परम् आदरणीया डॉ सरोज गुप्ता जी हिंदी विभागाध्यक्ष शासकीय कला एवम वाणिज्य महाविद्यालय सागर मध्य प्रदेश जी जो कि इस कार्यक्रम की प्रमुख है निर्णायक गई और काव्य रंगोली परिवार की विशिष्ट सहयोगी भी ऐसी महनीय विभूति की प्रेरणादायक उपस्थित को नमन करते हुए पूरे पत्रिका परिवार की ओर से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जो कि आपने इस कार्यक्रम को उत्कृष्टता प्रदान करने हेतु समय दिया।श।
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
असली कोरोना योद्धा
*इस कहानी को जरूर पढ़िए यह सत्य कथा नही साहस की पराकाष्ठा है इसे पढ़कर जो विचार उतपन्न हो उनको इस समूह में पोस्ट कर सकते है* https://chat.whatsapp.com/FBKTJoR6IJGF83FY8f9CIh
#शिव_का_आत्मबल l
हिंदी के कुलीन साधक आँशुकवि नीरज अवस्थी जी की नजर उसपर पड़ी पर पड़ी l उन्होंने मुझसे जैसा बताया था, वह बिल्कुल उतना ही अद्भुत, अनोखा, प्यारा था l वह सिर्फ शरीर से ही सुन्दर, नहीं दिल से भी सुन्दर था l शारीरिक बल की बात तो नही कह सकता हुँ, लेकिन उसके भीतर गजब का आत्मबल था l रचनाकार की पुस्तक की कम्पोर्जिंग करने के लिए उसे चुना गया, तो त्रुटियां ढूढ़ने और सही कराने का कार्य भी रचनाकार का ही हुआ lअब रचनाकार शिव से संपर्क में था l जी मै बात कर रहा हुँ, उसी शिव की जिसका आत्मबल एक विशाल पर्वत की तरह है l रचनाकार का अगला प्रश्न था कि कब मिलोगे बेटा? तो उसका उत्तर हुआ, सप्ताह में तीन दिन, और शेष दिन भी जरुरी हुआ तो चार बजे शाम के बाद l तो फिर अन्य दिनों में क्या करते हो? बरबस मुख से निकल गया l सर जी शेष तीन दिन डायालीसिस कराने जाता हुँ, चेहरे पर ना कोई दबाव, ना कोई शिकन l मुँह से बरबस निकल गया.. वाह l आत्मविश्वास के चरम पराकाष्ठा को देखकर रचनाकार एक दम अवाक, और स्तब्ध रह गया l रचनाकार को बिल्कुल विश्वास नही हो रहा था, जटिल गुर्दा रोग से पीड़ित शख्स का इतना मजबूत आत्मबल l
आर्थिक बेबसी किसी पहाड़ से कम नही है , मगर वह भी उसकेआगे नतमस्तक है, उसे तोड़ने की कोशिश कर रही होगी, लेकिन वह वज्र है, नही टूटेगा l उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का आभार जिसका अंशदान इस प्रदीप्त दीप लव को जलाने के लिए तेल सा हुआ l लेकिन उसकी यात्रा लम्बी है,मंजिल अभी काफी आगे है, संघर्ष लम्बा था l खैर उसके प्रति रचनाकार के मन में दिनों दिन प्रेम बढ़ता गया l अक्सर रात को सोते वक्त जब नीरज जी से रचनाकार उसकी बात करता तो दोनों उसके प्रति विह्वल होकर कारुणिक भाव से भर जाते l दोनों साहियकार अपने अपने अनुसार शिव का साहित्य अपने दिलों में रचते l
अचानक शिव के एक फोन ने रचनाकार को डरा दिया l शिव ने बताया कि सर जी, वह कोविड पॉजिटिव हो गया है l रचनाकार डर गया l उसके मन में अनेक अशांकाओ ने जन्म ले लिया लेकिन शिव तो अब भी वैसा ही था l उसका आत्मबल आज भी उसके साथ था l वह लगातार बोले जा रहा था कि वह बस कुछ दिन पी जी आई में रहेगा और एक दो सप्ताह में स्वस्थ होकर आ जाएगा l लेकिन रचनाकार डरा था, क्योंकि वह साहित्यिकार के साथ साथ स्वास्थ बिभाग से जुडा भी तो था l लेकिन शिव किसी चिकित्सक से ज्यादा सजग और जानकर हो गया था l वह तो हर दिन मौत को मात देता और अपने को विजेता साबित करता l अगले दश दिनों में शिव ने करोना को भी मात दे दिया l रचनाकार रोज उसको फोन करता l उसका हाल चाल लेता l लेकिन एक दिन रात को आये उसके फोन से एक आवाज निकली, सर जी मैंने करोना को हरा दिया l मुझे आज विश्वास हो गया था कि मनुष्य हारता है हिम्मत नहीं l हिम्मत तो जीतती ही जीतती है l हम इस योद्धा की क्या मदद करेगे l ईश्वर उसकी मदद आगे बढ़कर कर रहा है l हाँ हमें उसके आत्मबल को बढ़ाने की आवश्यकता है और उसके लिए जन सहयोग , भी अपेक्षित है, l जो हमें देना है l अंत में एकबार फिर कहुगा, कि उसका आत्मबल मजबूत ही नही, वज्र सदृश है l
रचनाकार ने यह सब लिखते हुए मन में एक बार और सोचा कि आत्मबल से भरे योद्धा के साथ हमें चलना होगा, क्योंकि हमें उसके आत्मबल को टूटने नही देना है l हमें उसके आत्मबल का कीर्तिमान बनते देखना है l रचनाकार की लेखनी और शब्द उसके शॉप के प्रमुख को भी धन्यवाद दे रहे थे , जिसकी हथेली एक श्रेष्ठ संरक्षक की तरह उसे उठाये रखी थी l
रचनाकार और उसका साहित्य इस योद्धा से असीम स्नेह करता है l इस लिए उसने उसे अपनी इस कथा का नायक चुना और ईश्वर से प्रार्थना किया कि हे ईश्वर! आप मेरे शिव के आत्मबल को इसी तरह और अधिक मजबूत किये रखना l
©®राजेश_कुमार_सिंह
लखनऊ, उप्र, ( भारत )
+91 94152 54888
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17
सब जन भजहिं अहर्निसि रामा।
बिनय-सील-सोभा-गुनधामा ।।
पंकज लोचन,स्यामल गाता।
प्रभु प्रतिपालक सभ जन त्राता।।
सारँग धनु निषंग धरि बाना।
संतन्ह रच्छहिं प्रभु भगवाना।।
काल ब्याल,प्रभु गरुड़ समाना।
भजहु राम प्रभु धरि हिय ध्याना।।
भ्रम-संसय-तम नासहिं रामा।
भानु-किरन इव प्रभु अभिरामा।।
रावन-कुल जनु बीहड़ कानन।
रामहिं अनल कीन्ह फुँकि लावन।।
अस प्रभु भजहु सीय के साथा।
कर जोरे झुकाइ निज माथा।।
समरस राम अजहिं-अबिनासी।
उन्हकर भजन बासना-नासी।।
राम-दिनेस उगत चहुँ-ओरा।
भे प्रकास जल-थल-नभ-छोरा।।
भवा अबिद्या-रजनी नासा।
अघ उलूक जनु छुपे अकासा।।
कामइ-क्रोध-कुमुदिनी लज्जित।
लखि प्रकास रबि गगन सुसज्जित।।
लहहि न सुख गुन-काल-चकोरा।
कर्म सहज मन-मत्सर-चोरा।।
मोहहि-मान-हुनर नहिं चलई।
खुलै दिवस मा इन्हकर कलई।।
सभ बिग्यान-ग्यान जनु पंकज।
बिगसे धरम-ताल-रबि दिग्गज।।
दोहा-उदित होत रबि कै किरन,बढ़हिं ग्यान-बिग्यान।
काम-क्रोध-मद-लोभ सभ,छुपहिं उलूक समान।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
प्रियदर्शिनी तिवारी
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर मेरे द्वारा स्वरचित कविता
*शीर्षक.."इस मिट्टी की भाषा है हिन्दी"*
इस मिट्टी की भाषा है हिन्दी,
जन जन की आशा है हिन्दी,
भारत मां की सेवा को तत्पर,
त्याग की परिभाषा है हिन्दी।
गीत कहानी काव्य सुनाती,
बच्चों का यह मन बहलाती,
लोरी की मीठी धुन में यह,
मधुर मधुर किलकारी गाती।
शान और गौरव इससे ही है,
सम्मान बड़ों का इससे ही है,
साहित्य ज्ञान भी इससे ही है,
शुभ मंगल गान भी इससे ही है।
पुष्पों के पंखुड़ियों जैसी,
हिन्दी बोली प्यारी लगती,
मिलन हो या हो चाहे बिछुड़न,
मातृभाषा ही न्यारी लगती।
बच्चों की तोतली बोली में,
हंसी, मजाक और ठिठोली में,
हिन्दी ही तो रंग जमाती,
सभी दीवाली और होली में।
इसका मान हम सभी बढ़ाएं
आओ कदम से कदम मिलाएं,
मातृभाषा हिन्दी की खातिर,
उत्थान हेतु हम आगे आएं।
रचयिता
प्रियदर्शिनी तिवारी
निशा अतुल्य
सार
20.2.2021
जीवन का सार
किसने समझा
किसने जाना
भाग रहे सब
हो स्वयं से बेगाना ।
डोर हाथ में उसके बंधी है
जब चाहे वो हमें नचाए
हम खुश है सोच सोच कर
जीवन को है हमें ही चलाए ।
जैसी उसकी मरजी होती
जीवन राह उस ओर ही मुड़ती
अच्छा बुरा तो सबको पता है
फिर भी पथ से क्यों गिर जाना ।
भाव हमारे होते हैं वैसे
जैसे ईश कठपुतली नचाते
रंगमंच ये दुनिया सारी
हम बस अपने पात्र निभाते ।
कर अपने किरदार को पूरा
समय हुआ ईश हमें बुलाते
न कुछ व्यर्थ हुआ न सँजोया हमने
सब को छोड़ एक दिन चले जाते ।
स्वरचित
निशा अतुल्य
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
सप्तम चरण (श्रीरामचरितबखान)-16
दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।
राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।
निर्मल जल सरजू बह उत्तर।
घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।
अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।
गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।
नारी-पनघट इतर रहाहीं।
पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।
राज-घाट अति उत्तम रहऊ।
बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।
सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।
देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।
इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।
रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।
बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।
इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।
अवधपुरी जग पुरी सुहावन।
बाहर-भीतर अति मनभावन।।
रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।
पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।
छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,
कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।
मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,
सोपान निरमल जल सरोवर।
कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,
अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।
पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,
पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।
दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।
आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-16
दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।
राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।
निर्मल जल सरजू बह उत्तर।
घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।
अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।
गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।
नारी-पनघट इतर रहाहीं।
पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।
राज-घाट अति उत्तम रहऊ।
बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।
सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।
देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।
इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।
रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।
बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।
इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।
अवधपुरी जग पुरी सुहावन।
बाहर-भीतर अति मनभावन।।
रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।
पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।
छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,
कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।
मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,
सोपान निरमल जल सरोवर।
कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,
अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।
पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,
पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।
दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।
आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
9919446372
एस के कपूर श्री हंस
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।आँसू कोई मामूली चीज़ नहीं*,
*कोई अनकही दास्तान हों जैसे।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
आँसू तो मानो जैसे अनकहा
बयान हैं।
खुशी गम का मानो तो जमीं
आसमान हैं।।
आँसू मोती हैं लफ्ज़ हैं और
हैं दर्द भी।
बहते मानो पीछे लिये जैसे
दास्तान हैं।।
आँसू वो शब्द हैं जिन्हें कागज़
कलम मिल न सका।
यह वो सैलाब जो दिल के
भीतर सिल न सका।।
दर्द और खुशी का पैमाना ये
छलका हुआ।
गम का वह फूल है आँसू
जो खिल न सका।।
मुकाम मिलने न मिलने दोनों
का सबब आँसू हैं।
हर बूंद में छिपी कहानी
ऐसा गज़ब आँसू है।।
नहीं कह कर भी बहुत कुछ
कहते हैं आँसू।
खुशी और गम दोंनों में बहे
ऐसा अजब आँसू है।।
जब दिल और दिमाग दबाब
कुछ सह नहीं पाता है।
जब जिन्दगी से मिला जवाब
कुछ कह नहीं जाता है।।
फूट पड़ते हैं आँसू इक दरिया
सा बन कर।
जब पूछने को कोई सवाल
भी रह नहीं आता है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।*
मोब।। 9897071046
8218685464
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
सजल(मात्रा भार-16)
बाग एक गुलजार चाहिए,
जिसमें रहे बहार चाहिए।।
कभी न रूखा होए जीवन,
एक अदद बस प्यार चाहिए।।
आपस में बस रहे एकता,
ऐसा ही व्यवहार चाहिए।।
सत्य-अहिंसा-मानवता ही,
जीवन का आधार चाहिए।।
रहे स्वच्छता ध्येय हमारा,
ऐसा उच्च विचार चाहिए।।
जो भी हैं असहाय व रोगी,
उचित उन्हें उपचार चाहिए।।
घृणा-भाव का हो विनाश अब,
प्रेम-भाव-विस्तार चाहिए।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
निशा अतुल्य
मातृभाषा दिवस
21.2.2021
मातृभाषा मेरा अभिमान है
मातृभाषा जीवन का ज्ञान है
मिल जाएगा सब कुछ तुम को
करो सम्मान ये ही शान है ।
करो संरक्षण इसका
ये माता की सिखाई जुबान है
सम्मान दिल से हो इसका
ये जीवन का आधार है ।
ये ही भाषा अपनी ऐसी
जो देती माँ सम प्यार है
अपनत्व भरा इसमें ऐसा
प्रान्त की ये पहचान है ।
संवेदना भरी इसमें मन की
मानवता से भरी ये महान है
अहसास कराती अपनत्व का
ये भरी दुपहरी ममता की छाँव हैं ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
अनिल गर्ग
उखड़ती ज़िन्दगियों को,
वो अक्सर संभाल लेता है !
अच्छे अच्छों को,
मौत के मुँह से निकाल लेता है !!
न वो हिन्दू देखता है,
न कभी मुसलमान देखता है !
इंसा का साथी है वो,
हर शख्स में बस इंसान देखता है !!
केस कितना भी गंभीर हो,
वो हिचकिचाता नहीं कभी !
मुकद्दमे की पेचीदगी देखकर,
वो सकुचाता नहीं कभी !!
उसके हाथों में जो हुनर है,
बखूबी जानता है वो !
अपने पेशे को ईश्वर की,
पूजा मानता है वो !!
जब भी जाता है वो अदालत,
अपने ईष्ट को याद करता है !
सफल हो जाए मुकद्दमा,
यही प्रार्थना करता है !!
केस कितना भी बड़ा हो,
वो जी जान लगा देता है !
मुवक्किल को जिताने में,
वो पूरा ज्ञान लगा देता है !!
अगर हो जाए सफल तो,
हजारों दुआएँ लेता है !
अगर वो हार जाए तो,
लोगों का क्रोध सहता है !!
खरी खोटी वो सुनता है,
फिर भी खामोश रहता है !
अपनी असफलता का उसको,
बहुत अफसोस रहता है !!
वो जानता नहीं किसी को,
मगर धीरज बंधाता है !
निरंतर कर्म के पथ पर,
वो बढ़ते ही जाता है !!
उसे मालूम है कि जिन्दगी,
तो भगवान ने दी है !
पर करे जन की सेवा वह
यह उसकी भी हसरत है ! !
अनिल गर्ग, कानपुर
सुषमा दीक्षित शुक्ला
हिन्दी से तुम प्यार करो
हिंदुस्तान के रहने वालों ,
हिंदी से तुम प्यार करो ।
ये पहचान है मां भारत की,
हिंदी का सत्कार करो ।
हिंदी के विद्वानों ने तो ,
परचम जग में फहराए।
संस्कार के सारे पन्ने,
हिंदी से ही हैं पाए ।
देवनागरी लिपि में अपनी,
छुपा हुआ अपनापन है ।
अपनी प्यारी भाषा हिंदी,
भारत मां का दरपन है ।
हिंदुस्तानी होकर तुमने ,
यदि इसका अपमान किया ।
तो फिर समझो भारत वालों ,
खुद का ही नुकसान किया।
हिंदुस्तान के रहने वालों,
हिंदी से तुम प्यार करो ।
यह पहचान है माँ भारत की ,
हिंदी का सत्कार करो ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला
रवि रश्मि अनुभूति
9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '
🙏🙏
सपने सज गये
**************
छायी चहुँ दिशि उमंग तरंग , पी ली सभी ने जैसे भंग
सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग
बजे अब तो ढोल - मंजीरे , गूढ़ बात हो तेरी - मेरी
टोलियाँ सजी आयीं अब तो , बार - बार डालें ये फेरी
बोलें सभी प्रेम की बोली , , रहे गा फाग भी संग - संग .....
सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग .....
प्रेम - प्रीत की लगन लगी अब , सपने अपने गये अभी सज
बात भाईचारे की करें , फहरायें कामयाबी का ध्वज
ऐसी हो एकता हमारी , लोग रहेंगे अभी तो दंग .....
सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग .....
लुभाता है सौंदर्य हमको , गुनगुनाती जागती उमंग
सपने सज गये अंग रंग , बज रही लो कहीं जलतरंग
मिलन हो सजन से अब सबका , सपने सज गये प्रेमिल रंग .....
सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के रंग .....
छायी चहुँ दिशा उमंग तरंग , पी ली सभी ने जैसे भंग .....
सभी ऊर्जस्वित प्रेम संग , लो सुनो अभी फाग के रंग .....
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(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '
21.2.2021 , 3:21 पीएम पर रचित ।
मुंबई ( महाराष्ट्र )
€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€
🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*दोहे*
वासंतिक छवि(दोहे)
सुरभित वातावरण है,कोकिल-कंठ सुरम्य।
वासंतिक परिवेश में,प्रकृति-छटा अति रम्य।।
अलि-गुंजन अति प्रिय लगे,अति प्रिय सरित-तड़ाग।
पुष्प-गंध प्रिय नासिका,प्रिय आमों की बाग।।
सरसों से शोभा बढ़े,धरा-वस्त्र प्रिय पीत।
बार-बार मन यह कहे,आ जा प्यारे मीत।।
गुल गुलाब,टेसू खिले,आम्र-मंजरी गंध।
चहुँ-दिशि गंध प्रसार कर,बहती पवन-सुगंध।।
तन-मन प्रियतम याद में,विरही मन अकुलाय।
वासंतिक परिवेश भी,सके न अग्नि बुझाय।।
रवि-किरणें अति प्रिय लगें,चंद्र लगे बहु नीक।
पर,विरही मन को लगे,जैसे वाण सटीक।।
रति-अनंग का मास यह,मधु-मधुकर-मधुमास।
प्रकृति-छटा अति रुचिर है,प्रगति-प्रकाश-विकास।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
विनय साग़र जायसवाल
ग़ज़ल
अपना जलवा ज़रा सा दिखा दीजिए
चाँद का शर्म से सर झुका दीजिए
कह सकूँ आपसे प्यार करता हूँ मैं
ऐसा माहौल तो कुछ बना दीजिए
एक बीमारे-उल्फ़त है सामने
उसको उसकी दवाई पिला दीजिए
एक मुद्दत से डूबे हैं हम प्यार में
आज सारे ही पर्दे हटा दीजिए
चोरी चोरी तो मिलते ज़माना हुआ
अब तो खुलकर जहां को बता दीजिए
हर तरफ़ तीरगी दिल के आँगन में है
प्यार की शम्अ फिर से जला दीजिए
दिल उदासी में *साग़र* है डूबा हुआ
प्यार की इक ग़ज़ल ही सुना दीजिए
🖋️विनय साग़र जायसवाल
14/2/2021
मन्शा शुक्ला
परम पावन मंच का सादर नमन
सुप्रभात
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
कहे वेद वाणी
नमो शूल पाणी
नमो सच्चिदानन्द
दाता पुरारी।
निराधार के हो
तुम आधार ज्योति
तुलसी के मानस के
मर्मज्ञ मोती
दानियों मे अग्रगण्य
औढ़रदानी महादेव
शम्भु है शत् शत् नमामि
नमामि,नमामि ,है शत् शत्
नमामि,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ,,।।
जय भोलेनाथ🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर
नूतन लाल साहू
गूढ़ रहस्य
व्यक्ति क्या है
ये महत्वपूर्ण नहीं है
परन्तु व्यक्ति में क्या है
ये बहुत महत्वपूर्ण है
अंदर मन का खोल ताला
निज से पहचान हो जायेगा
वाणी सत्य और पावन हो तो
बढ़ गई,जीवन की शान समझो
जिसने भी छोड़ा,सुख दुःख का चिंतन
समझो,भगवान है उसके सनमुख
बांटे ज्ञान के हीरे मोती
इसमें कभी भी,कमी नहीं होती है
व्यक्ति क्या है
ये महत्वपूर्ण नहीं है
परन्तु व्यक्ति में क्या है
ये बहुत महत्वपूर्ण है
परदा दूर करे,आंखो का
भगवान से नाता जोड़
जग की ममता को जिन्होंने भी छोड़ा
भगवान का मिल जायेगा सहारा
सत्य नाम का प्याला,भर भर कर
खुद पीये और सबको पिलावे
सच कहता हूं,प्यारे
विषयो का विष मिट जाता है सारा
भक्ति बिना,प्रभु जी नहीं मिलता
मन का कष्ट,कभी नहीं टलता
मेरी तेरी के भरम,छोड़ दो
कण कण में,प्रभु जी नजर आयेगा
व्यक्ति क्या है
ये महत्वपूर्ण नहीं है
परन्तु, व्यक्ति में क्या है
ये बहुत महत्वपूर्ण है
नूतन लाल साहू
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-10
रमारमन प्रभु रच्छा करऊ।
सरनागत-रच्छक तुम्ह अहऊ।।
भुजा बीस रावन-दस सीसा।
राच्छस सकुल हतेउ जगदीसा।।
प्रभु तुम्ह अहहु अवनि-आभूषन।
धनु-सायक-निषंग तव भूषन ।।
भानु क किरन-प्रकास समाना।
नाथ तेज तव धनु अरु बाना।।
तुमहिं करत निसि-तम कै नासा।
मद-ममता अरु क्रोध बिनासा।।
जे नहिं करहिं प्रीति पद-पंकज।
रहहिं मलिन-उदास ते सुख तज।।
रुचिकर लगै जिनहिं प्रभु-लीला।
मान-लोभ-मद प्रति मन ढीला ।।
सो साँचा सेवक प्रभु होवै।
करै पार भव-सिंधु,न खोवै।।
अरु बिचरै जग संत की नाई।
बिनू मान-अपमान लखाई ।।
राम क सत्रु अहहि अभिमाना।
जनम-मरन औषधी समाना।।
नाथ सील-गुन-कृपा-निकेता।
राम महीप दीन जन-चेता।।
करउ नाथ रच्छा तुम्ह मोरी।
देवहु अचल भगति मों तोरी।।
दैहिक-दैविक-भौतिक तापा।
राम क कथा हरै परितापा।।
सुनै जे छाँड़ि कथा आसक्ती।
ओहिका मिलै मुक्ति अरु भक्ती।।
राम-कथा बिबेक दृढ़ करई।
बिरति-भगति प्रबलहि बहु भवई।।
मोह क नदी पार जन जावहिं।
चढ़ि के तुरत भगति के नावहिं।।
दोहा-निसि-बासर तहँ अवधपुर,कथा राम कै होय।
मगन सुनहिं पुरवासिनहिं,अंगदादि-हनु सोय।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
भारत के इक्कीस परमवीर ग्रन्थ का लोकार्पण
*शौर्य की भाषा का कालजयी ग्रन्थ है भारत के इक्कीस परमवीर-वी के सिंह*
मन्ना शुक्ला
परम पावन मंच का सादर नमन
.... सुप्रभात
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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ढ़ाई आखर प्रेम में, निहित जगत का सार।
प्रेम बिना रीता लगें, जग जीवन आसार।।
त्याग समर्पण भावना,परहित सेवा भाव।
पावन प्रेम स्वरूप से, सजा रहें मन गाँव।।
प्रेम दिवस मनाइये, बाँध प्रीति की डोर।
द्वेष भाव मन के मिटें, नाच उठें मनमोर।
डगर प्रेम की कठिन है, पग पग बिखरें शूल।
प्रेम सुधा बरसात से ,खिलतें हिय में फूल ।।
पावन बन्धन प्रेम के, बँध जाते भगवान।
प्रेम भाव महिमा बड़ी, करें सदा गुणगान।
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मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर
निशा अतुल्य
पुलवामा दिवस
14.2.2021
💐🙏🏻💐
श्रद्धा सुमन
समर्पित तुम्हें
ओ वीर मेरे
शहीदी दिन
पुलवामा के वीर
तुम्हें नमन ।
कर्तव्य निष्ठ
अनुपम है शौर्य
समर्पित हैं ।
दुश्मन कांपे
तुम्हारे ही शौर्य से
वीर सिपाही।
झुकाते शिश
मातृभूमि के लिए
खड़े हैं तने ।
तुम्हारी धरा
आसमान तुम्हारा
यहाँ से वहाँ ।
डोलते रहें
सागर को चीरते
तेज नजर ।
तुम्हें नमन
समर्पित हैं भाव
वीर नमन ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
डॉ. राम कुमार झा निकुंज
दिनांकः १३.०२.२०२१
दिवसः शनिवार
छन्दः मात्रिक
विधाः दोहा
विषयः वेदना
शीर्षक इठलाते लखि वेदना
इठलाते लखि वेदना , खल सम्वेदनहीन।
झूठ लूट धोखाधड़ी , धनी विहँसते दीन।।
लावारिस क्षुधार्त मन , देख फैलते हाथ।
आश हृदय कुछ मिल सके ,कोई बने तो नाथ।।
आज मरी लखि वेदना , दीन दलित अवसाद।
दया धर्म करुणा कहाँ , ख़ुद होते आबाद।।
मरी सभी इन्सानियत , मरा सभी ईमान।
हेर फेर कर लाश में , नहीं कोई पहचान।।
देह वसन आवास बिन , रैन बसेरा रात।
बंज़ारन की जिंदगी , शीत ताप बरसात।।
दरिंदगी चहुँओर अब , लूट रहे जग लाज।
कायरता निर्लज्जता , निर्वेदित समाज।।
आहत जन आतंक से , देश द्रोह अंगार।
मार काट दंगा करे , दया वेदना मार।।
फूट रहे निर्वेद स्वर , लोभ मोह मद स्वार्थ।
रिश्ते नाते सब मरे , भूले सब परमार्थ।।
मातु पिता गुरु श्रेष्ठ को , तजी आज सन्तान।
जिस माली पुष्पित चमन,दी उजाड़ मुस्कान।।
सीमा रक्षक जो वतन , देते निज बलिदान।
प्रश्नचिह्न उन शौर्य पर , उठा रहे नादान।।
नाम मात्र कलि वेदना,पा निकुंज मन पाद।
भूल सभी पुरुषार्थ को , तहस नहस बर्बाद।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक
नई दिल्ली
एस के कपूर श्री हंस
*पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित।।* *14 फरवरी*
*शीर्षक।।शहीद हमारे अमर महान हो गए।*
*।।मुक्तक।।*
नमन है उन शहीदों को जो
देश पर कुरबान हो गए।
वतन के लिए देकर जान
वो बे जुबान हो गए ।।
उनके प्राणों की कीमत से
ही सुरक्षित है देश हमारा।
उठ कर जमीन से ऊपर
वो जैसे आसमान हो गए।।
*रचयिता।।। एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।प्रेम से जीत सकते हर*
*दिल का मुकाम हैं।।*
मन में प्रेम तो सुख
बेहिसाब है।
बस क्रोध कर देता
काम खराब है।।
क्रोध में जीत नहीं मिले
है हार इसमें।
साथ आ गई घृणा तो
सब बर्बाद है।।
करो दुआ सबके लिए कि
दवा समान है।
महोब्बत का छोर तो जमीं
आसमान है।।
जरूरत नहीं किसी तीर
और तलवार की।
प्रेम से हम जीत सकते हर
दिल का मुकाम हैं।।
हम जन्म नहीं पर चरित्र
के जिम्मेदार हैं।
हर किसी के मन में चित्र
के जिम्मेदार हैं।।
क्रोध लेकर आता शत्रु
और चार चार।
जीव में घटित हर विचित्र
के जिम्मेदार हैं।।
किरदार करता है फतह
हर दिल में।
चेहरे से मिलती ना जगह
हर दिल में।।
प्रेम की डोर बहुत ही
बारीकओ नाजुक।
इससे मिले रहने के वजह
हर दिल में।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।*
मोब।।। 9897071046
8218685464
*मातृ पितृ पूजन दिवस।।।।।।*
*(क) हमारी माता।हमारी जीवनदायिनी।हाइकु*
1
माता हमारी
चांद सूरज जैसी
है वह न्यारी
2
माता का प्यार
अदृश्य वात्सल्य का
फूलों का हार
3
माता का क्रोध
हमारे भले लिये
कराता बोध
4
घर की शान
माता रखती ध्यान
करो सम्मान
5
माँ का दुलार
भुला दे हर दुःख
चोट ओ हार
6
माता का ज्ञान
माँ प्रथम शिक्षक
बच्चों की जान
7
घर की नींव
मकान घर बने
लाये करीब
8
त्याग मूरत
हर दुःख सहती
हो जो सूरत
9
प्रभु का रूप
सबका रखे ध्यान
स्नेह स्वरूप
10
घर की धुरी
ममता दया रूपी
प्रेम से भरी
11
आँसू बच्चों के
माँ ये देख न पाये
कष्ट बच्चों के
12
प्रेम निशानी
माँ जीवन दायनी
त्याग कहानी
*(ख)हमारे पिता।हमारे पालनहार।हाइकु*
1
पिता हमारे
संकट में रक्षक
ऐसे सहारे
2
पिताजी सख्त
घर पालनहार
ऊँचा है तख्त
3
पिता का साया
ये बाजार अपना
मिले ये छाया
4
पिता गरम
धूप में छाँव जैसे
है भी नरम
5
घर की धुरी
परिवार मुखिया
हलवा पूरी
6
पिता जी माता
हमारे जन्मदाता
सब हो जाता
7
पिता साहसी
उत्साह का संचार
मिटे उदासी
8
पिता से धन
हो जीवन यापन
ऋणी ये तन
9
पिता कठोर
भीतर से कोमल
न ओर छोर
10
शिक्षा संस्कार
होते जब विमुख
खाते हैं मार
11
पिता का मान
न करो अनादर
ये चारों धाम
*रचयिता। एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली* 9897071046/8218685464
नूतन लाल साहू
त्याग
सभी सिद्धिया मिलेंगी
यदि मौन धारण किया
इस रहस्य की बात को
कौन समझ सका है
आता है सबका शुभ समय
फिर काहे को घबराता है
लिख के रख लें एक दिन
होगा,काम तुम्हारा
पर,जरा जरा सी बात पर
तू क्यों रोता है
त्याग के बिना
कुछ भी संभव नहीं है
क्योंकि सांस लेने के लिए भी
पहले सांस छोड़ना पड़ता है
सारी बातें, कह चुके है
तुलसी सूर कबीर
बचा खुचा सब लिख गए
केशव और रहीम
भूतकाल इतिहास है
वर्तमान है उपहार
जिसने झेला ही नहीं है
दुःख संकट संघर्ष
वह क्या खाकर पायेगा
जीवन में उत्कर्ष
सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र से सीखो
स्वप्न में ही सब कुछ त्याग दिया
आया प्रलयंकारी संकट
पर ईमान को न बिकने दिया
वो नर से नारायण बन गया
याद करो समय बहुत बीत गया
पर उसे कौन भूल सका
त्याग के बिना
कुछ भी संभव नहीं है
क्योंकि सांस लेने के लिए भी
पहले सांस छोड़ना पड़ता है
नूतन लाल साहू
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-9
निरगुन-सगुन राम कै रूपा।
भूप सिरोमनि राम अनूपा।।
निज भुज-बल प्रभु रावन मारे।
सकल निसाचर कुल संहारे।।
मनुज-रूप लीन्ह अवतारा।
अघ-बोझिल महि-भार उतारा।।
जय-जय-जय सिय-राम गुसाईं।
सरनागत-रच्छक,जग-साईं ।।
माया बस मग मा जे भटकहि।
नर-सुर-रच्छक जे मग अटकहि।।
नाग-चराचर जे जग आहीं।
नाथहि कृपा जबहिं ते पाहीं।।
भवहिं मुक्त ते तीनहुँ तापा।
जगत-बिदित नाथ-परतापा।।
मिथ्या ग्यानी अरु अभिमानी।
नाथ-कृपा-महिमा नहिं जानी।।
ताकर होहि अधोगति लोका।
होंहिं भले ते देव असोका।।
तजि अभिमान भजै जे रामा।
ताकर कष्ट हरैं श्रीरामा ।।
जिन्ह चरनन्ह कहँ सिव-अज पूजहिं।
बंदि-बंदि जिन्ह सुर-मुनि छूवहिं ।।
छुइ चरनन्ह जिन्ह उतरी गंगा
छुवत जिनहिं भइ नारि उमंगा।।
अस चरनन्ह कर करि अभिवादन।
मिलहिं अनंतइ सुख मन-भावन।।
बेद कहहिं प्रभु बिटप समाना।
मूल अब्यक्त जासु जग जाना।।
हैं षट कंध,त्वचा तरु चारी।
साखा जासु पचीसहि भारी।।
पर्ण असंख्य सुमन तरु अहहीं।
मीठा-खट्टा दुइ फल लगहीं।।
लता एक आश्रित तरु आहे।
फूलत नवल पल्लवत राहे।
अस तरु,बिस्व-रूप भगवाना।
नमन करहुँ अस तरु बिधि नाना।।
ब्रह्म अजन्म अद्वैत कहावै।
अनुभव गम्यहि बेद बतावै।
तजि बिकार मन-बचन-कर्म तें।
करि गुनगान सगुन ब्रह्म तें ।।
जे जन करहीं प्रभू-बखाना।
पावैं करुनाकर गुनखाना।।
दोहा-अस बखान करि राम कै, गए बेद सुरलोक।
तुरत तहाँ सिव आइ के,बिनती करहिं असोक।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
निशा अतुल्य
अर्जुन कहता"एक कुरुक्षेत्र मेरे अंदर भी है"
13.2.2021
मन के अंदर का झंझावत केशव
पूरा एक कुरुक्षेत्र मेरे अंदर भी है
ये खड़े हुए जो रणक्षेत्र में
सब मेरे मन के अंदर ही हैं ।
मार इन्हें रण जीत लिया तो
राज्य मैं पा जाऊँगा
पर हे केशव मार इन्हें मैं
अपने से गिर जाऊँगा ।
हँस केशव ने देखा अर्जुन को
बोले थोड़ा मुस्कुराकर
हे पार्थ, क्यों द्रौपदी भूल गए
जिसका अपमान भरी सभा हुआ ।
बैठे थे धुरंधर बहुत वहाँ
थे ओंठ सभी के सिले हुए
कोई पितामह था उनमें
और कोई गुरु महान वहाँ ।
सास ससुर सिंहासन बैठे थे
राज्य कर्मचारी सभी वहाँ
नहीं किसी के ओंठ हिले तब
तुम अपमानित झुके वहाँ।
राज्य के लिए नहीं लड़ो तुम
है अंदर जो कुरुक्षेत्र तुम्हारे
ज्वाला उसकी कुछ तेज करो
पति धर्म निभाओ अपना
और कुरुक्षेत्र को खत्म करो ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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