डॉ० धाराबल्लभ पांडेय, 'आलोक' अल्मोड़ा, 

विषय-  बंजारा 
विधा- मुक्तक


यायावर बंजारे दिन उनके होते हैं।
खोजी विचार वाले जो सीमित होते हैं।
यद्यपि होती क्षमता कुछ अनगिन लोगों में, 
जनहित, परहित भाव कुछों में ही होते हैं।।


खोज सत्य व ज्ञान की जो भी करते थे।
खोकर अपना सब कुछ यह पथ चलते थे। 
ज्ञानी, योगी, तापस, ऋषि व महापुरुष,
यायावर बन भ्रमण विश्व का करते थे।।


निज सुख वैभव  लेकर जो संसार विचरते। 
वे बस अपना स्वार्थ भाव लेकर ही चलते।
विश्व धरा परिवार मान जो विपदा हरते,
वे गिनती के महापुरुष ही जग में बनते।। 


मैं-मेरा का भाव जिन्होंने जग हित देखा।
अपनापन का भाव प्रजा के हित में रखा।
विश्व शांति आध्यात्म ज्ञान को जन-जन मन तक,
"अलख निरंजन" भाव लिए घर-घर को देखा।।
***********


डॉ० धाराबल्लभ पांडेय, 'आलोक', 
29, लक्ष्मी निवास, कर्नाटक पुरम, 
मकेड़ी, अल्मोड़ा, 
उत्तराखंड, भारत।
मोबा० 9410700432


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"त्याग -योग"


त्याग और योग
वियोग और संयोग
वियोग में संयोग
संयोग में वियोग
योग का संयोग
योग का वियोग
वियोग में योग
योग में वियोग
बात अटपटी है
समझ में आ जाये तो चटपटी है
यह ऐसे ही है जैसे-
जीवन में मरण
और मरण में जीवन
उत्थान में पतन
और पतन में उन्नयन
सयन में जागरण
और जागरण में सयन
दिन में रात
और रात में बारात
ज्ञान में अज्ञान
और अज्ञान में ज्ञान
बात पुनः अटपटी
लेकिन फिर भी चटपटी
पठन में तन्द्रा
तन्द्रा में निद्रा
निद्रा में स्वप्निल पठन
कल्पना लोक का गठन
दुःख और आनन्द
वीरगति और परमानन्द
सबकुछ सम्मिश्रण है
अशरण और शरण है
कष्ट में आराम है
पीड़ा में विश्राम है
मौज मेँ भी कष्ट है
पीड़ा स्पष्ट है
सुख दुःख अलग नहीं हैं
हाँ और नहीं विलग नहीं हैं
वैज्ञानिक धरातल हो
दार्शनिक वायुतल हो
धरा से उड़ रहे हैं
अनन्त में बूड़ रहे हैं
माया से परे
मोह से उबरे
आत्ममंगल पथ पर
लोक रथ पर
सारथी के संग
आध्यात्मिक रंग
आत्मविजय की कामना
सबके प्रति शुभ कामना
सादर नमन
सबका अभिनन्दन।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"समर्पण"


बिना भाव के नहीं समर्पण
बिना मंत्र कैसे हो तर्पण ?
मन का नियमित शुद्धिकरण हो
सुन्दर मन बिन नहिं उत्कर्षण।


चलना सीखो सुन्दर बनकर
रहना सीखो मानव बनकर
गन्दे भावों में क्या जीना ?
कहना सीखो गुरुतर बनकर।


देना सीखो दानी बनकर
कर सम्मान सम्मानी बनकर
करो अपेक्षा कभी न मित्रों
जीना सीखो ज्ञानी बनकर।


सहज समर्पण मूल्यवान है
जग प्रेमी ही ज्ञानवान है
सकल वंधनों की दूरी पर-
खड़ा निराला आत्मज्ञान है।


खुद को खो कर बनत समर्पण
परहित में है शिव-आकर्षण
सकल लोक के आत्मसात से
उठता उर में ज्वार सहर्षण।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"दृष्टि मेँ स्व बैठा है"


बिना अवलोकन  के संकलन नहीं हो सकता है,
बिना संकलन के संरचन नहीं हो सकता है,
हम जो देखते हैं, वही बनते हैं,
दोष देखनेवाले, दोष का ही संग्रहण करते हैं,
वैसा ही हो जाते हैं,
समाज में उपहास का पात्र बन जाते हैं,
लोग हेय दृष्टि से देखने लगते हैं,
गुण और अवगुण सर्वत्र विखरे हैं,
क्यों नहीं हम गुण का संकलन करते हैं ?
दोष देखकर क्यों दूषित बनते हैं?
हम दृष्टि हैं,
स्व की वृष्टि हैं।
आइये सुन्दर स्व का निर्माण करें,
उत्तम पुरुष को प्रणाम करें।
खुद की बुराई और दूसरों की अच्छाई देखें,
विश्व की भलाई करें।
इसी तरह से रहना सीखें,
सौहार्द का वातावरण बुनना सीखो,
दूब की तरह जमना सीखो,
अम्रुत कलश ले चलना सीखो,
अपने भीतर के सौंदर्य को चुनना सीखो,
पुरुषोत्तम की बस्ती में बैठना सीखो,
चाहो तो बन सकते हो,
स्व का अमर इतिहास गढ़ सकते हो,
अच्छा बनकर बना सकते हो,
कलुषित कालिमा को मिटा सकते हो।
अच्छा देखो
सुन्दर बनो
उत्तन रचो।
यही अभीष्ट है,
अंतस में बैठा इक मदनमोहन इष्ट है।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मैँ मतिमंद मूढ़ अज्ञानी"


        (चौपाई)


मैं मतिमंद मूढ़ अज्ञानी।
सारी दुनिया बहुत सयानी।।


मुझसे ज्ञानी  हर प्राणी है।
यह जगती वीणापाणी है।।


मैँ सबके समक्ष नतमस्तक।
सीख रहा हूँ पढ़ना पुस्तक।।


ज्ञान पिपासु सहज मैँ भाई।
करता हूँ सबकी सेवकाई।।


थोड़ा सा भी मुझे पिला दो।
मुझ मरते को अद्य जिला दो।।


अति मति भ्रमित सुनो मैँ भाई।
ज्ञान रश्मि  दे बनो सहाई।।


मुझ मूरख की बाँह पकड़ लो।
मोह निशा से ऊपर कर दो।।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"जन्म संगिनी"


मृत्यु जन्म की सबसे बड़ी संगिनी है, 
जन्म के साथ आती है,
जीवन भर रहती है,
और फिर एक दिन
साथ छोड़कर जल देती है।
साथ-साथ रहते हुए भी
जीवन से कोई ममता नहीं,
जीवन के प्रति कोई विनम्रता नहीं,
सदैव निष्ठुर और क्रूर,
मद से भरपूर,
घमंड में चकनाचूर,
संवेदना से अत्यंत दूर।
पर मृत्यु ही तो सच्चा दर्शन है,
ह्रदय की धड़कन है,
भविष्य को वर्तमान में समेट लेने का प्रेरक है,
अच्छे कार्य को संपन्न करने के लिए सच्ची उपदेशक है।
मृत्यु तो हमेशा कहती रहती है--
मैँ कभी भी आ सकती हूँ,
तुम्हें समतल बना सकती हूँ,
सावधान रहना,
सूझ-बूझ से चलना,
बुद्धिमत्ता का परिचय देना,
नैतिकता की रक्षा करना,
मानवता का संवरण करना,
अपने सारे कार्यों का विवरण रखना,
तुम्हारे जीवन का दस्तावेज देखा जायेगा,
सबकुछ यमराज के समक्ष रखा जायेगा।
जीवन को अनुशासित बनाओ,
सत्कर्मों को हृदय से लगाओ,
सत्कर्म ही जीवन है,
गमकते हुये फूलों का मनमोहक चमन है।
दुष्कर्म करोगे तो वर्वाद हो जाओगे,
जन्मजन्मांतर तक पश्चाताप करोगे,
कोई बचा नहीं पायेगा,
दण्ड अवश्य मिलेगा,
स्वयं अपनी रक्षा करो,
संमार्ग पर चलते रहो।
मैँ मृत्यु हूँ,
अनवरत स्तुत्य हूँ।
जो मुझे नहीं मानता है,
वही दलदल में फँसता है,
शरीर अमर नहीं,
यह तो मृत्यु का ग्रास है,
 मृत्यु हमेशा जीवन के पास है ।


रचनाकार०डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"अनुशासन"


यदि स्वतः अनुशासन हो तो
प्रशासन का कोई अर्थ नहीं रह जातेगा,
बाह्य बल व्यर्थ हो जातेगा।
अनुशासन ही सबसे बड़ा धर्म है,
जीवन का सच्चा मर्म है,
यह गर्मजोश है,
सर्वोत्तम होश है,
प्रगति के लिये वांछित है,
स्वयं प्रकाशित है।
अनुशासनहीन जीवन अनर्थकारी होता है,
अत्याचारी व व्यभिचारी होता है।
अनुशासन महान सफलता की कुंजी है
जीवन की असली पूँजी है।
अनुशासन जीवन का सबसे बड़ा पर्व है,
मानव अस्मिता का सौन्दर्य है।
जीवन का तीर्थ है,
सच्चा मित्र है।
यह सदा लाभदायक है,
जन नायक है।
यह सार्वभौमिकता को आत्मसात करता है,
मानवीय दुर्वलताओं पर आघात करता है।
जो इसे नहीं मानता है
वह निरा जड़ है,
दूषित कण है।
अनुशासन को महत्व दें,
नियमों का अनुगमन करें,
सम्मानित जीवन का वरण करें।
सौहार्द का वातावरण बनायें,
सुन्दर सहज सुविधाजनक शीतल छायादार वृक्ष उगायें।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


संजय जैन (मुम्बई)

*निगाहें*
विधा: कविता


निगाहें बहुत कातिल है,
किसी को क्या मरोगी।
और इसका इल्जाम तुम,
न जाने किस पर डालोगी।
जबकि कातिल तुम खुद हो,
क्या तुम अपने को पहचानोगे।
और अपनी कातिल निगाहों से,
और कितनो को मरोगी।।


तेरा यौवन कितना अच्छा है,
जो सब को लुभाता है।
देख तेरे होठो की लाली,
दिलमें कमल सा खिलता है।
चलती हो लहराकर जब तुम,
दिल फूलों से खिलते है।
देखने तेरा हुस्न को यहां,
लोग इंतजार करते है।।


टूट जाएगी लोगो की आस,
जब तू किसीकी हो जाओगी।
और छोड़कर अपना घर,
उसके शहर चली जाओगी।
और चाँद सा सुंदर चेहरा,
उसके आंगन में चमकाओगी।
चाँद देखकर वो भी,
तुम से शर्मा जाएगा।
और तेरा दीवाना वो
हमेशा के लिए हो जाएगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
30/4/2020


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून


रामायण
30.4.2020


रामायण चरित्र आधारा
पढ़ो अगर जीना सिखाता
पिता वचन माता की आज्ञा
शिरोधार्य है सिखलाता।


भाई त्याग की कथा निराली
भक्ति की है ये रस प्याली
राज धर्म की पराकाष्ठा
नीति धर्म है सिखलाती।


अहिल्या के सत की कहानी
भीलनी के बेरों की रवानी
निषाद राज केवट के सङ्गा
तार दिए विधना के सङ्गा।


राम हुए एक पत्नी व्रत धारी
शूपर्णखा की जिद्दी जिससे हारी
रावण कुल का नाश हो गया
या रावण ने पीढ़ी स्वयं की तारी ।


नर वानर का सँग हुआ कैसे
सागर पुल बांधा हिय जैसे
वियोग भार्या से आकुलाये 
लाये जीत वानर सँग जैसे।


अधर्मी का नाश बताती 
राज्य अभिलाषा नही जताती
दिया राज्य उसी के कुल को
सर्वधर्म समभाव सिखाती ।


लाये सिया मन हर्षाये
राज्य अभिषेक हुआ सब गुण गाये
लोगो की कथनी कुछ ऐसी
संतप्त जिया सुन अकुलाए।


राम स्वयं में मंथन करते
राजधर्म की है कठिनाई।
सीता जान दुःख हिय का
किया त्याग पिय राज्य का।


रामायण की कथा निराली
त्याग प्रेम की सुन्दर वाणी
जिसने मन से इसको ध्याया
भव से स्वयं को पार लगाया।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।*

*तोड़ा अनुशासन तो   जीवन*
*जाने पर सवाल मत कीजिये।*


हम सुरक्षित, समाज सुरक्षित
देश सुरक्षित, यही विधान है।
जो माने महामारी अनुशासन
को वही तो  सच्चा  इंसान है।।
मिलने से बनती कड़ी टूट भी
जाती  है यह  दूरी  बनाने से।
नहीं मानी तो   जान  लीजिये
कि    बस  मौत ही  अंजाम है।।


अपनी और अपनों  की  आप
रोज   ही     फिक्र     लीजिये।
हर सावधानी बरतने  के लिए
अपनों से रोज़ जिक्र कीजिये।।
खुद रहें सचेत और  आप  हर
किसी को भी सजग करते रहें।
तोड़ने को आप  लॉक  डाउन
कोई तर्क कुतर्क  मत  दीजिये।।


जाने  अनजाने    करके  गलती
आप जीना मुहाल मत कीजिये।
करके गलती यूँ  ही पछताने का
आप   मलाल भी  मत  कीजिये।।
घर में ही रहें अभी जानबूझ कर
बबाल   मत   लें   मोल     कभी।
नहीं माने तो फिर जिन्दगी जाने
पर कोई सवाल भी मत कीजिये।।


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।*
मो      9897071046
          8218685464


सत्यप्रकाश पाण्डेय

आज जगत संतप्त है स्वामी
घर ही कारावास बना
कष्ट मुक्ति का न कोई रास्ता
कोरोना अविश्वास बना


दहशत सी बैठ गई है जन में
रहता है सदा भयभीत
और कोई नहीं आश्रय दिखता
बनो मोहन तुम्ही मीत


भक्त वत्सल हे नटवर नागर
सुनो"सत्य"का अनुरोध
अब तो त्राण दिलाओ भगवन
हो गया है शक्ति बोध।


राधे राधे श्याम मिला दे🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


सत्यप्रकाश पाण्डेय


राजेंद्र रायपुरी।

🤣   लाकडाउन और हम   🤣


लाकडाउन ने  सिखाया  है बहुत,
मय बिना जीना हमें भी आ गया।


बंद  हैं  जब से  घरों में  यार हम,
सच कहूॅ॑ खाना  बनाना  आ गया।


कौन कहता कुछ हमें आता नहीं,
देख लो  पोछा  लगाना  आ गया।


लाकडाउन  क्यों  कहें  बेकार है,
धो हमें  कपड़े  सुखाना आ गया।


छुट्टियों   में  भागते   कश्मीर  थे।
अब हमें घर यार  रहना आ गया।


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


सुनीता असीम 

चाहत में तेरी नाम ये बदनाम ही तो है।
सर पर मेरे जो है लगा इल्जाम ही तो है।
****
इक बार जो देखे हमें कुछ मुस्करा के तू।
अरमान पूरे हो गए .....आराम ही तो है।
****
मैं इश्क का दूँ नाम अपनी इस मुहब्बत को।
दुनिया की नज़रों में मगर असकाम् ही तो है।
****
करता रहूं बेशक मुहब्बत उम्र भर उससे।।
ये आशिकी मेरी रही    निष्काम ही तो है।
****
तूने कबूली जो मुहब्बत क्या कहूं फिर मैं।
तेरी पनाहों में मिला     इकराम ही तो है।
***
सुनीता असीम 
२९/४/२०२०


डॉ. निर्मला शर्मा  दौसा, राजस्थान

" पायल की झनकार"
गोकुल धाम की कुंज गलिन मैं सिर पर लेकर मटकी
संग सखिन के जा रहीं राधा अखियाँ उन पर अटकी
चंचल चपल चाल हिरनी सी रूप बड़ा मनमोहक
कमल से कोमल चरण पड़े भूमि होवे नतमस्तक
चली कामिनी जैसे घटे यामिनी पथ उज्ज्वल हो जावे
पैरों मैं बजती पायलिया हृदय मैं प्रीत राग पनपावे
पायल की झनकार से टूटा वनभूमि का स्तब्ध मौन
पतझड़ मैं आई है मानो बसन्त बहार छाई चहुँ ओर
पायल के घुँघुरु जब खनके राग मल्हार छिड़ जाए
हुआ तरंगित हृदय कान्ह का संग मैं मिल रास रचाये
छम-छम ,छनन छनन की धुन पर बदरा भी घिर आये
कृष्ण राधिका के महारास मैं संगीत की धुन बिखराये
पायल की झनकार के साथ बजता मृदंग धा- धा धिन
तिरकिट -तिरकिट थाप पड़े झनके पायल की मधुर धुन
धीरे-धीरे पाँव उठाती नव वल्लरियाँ चली हैं जातीं
वन मैं झींगुरों की प्रतिध्वनि मैं पायल की झनकार
सुर मिलाती।
✍️✍️  डॉ. निर्मला शर्मा
 दौसा, राजस्थान


संजय जैन( मुम्बई)

*गौ को बचाना है*
विधा: गीत 


बनकर गौ माता के रक्षक,
बचाये कसाईयों से इन्हें।
लेकर एक गाय को गोद,
उसे जीवन आप दे सकते हो।
और जीव हत्या के इस,
खेल को आप रोक सकते हो।
और दुनियां में जीओ जीने दो को,
पुनः जिंदा हम कर सकते है।।


गौ के अंदर कितने,
देवी देवता बास करते है।
अनेको ग्रन्थों में इसके,
उदाहरण पढ़ने को मिलते है।
तभी तो हर जाती और,
धर्म में गौ पूजनीय है।
तो क्यो न इनकी हिंसा,
रोकने में हम भागीदार बने।।


तो आओ आगे बढ़कर,
करे संकल्प अब से हम।
नहीं काटने देंगे एक भी,
गौ को अब आगे से।
इसी कार्य को करने का बीड़ा,
उठाया है दयोदय महासंघ ने।
इसमें हम सब शामिल होकर,
करे अपने पुण्य का सृजन।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन( मुम्बई)
29/04/2020


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार

*गाय माता की ममता*
********************
गाय माता ममता का भंडार है,
रूका सूखा भोजन करके,
हमको दुग्ध पान करती है,
हमारा इससे जन्म जन्म का नाता।


समुद्र मंथन से प्रकट हुई है,
वेदों ने इसकी महिमा गाई,
इसके दूध दही घी से
पंचगव्य बनता है,
यह रोग मुक्ति दिलाता है।


धन दौलत के लालच में हम,
गाय को बूचड़खानो में बेच रहे हैं,
अपने ही हाथों से गौ माता को,
बूचड़खानों में कटवा रहे हैं।


गौ माता का यूं अन्याय ना करो,
पृथ्वी पर पापाचार बड़ रहा है,
यदि विपत्तियों से छुटकारा पाना है
गौ को राष्ट्र माता बनाना है।
********************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


निशा"अतुल्य"

हाइकु
29.4.2020


*प्रभु प्रणाम*


प्रभु प्रणाम
वंदन चंदन धूपदीप
करो स्वीकार 


त्राहिमाम है
क्यों कर जग सारा 
करो उद्धार।


निर्मल मन
दो भक्ति शक्ति ज्ञान
जग कल्याण।


कठिन घड़ी
पुकार रहे द्वार
दे दो सयंम ।


निर्गुण तुम
या सगुण हो तुम
भटका मन।


करो निदान
है ईश्वरीय सत्ता
मन ये जाने ।


तर्क वितर्क
है सभी निरर्थक
तुम अनन्त।


भटका मन
चाहे अब निदान
आया शरण ।


साँसों का लेखा
है तुम्हारे ही पास
सब ये जाने।


आई शरण
प्रभु करो उद्धार 
दो मुझे ज्ञान ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जिसने हृदय की आँखों से,विश्व रूप को जान लिया।
अन्तर्मन की चेतनाओं से, परमब्रह्म को पहचान लिया।।


बिन देखे ही नटवर नागर के, बाल रूप का गुणगान किया।
जग वंदन हृदय चंदन  की, छवि को हिय में स्थान दिया।।


सौभाग्यशाली कौंन जगत में, श्याम सखा सूरदास सा।
रवि रश्मियां भी फीकी लगतीं, अनुपम दिव्य प्रकाश सा।।


किया आलोकित ज्ञान दीप से, प्रकाशमान हुआ जग सारा।
नक्षत्र मध्य ज्यों चन्द्र ज्योत्सना, कवियों बीच चमके वो तारा।।


सूर सखा श्याम की जय🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *" अतिथि"*
"अतिथि तुम अतिथि हो ,
मत आना अभी तुम-
कर न पायेगें सत्कार तुम्हारा।
अपनी और अपनो की रक्षा को,
अतिथि अभी घर में ही रहना-
सुरक्षित रहना होगा उपकार तुम्हारा।
कुछ दिनों की बात हैं साथी,
बदलेगे हालात-
मिलन होगा हमारा तुम्हारा।
दूर रहकर भी साथ है ,
मिलन की रहे आस -
हृदय हो प्रभु वास तुम्हारे।
सत्य है साथी अतिथि देव तुल्य,
देवत्य की खातिर.ही -
घर में रहना जरूरी अतिथि तुम्हारा।
अतिथि तुम अतिथि हो,
मत आना अभी तुम-
कर न पायेगे सत्कार तुम्हारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःः
        29-04-2020


राजेंद्र रायपुरी

तालाबंदी  पर  कुछ दोहे  -----


तालाबंदी  में  नहीं, बाहर  रखना  पाॅ॑व।
बचे रहोगे  रोग से, और  मिलेगी  छाॅ॑व।


नहीं जरूरी बहुत तो,बाहर मत जा यार।
चौराहे  पर है पुलिस, पड़  जाएगी मार।


चाह सुरक्षित हम रहें, और रहे परिवार। 
तालाबंदी  में  रहो, कहती  है  सरकार।


कहना जो माने नहीं, भुगत रहे वे लोग। 
कोरोना ने डॅस लिया,मरने के अब योग।


कुछ ही दिन की बात है,कहना मानो तात। 
घर के अंदर ही रहो, होवे  दिन या रात।


              ।। राजेंद्र रायपुरी।।


डॉ. निर्मला शर्मा दौसा, राजस्थान

"अतिथि"
सनातन धर्म सदा ही कहता है
अतिथि देवो भवः यही प्रथा है
सम्पूर्ण वसुधा को कुटुम्ब मानता है
लगाता गले सभी को प्रेम करता है
अतिथि आगन्तुक और कहलाता पावणा 
हे देव!आशीष रखो हम पर यही है कामना
तन मन धन से समर्पण भाव रखकर
अतिथि सेवा मै सर्वस्व समक्ष रखकर
करते अतिथि सेवा स्वीकार देव कीजिये
घर मैं कभी न हो अनादर किसी का आशीष दीजिये
जिस घर मैं हो धर्म का वास वहीं लक्ष्मी है
उस घर पर सदैव प्रभु की कृपा ही बरसी है
प्रेम से की गई अतिथि सेवा ही सर्वोपरि है
चखकर मीठे बेर खिलाये प्रेम से वो माता शबरी है
कुरु आतिथ्य छोड़ मनमोहन ने दिखलाया
प्रेम भरा आतिथ्य ही सदा प्रभु के मन को भाया
✍️✍️डॉ. निर्मला शर्मा
🙏🙏 दौसा, राजस्थान


ममता कानुनगो इंदौर

विधा -हायकू
विषय-परछाई


मैं साथ तेरे,
चलती रही सदा,
साथ ना छोड़ा।
~~~~~~~~~~~~
जीवन पथ,
अधूरा तुम बिन,
साथी है हम।
~~~~~~~~~~~~~~
हमराही हो,
परछाई है हम,
एक-दूजे की।
~~~~~~~~~~~~~~~
गठबंधन,
जनम जनम का,
मनमोहन।
~~~~~~~~~~~~~~~
छाया मैं तेरी,
तुम हो नरोत्तम,
श्यामसुंदर।
~~~~~~~~~~~~~~~~
हे सांवरिया,
छबि बनूं मैं तेरी,
हे प्रियतम।
~~~~~~~~~~~~~~~~
ममता कानुनगो इंदौर


संजय जैन (मुम्बई)

*पहचान बनो*
विधा : कविता


स्वंय के काम करके,
बनो स्वाभी लम्बी तुम।
तभी जिंदगी महकेगी,
स्वंय के किये कार्यो से।
जो तुमने किये है कार्य,
वो सारी दुनियां देखेगी।
उन्ही कामो से तुम्हें,
मरणउपरांत याद किये जाओगे।।


ये ऐसा युग है लोगो,
जहाँ कोई किसीका नही।
सभी अपने स्वार्थी में,
सदा लिप्त रहते है।
तभी तो भाई बहिन भी,
माँ बाप से लड़ते है।
और सभी मर्यादाओ को, 
ताक पर वो रखते है।।


बस पैसा ही उनका,
माई बाप होता है।
जिसकी खातिर वो लोग,
छोड़ देते अपने माईबाप।
परन्तु भूल जाते है,
आने वाले भविष्य को।
तुम्हारे साथ भी लोगो,
यही दौहराया जाएगा।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
28/04/2020


कवि✍️डॉ. निकुंज

🌅सुप्रभातम्🌅



भोर रोग से हो रहित , हो   विकास उजियार। 
रहें    प्रेम  सद्भाव।  से , रहे    अमन  संसार।। 


अंत   नहीं   मन चाह का , रोको उसे बलात। 
रुके योग   अभ्यास से , नहीं   रुके जज़्बात।।


भृगुनंदन जमदग्नि सुत ,  षष्ठ विष्णु अवतार।
मातु   रेणुका    लाडला , करे   जगत उद्धार।।  


महावीर    मंगल    करें , आंजनेय   बलबान। 
हरो सकल  जग आपदा ,करुणाकर हनुमान।। 


जय गणेश विघ्नेश प्रभु , लम्बोदर  हर  रोग।
शिवनंदन गिरिजा तनय, मंगलेश शुभ योग।। 



पुरुषोत्तम   मर्याद  का , राघव    जगदाधार।
सियाराम भज रे मनुज , कौशलेय  जग तार।। 


कैलाशी भुवनेश प्रभु , महाकाल  गिरिजेश । 
नीलकंठ शंकर  शिवम , गंगाधर        देवेश।। 


कवि✍️डॉ. निकुंज


सत्यप्रकाश पाण्डेय

जरा सोचिए...............


जरा सोचिए उनके लिए हे करुणा आगार
राष्ट्र समाज की खातिर न खुद से भी प्यार


मौत समक्ष खड़ी उनके नहीं डाले हथियार
बन के रक्षक मानवता के निशदिन है तैयार


कोई चिकित्सक कोई प्रहरी कोई जमादार
कोरोना को हरायेंगे नहीं मानेंगे हम हार


भूख प्यास आतप सह  नहीं त्यागे संस्कार
राष्ट्र मुसीबत में नहीं आये छोड़े है परिवार


मातृभूमि के लाडलों का करो सभी सत्कार
यही प्रार्थना ले माधव "सत्य"आया तेरे द्वार।


युगलरूपाय नमो नमः 🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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