हलधर जसवीर

कविता -किसान कवि 
---------------------------
मैं राही हूँ तूफानों का ,खुद अपनी राह बनाता हूँ ।
दुनियाँ अवरोध बिछाती है ,मैं ठोकर मार हटाता हूँ ।।


कांटों की तो परवाह नहीं ,पर फूलों से डर लगता है ।
मरुथल का तो मैं आदी हूँ ,रस गूलों से डर लगता है ।
आँधी की तेज हवायें तो ,मंजिल आसान बनाती है ।
अंगार साथ ले चलता हूँ ,पिघलाकर प्यास बुझाता हूँ ।
मैं राही हूँ तूफानों का ,खुद अपनी राह बनाता हूँ ।।1


है आँख मिचौली जीवन से ,सौ बार मरा फिर आया हूँ ।
मरघट का मैं वासिन्दा हूँ ,कुछ दिन उधार के लाया हूँ ।
है मौत सहेली सी मेरी ,जीवन से रार ठनी रहती ।
इस जन्म मरण के घेरे में ,मैं बार बार फस जाता हूँ ।
मैं राही हूँ तूफानों का ,खुद अपनी राह बनाता हूँ ।।2


पैरों में छाले ज्यों पड़ते ,पग की गति बढ़ती जाती है ।
चट्टानें आगे को बढ़कर ,पैरों को खुद सहलाती है ।
दिन का रस्ता दिखलाती है ,खुद नागिन सी काली रातें ।
अवरोधों को आधार बना ,मैं गीत राष्ट्र के गाता हूँ ।
मैं राही हूँ तूफ़ानों का ,खुद अपनी राह बनाता हूँ ।।3


सुख दुख सिक्के के पहलू हैं,तो इनका गम करना कैसा ।
ऊपर सबको खाली जाना ,तब साथ न जाएगा पैसा ।
छंदों में द्वंद्व बांधने को , हलधर "की कलम दौड़ती है ।
आशीष मिला धरती मां का,यूं गीत नए लिख  पाता हूं ।
मैं राही हूँ तूफ़ानों का ,खुद अपनी राह बनाता हूँ ।।4


हलधर -9897346173


डॉ0 नीलम अजमेर

*यादों का मरकज़*
********************
आज भी याद है वो
पुश्तैनी गाँव का वो मकां
जहाँ मेरी खुशियों के मरकज़ की खुशबू आज भी मौजूं हैं
वो छायालोक का 
गुंजलक, है मेरे रुहानी आशियां को,अपने पाश में लपेटे बड़े प्यार से,
खोल रखा है बस 
झरोखा एक यादों का,
जहाँ हर रोज़ रात के 
सन्नाटों में,
दिल की चादर ओढ़ 
रुह मेरी घूम आती है,
और छूकर उन
दीवारों को
यादों से लिपट जिंदगी पा आती है
हारने नहीं देती 
फिर मुझे 
जीवन की किसी भी
लड़ाई में,
हर वक्त सुरक्षित
महसूस करती हूँ
अपने आप को,
मानों मेरे बुजर्गों की
रुहानी चादर ने
अपने आशीष के
आगोश में ले
संवारी हो मेरी रुह।


          डा.नीलम


कुमार कारनिक

*******
    कुमार कारनिक
(छाल, रायगढ़, छग)
"""""""
   मनहरण घनाक्षरी
     नवभोर आई है
     """""""""""""""""'
डाली   जब  लहकी है,
चंदन   सी   महकी  है,
चिड़ियाँ भी  चहकी है,
        नवभोर आई है।
🌞💐
शहर   गली   व   गाँव,
सुख की  बिखरे छाँव,
तरूणों  के  मन  भाव,
       छाई तरूणाई है।
🌷💐
बित गई निशी  काली,
सूरज की फैली लाली,
नित  सुख  देने  वाली,
        चली पूरवाई है।
🌞🌹
पहला  ये  काम  करो,
सबका   प्रणाम  करो,
लेख   अविराम  करूँ,
    सभी को बधाई है।



                  *******


डाॅ शेषपालसिंह 'शेष' ,आगरा-

🍏🌻  *प्रकाश*  🌻🍏
             *******


           [ गीतिका ]


 ब्रह्म   हूँ,  ब्रह्माण्ड  हूँ  मैं,
 तत्व    हूँ,  आकाश     हूँ।
 सूर्य  हूँ  मैं,  चन्द्र   भी  हूँ,
 भव्य - दिव्य   प्रकाश  हूँ।


 क्षय  तमस  के   हेतु  मेरा,
 तय    सतत   सत्कर्म   है,
 ज्ञान  का भंडार  व्यापक,
 बुद्धि   का   विन्यास   हूँ।


 अंतहीन, अनंत    हूँ    मैं,
 सत्य  अटल   विशेष  भी,
 हूँ   बटोरे   शक्ति   महती,
 अंधकार     विनाश     हूँ।


 मैं  पुजारी  हूँ  समय   का,
 सेव्य    हूँ    साक्षात     मैं,
 सृष्टि  का  मधुमास  भी हूँ,
 मैं    नहीं     खग्रास     हूँ।


 शारदा   हूँ   मैं, विशद   हूँ,
 वर्त -  भूत  -  भविष्य  भी,
 लोक-जग-त्रयलोक का मैं,
 देव     हूँ,   इतिहास     हूँ।


 बहिर्अंतर्वास       मैं      हूँ,
 ज्ञान     हूँ,   विज्ञान      मैं,
 चक्षु      हूँ      अंतर्विवेकी,
 खोलिए     आभास     हूँ।


 ओ3म्  मैं  हूँ, व्योम  मैं हूँ,
 व्याप्त    हूँ     सर्वत्र     मैं,
 आस     हूँ,   विश्वास    मैं,
 शाश्वत-सतत  उल्लास हूँ।


          ●●>><<●●


 *● डाॅ शेषपालसिंह 'शेष'*
      'वाग्धाम'-11डी/ई-36डी,
      बालाजीनगर कालोनी,
      टुण्डला रोड,आगरा-282006
      मोबाइल नं0 -- 9411839862


🍏🌻🍀🌹💙🌹🍀🌻🍏


रोहित मित्तल रोहित लखीमपुर

🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
नीलकंठ डमरू वाले जिनके हैं सब चाहने वाले....
🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
नीलकंठ डमरू वाले........
पीते हैं विष के प्याले....... 
जो भी बोलता बम बम भोले......
खुलते हैं किस्मत के ताले..........


नीलकंठ डमरू वाले पीते हैं विष के प्याले.....
🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉


प्यारा पुत्र हैं एक षडानन........
दूजे विनायक देखो गजानन....
गौरापति श्री महादेव है .......
सारी सृष्टी के रखवाले.........


नीलकंठ डमरू वाले पीते हैं विष के प्याले..... 
🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉


सृष्टि के हैं भाग्यविधाता......
जिनकी कृपा दृष्टि जन पाता.....
कालों के भी महाकाल हैं..........
क्रोधी भी हैं और रखवाले.........


नीलकंठ डमरू वाले पीते हैं विष के प्याले.....
 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉


भोले की तो आन रिद्धि है......
भोले की तो शान सिद्धि है.....
शीश विराजे गंगा मईया........
भूत प्रेत  संगी मतवाले.........


नीलकंठ डमरू वाले पीते हैं विष के प्याले..... 
🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉


गले मुंड की शोभे माला.......
दुखीयों के हैं दीनदयाला......
नंदी सम्मुख सदा विराजे......
ऐसे शंभू भोले भाले...........


नीलकंठ डमरू वाले जिनके हैं सब चाहने वाले...
🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉
नीलकंठ डमरू वाले पीते हैं विष के प्याले..... 
🕉 🕉 🕉 🕉 🕉 🕉


     🌻 🚩रोहित मित्तल ❝रोहित❞🚩 🌻 
       🌻  {R.K.OPTICAL❜S } 🌻 
          🌻 {मौलिक स्वरचित } 🌻 
            🌻     लखीमपुर-खीरी   🌻 
               🌻  9889862286🌻


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक सवैया



मुख डारे केश राशि शोभित वो अधरन मधु छलकाती हैं।
सुधबुध खोए सब देखत ही वह  अइसे  नैन  मिलाती हैं।
मनमोहक रूप अनूप लिये  चढ़ि  झरूखा मृदु  मुस्काती हैं।
"अभय" कैसे बखान करै वह ह्रदय को बहुत सुहाती हैं।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


प्रिया सिंह लखनऊ

महबूब के हाथों से चॉकलेट खा....रहें थें वो
जाने कौन सा त्यौहार था जो मना रहें थें वो 



Priya singh


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

दोहा


कैसे  कह   दूँ  बेवफ़ा,  तुमको  मैं  सरकार।
लब पर तल्ख़ी हैं मगर, दिल  में रहता प्यार।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


अनीता मिश्रा सिद्धि झारखण्ड

मन से मन का बन्धन हो।
💐💐💐💐💐💐


तुम भी मौन  मैं भी मौन,
फिर भी दोनों के हृदय में स्पंदन हो।


तुम मत सोचो न मैं सोचूँ,
फिर भी भावों का सँगम हो।


मैं हूँ दूर तुम भी दूर ,
मिलन की बस तड़पन हो।


तुम मत गाओ नहीं मैं गाऊँ,
फिर भी सुरों का नर्तन हो।


इस बसन्त में आज है कहना,
मन से मन का बंधन हो।


अनीता मिश्रा 
8/2/2020
💐💐💐


रवि रश्मि 'अनुभूति ' मुंबई

 


    गीत 
÷÷÷÷÷÷÷
प्रदत्त पंक्ति --
मोहन मधुर बजाए बंशी , 
      प्रेम मगन हो इतराऊँ ।
मात्रा भार  --  16 , 14 .


धुन कोई भी गाये बंशी , 
      मैं भी संग सदा गाऊँ ।
मोहन मधुर बजाए बंशी , 
      प्रेम मगन हो इतराऊँ ।।


लहरें मन में उठें तरंगित , 
      झूम झूम लो उतरातीं ।
मचल मचल कर अब देखो तो , 
      अपना ही हाल सुनातीं । 
मैं भी लहरा कर सुन लो अब , 
      डगमग बोली मैं जाऊँ।।
मोहन मधुर बजाये बंशी , 
      प्रेम मगन हो इतराऊँ ।।


मन में मोहन बसते सुन लो , 
      सदा रहें बातें यूँ ही ।
धड़कन में बसते हैं मोहन , 
      गाते रहते बस यूँ ही ।
रूठें नहीं कभी भी गिरिधर , 
      रूठें तो अभी मनाऊँ ।।
मोहन मधुर बजाये बंसी , 
      प्रेम मगन हो इतराऊँ ।


प्रेम पंथ ही जानूँ मैं तो , 
      और न जानूँ अब राहें ।
मैं उबरूँ तब ही तो सुन लो , 
      मोहना थाम लो बाँहें ।।
अधरों से मुरली अभी लगा , 
      धुन मधुर सुन मै बजाऊँ।
भक्ति भावना भर दो अब तो , 
     भव सागर मैं तर जाऊँ ।।
मोहन मधुर बजाए बंशी , 
      प्रेम मगन हो जाऊँ ।।
%%%%%%%%%%%%%%


संजय जैन (मुंबई )

*एक चेहरा दिखता है*
विधा : कविता


जहाँ पर हम होते है, 
वहां पर तुम नहीं होते।
जहाँ पर तुम होते हो, 
वहां पर हम नहीं होते।
फिर क्यों रोज सपने में, 
तुम मुझको दिखते हो।
 न हम तुमको जानते है,  
 और न ही तुम मुझको।।


ख्बवो का ये सिलसिला , 
 निरंतर चलता जा रहा।
हकीकत क्या है इसका,  
 नहीं है हमको अंदाजा।
किसी से जिक्र इसका,  
 मैं कर सकता नहीं ।
कही जमाने के लोग,
हमें पागल न समझ ले।।


रब से मै करता हूँ ,  
सदा एक ही प्रार्थना।
सदा खुश वो रहे,  
दुआ करता है संजय।
की तुम जो भी हो,
और रहते हो जहां पर।मिले सुखी शांति तुमको,
सदा अपने जीवन में।।


अनजाने में कभी मुझको,   
 अगर तुम मिल गए।
तो नज़ारे मत फेर लेना,  
हमें अनजान समझकर।
कही रब को भी हो मंजूर,  
हम दोनों का ये मिलाना।
की तुम दोनों बने हो बस, 
एकदूजे के साथ रहने को।।


 जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई )
09/02/2020


एस के कपूर श्री हंस बरेली।

*विविध हाइकु।।।।।।।।।*


क्यों कैसे जाने
सुन के नहीं    देखें
तभी ही माने


अनजाने  में
गलती हो जाये तो
क्षमा मांग लें


जीवन डोर
प्रभु के हाथ छोर
न उसे छोड़


ये बचपना
जीवन का ये हिस्सा
एक सपना


रिश्तों के धागे
रखना   संभाल के
प्यार हैं   मांगे



वो जो थे हीरो
वक़्त  की  मार से
बनते   जीरो


*रचयिता।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।।।।।बरेली*
मोब        9897071046
              8218685464


एस के कपूर श्री* *हंस।।।।।।।।।।।।बरेली।

*जिन्दगी हँसाती भी है, रुलाती*
 *भी है।।।।।।।।।।।मुक्तक*


जिन्दगी हर समय हमें यूँ
ही जगाती  रहती है।


क्या कर रहे गलत हमें ये
भी बताती  रहती है।।


हंसाती भी यही  जिन्दगी
ये  है    गिराती   भी ।


जीते जो बस   अपने लिये
उन्हें रुलाती रहती है।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।।।।।बरेली।।।*
मोबाइल  9897071046
              8218685464


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली।*

*विषय।।।।।।।।।प्रेम।।।।।।।।।।*
*शीर्षक।।।।।सबसे सरोकार ही जीवन है।।।।।।।*
*।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।*


जीवन प्रभु  का  दिया एक
अनमोल सा उपहार है।


मूल उद्देश्य  इसका  रखना
सबसे प्रेम सरोकार है।।


एक ही  मिला  जीवन फिर 
यह मिलेगा न  दोबारा।


यही हो भावना   कि  सारा
संसार एक परिवार है।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।।।।बरेली।।।।।*
मोबाईल   9897071046
                8218685464


एस के कपूर श्री हंस* *बरेली।*

*हम खुद ही बिछाते हैं काँटे*
*अपनी राह में।।।।मुक्तक।।*


क्यों दिल में  इतनी  नफरत
और गुबार पाले  है।


आँखों  में  लिये   घूमता  तू 
ये  कैसे   जाले  है।।


जीवन का  सफर  तय होता
अमन ओ  सकूं से।


तू खुद ही क्यों बना रहा पांव
अपने  में  छाले है।।


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
*मोबाइल*        9897071046
                   8218685464


निशा"अतुल्य"

*घरौंदा*
9/2/ 2020


मैं स्त्री 
बहुत कुछ संजोती हूँ खुद में
न जाने कितनी यादों के घरौंदे 
मेरे सीने में बने हैं ।
न जाने कितनों को पनहां देते हैं।
अक्सर सुना है मैंने 
की बाबुल के लिए पराई बेटी
पर अनुभव नही हुआ कभी
फिर बालम के घर 
दूसरे घर से आई नही सुना कभी।
हां अक़्सर लोगों से सुना कि 
स्त्री तेरा कोई घरौंदा ना बना
पर मैं करती हूं विरोध 
ऐसी भावनाओं का 
क्यों 
क्योंकि स्त्री वो सकारात्मक ऊर्जा है
जहां भी बैठी
पूरा घर उसके चारों ओर घूमता है।
और मेरा घरौंदा वहीं बन जाता है 
जहां मेरा कदम पड़ता है 
मैं स्त्री 
जंगल में भी मंगल कर 
प्राण फूँक देती हूं
उजड़े हुए दयारों में भी
स्पंदन भरती हूँ।
क्या है कोई घरौंदा मेरे बिना
जो लगे जीवंत 
महकता गुनगुनाता 
अपने मनोभाव जताता ।
हर घरौंदा जीवंत होता है 
माँ की उपस्थिति से 
हर नारी एक मातृत्व ही है 
हर रिश्ता निभाती माँ ही लगती 
चाहे बहन,भाभी, बेटी किसी भी रिश्ते में बंधी ।
बहार भी नही आती उस बिन 
जिस घर में स्त्री नही मुस्काती 
वो घर ईंट पत्थर के दीवारों का नक्शा भर है 
बिन स्त्री घरौंदा नही बन पाता ।
स्त्री की उपस्थिति जहां हो जाती
बहार गुंजों में खिल जाती
हर दीवार स्नेह से महक जाती 
हर वो जगह घरौंदा बन जाती ।
तो कभी न कहना नारी कि
मेरा कोई घर नही 
तेरा वजूद ही तेरे अपने परायों का घरौंदा हैं
जिसमें तूने ना जाने क्या क्या सजा रखा है 
स्त्री तू ख़ुद में प्रभु की बनाई वो कृति है
जो सृष्टि चलाने को बनी है
खुद में ही तू सम्पूर्ण घरौंदा है।


निशा"अतुल्य"


कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे करूणानिधान दया करो
**********************
हे करूणानिधान दया करो
अपनी कृपा बनाए रखें
हम अज्ञानी  तेरी शरण में
हमें सही राह बताना प्रभु।


ये जीवन तुम्ही ने दिया है
राह भी तुम्हें बताओ प्रभु
हो  गई है भूल कोई तो
राह सही बताओ प्रभु ।


कभी किसी बुरा न करुं
दया भाव हो हृदय में
मस्तक तुम्हारे चरणों में हो
ऐसी बुद्धि दे दो प्रभु।


हे करूणानिधान दया करो
जग में न कोई किसी जीव को
पीड़ा कभी न पहुंचाएं प्रभु
ऐसी सब की बुद्धि कर दो।
**************************
कालिका प्रसाद सेमवाल
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


प्रतिभा प्रसाद कुमकुम

,            *प्रतिभा प्रभाती भाग //२//* 
-------------------------------------------------------------------------
दीपों सी जगमग आलोकित , आज प्रभाती आई  ।
खुशियाँ लाई संग संपदा , घर की तमस हटाई  ।
पटल के सारे मित्रों को भी , वंदन नमन कहाई ।
नेह नमन के साथ मैं कहती  , गंध बाग की लाई ।
पावन परम सुगम्य रोशनी ,  दीपों  ने  फैलाई ।
नेह नमन  स्वीकार करें अब ,  पावन परम प्रभाती  ।
पुण्य नेह सौगातें लाई  , धरम सनातन थाती   ।।



🌷 प्रतिभा प्रसाद कुमकुम 🙏🏻🙏🏻🙏🏻


गंगा प्रसाद पाण्डेय भावुक

जिन्होंने जानें लुटायीं 
यहाँ गरियाये गये।


बटवारे के जिम्मेदार
नोटों पे छपाये गये।


आजादी के दीवाने
फांसी पे चढ़ गये।


जयचन्दों की चांदी
मालामाल हो गये।


शहीदों के परिवार
देखो तंगहाल हो गये।


भाई चारे की आड़
हम चारा बन गये।


देश भक्त सारे
छुहारा बन गये।


देश द्रोह उगल के
यदि दिल्ली जीत गये।


समझो कब्र के सारे
हत्यारे जग गये।।।


भावुक


नमस्ते जयपुर से-- डॉ निशा माथुर🙏🍫 हैप्पी चॉकलेट डे

आज कुछ मीठा हो जाये तो चॉकलेट के संग हो जाये।
इस वैलेंटाइन पर मस्त फागुन की भी भांग मिलाएं ।
कुछ आप खाएं, कुछ खिलाएं और कुछ हम खायें।
मौसम का दस्तूर हुआ है, अपनों संग मस्त मलंग हो जाएं।
..................................
तो आज इस चोकलेट डे पर कुछ न कुछ तो बनता है
अपने अपनों को गिफ्ट में एक चॉकलेट तो बनता  है।


आप आज अपने अपनों को जरूर से चॉकलेट तो गिफ्ट करेंगे ही इसी शुभकामनाओं के साथ🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🍫🍫🍫🍫💐💐💐💐🍫🍫🍫🍫
नमस्ते जयपुर से-- डॉ निशा माथुर🙏🍫 हैप्पी चॉकलेट डे🍫


अतुल मिश्र गायत्रीनगर अमेठी

    [विस्मृत हुआ कर्तव्य]


लाचार है मात-पिता,
पुत्र नही श्रवण।
हर घर की है ये दशा,
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।।


 मन संकुचित हो रहा,
स्वयं पुत्र रत्न।
निष्ठुर हो गया या,
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।।


मिला हुआ वो जख्म,
फूटा हुआ है अंश।
कर्म प्रताप का व्यय यह, 
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।।


  मातृ-पितृ की ममता का,
  हो रहा विध्वंस।
  दुनिया की यह बनीं प्रथा, 
  विस्मृत हुआ कर्तव्य ।। 


उम्मीद टूटी, भ्रम झूठा, 
हार गया हर जत्न। 
मानवता पर अभिशाप यह, 
विस्मृत हुआ कर्तव्य ।। 


............ ATUL MISHRA................


चंचल पाण्डेय 'चरित्र' बिहार

*•••••••••••सुप्रभातम्•••••••••••*
                *छंद-दोहा*
सतत सत्य चित साधना, अंतस  रख प्रभु राम|
नियत लक्ष्य कर बढ़ चलो, हिय कर के निष्काम||
सकल शुभग शुभ सुयश रहे, शुभकृत् शुभद सुकर्म|
शुभा शुभान्वित शुभ करें, छाँड़े सकल बिकर्म||
नवल नयन नव चेतना, नव ऊर्जा नव सार|
दिव्य दिवाकर रश्मियाँ, करें शक्ति संचार||
                    चंचल पाण्डेय 'चरित्र'


धीरेन्द्र द्विवेदी बभनियांव लार रोड देवरिया

प्रणाम आदरणीय
काव्य रंगोली पत्रिका के अप्रैल 2020 अंक हेतु एक रचना प्रेषित है। 



मन में कोई बात नहीं है फिर भी रोता गाता है ।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है ।।


भटका भटका राहें खोजे
मंजिल जाने मिले कभी। 
प्रीत निभाने के चक्कर में
मन हारा है सदी सदी। 


खोना पाना रीत बनी है
मन खुद को भरमाता है।। 
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।। 1


कहते हैं चंचल होता है
रुकता थमता भला कहाँ? 
तितली सा उड़ता रहता है
वन उपवन में यहाँ वहाँ। 


सूखी धरती में सरिता हो
बाण वही चलवाता है।। 
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।।2


मन हारा है मन जीता है
मन में सारे रोग भरे।
मन में जादू टोने बसते
मन में जोग कुजोग भरे।।


और कभी आंखों से जी भर देख स्वयं बहलाता है।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।। 3


एक सहारा मन है मेरा
एक सहारा हैं बातें। 
दिन में तुझको जपता रहता
करवट में कटती रातें।


पर मन के मनके गिन गिन के मन में आश जगाता है।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।। 4


धीरेन्द्र द्विवेदी
ग्राम बभनियांव
पोस्ट लार रोड
जनपद देवरिया
पिन 274505
ई मेल dwivedidheerendra@gmail.com


अमित गुप्ता "साहिल"

"वो कहती है कि अब मेरी मोहब्बत में वो शिद्दत नहीं है.. 


फिर उसके हाथों की मेहंदी का रंग इतना गहरा क्यों है..?? 


वो सोच रही है कि खुश रह लेगी मुझसे दूर जा कर.. 


वो बस इतना बता दे कि फिर मायूस उसका चेहरा क्यों है..??"


🙏 *'सुप्रभात्'* 🙏


अमित *'साहिल'* गुप्ता


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


बलराम सिंह यादव अध्यात्म शिक्षक पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पण्डित राम नाम की महिमा

भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ।
राम नाम बिनु सोह न सोऊ।।
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी।
सोह न बसन बिना बर नारी।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जो श्रेष्ठ कवि द्वारा रचित बड़ी अनूठी कविता है वह भी राम नाम के बिना शोभा नही पाती।जैसे चन्द्रमा के समान मुख वाली सुन्दर स्त्री सब प्रकार से सुसज्जित होने पर भी वस्त्र के बिना शोभनीय नहीं हो सकती।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  सुन्दरकाण्ड के एक प्रसङ्ग में श्रीहनुमानजी लंकेश्वर रावण को यही बात समझाते हुए कहते हैं कि राम नाम के बिना वाणी शोभा नहीं पाती।अतः मद मोह को छोड़ कर विचारकर देखो।हे देवगणों के शत्रु!सभी आभूषणों से सुसज्जित सुन्दर नारी भी बिना वस्त्रों के अर्थात नग्न होकर शोभा नहीं पा सकती है।यथा,,,
राम नाम बिनु गिरा न सोहा।
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।
बसन हीन नहिं सोह सुरारी।
सब भूषन भूषित बर नारी।।
  इन चौपाइयों के माध्यम से गो0जी यह स्पष्ट करते हैं कि जैसे शास्त्र में नग्न स्त्री को देखना वर्जित और पाप कहा गया है भले ही सोलह श्रंगार किये हो वैसे ही रामनाम से हीन कविता को देखना,कहना और सुनना भी पाप है।किसी कवि ने कहा है--
जिस भजन में राम का नाम न हो उस भजन को गाना न चहिये।
 हिन्दी के मूर्धन्य कवि केशवदास जी ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रँथ रामचन्द्रिका में श्रीहनुमानजी व रावण के सम्वाद में लगभग यही बात कही है।
  अतः निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि काव्य के समस्त गुणों से परिपूर्ण कविता प्रभु के नाम के गुणगान के बिना सुशोभित नहीं हो सकती है और प्रभु के नाम से युक्त कविता सदैव प्रशंसनीय ही होती है, भले ही उसमें काव्यगत विशेषताएं कम हों क्योंकि साधुजन प्रभु के नाम से युक्त काव्य का ही श्रवण, गान और कीर्तन करते रहते हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...