीठी भाव हसता राखतो मानव
वचनमां वातमां बंधाइने पाछो फरी जाणे


तमे जो साथ आपो तो तमारो हाथ झालीने
धकेलीने बधुं पाछण बहुं आगण वधीजाणे


थयेला कामनो पडघो वधु पाडी जमानामां
चडावी नाम पोतानां दबाणो आदरी जाणे


वधारी भेदभावोने परस्पर  फूट  नाखीने
जगावीने नवा फित्ना जगतने छेतरी जाणे


करीने वात साची हक परस्तीनी मगर मासूम
मफत मणतुं अमर भाणे धरी दामन भरी जाणे।


                         मासूम मोडासवी


नूतन लाल साहू

पुन्नी मेला
तोरण पताका,सजे हे मंदिर म
भीड़ लगे हे, बाहिर भीतरी म
जगमग जगमग जोत जलत हे
हुम धूप अगरबत्ती, बरत हे
सजे हे भगवान राजीव लोचन के दरबार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
आवत हे अवइया ह
जावत हे जवइया ह
माथ मुकुट,गला बनमाला
सजे हे भगवान के दरबार ह
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
छत्तीसगढ़ के भुइया चंदन हे
ये धूर्रा नोहय, बंदन हे
मंदिर मस्जिद,गिरजा गुरुद्वारा
सबो धरम,भाषा के हे मेला
सजे हे भगवान राजीव लोचन के दरबार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
तोर शरण म,बिगड़ी बन थे
तोर कृपा लेे, भाग बदलथे
सबला भक्ति, सुम्मत देबे
तोरेच सबो, संतान हरन
सजे हे भगवान राजीव लोचन के दरबार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
आईस राजिम पुन्नी मेला तिहार
नूतन लाल साहू


अनन्तराम चौबे    ग्वारीघाट जबलपुर

मिलना बिछड़ना
     
रखा था अभी तक 
छुपाये कहां पर 
ये मासूम चेहरा जो 
दिखाया यहां पर
गुलाबी ये गालो की
नागिन से बालो की
ये माथे की बिदिंया
ये कानो की बाली
मासूम से चेहरे पर
निखरी ये लाली
उठती हैं जब भी
ये पलके तुम्हारी
मिलती हैं नजरे
हमारी तुम्हारी
उठाकर झुकाना
नजरे मिलाने का
अच्छा बहाना
उठाने छुपाने में
क्या क्या कह देना
जुवा जो न कह पाये
निगाहो से कहना
ऐसे ही प्यार का
इजहार करना
दिल जो न कह पाये
निगाहों में कहना
आपस में दोनो के
परिचय हुये तो
प्यार से उन्होने
लड्डू भी खिलाये
प्यार की दो मीठी
बाते भी सुनाये ।
दिल में यो दोनो ने
ऐसा डाका डाला
चेहरा वो दोनो का
था भोला भाला ।
सोचा था सो जाऊ
बर्थ पाकर खाली
कैसा वो पल था
जो नजरे  मिला ली ।
उड़ी निदिंया मेरी
जो उठी पलके तेरी
पलके उठाना
पलकें झुकाना
तिरछी निगाहो से
क्या क्या कह देना
मायूस था यो में 
सफर के ही पहले
मुरझाया चेहरा था
मिलने से पहले 
खिल उठा मन
मचल उठा तन
एक हुआ जैसे
दोनो का मन ।
मचलते ये मन को
कब तक और कैसे
नजर को उठाऊँ
या पलके झुकाऊँ
मन ही मन में
कैसे सरमाऊँ ।
बाते जब करती हो
किसी और से भी
मगर दिल धडकता है
करीब मेरे आकर
किसी के करीब होकर
दिल मुझसे मिलाया
जो कि मुझसे बातें
फिर भी तड़फाया ।
पैरो से सिर तक
लगता है लिख दूँ
तारीफो के हर पल
रंगो से भर दूँ
निगाहो ने मिलने से
बहुत कुछ कहा है
शरमो हया का भी
परदा हटा है ।
बातें अभी कुछ
थोडी सी हो जाये
जन्मो जनम की
मुलाकातें हो जाये
जानी पहचानी सी
ये लगती है सूरत
लिखूं और लिखता
ही जाऊँ  बहुत कुछ ।
हमारे इस मिलन को
न भूलेगे कभी हम
कुछ ही समय में
जब बिछड़ जायेगे हम ।
हम दोनो को सफर
में जाना अलग है
बातों ही बातों में
निश्चय हुआ है ।
आखिर यो हमने
दिल क्यो लगाया ।
नजरे मिलाकर
दिल को तड़फाया
तड़फते रहेगें अब
ये दो दिल हमारे ।
बिछड़ना ही था तो
क्यो  मिले दिल हमारे ।
मिलन की ये यादें
न भूलेगे कभी हम
मिलन और जुदाई से
तड़फेगे अब हम
मिलना विछड़ना
यही जिन्दगी है 
मुद्दत से अच्छी
ये दो पल की खुशी है ।
    
   अनन्तराम चौबे
   ग्वारीघाट जबलपुर
      2376/
   मो.9770499027
KAVITA 11TH FEB KE INDORESAMACHAR ME CHAPEGI
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सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
    *"ढ़ाई आखर प्रेम के"*
"बिन प्रेम के साथी ,
जीवन नहीं-
बंज़र भूमि सा लगता ।
पलने लगता अहंकार इसमें,
नीरस हो कर-
बेकार लगने लगता।
पनपने लगती नफ़रत,
जीवन संबंधों को-
साथी खोने लगता।
धन-वैभव सम्पन्नता भी,
दे न पाती सुख-
अकेलापन खलने लगता।
पढ़ लेते जो जीवन में साथी,
ढ़ाई आखर प्रेम का-
जीवन सच लगने लगता।
महक उठती जीवन बगिया,
जीवन सपना -
सच लगने लगता।
अपनत्व होता अपनों में,
जीवन में -
प्रेम दीप जलने लगता।
ढ़ाई आखर प्रेम का साथी,
हर मन में पलने लगता-
जीवन का हर सपना सच लगता।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः            सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः         11-02-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

न आओ अकेली,न जाओ अकेली
********************
********************
प्रणय की पुजारिन, निवेदन है तुमसे,
न आओ अकेली, न जाओ अकेली।


यहां तो गगन के सितारे न आते,
यहां सच अभागे दुलारे न आते,
यहां गीत के हर सपन है प्रिये,
जिन्दगी के सपन भी संवारे न जाते,
यहां विश्व छलना छलेगा, प्रिये,
हर कदम पर न रूठों , न जाओ प्रिये।


तुम्हारे मिलन के  सुहाने क्षण 
मुझे सदा याद आते रहोगे प्रिये।


अगम पथ मेरा, सुगम पथ तेरा
न छोड़ो सुहागिन ये जीवन अंधेरा,
सपन जा रहे हैं कि तुम जा रही हो,
बहुत दूर मंजिल कि जीवन सबेरा,
यहां जिन्दगी भी प्रिये, मौत होगी,
न छोड़ो विरह सिन्धु, तक पर सहेली।


किसे मैं रूलाऊं , किसे मैं हंसाऊं,
रहा दूर तुमसे, किसे मैं बताऊं।


अरी, जिन्दगी मैं तुम्हें आज छोड़ूं,
तुम्हीं अब बताओ कहां राह मोडू,
मुझे हर कदम पर अंधेरा है दिखता,
सुहागिन बताओ कहां नेह जोडू,
मुझे शून्य लगते दिशा के किनारे,
अभी शून्य मेरी हृदय की हबेली।


तुम्हे कह‌ रहा हूं , जरा पास आओ,
मिलन की लगन में प्रिये, मुस्कराओ।।
********************
  कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे मां शारदे
******************
******************
   निर्मल करके तन- मन सारा,
   सकल विकार मिटा दो माँ,
    बुरा न कहूं माँ किसी को ,
    विनय यह स्वीकारो  माँ।


करूणा, विनय से मुझे ,
परिपूरित कर दे हे मां।


      अन्दर  ऐसी ज्योति जगाओ,
      हर  जन का   उपकार करें,
       मुझसे यदि त्रुटि कुछ हो जाय,
       उनसे मुक्ति दिलाओ  माँ।


तुम तो दयामयी हो मां,
हम दीनो पर दया करो।


        प्रज्ञा  रूपी किरण पुँज तुम,
        मैं तो निपट  अज्ञानी हूं।
         हर दो अन्धकार तन- मन का,
          ऐसी मुझ पर कृपा कर दो।।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक मुक्तक


तुम्हारा  रूप  आँखों  से  कभी  भी  दूर  न   होता।
बिना तिरे अब इस दिल को कुछ भी मंजूर न होता।
मिरी हर इक  साँस में  अब तुम्हारा  नाम बसता है।
निहायत  खूबसूरत हो  पर  कभी  गरूर  न  होता।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


कैलाश , दुबे ,

मेरे घाव पर इस तरहा मरहम मत लगाया करो ,


जरा हौले से गिनकर बताया भी करो ,


कहीं ये बन न जाये नासूर तुम्हारी कसम ,


यूँ आहिस्ता आहिस्ता सहलाया न करो ,


कैलाश , दुबे ,


सत्यप्रकाश पाण्डेय

माँ पूर्व जन्मों का सुकृत और मन्नत है
माँ के आंचल में तो बच्चों को जन्नत है


माँ ममता प्यार का अदभुत उदगम है
माँ का ममत्व पाकर रहता कहाँ गम है


सौभाग्यशाली जिन्हें माँ का प्यार मिला
ममता ही नहीं खुशियों का संसार मिला


माँ की मूरत में धरा पर दीखें भगवान है
माँ जैसा और न कोई धरती पै महान है


ममता की जड़ें करें सन्तति का पोषण
स्नेह का पाठ पढ़ाती संस्कारों का रोपण


बच्चे की पीड़ा से जिसका सीना चिरता
थोड़ी सी चुभन देख माँ का लहू गिरता


शब्द नहीं पास मेरे माँ का गुणगान करूँ
कर्ज मुक्त होकर खुद का उत्थान करूँ।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून
हाइकु
11/ 2 /2020


प्रेम चिंतन
तू संसार से मुक्त
ये विचरण।


आनन्द है क्या
समझ,सबको बता
मन का पता।


कर्म का पथ
विलक्षण है सोच
रहे समर्थ।


अच्छा है क्या
सिर्फ सोचना तेरा
सब है मेरा।


रहता भ्रम
नश्वर मिथ्या जग
चलों तो सँग।


पथ कठिन
नही कोई मुश्किल
करो आसान


दृढ़ निश्चय
मोह माया का त्याग
सबके सँग


उसका ध्यान
वैतरणी हो पार
करो उद्धार


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


संजय जैन (मुम्बई)

गुलाब हो या दिल*
विधा : कविता


मेरे दिल में अंकुरित हो तुम।
इसलिए दिल की डालियों,
पर खिलाते हो तुम।
और गुलाब की पंखड़ियों,
की तरह खुलते हो तुम।
कोई दूसरा छू न ले इसलिए, 
कांटो के बीच रहते हो तुम।
पर प्यार का भंवरा कांटों,
के बीच आकर छू जाता है।
जिसके कारण तेरा रूप, 
और भी निखार आता है।।


माना कि शुरू में कांटो से,
तकलीफ होती है।
जब भी छूने की कौशिश,
करो तो तुम चुभ जाते हो।
और दर्द हमें दे जाते हो।
पर साथ ही पाने की,
जिद को बड़ा देते हो।
और दिल के करीब,
तुम हमें ले आते हो।।


देखकर गुलाब और,
उसका खिला रूप।
दिल में बेचैनियां,
बड़ा देता है।
और अपने नजदीक,
ले आता है।
तभी तो रात के,
सपनो से निकालकर।
सुबह सबसे पहले,
अपने पास बुलाता है।
और अपना हंसता,
खिलखिलाता रूप दिखता है।।


मोहब्बत का एहसास,
कराता है गुलाब।
महफिलों की शान,
बढ़ाता है गुलाब।
शुभ अशुभ में भी,
भूमिका निभाता है गुलाब।
तभी तो रोशदिन भी,
मानवता है गुलाब।
इसलिए दिलों जान से,
चाहते है हम गुलाब।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
11/02/2020


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।।।।बरेली।

*तब नाम तेरा कुछ खास*
*होगा।।।।।।।।।।।मुक्तक*


जान लो   कि  जब  दिल 
तुम्हारा साफ होगा।


मान लो   फिर  ये  सबके
आस   पास  होगा।।


तेरे   किरदार  की  अलग
सी  तारीफ    होगी।


सबकी जुबां पर नाम तेरा
कुछ    खास  होगा।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।।।।बरेली।।।*
मोबाइल 9897071046
             8218685464


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली

*आज अहम में मरा जा रहा है*
*आदमी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।*


अहम   के  भाव से  आज  भरा
जा रहा  है आदमी।


प्रेम के अभाव   से   आज   डरा
जा  रहा  है आदमी।।


मेरा किरदार तो तेरे  क़िरदार से
ज्यादा     बेहतर  है ।


ईर्ष्या   के दुर्भाव  से  आज  मरा
जा रहा  है   आदमी।।


*रचयिता।।।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।।।।बरेली

*विविध हाइकु।।।।।।।।।*


प्यार की बात
प्रगाढ़    बनें   रिश्ते
और जज्बात


प्यासा सावन
प्रेम   बिन   अधूरा
ये   तन   मन


लम्बी जुबान
जैसे तीर कमान
काम तमाम


हवा का रुख
बदलता      रहता
दुःख ओ सुख



थकता   मन
तो समझ लो तुम 
कि थका तन


यह सफर
मन से मन तक
लम्बी डगर



तरफ दारी
नहीं ईमानदारी
हो वफादारी



*रचयिता।एस के कपूर*
*श्री हंस।।बरेली*
मो।   9897071046
         8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।।।।बरेली

*तब नाम तेरा कुछ खास*
*होगा।।।।।।।।।।।मुक्तक*


जान लो   कि  जब  दिल 
तुम्हारा साफ होगा।


मान लो   फिर  ये  सबके
आस   पास  होगा।।


तेरे   किरदार  की  अलग
सी  तारीफ    होगी।


सबकी जुबां पर नाम तेरा
कुछ    खास  होगा।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।।।।बरेली।।।*
मोबाइल 9897071046
             8218685464


सुनीता असीम

बेसबब ज़िन्दगी.. गुजारी है।
बस तुम्हारी तलाश जारी है।
***
है नशे में सभी जमाना .अब।
किस तरह की रही ख़ुमारी है।
***
क्यूँ उदासी भरे हुए .तुम हो।
जान मेरी रही .....तुम्हारी है।
***
होश कुछ हैं उड़े हुए ......मेरे।
मस्त आँखों की प्यास तारी है।
***
चढ़ गई जब दिमाग पर जमकर।
फिर हुआ इक गिलास भारी है।
***
सुनीता असीम
११/२/२०२०


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली*

*किस्मत नहीं, कर्म की बात करो।*
*मुक्तक*


हसरतें  जरूर   पालिये  पर
वो बेहिसाब  न हों।


काम  करो  हकीकत  में पर
खाली ख्वाब न हों।।


भाग्य   नहीं  बस    कर्म ही
होता     है  महान ।


हो बात ऊपर उठने की  पर
इरादे खराब न हों ।।


*रचयिता।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली*
मोबाइल       9897071046
                   8218685464


मध्य प्रदेश महिलाओं हेतु नारी रत्न सम्मान 2020

*नारी रत्न सम्मान 2020 केवल संघर्षरत एवम प्रगति शील महिलाएं पूरे विश्व भर में कही की भी हो* अपनी प्रोफ़ाइल कार्य उपलब्धियां भेजे सम्मान हेतु तथा आप *मध्यप्रदेश💐से हो तो अपना जीवन परिचय भेजिये प्रथम अंक "काव्य रँगोली भारत की संघर्षरत एवम प्रयत्नशील महिलाएं मध्यप्रदेश भाग 1" सशुल्क)*
महिला दिवस पर खण्डवा  मप्र में आयोजित कार्यक्रम में 
इस ग्रन्थ का वीमोचन प्रस्तावित है अपना परिचय प्रकाशित करवाना हो तो 15 फरवरी तक भेज सकती है।सम्मान हेतु भी 15 फरवरी तक बायोडाटा भेजेईये प्रूफ सहित।
आशुकवि नीरज अवस्थी काव्यरंगोली हिंदी पत्रिका सम्पादक एवम प्रमुख  श्याम सौभाग्य फाउंडेशन रजि0
9919256950


देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी

सुप्रभात:-


लोग किसी की प्रयासों को  नही गिनते।
सिर्फ उनकी सफलताओं को ही गिनते।


-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
          *"सहारा"*
"सोच बन गई फिर जग में,
जीवन का एक सहारा।
सोचे न सोचे फिर यहाँ,
इससे ही तो वो हारा।।
हार ही में उसकी यहाँ,
मिले जीत का ईशारा।
समझे ना समझे उसको,
साथी किस्मत का मारा।।
अनचाही चाह संग फिर,
जो फिरता मारा-मारा।
भटकनो में संग भटके,
कौन-बनता फिर सहारा?"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः            सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          11-02-2020


राजेंद्र रायपुरी

🤣🤣 दिल्ली चुनाव,एक झलक 🤣🤣


दिल की धड़कन बढ़ गयी,
                     सबकी देखो आज।
जाने किसका सिर झुके,
                  किसके सिर हो ताज।


कुर्सी  ख़ातिर  देखिए, 
                       टपक रही है लार।
सबकी चाहत है यही, 
                      बने  मेरी  सरकार।


ढोल-ढमाके सब लिए, 
                        बैठे    हैं   तैयार।
अंदर-अंदर डर रहे, 
                     हार  न  जाएँ  यार।


हम  ही  तीरंदाज  हैं, 
                     खूब  बजाया  गाल।
लुटिया डूब गयी अगर,
                   होगा फिर क्या हाल।


दिल्ली में बैठे मगर,
                     दिल्ली  लगती  दूर।
जाने किसे वरण करे, 
                      जन्नत  की  ये  हूर।


भले किसी की जीत हो,
                  और  किसी  की हार।
लोकतंत्र   हारे   नहीं, 
                       चाह  हमारी  यार।


              ।।राजेंद्र रायपुरी।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय

कैसे भूलें तोय सांवरे
रोम रोम में तुमही समाये
छोड़ के सारे जग को
एक तुमही हमारे मन भाये


हुआ कृष्णमय जीवन
तुम्ही बने हृदय की धड़कन
शाम सवेरे मेरे कान्हा
तेरे नाम की रहती पुलकन


अपने रंग में रंगों कृष्ण
लगे श्यामल सारा ही जहान
तुच्छ जीव के आश्रयदाता
अपना ये जीवन बने महान।


श्री माधवाय नमो नमः🌸🌸🌸🌸🌸🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


ममता कानुनगो इंदौर

हायकू
५+७+५
सुनो कान्हा,
मेरे अंतर्मन में,
रहते तुम।
**********
मनमोहन,
सांवली सूरतिया,
मन बसिया।
************
मैं जाऊं वारी,
चितवन पे तोरी,
बंसी माधुरी।
****"*********
डाली कदंब,
किये चोरी वसन,
गोपीहरन।
***************
राधारमण,
रास रचाए कृष्णा,
मनभावन।
***************
श्यामाचरण,
कालिया मरदन,
मधुसूदन।
*****************
कंस दमन,
गीता उपदेशक,
धर्मावतार।
*****"************
ममता कानुनगो इंदौर


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